कुछ फेसबुकिया नोट्स
- अरविंद केजरीवाल किरन बेदी को तो पानी पिला देंगे पर नरेंद्र मोदी का तो वह नाखून भी नहीं छू पा रहे। न राजनीतिक पैतरेबाज़ी में , न विजन में , न नौटंकी में , न वादे और इरादे में, न प्रहार और प्लैनिंग में । अरविंद केजरीवाल को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि दिल्ली विधान सभा में उन का मुकाबला किरन बेदी से हरगिज़ नहीं है , नरेंद्र मोदी से है। नरेंद्र मोदी की कड़कड़डुमा की भीड़ भरी रैली का संदेश अरविंद केजरीवाल के लिए बिलकुल शुभ नहीं है। वह नरेंद्र मोदी की बिछाई बिसात पर अगर टिक पाएंगे तो यह चमत्कार ही होगा ! और दिल्ली में मोदी की रेलियां अभी और भी हैं । जनता का ब्रेन वाश करना और उसे अपने पक्ष में खड़ा कर लेना किसी को सीखना हो तो वह सचमुच नरेंद्र मोदी से सीखे। गज़ब यह कि बराक ओबामा की भारत की सरकारी यात्रा को भी वह बहुत बारीकी से भाजपा और अपने पक्ष में कर विपक्ष को उलझाने के लिए एक झुनझुना भी थमा गए।
- किरण बेदी बहुत बहादुर और ईमानदार औरत हैं लेकिन वक्ता बहुत खराब हैं। और राजनीतिक भाषण देने उन्हें बिलकुल नहीं आता। वह अपनी पुलिसिया कैरियर और नरेंद मोदी की तारीफ के अलावा कुछ जानती ही नहीं। कड़कड़डुमा की भीड़ भरी रैली में वह बहुत ख़राब बोलीं। बोलने के मामले वह अरविंद केजरीवाल की पासंग भी नहीं हैं।
- 30 जनवरी को जन्म-दिन पर सुबह अम्मा पिता जी से आशीर्वाद तो मिलता ही है सर्वदा। पूजा-पाठ भी होता ही है । आज के दिन पत्नी भी मां बन कर ख्याल रखने लगती हैं और बच्चे हमारे गार्जियन बन जाते हैं । पापा ऐसे करिए , वैसे करिए। हम भी सहर्ष बच्चा बन जाते हैं। जैसे कहा जाता है बच्चे बन कर स्वीकार करते जाते हैं । बेटियों का वश चले तो मुझे गोद में ले कर खिलाने लगें । पिता मैं हूं पर जैसे अपने वात्सल्य में बेटियां मुझे भिगोने लगती हैं । लोग बेटियों पर वैसे ही तो जान नहीं छिड़कते ! बेटियों में पिता की जैसे जान बसती है । आज सत्तावन का हो जाने पर भी यही सब कुछ हुआ। दुनिया भर से असंख्य मित्र, रिश्तेदार फ़ोन, फ़ेसबुक, वाट्स-अप के मार्फ़त इस हर्ष में मिसरी घोलते रहे। अब कैलेंडर की बदलती तारीख के साथ आप कुछ फ़ोटो भी लुक कर सकते हैं।
- फ़ेसबुक पर अराजकता , झक, तानाशाही के अलमबरदार और हद दर्जे के हिप्पोक्रेट जब कहते हैं कि अब हम फ़ेसबुक छोड़ देंगे तो उन पर हंसी आती है। और एक पुराना फ़िल्मी गाना याद आ जाता है , मैं मैके चली जाऊंगी , तुम देखते रहियो !
- दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा अपनी जो ऊर्जा अरविंद केजरीवाल पर चढ़ाई करने में खर्च कर रही है काश कि यह यह ऊर्जा वह मंहगाई पर चढ़ाई में खर्च करती तो शायद उस का कुछ भला भी होता ! ऐसे में तो उस की बौखलाहट ज़्यादा लुक हो रही है।
- मुझे अंगरेजी ठीक से नहीं आती। लेकिन आर के लक्ष्मण के कार्टून ठीक से समझ जाता हूं। उन के भाई आर के नारायण की कहानियां जैसे भाती हैं , वैसे ही उन के कार्टून ! मालगुडी डेज जैसे दोनों ही में बसता है। और उस की खुशबू भी । उन्हें श्रद्धांजलि !
