कुछ फ़ेसबुकिया नोट्स
- अब लीजिए उधर पेरिस के आतंकवादी मारे गए और इधर पाकिस्तान के रावलपिंडी में भी आत्मघाती हमला ! हाय रे यह इस्लामी आतंकवाद ! आखिर कैसा दीन है तेरा ? किस की तू खिदमत कर रहा है ? क्या मंज़िल है तेरी? मनुष्यता से आख़िर इतनी दुश्मनी क्यों है तुम्हारी ?
- क्या यह वही समाज है , वही लोग हैं जो एक अपराधी और आतंकवादी की फांसी को भी मानवाधिकार का मसला बना कर मुहिम चला देते हैं । तूफ़ान खड़ा कर देते हैं। और आतंकवादियों और नक्सलियों द्वारा की गई हत्याओं का विरोध करने के बजाय लाईट बुझा कर सो जाते हैं। जैसे कुछ हुआ ही न हो। ख़ामोश हो जाते हैं । निश्चित रूप से यह भी अपराध है। इन अपराधियों की शिनाख्त और निंदा भी अब बहुत जरूरी हो गई है ।
निर्दोषों का खून बहाना,ये ग़ैबी इल्हाम नहीं है.
कत्लो-गारत रोज मचाना. ये तो ख़ुदा का काम नहीं है.
बोको हरम,आई.यस.आई हे लश्कर के गुमराहों,
मेरे पैगंबर का चलाया,ये सच्चा इस्लाम नहीं है.
- वाहिद अली वाहिद
बोको हरम,आई.यस.आई हे लश्कर के गुमराहों,
मेरे पैगंबर का चलाया,ये सच्चा इस्लाम नहीं है.
- वाहिद अली वाहिद
- रमेश उपाध्याय जी , लेखकों की यह तटस्थता भी कम अपराध नहीं है । माफ़ कीजिए, आप जैसे लेखक का खुल कर आतंकवादी घटना का विरोध करने के बजाय जलेबी छान कर किनारे हो लेना भी बहुत बड़ा अपराध है । यह बात आप जैसे लेखक को तो जाननी ही चाहिए । आतंकवादी कार्रवाई भी आप चाहते हैं गरमी-बरसात की तरह मान लिया जाए ? और आतंकवाद तथा आतंकवादी कार्रवाई भी आपसी नफ़रत का सबब कब से हो गई भला ? यह तो एक तरह से घुटनों के बल रेंगना हो गया ! आप से यह उम्मीद तो हरगिज़ न थी ।
"धर्म
के नाम पर आज दुनिया में जो आपसी नफरत फैल रही है, जो मारकाट मच रही है,
जो हत्याएँ हो रही हैं, जो जनसंहार हो रहे हैं, जो आतंकी..."
"ठहरिए, श्रीमान, यह कौन-सी भाषा आप बोल रहे हैं!"
"क्यों? हिंदी ही तो है?"
"हिंदी तो है, पर जो आप कह रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि यह सब स्वतः ही हो रहा है."
"मतलब?"
"हिंदी में ही आप इन बातों को इस तरह भी कह सकते हैं कि आज दुनिया में जो आपसी नफरत फैलायी जा रही है, जो मारकाट मचायी जा रही है, जो हत्याएँ की जा रही हैं या करायी जा रही हैं, जो जनसंहार किये या कराये जा रहे हैं, जो आतंकी कार्रवाइयाँ की या करायी जा रही हैं..."
"क्यों? ये चीजें हो रही हैं और की या करायी जा रही हैं, ऐसा कहने में कुछ फर्क है?"
"बहुत फर्क है. 'हो रही हैं' कहने से ऐसा लगता है, जैसे कोई चीज अपने-आप या बारिश की तरह प्राकृतिक रूप से हो रही है, उसके लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, जबकि कोई चीज 'की जा रही है' कहने से तत्काल आपके मन में सवाल उठता है कि 'कौन कर रहा है?' या 'कौन करा रहा है?' और आप 'जो किया जा रहा है' उसके कर्ता को, उसके कारणों को, उसके परिणामों को और उसे न होने देने के उपायों के बारे में सोचने लगते है."
