Saturday, 29 February 2020

पाकिस्तान से निरंतर जीतने वाले , देश में उपस्थित मिनी पाकिस्तान से लगातार हारते नरेंद्र मोदी


कश्मीर से लगायत दिल्ली , लखनऊ , अहमदाबाद , आदि समूचे देश में पुलिस पर पत्थरबाजी कौन लोग और क्यों करते हैं ? यह भी क्या किसी से कुछ पूछने की ज़रूरत है ? जुमे की नमाज के बाद शहर दर शहर बवाल समूचे भारत में क्यों होता है ? मोहर्रम में दंगे क्यों होते हैं ? होली और दुर्गा पूजा के विसर्जन जुलूस पर हमला कौन करता है ? कभी किसी मंदिर , किसी चर्च , किसी गुरूद्वारे से किसी ख़ास मौके पर या सामान्य मौके पर किसी ने किसी को बवाल या उपद्रव करते हुए देखा हो तो कृपया बताए भी। अपने भाई को क्या बार-बार बताना होता है कि यह हमारा भाई है ? तो यह भाई चारा , सौहार्द्र , गंगा जमुनी तहजीब का पाखंड क्यों हर बार रचा जाता है। यह तो हद्द है। इस हद की बाड़ को तोड़ डालिए। 

इकबाल , फैज़ अहमद फ़ैज़ , जावेद अख्तर , असग़र वजाहत जैसे तमाम-तमाम नायाब रचनाकार भी अंतत: क्यों लीगी  और जेहादी जुबान बोलने और लिखने लगते हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र , मैथिलीशरण गुप्त , प्रेमचंद , जयशंकर प्रसाद , पंत , निराला , दिनकर , बच्चन , नीरज , मुक्तिबोध , धूमिल , दुष्यंत कुमार , अदम गोंडवी आदि तो हिंदुत्व की भाषा नहीं बोलते और लिखते। भले भाकपा के महासचिव डी राजा अपनी नीचता और घृणा में कहते फिरें कि हिंदी , हिंदुत्व की भाषा है। अच्छा गजवा ए हिंद की अवधारणा का कितने बुद्धिजीवी निंदा करते हैं ? समूची दुनिया आखिर इस्लामिक आतंकवाद से क्यों दहली हुई है ? शाहीनबाग का शांतिपूर्ण धरना क्यों समूचे देश में हिंसा और दंगे की पूर्व पीठिका तैयार करता है। मुझे नहीं याद आता कि गांधी या जे पी आंदोलन ने कभी कोई हिंसात्मक आंदोलन किया हो ? हां , पुलिस की लाठियां और  अत्याचार ज़रूर भुगते लोगों ने। जालियावाला बाग़ में नृशंस हत्याओं के बाद भी , तमाम अत्याचार के बाद भी गांधी आंदोलन हिंसात्मक नहीं हुआ। सिर्फ एक चौरीचौरा के हिंसक हो जाने से , थाना जला देने से गांधी ने पूरे देश से आंदोलन वापस ले लिया था। यह कहते हुए कि ईंट का जवाब पत्थर नहीं हो सकता। इस तरह से तो पूरी दुनिया समाप्त हो जाएगी। कश्मीरी पंडितों के साथ कश्मीर में गजवा ए हिंद के कायल लोगों ने क्या-क्या नहीं किया पर कश्मीरी पंडितों ने आज तक कोई हिंसा नहीं की। कभी कोई हथियार नहीं उठाया। यहां तक कि अन्ना आंदोलन में तमाम अराजक लोगों के शामिल होने के बावजूद कभी कोई हिंसा नहीं हुई। रामदेव भले सलवार समीज पहन कर भागे पुलिस से डर कर लेकिन उन के लोगों ने भी कभी कोई हिंसा नहीं की। नो सी ए ए लिख-लिख कर अपने समुदाय के लोगों के घर और दुकान बचाने की रणनीति बनाने वाले लोग दूसरों की संपत्ति और जान की कीमत क्यों नहीं समझी। दिल्ली के मुस्तफाबाद , सीलमपुर , जाफराबाद जैसी जगहों को लोग खुलेआम पाकिस्तान कहते हुए क्यों गुस्सा हो रहे हैं ? हाजी ताहिर हुसैन के घर जिस तरह बेहिसाब पत्थर , तेज़ाब , पेट्रोल बम , गुलेल आदि बरामद होना क्या बताता है। आई बी कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या क्या कहती है ? जाने कितने ताहिर हुसैन दिल्ली समेत समूचे देश में फैले बैठे हैं। अभी सब के वीडियो तो हैं नहीं। फिर जाने कितने ताहिर हुसैन अभी सामने आने शेष हैं। कांग्रेस की पार्षद इशरत जहां भी दंगा फ़ैलाने के आरोप में गिरफ्तार हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी , जामिया मिलिया आदि में ही ऐसी मुश्किलें क्यों बरपा होती हैं। 