- राष्ट्रपति भवन में ओबामा के खैर मकदम की महफ़िल में अचानक राऊंड पर आ गए इन मोहतरम श्वान के बारे में एक बड़े कांग्रेसी नेता ने एक बड़े पत्रकार को सपने में बताया कि यह अरविंद केजरीवाल का भेजा हुआ प्रतिनिधि था। उस को गिरफ्तार करना उचित नहीं था। मोदी दुनिया भर को चाय पिला रहे हैं। क्या उस एक आम कुत्ते को भी चाय पिलाना उन का फर्ज़ नहीं था ? याद कीजिए कि एक बार हमारी नेता सोनिया गांधी जी की महफ़िल में इसी तरह अमर सिंह जी मुलायम सिंह के प्रतिनिधि बन कर पहुंच गए थे तो क्या सोनिया जी ने उन्हें खाना नहीं खिलाया था ? जब कि उसी सपने में उसी पत्रकार को आप पार्टी के एक मामूली नेता ने बताया कि हमने उस सम्मानित श्वान को अपना प्रतिनिधि बना कर भेजा कि नहीं भेजा इस मुद्दे पर हम चुनाव बाद बात कर लेंगे । लेकिन यह बात तो बिलकुल पक्की है कि इस आम कुत्ते को गिरफ्तार करना उस आम कुत्ते का ही नहीं आम आदमी का भी अपमान है। हम इस की कड़ी निंदा करते हैं और सरकार से पूछना चाहते हैं कि आख़िर सब का साथ , सब का विकास का नारा यहां कैसे भूल गई है यह सरकार ? अब उक्त पत्रकार बड़ी मुश्किल में हैं कि इस खबर को ब्रेकिंग न्यूज़ कैसे बना दें ! वह चीख़-चीख़ कर दुनिया को बताना चाहते हैं यह देखिए, वह देखिए स्टाइल में। पर उन की दिक्कत यह है कि मोहतरम श्वान की विजुअल तो उन्हें मिल गई है पर उक्त बड़े कांग्रेसी नेता और आप के मामूली नेता दोनों ही अधिकृत रूप से उन्हें बाईट देने को तैयार नहीं हैं। कह रहे हैं कि इतने भर से काम चला सकते हो तो चलाओ ! बाक़ी तुम लोग बिके हुए तो हो ही । अब वह किसी दलित या मुस्लिम के साथ ही मायावती , ममता , जयललिता, वाम नेता की तलाश में हैं या ऐसा कोई भी मिल जाए जो मोदी और ओबामा से एक साथ खार खाता हो । और उन्हें बढ़िया , फड़कती हुई बाईट दे दे ! इस सिलसिले में मुझ से भी उन्हों ने सलाह ली है । मैं ने उन्हें इधर-उधर घूम कर वक्त खराब करने से मना करते हुए सीधे नीतीश कुमार का नाम सुझा दिया है ।
- बराक ओबामा भारत से अमरीका अभी लौटे भी नहीं हैं। लेकिन कभी भारत की पीठ में छुरा घोंपने वाला चीन बहुत ज़्यादा परेशान हो गया है । बता रहा है कि मित्रता दो दिन में नहीं होती। वह मोदी और ओबामा की मित्रता पर आह भर रहा है। कांग्रेस और केजरीवाल की आह अभी सुननी शेष है। वाम पार्टियों का विरोध तो खुल्लमखुल्ला है।
- बताइए कि लालकृष्ण आडवाणी को तो पद्म पुरस्कार में पद्म विभूषण दे कर एडजस्ट कर लिया । लेकिन पद्म पुरस्कारों की सूची में मुरली मनोहर जोशी को नहीं रखा ! अब और कहां एडजस्ट करेंगे उन को ?
