फ़ोटो : निखिलेश त्रिवेदी |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
जानम तुम्हारी तुम जानो हम हर हाल हैपी हैं
फागुन की मस्त दस्तक है हम हर हाल हैपी हैं
वसंत मन जोड़ देता है कि मौसम मोड़ देता है
मन के खेत में खड़ी सरसो के पीले फूल हैपी हैं
तुम फूल सी महको गमको सोने की तरह चमको
दूब पर हरसिंगार की तरह बिछ कर हम हैपी हैं
मन के दर्पण में ऐसे ही बरबस कूदो छलक जाओ
नदी में जैसे मछली कूदती रहती है वैसे ही हैपी हैं
गेहूं की बालियों में जैसे दूध पूरा उतर आया हो
औचक सौंदर्य के नयनाभिराम में भरपूर हैपी हैं
पानी अब कहां रहता है नदियों में कि धार गायब है
नदियों में बाढ़ आई है जैसे जवानी पा कर हैपी हैं
चांद की तरह चमको चाहे तारों की तरह चमको
गर्दिश सारे तुम्हारे ओढ़ लेंगे हम इसी में हैपी हैं
मनभावन गजल ।
ReplyDeleteमेरी २००वीं पोस्ट में पधारें-
"माँ सरस्वती"