तुम्हारे भीतर मैं ख़ुद को खोजता हूं
जैसे खो जाए भीड़ में कोई बच्चा
खो गया हूं भीड़ में तुम्हें खोजता हूं
अंधेरी रात हो घना जंगल और तुम
घने बादलों के बीच चांद खोजता हूं
धूप में जल जल कर छांह पाने के लिए
गुलमोहर की दहकती आग खोजता हूं
रोटी दाल की जद्दोजहद में सपना टूटा
अब तो पुराने गीतों में सुकून खोजता हूं
गुलमोहर की दहकती आग खोजता हूं
रोटी दाल की जद्दोजहद में सपना टूटा
अब तो पुराने गीतों में सुकून खोजता हूं
फूल पत्ती पक्षी आकाश मछली तालाब
पार जाने के लिए कोई नाव खोजता हूं
[ 24 जून , 2016 ]
इस ग़ज़ल का मराठी अनुवाद
तुला भेटतो, माझा विचार करतो
तुझ्या अंतर्यामी, मी मला शोधतो..
तुझ्या अंतर्यामी, मी मला शोधतो..
जसा गर्दीत हरवतो, कुणी मुलगा
हरवुनी गर्दीत मी तुला शोधतो..
हरवुनी गर्दीत मी तुला शोधतो..
रात काजळी, किर्र वन आणि तू
दाटलेल्या मेघांत चंद्र शोधतो..
दाटलेल्या मेघांत चंद्र शोधतो..
दाहलेल्या उष्णतेत,मिळवण्या छाया
धगधगत्या गुलमोहरात, अग्नि शोधतो..
धगधगत्या गुलमोहरात, अग्नि शोधतो..
पोळीभाजी च्या धावपळीतच
भंगले स्वप्न
आता तर जुन्या गाण्यांमधे
शांती शोधतो..
भंगले स्वप्न
आता तर जुन्या गाण्यांमधे
शांती शोधतो..
फुले पाने पक्षी आकाश मासोळी
जलाशय
पार जाण्यासाठी कुठलीशी होडी
शोधतो..
जलाशय
पार जाण्यासाठी कुठलीशी होडी
शोधतो..
अनुवाद : प्रिया जलतारे
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-06-2016) को "लो अच्छे दिन आ गए" (चर्चा अंक-2385) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
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