Friday, 26 October 2018

पहली प्राथमिकता पुलिस को सभ्य और सम्मानित नागरिक बनाने की है

खबर है कि उत्तर प्रदेश पुलिस अपने सिपाहियों को शिष्टाचार की ट्रेनिंग देगी । ख़ास कर लखनऊ में । विवेक तिवारी की हत्या और उस के बाद हत्यारे सिपाही के पक्ष में गोलबंद हो रही पुलिस की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की गरज से यह सब हो रहा है । कि पुलिस बगावती हो कर आंदोलन पर न आमादा हो जाए । फिर भी यह कोई नई कवायद नहीं है । यह सारी कवायद पुलिस में चुपचाप चलती ही रहती है । यहां तक कि बिना किसी दंगे आदि के भी दंगों आदि को रोकने के लिए कादम्बरी जैसे अभ्यास भी जारी रहते हैं । लेकिन यह सब न सिर्फ कागजी होता है , बल्कि सिर्फ कवायद ही साबित होता है । इस का हासिल कुछ नहीं निकलता । अस्सी के दशक की बात है । कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह मुख्य मंत्री थे । लखनऊ में तीन-चार पत्रकार शराब पी कर देर रात गश्त कर रहे पुलिस कर्मियों से लड़ बैठे थे । गाली-गलौज भी भरपूर । पुलिस वाले भी पिए हुए थे सो मामला ज्यादा बिगड़ गया । पत्रकारों ने स्कूटर से भागने की कोशिश की लेकिन स्कूटर समय से स्टार्ट नहीं कर पाए सो , पुलिस ने पत्रकारों को पकड़ कर हज़रतगंज थाने की हवालात में डाल दिया । उन में से एक पत्रकार की स्कूटर स्टार्ट हो गई थी तो वह भाग कर मेरे पास आए । मैं सोया हुआ था । काल बेल बजी तो उठा । रात के दो बज रहे थे । उन्हों ने सारा वाकया बताया और चाहा कि थाने जा कर साथी पत्रकारों को किसी तरह छुड़ा लाऊं । सभी साथी परिचित थे और उन में से एक हमारे अखबार के भी थे । मैं ने घर आए पत्रकार से कहा कि थाने जा कर यह काम तो तुम भी कर सकते हो । वह बोला , एक तो मैं मौके पर था , पहचान लिए जाने का डर है दूसरे , पिए हुए हूं तो मुश्किल हो सकती है । मुझे भी पकड़ा जा सकता है । मैं ने उसे बताया कि थाने वाने तो मैं जाता भी नहीं । और कोई बड़ा पुलिस अफसर तो दो बजे रात मिलने से रहा । लेकिन उस साथी ने बताया कि सुबह तक बात बिगड़ जाएगी । कहीं पुलिस ने मेडिकल करवा दिया तो बात कोर्ट तक जाएगी और बहुत बदनामी होगी । खर्चा-वर्चा अलग बढ़ जाएगा ।

थाने में फोन किया कई बार लेकिन उठा नहीं तो गया हज़रतगंज थाने । उन दिनों दारुलशफा में रहता था तो पांच मिनट में पहुंच गया । लंबे कद वाले इंस्पेक्टर आर पी सिंह बलिया के रहने वाले थे , पूर्व परिचित थे , थाने में मीटिंग ले रहे थे । इशारे से मुझे बैठने को कहा , मैं बैठ गया । थाने के सभी सहकर्मियों को शिष्टाचार सिखा रहे थे । कि किसी को बुलाना , पुकारना हो तो अबे-तबे या गाली-गलौज नहीं , मान्यवर , माननीय या श्रीमान या महोदय कह कर संबोधित करें । आदि-इत्यादि । दूसरे दिन से विधान सभा सत्र शुरू होना था । खैर दस मिनट में मीटिंग बर्खास्त हुई तो मैं ने समस्या बताई । वह बोले , कैसे छोड़ दें ? यह लोग तो हवालात में खड़े हो कर पूरे थाने की नौकरी खा लेने की धमकी दे रहे हैं लगातार । मेरी भी । मां-बहन अलग किए पड़े हैं । हम तो मेडिकल करवा कर बुक करने जा रहे हैं । मीटिंग की वजह से देरी हो गई । हम ने बताया कि शराब में कुछ भी हो सकता है । होश में नहीं हैं लोग जाने दीजिए । खैर किसी तरह वह मान गए । कहा कि दो गारंटी दे दीजिए व्यक्तिगत तौर से आप कि यह लोग गाली-गलौज करते हुए थाने से नहीं निकलें , शांति से जाएं । दूसरे , कल कहीं लिखा-पढ़ी या शिकायत वगैरह नहीं करें । और कि आप इन सब का मुचलका भर दीजिए । मैं मान गया । लेकिन हवालात में खड़े पत्रकार साथी मुझे देखते ही और जोश में आ गए । फिर से पूरे थाने की नौकरी खाने पर आमादा हो गए । फुल वाल्यूम में । बड़ी मुश्किल से समझाया तो लोग मान पाए । थाने से सब को विदा कर वापस इंस्पेक्टर के पास शुक्रिया अदा करने गया तो देखा कि इंस्पेक्टर खुद एक सब इंस्पेक्टर और तीन-चार सिपाहियों से गाली-गलौज कर रहे थे । क्या तो एक आई जी की भैंस को चराने , खिलाने वाला कोई आदमी नहीं खोज पा रहे थे यह लोग।

बात जब खत्म हो गई तो मैं ने धीरे से पूछा इंस्पेक्टर से कि अभी तो आप मीटिंग में सब को शिष्टाचार सिखा रहे थे और अब खुद गाली-गलौज पर आ गए । तो वह जोर से हंसे और बोले , शिष्टाचार सिखाने की मीटिंग करने के लिए आदेश आया था तो मीटिंग ले ली । बाकी पुलिस का काम बिना गाली-गलौज और मार-पीट के कभी चला है कि आज चलेगा ! उन्हों ने खुसफुसा कर कहा , जैसे आप के साथी लोग शराब के नशे में चूर हो कर हम सब की नौकरी खा रहे थे , तो उन का नशा कुछ देर का था , उतर गया , घर गए । उन्हों ने अपनी वर्दी को इंगित किया और बोले , ई वर्दी भी नशा है चौबीसों घंटे का । जो ई नशा उतर गया तो हम लोग एक मिनट काम नहीं कर पाएंगे ! तो पुलिस उत्तर प्रदेश की हो या हरियाणा या कहीं और की , ज़रूरत वर्दी का नशा उतारने की है । इस से भी बड़ी बात यह कि पुलिस सेवा में सुधार की भी बहुत ज़रूरत है । बारह घंटे , अठारह घंटे काम करने वाले से आप शिष्टाचार की उम्मीद क्यों करते हैं ? पहली ज़रूरत है कि आठ घंटे से अधिक ड्यूटी न करने दिया जाए दूसरे , परिवार साथ रखने के लिए घर आदि की अनिवार्य सुविधा भी थाना परिसर में सभी को दी जानी चाहिए। वेतन आदि भी ठीक किया जाए । पुलिस को जानवर बना कर रखा है हमारे सिस्टम ने । शिष्टाचार सिखाना दूसरी प्राथमिकता है , पहली प्राथमिकता पुलिस को सभ्य और सम्मानित नागरिक बनाने की है ।

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