"मतलब?"
"अब भी आप मतलब पूछ रहे हैं? लेखक, पत्रकार और फेसबुकिये के रूप में दिन-रात भाषा का व्यवहार करने वाले आप इसका मतलब पूछ रहे हैं?"
"ठहरिए, श्रीमान, यह कौन-सी भाषा आप बोल रहे हैं!"
"क्यों? हिंदी ही तो है?"
"हिंदी तो है, पर जो आप कह रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि यह सब स्वतः ही हो रहा है."
"मतलब?"
"हिंदी में ही आप इन बातों को इस तरह भी कह सकते हैं कि आज दुनिया में जो आपसी नफरत फैलायी जा रही है, जो मारकाट मचायी जा रही है, जो हत्याएँ की जा रही हैं या करायी जा रही हैं, जो जनसंहार किये या कराये जा रहे हैं, जो आतंकी कार्रवाइयाँ की या करायी जा रही हैं..."
"क्यों? ये चीजें हो रही हैं और की या करायी जा रही हैं, ऐसा कहने में कुछ फर्क है?"
"बहुत फर्क है. 'हो रही हैं' कहने से ऐसा लगता है, जैसे कोई चीज अपने-आप या बारिश की तरह प्राकृतिक रूप से हो रही है, उसके लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, जबकि कोई चीज 'की जा रही है' कहने से तत्काल आपके मन में सवाल उठता है कि 'कौन कर रहा है?' या 'कौन करा रहा है?' और आप 'जो किया जा रहा है' उसके कर्ता को, उसके कारणों को, उसके परिणामों को और उसे न होने देने के उपायों के बारे में सोचने लगते है."
"मतलब?"
"अब भी आप मतलब पूछ रहे हैं? लेखक, पत्रकार और फेसबुकिये के रूप में दिन-रात भाषा का व्यवहार करने वाले आप इसका मतलब पूछ रहे हैं?"
- लखनऊ में चल रहे पुस्तक मेले में कल कार्यक्रम के दौरान आतकवादियों द्वारा पेरिस में मारे गए कार्टूनिस्टों और पत्रकारों के लिए दो मिनट मौन रह कर श्रद्धांजलि दी गई !
- दलितोत्थान और इस्लाम के पैरोकारों को, वामपंथ की दुहाई देने वालों को न पेरिस दीखता है , न पेशावर, न कोकराझार न नाइजीरिया का शहर बागा जो पूरा का पूरा अभी जला दिया गया है। उन के पास अभी भी बाबरी मस्जिद के घाव हैं , खतना करने के फायदे हैं , जातीय जहर की हुंकार है , विपन्न और कमज़ोर ब्राह्मणों को गरियाने की कुंठाएं हैं । एक धर्मांधता के चलते समूची दुनिया में मनुष्यता दांव पर लग गई है पर इन को छिछोरे बयान देने वाले साक्षियों, साध्वियों की ही पड़ी है । ओवैसी या याकूब कुरैशी जैसे जहरीले लोग फिर भी नहीं दीखते इन्हें । इस्लामी आतंकवाद की निंदा करने में इन के प्राण सूख जाते हैं। और घर वापसी के खोखले आंदोलनों के पुरज़ोर विरोध में ही यह होम हुए जाते हैं । दुनिया बारूद के ढेर पर बैठ गई है इस इस्लामी आतंकवाद के फेर में पर यह लोग गांधारी की तरह आंख और मुंह पर पट्टी बांधे दुर्योधन के विजय की प्रतीक्षा में इस कदर न्यस्त और मस्त हैं कि इन के मुंह से एक आह भी नहीं निकलती । यह सोचते हैं कि इस्लाम और इस का आतंकवाद ज़रूर जीतेगा, दुनिया धर्मनिरपेक्ष हो जाएगी ! इन ढ़पोरशंखी शुतुर्मुर्गों का कोई इलाज है भी ?
