भाजपा के सहयोग से मुख्य मंत्री बने नीतीश कुमार सुशासन बाबू के नाम से
जाने गए। तय मानिए लालू प्रसाद यादव के सहयोग से मुख्य मंत्री बनने जा रहे
नीतीश कुमार कुशासन बाबू के नाम से जाने जाएंगे। बस देखते चलिए । क्यों कि
वह तो भुजंग हैं , पर यह चंदन नहीं हैं। अभी तो लाखों का एक सवाल यह है कि मीसा यादव उप मुख्य मंत्री होंगी कि तेजस्वी यादव ? यह तो पक्का है कि
लालू यादव की किसी एक संतान का उप मुख्य मंत्री बनना तय है । जंगल राज
पार्ट टू का आगाज़ है यह ।
इस तरह मोदी की हार , लालू की जीत में होना देश का दुर्भाग्य है। क्यों कि बाक़ी तो सब ठीक है लेकिन लालू प्रसाद यादव को बर्दाश्त करना टफ जाब है। वह नीतीश कुमार हों या कोई और । हर किसी के लिए वह न संभाल में आने वाले बंदर हैं । और तब तो और जब उस्तरा उन के हाथ में है । पचीस सांसद ले कर रेल मंत्री बन कर वह पूरी यूं पी ए सरकार को ठेंगे पर लिए रहने का ठाट गुज़ार चुके हैं । तो यहां तो वह नीतीश कुमार से ज़्यादा विधायक भी ले कर उपस्थित हैं । चारा घोटाले में सज़ायाफ्ता होने के नाते वह ख़ुद मुख्य मंत्री बन नहीं सकते तो क्या ? सुपर चीफ़ मिनिस्टर तो वह बन ही चुके हैं । इस लिए भी कि रवायत पुरानी है कि मनमोहन सिंह के पास सोनिया गांधी थीं , नरेंद्र मोदी के पास मोहन भागवत हैं तो नीतीश कुमार के पास लालू प्रसाद यादव हैं । आप सोचिए कि चेहरा नीतीश कुमार थे , सीट ज्यादा लालू की । अगर एक सीट भी नीतीश की लालू से ज़्यादा होती तो सरकार उन के हाथ में होती । अब तो नीतीश कुमार सरकार की ड्राइविंग ज़रूर करेंगे पर लालू का ड्राइवर बन कर, मालिक बन कर नहीं । वैसे भी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव पुराने प्रतिद्वंद्वी हैं जिन को भाजपा की बढ़त और मोदी की आक्रामक त्योरियों ने वक्ती तौर पर एक कर दिया है । और मोहन भागवत के एक आरक्षण के जुमले ने इन दोनों को ताकतवर बना दिया है ।
नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को एक बार मौखिक ही सही संघ के प्रमुख
मोहन भागवत को शुकिया तो कह ही देना चाहिए । सब से ज़्यादा मदद तो उन की
उन्हों ने ही की । आरक्षण समीक्षा की बेवक्त शहनाई बजा कर । आरक्षण , दाल और प्याज भाजपा को ले डूबेगी । मैं यह बात शुरू ही से कह रहा
था। बाक़ी नीतीश कुमार अब लालू प्रसाद यादव को , उन की अराजकता को , उन की
लंठई और उन की सनक को कैसे हैंडिल करेंगे , यह देखना दिलचस्प होगा।
रही बात
नरेंद्र मोदी की तो उन का , उन के अहंकार का तो काउंट डाऊन अब शुरू हो
चुका है। सारी तिकड़म धरी रह गई। नरेंद्र मोदी अब रावण हो चले हैं। जो अपने अहंकार और ज़िद में किसी की नहीं सुनते । दिल्ली जाए , चाहे बिहार , उन की बला से । एक खिड़की यह भी है कि अब शत्रुघन सिनहा और आर के सिंह भाजपा को कैसे देखेंगे और भाजपा भी इन्हें कैसे देखेगी , यह देखना भी दिलचस्प होगा । इस से भी ज़्यादा दिलचस्प यह होगा कि अब पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के चुनाव को भी भाजपा और उस के भस्मासुर किस नज़र और किस रणनीति के साथ देखेंगे । किस दाल , किस प्याज , किस गाय और किस आरक्षण के परीक्षण के साथ देखेंगे । अभी तो हम देख रहे हैं कि भाजपा के हारने से पकिस्तान में पटाखे छूटेंगे जैसा शर्मनाक और हताशा भरा बयान देने वाले अमित शाह का यह बयान उन पर भारी हो गया है । पटाखे पाकिस्तान में नहीं , भारत में ही फूट रहे हैं । अभी और फूटेंगे ।
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