- कभी हैदराबाद के नवाब की हवेली रही हैदराबाद हाऊस में आज एक चाय वाले ने अमरीका के एक बराक को चाय पिला दी !
- लालकृष्ण आडवाणी ने एक समय कुंठा में ही सही लेकिन सही ही कहा था कि नरेंद्र मोदी एक अच्छे इवेंट मैनेजर हैं। उस वक्त आडवाणी की इस बात को लोगों ने नरेंद्र मोदी के लिए निगेटिव अर्थ में लिया था। लेकिन आडवाणी कुंठित थे , लोग गलत थे । नरेंद्र मोदी सचमुच बहुत बड़े इवेंट मैनेजर हैं। और अब तो इंटरनेशनल इवेंट मैनेजर। और बराक से उन की दोस्ती तो अजब !
- दोस्ती का दाना तो दोनों ही एक दूसरे को चुगा रहे हैं ! पर बराक ओबामा बड़े बहेलिया हैं कि नरेंद्र मोदी बड़े बहेलिया , यह तस्वीर अभी बहुत साफ नहीं हो पाई है।
- भारत और अमरीका के बीच जो कूटनीति और व्यापारिक आदान-प्रदान का जो दौर चल रहा है वह सब तो अपनी जगह है ही। एक अच्छी बात यह भी है कि पाकिस्तान भी अमरीकी धमकी के मद्देनज़र ही सही , अमन-चैन बनाए हुए है। ओबामा के वेलकम से तौबा किए हुए है। सीमा पर भी , देश के भीतर भी । कोई धमाका नहीं किया !
- राजनीति , कूटनीति और तमाम बातें अपनी जगह हैं लेकिन एक अहिंसा के पुजारी की समाधि पर एक हिंसक देश के राष्ट्रपति का जाना तकलीफ से भर देता है।
- अजय माकन अभी जनार्दन द्विवेदी के प्रहार से उबरे भी नहीं थे कि आज शीला दीक्षित ने एक चैनल से इंटरव्यू में कहा कि अजय माकन नई दिल्ली क्षेत्र से चुनाव लड़ने से इस लिए भाग गए कि उन्हें यहां से हार जाने का डर था। यह कांग्रेसियों को हो क्या गया है ? हां लेकिन अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अजय माकन शीला दीक्षित के इस बयान पर कितना भड़कते हैं ? या जनार्दन द्विवेदी की हुंकार से सबक़ ले कर चुप्पी साध जाते हैं !
- आज नीरज पांडेय निर्देशित बेबी देखी। फ़िल्म क्राफ्ट के हिसाब से बहुत दिनों बाद कोई इतनी चुस्त फ़िल्म देखने को मिली है। हैदर जैसी भटकी हुई, आतंकवाद की पैरवी करने वाली, और पी के जैसी लचर लेकिन विवाद के दम पर सांस लेने वाली फ़िल्म के बाद बेबी जैसी आतंकवाद की आंख से आंख मिलाती यह सशक्त फ़िल्म देखना सुखद है। कुछ फ़िल्मी मूर्खताओं को तार्किकता की कसौटी पर चढ़ाना अब एक नई मूर्खता हो गई है। इस एक बिंदु पर बात करने के बजाय मैं कहना चाहूंगा कि बेबी एक सेकेंड के लिए भी छोड़ने नहीं देती। बोर तो बिलकुल नहीं करती। रत्ती भर भी नहीं । थोड़ा बहुत जासूसी फ़िल्मों जैसा सस्पेंस का सिलसिला भी है। और मजेदार। क़ायदे से यह फिल्म टैक्स फ्री होनी चाहिए। लेकिन नहीं होगी। क्यों की किसी राजनीतिक नब्ज़ का ईगो मसाज नहीं करती। हां लेकिन पाकिस्तान में तुरंत प्रभाव से बैन कर दी गई है। जब कि दो पाकिस्तानी अभिनेताओं ने भी इस में लाजवाब अभिनय किया है। खास कर हाफ़िज़ सईद की भूमिका करने वाले अभिनेता ने तो अद्भुत अभिनय किया है !