- आखिर यह कैसा इस्लाम है ? जो जब चाहे लोगों को गाजर-मूली की तरह काट डालता है । अभी पेरिस में कार्टूनिस्टों का खून सूखा भी नहीं था कि अब बागा नाम का पूरा का पूरा शहर ही जला दिया । नाईजीरिया के उत्तर पूर्व के शहर बागा पर हमला कर बोको हराम के आतंकियों ने लगभग पूरे शहर को आग लगाकर तबाह कर दिया है । हज़ारों लोग मारे गए हैं । बचे हुए लोग शहर छोड़ कर भाग गए । मरे हुए लोगों की अंत्येष्टि भी नहीं कर पाए । बागा के एक वरिष्ठ अधिकारी बकर ने कहा है कि शहर में आग से बचने के लिए बाहर जा रहे लोगों के मुताबिक शहर की 10 हजार की आबादी खत्म हो गई है और शव सड़कों पर बिखरे हुए हैं। गौरतलब है कि बोको हराम ने 2009 में इस्लामिक राज्य के गठन के लिए सैन्य अभियान शुरू किया था। पिछले साल उत्तर पूर्व के कई कस्बों और गांवों पर कब्जा कर लिया था। पिछले साल हुए हमलों में करीब 2,000 लोगों की मौत हुई थी और अब तक कुल 15 लाख लोग इससे बेघर हो चुके हैं।
- हमारे उत्तर प्रदेश में सेक्यूलरिज्म का एक चेहरा यह भी ! लेकिन अखिलेश सरकार से लगायत तमाम लोग ख़ामोश हैं ! सवाल है कि यह याकूब कुरैशी इक्वावन करोड़ लाएंगे कहां से ? आयकर विभाग तो पूछ-ताछ कर ही सकता है। एक बार पहले भी यह मूर्ख याकूब कुरैशी इक्वावन करोड़ रुपए का ईनाम घोषित कर चुका है। तब भी कोई इस का कुछ नहीं बिगाड़ सका था। लेकिन अब की दफ़ा एक आतंकवादी पेरिस में सरेंडर कर चुका है। याकूब कुरैशी को पेरिस पहुंच कर अपने ऐलान को मुकम्मल ज़रूर करना चाहिए। कभी मंत्री रहे याकूब कुरैशी अपनी जाति और पेशे से ही नहीं मानसिकता से भी कसाई ही हैं ! यह कुछ भी कर सकते हैं और हमारे पढ़े-लिखे मुसलमान दोस्त भी इन की इस आवाज़ पर ख़ामोश रह कर इन की और इन जैसों की मिज़ाजपुर्सी करने के आदी हो चले हैं । बाक़ी हमारे सेक्यूलर दोस्तों को तो वैसे भी ज़्यादा प्याज खाने की आदत है और ऐसे मौकों पर उन्हें नींद आ ही जाती है ।
- बहुत ही अमानवीय है यह इस्लामिक जूनून और इस से उपजा यह आतंकवाद ! दुनिया भर के शांतिप्रिय लोगों को इस आतंकवाद की पूरी ताकत से निंदा करनी चाहिए। ख़ास कर दुनिया के शांति प्रिय मुसलमानों को भी । फ्रांस की प्रसिद्ध व्यंग्य पत्रिका चार्ली हेब्दो के दफ्तर में अलकायदा के नकबपोशों द्वारा एक साथ 12 लोगों को जिस तरह एक साथ मार दिया गया है , जिस में 10 पत्रकार थे। पत्रिका के संपादक स्टीफन भी मारे गए हैं । कई कार्टूनिस्ट भी । कोई धर्म इतना नृशंस भी कैसे हो सकता है , यह समझ पाना बहुत ही तकलीफदेह है । ऐन इवनिंग इन पेरिस तो हम जानते थे पर पेरिस की कोई दोपहर इस्लामिक जूनून में इस कदर खूनी भी हो जाएगी , यह तो हम नहीं ही जानते थे ।
- सब्जी के दाम निश्चित रूप से दिल्ली विधान सभा चुनाव में भाजपा को खून के आंसू रुलाएंगे। दाल , चीनी आदि भी छट्ठी की याद दिलाएंगे और मंहगाई की मार तले अच्छे दिन के नारे को उस की नानी याद दिलाएंगे ।
- कांग्रेस अब सचमुच सनक गई है। जैसे अपने ताबूत में आख़िरी कील ठोंक देना चाहती है । पोरबंदर टेरर बोट को ले कर उस के सवाल अब सेना को संदिग्ध बना रहे हैं । भाजपा को नहीं । इस बात का ख़याल जरुर रखा जाना चाहिए। और अब तो खबर है कि इस पूरे घटनाक्रम की कांग्रेस के लोग वीडियो मांग रहे हैं। अद्भुत है यह भी। गनीमत कि लाइव कवरेज नहीं मांगा है ! वैसे सूचना है कि नेवी ने इस की वीडियो तैयार करवाई है। लेकिन कांग्रेस के इस दिवालियेपन का इलाज है क्या कोई किसी के पास ?
