Monday, 7 March 2016

जातीय आग में कूद फांद कर देश जलाने आए हैं


फ़ोटो : अनिल रिसाल सिंह

ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

आरक्षण की ताकत को अब वह आज़माने आए हैं
जातीय आग में कूद फांद कर देश जलाने आए हैं

उन के मन में गहरी काई बैठी है जहर की जैसे 
इस जहरीली काई को और-और गहराने आए हैं
 
दुनिया चलती ज्ञान विज्ञान और अनुसंधान से ही
लेकिन वह जातीय अस्मिता के कुछ दाने लाए हैं

ब्राह्मण मनुवाद जैसे कुछ शब्द उन की झोली में 
कुतर्क की कुछ इबारतें हैं वह वही पढ़ाने आए हैं 

ब्लैकमेलिंग की एक बीन उन के पास सदा रहती 
वोट बैंक हैं वोट बैंक का झुनझुना बजाने आए हैं 

देश को मां कहने में शर्म उन्हें बहुत आती सदा
दुधारू गाय है देश इसी को मार डालने आए हैं 


[ 7 मार्च , 2016 ]

1 comment:

  1. सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
    महाशिवरात्रि पर्व की शुभकामनाएँ!!
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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