प्रणामी सुन कर अभी लौटा हूं । मन चकाचक है । एक अरसे बाद ऐसी गमकती और खनकती शाम से मुलाक़ात हुई । मालिनी अवस्थी के गरिमामय गायन ने आज की शाम को रंग और उमंग से भर दिया । गिरिजा देवी की याद में सोनचिरैया द्वारा संत गाडगे प्रेक्षागृह में आयोजित प्रणामी में मालिनी को आज सुन कर कहने को दिल करता है कि शिष्या हो तो मालिनी अवस्थी जैसी हो । ऐसा शिष्य भाव मैं ने हिंदी साहित्य में भी एक नामवर सिंह में देखा है । नामवर सिंह भी अपने गुरु आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को जितना मान देते हैं और जिस तरह अपने गुरु के लिए बिछ-बिछ जाते हैं वैसे ही आज मैं ने मालिनी अवस्थी को देखा । मालिनी ने अपनी गायकी से न सिर्फ़ गिरिजा देवी को प्रणामी भेंट की बल्कि कई बार लगा कि गिरिजा देवी की आत्मा उन में प्रवेश कर गई है। वही ठसक , वही मटक , वही शोखी , वही अल्हणपन , वही चपलता और वही अंदाज़ । वही खटका , वही मुरकी , वही लोच , वही नखरा । और बीच गायकी में बड़ी नाजुकी से जैसे गिरिजा देवी तंबाकू खा कर चबाने लगाती थीं , ठीक वैसे ही मालिनी के सादा मसाला खाने का वही बेलौस अंदाज़ , वही मेच्योरिटी । गिरिजा देवी को सुनने का कई बार सौभाग्य मुझे मिला है । अस्सी के दशक में लखनऊ के दिलकुशा में पंडित हनुमान मिश्र के साथ उन की युगलबंदी जैसे मन में अभी भी बसी हुई है । पंडित हनुमान मिश्र की सारंगी और गिरिजा देवी का गायन । बीच गायकी में क्या तो चुहुल और क्या तो ठिठोली फोड़ती थीं गिरिजा देवी । इतना कि हनुमान मिश्र से गिरिजा देवी ने किसी षोडशी की तरह मचल कर किंतु लजाते हुए कहा कि छोड़िए सारंगी आप भी मेरे साथ गाइए । और यह देखिए पंडित हनुमान मिश्र गिरिजा देवी के साथ गाने भी लगे , सेजिया चढ़त डर लागे ! कुमार गंधर्व , भीमसेन जोशी या किशोरी अमोनकर जैसी गंभीरता का माहौल नहीं बुनती थीं अपनी गायिकी में गिरिजा देवी । हंसती बतियाती गाती थीं । मालिनी ने भी गिरिजा देवी से यही सरलता और सहजता सीखी है । मालिनी को गिरिजा देवी के साथ तानपुरे के साथ गायकी में संगत करते भी देखा है । गिरिजा देवी के सामने स्वतंत्र गायिकी भी देखी है मालिनी की । लेकिन मालिनी पर तब गिरिजा देवी का साया था । एक संकोच था तब उन की गायिकी में । लेकिन आज मालिनी की गायिकी में जो ठाट था , जो मनुहार और मादकता थी , जो परिपक्वता और पुकार थी , जो पुलक और पहचान थी वह अविरल और दुर्लभ थी । मालिनी की गायिकी में जैसे खांटी देसी घी का स्वाद था । वही खुशबू और वही लज्जत । मालिनी मारे चाव से गिरिजा देवी को अप्पा कह कर संबोधित करती रहती हैं । आज अप्पा कहने का अर्थ भी परिभाषित कर दिया अपनी गायिकी में । ऐसी प्रणामी को प्रणाम । मालिनी की गायिकी का यह मुकाम उन्हें बहुत दूर तक ले जाएगी ।