- सब्जी के दाम तो फिर आसमान पर पहुंच गए। चालीस रुपए मटर , टमाटर है । गोभी भी जून जुलाई के भाव पर है । तीस से चालीस -पचास रुपए , प्याज तीस रुपए। दाल के दाम में भी आग लगी हुई है । कश्मीर सीमा और पाकिस्तान के मसले भी जस के तस। नरेंद्र मोदी की माऊथ कमिश्नरी भी जस की तस है । टी वी चैनलों और उन पर अवतरित होने वाले लोगों की लफ्फाज़ी भी जस की तस । गरज यह कि सीमा से लगायत बाज़ार तक बिचौलियों के पौ अभी भी बारह हैं । जय हो !
- कुछ लोगों को अटल जी को भारत-रत्न मिलना हजम नहीं हो रहा। अंग्रेजों का मुखबिर , ब्राह्मण , औरतबाज़ और पता नहीं क्या-क्या उल-जलूल बताए जा रहे हैं। एक सज्जन तो मेरी वाल पर आ कर एक कमेंट में यह भी लिख गए कि क्या भारत-रत्न ब्राह्मणों ने ख़रीद लिया है ? ब्राह्मणों की बपौती है ? उन को ऐतराज महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को भी भारत-रत्न दिए जाने पर है। एक जनाब पूछने लगे कि यह मालवीय कौन है ? क्या बेचता था ? इन मतिमंदों को अब कोई बताए भी कैसे कि यह दोनों भारत-रत्न सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं हैं। और कि ब्राह्मण होना भी एक तप है। ब्राह्मणों को गाली देना आसान है पर ब्राह्मण होना बहुत कठिन । और जो-जो काम यह दोनों भारत-रत्न देश , दुनिया और समाज के लिए कर गए हैं वह अमिट हैं। लेकिन आकाश में सुराख करने वाले भी हैं तो आकाश पर थूकने वाले भी बहुतेरे हैं ! कोई भी इन लोगों का कुछ नहीं कर सकता !
- कई बार अपने कुछ उदारवादी प्रगतिशील सेक्यूलर मित्रों को सलाह देने को मन कर देता है कि वह सीधे पाकिस्तान की नागरिकता क्यों नहीं ले लेते ? आख़िर जोश मलिहाबादी प्रगतिशील होते हुए भी गए ही थे। आख़िर अपना-अपना स्टैंड है। जिस को जैसे चाहे लेने का हक़ है। नागरिकता भी कोई कहीं की ले ही सकता है। लेकिन भईया जहां के नागरिक हैं कम से कम वहां से द्रोह तो मत कीजिए। ऐसी प्रगतिशीलता भी इत्ती भली नहीं होती।
- इस्लामिक आतंकवाद इस कदर खौफनाक हो गया है कि पाकिस्तान के पेशावर में सैनिक स्कूल को भी नहीं छोड़ा। अब आज स्कूली बच्चे उन के बंधक हैं । यह तहरीके तालिबान के लोग हैं । कुछ बच्चे और अध्यापक मार भी दिए गए हैं। अभी कल ही सिडनी में भी एक मुस्लिम आतंकवादी १६ घंटे लोगों को आफत में डाले हुए था। इस सब का अंत कब और कैसे होगा , समझ पाना मुश्किल हो गया है। मलाला यूसूफ जई जैसी बच्चियों की बहादुरी ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हो रही है।
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