फ़ोटो : गौतम चटर्जी |
ग़ज़ल
सचाई नेकी ईमान और तप आदमी को ख्वाजा बना देता है
इश्क कर के देखो इश्क आदमी को बादशाह बना देता है
परेशान करता है अकबर भी ख्वाजा को चमचों के चक्कर में
ख्वाजा तो ग़रीब नवाज़ है अकबर को भी दीवाना बना लेता है
औरंगज़ेब की तलवार और उस के खून खराबे में क्या रखा है
शाहजहां बन कर देखो जो मुहब्बत को ताजमहल बना देता है
सच मार खाता रहता है ईमानदारी से बड़ा कोई मज़ाक नहीं है
जुर्म कामयाब हो कर क़ानून को बेबस और लाचार बना देता है
फक्कड़ होना सच बोलना नदी की तरह बहना और सहना
घर फूंक तमाशा देखना ही आदमी को कबीर बना देता है
सहजता सरलता सजगता सलीका ज़न्नत का दरवाज़ा है
ऐंठ अकड़ अहंकार में जीना ज़िंदगी को नरक बना देता है
पानी से घिरा रह कर भी आदमी प्यासा रह जाता है
समुद्र में जहाज खो जाए तो वक्त ऐसे ही सज़ा देता है
यकीन न हो तो राजनीति के जंगल में उतर कर देखो
कुर्सी का दांव-पेंच आदमी को क्या से क्या बना देता है
[ 5 जनवरी , 2016 ]
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