मालिनी अवस्थी को मैं बहुत शुरू से सुनता आ रहा हूं । गोरखपुर में उन के छात्र जीवन से । तब के दिनों वह स्टेज पर अपनी बड़ी बहन मल्लिका के साथ गाती थीं । मिर्ज़ापुर , झांसी में बचपन से ही संगीत की शिक्षा ले चुकी मालिनी ने उस्ताद शुजात हुसैन खान से आठ बरस तक शास्त्रीय संगीत सीखा । आकाशवाणी में भजन , गीत और ग़ज़ल गाए । पटियाला घराने के मशहूर ग़ज़ल गायक राहत अली तब उन के उस्ताद हुआ करते थे । वह गोरखपुर के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक पहचान और धड़कन सी थीं । किसी ताज़ा हवा की तरह , फूल की खुशबू की तरह । गोरखपुर से निकलीं तो लखनऊ के भातखण्डे में संगीत भी पढ़ने लगीं । संस्कृत और अंगरेजी साथ-साथ पढ़ने वाली मालिनी का तब ग़ज़लों पर खासा ध्यान था । मुझे याद है जगजीत सिंह तब मालिनी के आदर्श हुआ करते थे । वह जगजीत की लोकप्रियता का राज़ भी बताती थीं तब एक ख़ास अंदाज़ में । बताती थीं कि जगजीत की लोकप्रियता का राज़ छोटी बहर की ग़ज़लों का गाना है । लखनऊ में भी मालिनी को ग़ज़लें गाते देखा मैं ने । लेकिन उन की गायकी को वह मुकाम नहीं मिल पा रहा था , जो उन को मिलना चाहिए था । लेकिन मालिनी का मुक़द्दर उन्हें बनारस ले गया । बनारस में गिरिजा देवी का आशीर्वाद और सानिध्य मिला उन्हें । भातखण्डे की पढ़ाई साथ थी , सोने में सुहागा यह कि गिरिजा देवी की खास शिष्या बनते देर नहीं लगी । गिरिजा देवी ने शास्त्रीय गायन तो सिखाया ही मालिनी को लोक गायिकी से भी नाता जोड़ दिया । ग़ज़ल गाने वाली मालिनी को हम अचानक भोजपुरी और अवधी गाते देखने लगे । ज़ी टी वी के अंत्याक्षरी और संगीत कार्यक्रमों में मालिनी दिखने लगीं । एक टी वी कार्यक्रम जूनून में इला अरुण का साथ मिल गया मालिनी को । उस कार्यक्रम में तमाम कोशिश के वह विनर नहीं बन पाईं पर रनर अप ज़रुर बन गईं । पर उस से एक बात यह ज़रुर हो गई कि इला अरुण के प्रभाव में आ कर मालिनी परफार्मर बनने की दिशा में मुड़ गईं । धीरे-धीरे मालिनी बड़ी स्टेज परफ़ॉर्मर बन कर हमारे सामने उपस्थित हो गईं । भोजपुरी और अवधी के गीत गाती हुई । लोकप्रियता की तमाम सीढ़ियां चढ़ती हुई सफलता की डगर पर सरपट दौड़ती हुई । टी वी चैनलों पर फगुआ गाती , किसिम किसिम के परफॉर्म करती हुई । मुझे डर लगने लगा कि एक अच्छी खासी गायिका का अब क्या होगा । मित्रों से चर्चा करते हुए तकलीफ से भर कर कहता स्टेज परफ़ॉर्मर बन कर अपने को नष्ट करती हुई मालिनी अवस्थी का क्या करें , कैसे समझाएं उन्हें । कोई पांच-छ बरस पहले एक लेख में संकेतों में यही बात लिखी तो मालिनी हल्का सा बुरा मान गईं ।