यह जिन्ना वाली आज़ादी का क्या मतलब है ? अगर सोशल मीडिया न होता , लोगों के पास मोबाइल न होता , लोग वीडियो न बनाते तो सारा सच आर एस एस , भाजपा के इन के गढ़े नैरेटिव में दब कर रह जाता। अब सच सब के सामने है। भाई चारा का पाखंड भी। मैंने अपने पत्रकारीय जीवन में ऐसे तमाम लोग देखे हैं जो लोग पहले तो बाकायदा दंगा करते करवाते हैं फिर पुलिस जब रगड़ाई करती है तो यही लोग कपड़ा और चोला बदल कर भाई-चारा कमेटी बना कर हिंदू-मुस्लिम एकता का पाखंड करने लगते हैं। सौहार्द्र की पेंग मारने लगते हैं। दुर्भाग्य से वामपंथ का चोला पहन कर कुछ लेखक , कवि भी अब घृणा और नफरत की भाषा लिख कर इन्हें अभयदान देते रहते हैं। तय मानिए कि अगर हाजी ताहिर हुसैन के घर की छत से संचालित हिंसा और दंगे की वीडियो उस के पड़ोसियों ने बनाई होती , उस का दंगाई रूप नंगा कर सामने न रखे होते तो वह भी बगुलाभगत बन कर बाकायदा किसी भाई चारा कमेटी का मुखिया बन कर हिंदू मुस्लिम एकता , सौहार्द्र आदि की मीठी-मीठी बातें कर रहा होता। एफ आई आर दर्ज होने तक कर भी रहा था। बिलकुल किसी फ़िल्मी खलनायक की तरह उस ने अपने बचने की भी कितनी तो तैयारी कर रखी थी कि एक बार तो उस की रणनीति का लोहा मानने को जी चाहता है। अपने घर की जिस छत से वह दंगा संचालित कर रहा था , वहीँ से अपनी वीडियो खुद बना कर पुलिस कमिश्नर से अपनी मदद की गुहार भी कर रहा था। डरा हुआ यह ताहिर हुसैन अपने घर के किसी कमरे में नहीं , अपनी छत से वीडियो बना रहा था। ताकि उस के घर के आस-पास की आगजनी और धुआं आदि भी दिखे। जो आग उस ने खुद लगाई थी। याद कीजिए कि ऐसे ही कभी आमिर खान , नसिरुद्दीन शाह , शाहरुख खान और वह 10 साल उप राष्ट्रपति रहा हामिद अंसारी भी डरा हुआ था। और कि इसी डर में अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की फोटो बनी रहे , इस की पैरवी भी कर रहा था। अजब था यह डर भी। दिलचस्प यह कि जिन्ना की वह फ़ोटो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अभी भी बाकायदा उपस्थित है। और यह डरे हुए लोग गजवा ए हिंद का सपना पूरा करने की गरज से समूचे देश को डराने में मुब्तिला हैं। 


अच्छा दिल्ली की सड़कों पर सीना ताने गोलियां चलाता वह शाहरुख ? सिपाही को धक्का देता , गोलियां चलाता कितना तो डरा हुआ था , देखा ही होगा आप ने। लेकिन नैरेटिव कैसे बदला जाता है यह भी देखा आप ने ? मुहिम सी चला दी गई कि यह तो अनुज मिश्रा है , शाहरुख नहीं। और तो और इस मुहिम में नीरा राडिया की दलाली गेम की ख़ास हस्ताक्षर बरखा दत्त भी ट्वीट लिख कर शामिल हो गईं। जस्टिस मुरलीधर जैसे कांग्रेस के पिट्ठू लोग जो कभी चिदंबरम के जूनियर रहे थे , सोनिया गांधी के नॉमिनेशन के वकील रहे थे , कैसे तो एकतरफा आदेश जारी कर ऐसी हिंसा में सहभागी बन लेते हैं। 

ऐसे लोगों की शिनाख्त बहुत ज़रूरी है। शिनाख्त भी और देश को सचेत भी रहना ज़रूरी है। नहीं जो लोग संविधान की आड़ में दिल्ली जैसी जगह में तीन महीने से किसी सड़क को बंधक बना कर दिल्ली हिंसा की खामोश पीठिका बना सकते हैं। दिल्ली को कश्मीर बना कर सीरिया की तरह धुआं-धुआं बना सकते हैं , बार-बार बना सकते हैं वह लोग कुछ भी कर सकते हैं। यही नहीं देश और मनुष्यता को बचाने खातिर एक बड़ी और फौरी ज़रूरत है जनसंख्या नियंत्रण और कॉमन सिविल कोड लागू कर शहर-शहर बसे मिनी पाकिस्तान को उजाड़ना। मिली-जुली आबादी कभी दंगाग्रस्त नहीं होती। मिनी पकिस्तान नहीं बनती। चाहिए कि मिनी पाकिस्तान में रह रहे लोगों को सरकार नियोजित ढंग से मिली-जुली आबादी में बसाने की योजना बनाए। और अमल में लाए। गंगा जमुनी तहज़ीब , भाई चारा आदि की अवधारणा तभी पुष्पित और पल्ल्वित होगी। नहीं जाने कितने पाकिस्तान बनाने और देने के लिए आप तैयार रहिए। आप मानिए न मानिए गजवा ए हिंद तो आप के सिर पर सवार है। सी ए ए उस का बाईपास है। शाहीनबाग उस की आक्सीजन। एक समय था कि मुस्लिम  राजा युद्ध में गायों का एक झुण्ड भी साथ रखते थे। जब हारने लगते थे तब गायों को वह झुण्ड सामने कर देते थे। हिंदू राजा का आक्रमण रुक जाता था। शाहीनबाग़ में औरतों , बच्चों को आगे कर यही किया गया है। पुलिस औरतों , बच्चों को छूने से सर्वदा बचती है। लेकिन अगला पक्ष इसी आड़ में माहौल बना लेता है। मान लेता है कि आप कायर हैं और वह विजेता। मोदी सरकार अपने तीन तलाक , 370  राम मंदिर के विजय के नशे में यहीं मात खा गई। बाक़ी कसर ट्रंप की खुमारी ने पूरी कर दी। कन्हैयालाल नंदन की एक कविता याद आती है :