- एक चैनल पर दिए गए इंटरव्यू में अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि भाजपा दिल्ली में एक डूबता हुआ जहाज है। तो फिर कांग्रेस क्या एक डूब गया जहाज है ?
- अब लीजिए ज़ी न्यूज पर प्रसारित सर्वे में दिल्ली विधान सभा चुनाव में भाजपा को 52 , आप को 14 , कांग्रेस को 3 और अन्य को एक सीट ! इस के कुछ पल पहले ही इसी सर्वे ने भाजपा को 40, आप को 28 और कांग्रेस को 2 सीट दिया था । यह सर्वे है , सुनामी है कि भाजपा का विज्ञापन ? इस सर्वे की एक खासियत यह भी है कि अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी दोनों चुनाव हार रहे हैं । अजब है यह भी कि अपना ही सर्वे उलट-पुलट हो जाता है। पल में तोला , पल में मासा तो सुना था बार-बार पर यह और ऐसा चमत्कार तो पहली ही बार !
- देते हैं यही प्रकाशक देते हैं । लेने वाला लेखक चाहिए । मैं वर्तमान में जीवित एक लेखक का नाम बता रहा हूं । वह अरविंद कुमार हैं । अरविंद कुमार 15 प्रतिशत से कम रायल्टी नहीं लेते । और प्रकाशक उन्हें एडवांस रायल्टी देते हैं । इतना ही नहीं अरविंद कुमार एक निश्चित रकम तय करते हैं कि अगर साल में इस से कम रायल्टी हुई तो किताब नहीं बिकी का बहाना नहीं चलेगा । कम से कम इतनी किताब अगर आप नहीं बेच सकते तो मैं किताब वापस ले लूंगा । और ऐसा सबक वह पेंग्विन जैसे प्रकाशक को अपनी किताब वापस ले कर सिखा चुके हैं । दोष प्रकाशकों का उतना नहीं है जितना लेखकों का है । कम से कम रायल्टी के मामले में । हिंदी के लेखक बेरीढ़ हैं । नहीं इन्हीं हिंदी के प्रकाशकों से अरुंधति राय और तस्लीमा नसरीन जैसी लेखिकाएं मुर्गा बना कर रायल्टी वसूल लेती हैं । कुछ बांग्ला लेखकों के परिवारीजनों को भी इन्हीं हिंदी प्रकाशकों को समय से रायल्टी भेजने के लिए परेशान देखा है मैं ने । क्यों कि डर होता है कि कहीं नाराज हो कर वह लोग किताब वापस न ले लें । रही बात हिंदी के बेरीढ़ लेखकों की तो बात न की जाए तो बेहतर है । हिंदी के कौन लेखक पैसा दे कर किताब छपवाते हैं और कौन लेखिका किस प्रकाशक के साथ हमबिस्तर हो कर किताब छपवाती है यह भी अब सब लोग जानते हैं ।
- कुछ लेखक मित्रों को पता नहीं क्यों यह इल्हाम होता रहता है कि कुछ लेखक और आलोचक साज़िश रच कर उन के लिखे को रिजेक्ट कर रहे हैं । यह कि उन को साहित्य से ख़ारिज करने का कुचक्र चल रहा है । अजब बीमारी है यह । किसी लेखक को ख़ारिज या रिजेक्ट करने का काम कोई लेखक या आलोचक कैसे कर सकता है भला ? यह काम तो पाठक का है। वह जिसे पढता है वह स्वीकृत हो जाता है नहीं खारिज हो जाता है। लेखकीय खेमेबाजी में शोशेबाजी तो हो सकती है , पाठकीय स्वीकृति नहीं मिल सकती । इस लिए असल काम तो पाठक ही करता है । लोग व्यर्थ ही लेखकीय राजनीति में वक्त खराब कर अपना खून जलाया करते हैं ।