लेकिन मालिनी को आज सुन कर लगा कि अरे तमाम स्टेज शो और चैनलों की सक्रियता के बावजूद मालिनी ने न सिर्फ अपने को बचा कर रखा है बल्कि बहुत समृद्ध भी किया है । मेरी वह चिंता धूल-धूसरित हो गई । मालिनी की गायिकी ने आज बहुत आश्वस्त किया । इस लिए भी कि जो शास्त्रीय संगीत बचा सकता है , वही लोक धरोहरों को भी सजा संवर कर संजो सकता है । मालिनी ने अपनी शास्त्रीय गायिकी को इतना चमका कर रखा है कि आज मैं अभिभूत हो गया । यह चमक , यह निखार बिना रियाज और बिना साधना के किसी सूरत संभव नहीं । फिर जिस तरह गिरिजा देवी जैसी बड़ी गायिका की गायकी को उसी लोच और उसी खनक के साथ , पूरी विनम्रता के साथ पेश करना कठिन काम था । कोई दो घंटे लगातार मालिनी आज गाती रहीं , बिना किसी ब्रेक के । मालिनी की गायिकी की फुहार में भीगते रहना आज बरसों याद रहेगा । सुधी संगीत समीक्षक यतींद्र मिश्र ने गिरिजा देवी की गायिकी की विस्तार से चर्चा करते हुए उसे मालिनी की गायिकी से जोड़ कर इतनी संजीदगी से पीठिका तैयार कर दी थी कि मालिनी के लिए एक चुनौती थी । लेकिन मालिनी की गायिकी की गमक ने इस चुनौती को बड़ी शालीनता से लांघ लिया ।
यतींद्र मिश्र |
महादेव की बंदिश शंकर शिव महादेव महेश्वर से मालिनी ने मन मोह लिया । फिर देखे बिना नहीं चैन में जो तान छेड़ी वह भीज जाऊं पिया बचाव लेव की गायिकी में गमक गई । आरोह अवरोह और उन की नाजुक अदायगी ने जैसे मालिनी की गायिकी को दिलकशी की उस नदी में बहा दिया जहां बचना नहीं डूबना ही लाजिमी था । फिर तो कैसी धूम मचाई में मालिनी की धूम मच गई । पता लग रहा था कि गिरिजा देवी ने कितनी मेहनत से अपनी शिष्या को तैयार किया है । फिर एक टप्पा गाने के बाद मालिनी होली पर आ गईं । रंग डारूंगी नंद के लालन पर की गायकी में मालिनी के क्या तो ठाट थे । मालिनी ने दो चइता भी सुनाए बिलकुल गिरिजा देवी के ही रंग और रस में , रात हम देखलीं सपनवा हो रामा पिया घर अइलैं में मालिनी की गायिकी का मधु ऐसे बह रहा था , गोया मधु की नदी हो । गया शैली के चइता बैरन रे कोयलिया तोरी बोली न सोहाय , में जो झूमी मालिनी वह तो अदभुत था । वह गा रही थीं , कौन देस तू जइबा बटोहिया मोरा संदेसा ले जावे और लोग आनंदित हो कर झूम रहे थे । वह जोड़ रही थीं आहिस्ता से , मदन रस जगाए तोरी बोली न सोहाय ! और लोग डुबकी मार रहे थे , फागुन में । उड़त अबीर गुलाल लाली छाई है जैसी फरमाईशी चीज़ें भी वह सुना रही हैं । जैसे गुहरा रही हैं अपनी गायिकी में चलो गुइयां आज खेलें होरी । उसी अल्हड़ता और चपलता के साथ जैसे गिरिजा देवी गाती थीं झूम-झूम कर । और यह देखिए मालिनी होरी खेलें रघुवीरा पूरे बनारसीपन के साथ गा रही हैं और श्रोताओं में से लोग साथ दे रहे हैं । साथ देने वालों में भी कौन ? एक से एक गायिकाएं । आकाशवाणी गोरखपुर में जब मालिनी नई-नई गाने गई थीं , गाना सीख ही रही थीं , तब वहां पद्मा गिडवानी वरिष्ठ गायिका हुआ करती थीं , केवल कुमार के साथ गाती थीं , पद्मा जी । वही पद्मा