तुमने कहा मारो
और मैं मारने लगा
तुम चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं हारने लगा
माना कि तुम मेरे योग और क्षेम का 
भरपूर वहन करोगे
लेकिन ऐसा परलोक सुधार कर मैं क्या पाऊंगा 
मैं तो तुम्हारे इस बेहूदा संसार में 
हारा हुआ ही कहलाऊंगा 
तुम्हें नहीं मालूम
कि जब आमने सामने खड़ी कर दी जाती हैं सेनाएं 
तो योग और क्षेम नापने का तराजू
सिर्फ़ एक होता है/ कि कौन हुआ धराशायी 
और कौन है
जिसकी पताका ऊपर फहराई 
योग और क्षेम के 
ये पारलौकिक कवच मुझे मत पहनाओ 
अगर हिम्मत है तो खुल कर सामने आओ 
और जैसे हमारी ज़िंदगी दांव पर लगी है 
वैसे ही तुम भी लगाओ

तो तमाम अगर , मगर , किंतु , परंतु के बावजूद पाकिस्तान से निरंतर जीतते रहने वाले , देश में उपस्थित मिनी पाकिस्तान से लगातार हारते नरेंद्र मोदी के तथ्य को हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। कांग्रेस और कम्युनिस्ट के लोग आम चुनाव में भले निरंतर साफ़ होते जा रहे हों पर देश को बांटने और तोड़ने की मुहिम में पूरी तरह विजयी हैं। नरेंद्र मोदी पराजित। पूरी तरह पराजित। 15 करोड़ लोग सचमुच 100 करोड़ लोगों पर ही नहीं , देश पर भी बहुत भारी पड़ गए हैं। वारिस पठान ने वह धमकी कोई झूठ-मूठ में नहीं दी थी। इसी लिए फिर दुहराता हूं कि देश को एक नया और कड़ा गृह मंत्री चाहिए। सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा। जो देश को एकसूत्र में पिरो सके। मिनी पाकिस्तान को तार-तार और गजवा ए हिंद की अवधारणा को पूरी तरह नेस्तनाबूद करने वाला गृह मंत्री। जैसे हैदराबाद में पटेल ने सेना उतार कर निजाम के दांत खट्टे किए थे। जैसे स्वर्ण मंदिर में सेना भेज कर इंदिरा गांधी ने भिंडरावाले और खालिस्तानियों के दांत खट्टे किए थे। ठीक वैसे ही अगर देश को अखंड और सुरक्षित रखना है तो मिनी पाकिस्तान को तार-तार कर उजाड़ना ही होगा। फिलिस्तीन की तरह कड़ा फैसला लेना ही होगा। चीन जैसे अपने यहां मिनी पाकिस्तान को सबक दे रहा है। फ़्रांस , रूस , अमरीका , श्रीलंका , किस-किस का नाम लूं। सब यही कर रहे हैं। देश की एकता , अखंडता और मनुष्यता के लिए यह बहुत ज़रूरी हो गया है। नहीं , सोवियत संघ और ग्रेट ब्रिटेन की तरह टूटने के लिए तैयार रहिए। सीरिया की तरह धू-धू कर जलने के लिए तैयार रहिए। सी ए ए के नाम पर कुछ झांकी मिल चुकी है। ट्रेलर देख चुका है देश और दिल्ली भी। पूरी फिल्म देखना कितना त्रासद होगा सोच लीजिए। इस त्रासदी को देखने के लिए देश तैयार नहीं है। न मनुष्यता।

2 comments:

  1. As stated by Stanford Medical, It is in fact the SINGLE reason women in this country live 10 years longer and weigh on average 42 pounds lighter than us.

    (And realistically, it has absolutely NOTHING to do with genetics or some secret diet and EVERYTHING around "how" they are eating.)

    BTW, What I said is "HOW", not "WHAT"...

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