है अपना दिल तो आवारा , न जाने किस पे आएगा
हर ग़म फिसल जाए , जब तुम साथ हो
मौसम ये रूठने मनाने का है
अपने दामन की ख़ुशबू बना ले मुझे
एक साथ यह तीनों फ़िल्मी गाने
गाने लगा हूं
सुनने लगा हूं
यह कौन सा मनोविज्ञान है भला
न जाने क्यों , न जाने क्यों
न-न घबराईए नहीं
यह भी एक गाना है
गाने बहुत हैं हमारे जीवन में
गाते रहने दीजिए
किसी एबस्ट्रेक्ट पेंटिंग की तरह
देखने दीजिए , जीवन को ।
[ 2 दिसंबर , 2015 ]
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