गिडवानी आज मालिनी की गायिकी में श्रोताओं में से साथ दे रही थीं , बिलकुल निश्छल भाव से , यह मैं देख रहा था । मैं यह भी देख रहा था कि कमला श्रीवास्तव जो कभी भातखण्डे में पढ़ाती थीं जिन के साथ मालिनी अवस्थी को मैं ने तत्कालीन राष्ट्रपति वेंकट रमन के एक कार्यक्रम में सरस्वती वंदना गाते देखा है , वही कमला श्रीवास्तव आज मालिनी के लिए तालियां बजा रही थीं और मालिनी के सुर में सुर लगा रही थीं दर्शक दीर्घा से , सामने बैठ कर । यह सब देखना मेरे लिए अविस्मरणीय सुख था ।
कार्यक्रम के बाद मैं और मालिनी अवस्थी |
तो क्या गिरिजा देवी भी अपनी इस शिष्या के लिए जहां कहीं भी होंगी वहां से तालियां बजा रही होंगी , सुर में सुर मिला रही होंगी । निश्चित ही ।
बहरहाल मालिनी आज मंच पर थीं और गा रही थीं , मियाँ नजरें नही आंदा वे , हाय रे बन्नी नोशा मेरा । मर्यादा पुरुषोत्तम राम को अपनी गायिकी में होली खेलते हुए दिखाती हुई , राम पहिरें फूलन का सेहरा । वह गिरिजा देवी को बार-बार याद कर रही हैं और गा रही हैं , तुम को आने में , तुम को भुलाने में कई सावन बरस गए साजन ! कार्यक्रम में मालिनी अपनी गायिकी के शिखर पर हैं और अंतिम दौर में । राग गौरी अहीर भैरव में गा रही हैं मालिनी , दीवाना किये श्याम क्या जादू डारा । वह गा रही हैं , उन गलियन में आना और जाना / और हम से करना बहाना / क्या जादू किया ।
सच आज मालिनी अवस्थी का जादू , उन की गायिकी का जादू सिर चढ़ कर बोला । मालिनी अवस्थी आप ऐसे ही गाती रहिए । आप की गुरु गिरिजा देवी बड़ी गायिका थीं , आप उन से भी बड़ी गायिका बनिए । वह जहां भी कहीं होंगी , आप को आशीष देंगी । इस लिए भी कि अभी आप के पास बहुत समय है , स्वास्थ्य है और सुविधा भी । फिर भारतीय परंपरा में यह है कि परमहंस विवेकानंद बनाते रहे हैं और विवेकानंद से परमहंस को लोग जानते रहे हैं । भगवान करें कि एक दिन मालिनी अवस्थी से लोग गिरिजा देवी को जानें । गिरिजा देवी इस बात पर हम से ज़्यादा खुश होंगी । अभी तो गिरिजा देवी सरस्वती बन कर आप में वास करती हैं , आप उन की गायिकी को ही नहीं अपनी गायिकी को भी आगे बढ़ाइए । इस लिए भी कि चकाचौंध और बाज़ार के दबाव में साफ-सुथरी गायिकी अब दांव पर है । गिरिजा देवी की वारिस तो आप हैं , शहनाई वादक बिस्मिला खां का वारिस शहनाई में अब कोई एक नहीं है । हनुमान मिश्र के बाद सारंगी का वैसा वादक कहां है । रवि शंकर के बाद सितार और तबला में किशन महराज के बाद कौन ? तमाम कलाओं में लोग हैं तो सही पर वह गुणीजन कहां हैं ? गुलाम अली खां के बाद लोग थे पर अब ?
मंच पर मालिनी अवस्थी के साथ संगत करते हारमोनियम पर पंडित धर्मनाथ मिश्र , तबले पर पंडित राम कुमार मिश्र और सारंगी पर मुराद अली खान |
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