फिर वह अचानक पूछने लगे कि , ' आज़ादी को ले कर कोई किताब मिलेगी , आज़ादी की लड़ाई के बारे में ?' मैं ने कहा कि , ' हां लेकिन घर पर है , लानी पड़ेगी !' वह कहने लगे , ' यहां मेले में ? ' तो मैं ने बताया कि , मिलेगी तो !' तो पूछने लगे , ' कहां ?' बताया फला -फला के स्टाल पर मिल सकती है । फिर उन्हों ने कागज़ मंगवाया और कहने लगे , ' कुछ किताबों के नाम लिख दीजिए । ' मैं ने लिख दिया । तो वह बोले , 'अपने घर का पता और फोन नंबर भी लिखिए । ' वह भी लिख दिया । बात ही बात में मैं ने उन्हें अपने ऊपर किए गए उन के उपकारों को गिनाना शुरू किया और याद दिलाया कि कैसे वह मेरे एक्सीडेंट में भी मुझे देखने आए थे और मेरी मदद की थी तो वह बोले , ' यह तो मेरा धर्म था । ' जब भी कोई बात कहूं तो हर बात पर वह यह एक बात दुहराते , ' यह तो मेरा धर्म था !' बतौर मुख्यमंत्री , उद्योग मंत्री , वाणिज्य मंत्री , वित्त मंत्री के अपने दिनों को भी याद करते रहे । भीड़ बढ़ने लगी तो कहने लगे कि , 'अब घर आइए । ' अचानक फ़ोटो खिंचती देखे तो कहने लगे , ' हमारे साथ आप की भी एक फ़ोटो जैसी फ़ोटो खिंच जाए !' फिर जब चलने लगा तो उन के एक सहयोगी बोले , ' मैडम से भी मिलते जाइए !' मैं ने पूछा , ' कौन मैडम ?' सहयोगी ने पीछे की दूकान पर बैठी किताबें देख रही उज्ज्वला जी की तरफ़ इशारा किया । मैं ने कहा कि , उन्हें अभी किताबें खरीदने दीजिए और तिवारी जी को नमस्कार कर उन से विदा ली । सचमुच इतने विनम्र, मृदुभाषी और संवेदनशील राजनीतिज्ञ मैं ने कम ही देखे हैं और तिवारी जी उन में विरले हैं । हालां कि अब वह बिखर से गए हैं और वह जो कहते हैं न कि वृद्ध और बालक एक जैसे होते हैं ! तो हमारे तिवारी जी उसी पड़ाव पर आ गए दीखते हैं ।
Tuesday, 23 September 2014
पुस्तक मेले में आज़ादी की लड़ाई की किताबें खोजते नारायण दत्त तिवारी
फिर वह अचानक पूछने लगे कि , ' आज़ादी को ले कर कोई किताब मिलेगी , आज़ादी की लड़ाई के बारे में ?' मैं ने कहा कि , ' हां लेकिन घर पर है , लानी पड़ेगी !' वह कहने लगे , ' यहां मेले में ? ' तो मैं ने बताया कि , मिलेगी तो !' तो पूछने लगे , ' कहां ?' बताया फला -फला के स्टाल पर मिल सकती है । फिर उन्हों ने कागज़ मंगवाया और कहने लगे , ' कुछ किताबों के नाम लिख दीजिए । ' मैं ने लिख दिया । तो वह बोले , 'अपने घर का पता और फोन नंबर भी लिखिए । ' वह भी लिख दिया । बात ही बात में मैं ने उन्हें अपने ऊपर किए गए उन के उपकारों को गिनाना शुरू किया और याद दिलाया कि कैसे वह मेरे एक्सीडेंट में भी मुझे देखने आए थे और मेरी मदद की थी तो वह बोले , ' यह तो मेरा धर्म था । ' जब भी कोई बात कहूं तो हर बात पर वह यह एक बात दुहराते , ' यह तो मेरा धर्म था !' बतौर मुख्यमंत्री , उद्योग मंत्री , वाणिज्य मंत्री , वित्त मंत्री के अपने दिनों को भी याद करते रहे । भीड़ बढ़ने लगी तो कहने लगे कि , 'अब घर आइए । ' अचानक फ़ोटो खिंचती देखे तो कहने लगे , ' हमारे साथ आप की भी एक फ़ोटो जैसी फ़ोटो खिंच जाए !' फिर जब चलने लगा तो उन के एक सहयोगी बोले , ' मैडम से भी मिलते जाइए !' मैं ने पूछा , ' कौन मैडम ?' सहयोगी ने पीछे की दूकान पर बैठी किताबें देख रही उज्ज्वला जी की तरफ़ इशारा किया । मैं ने कहा कि , उन्हें अभी किताबें खरीदने दीजिए और तिवारी जी को नमस्कार कर उन से विदा ली । सचमुच इतने विनम्र, मृदुभाषी और संवेदनशील राजनीतिज्ञ मैं ने कम ही देखे हैं और तिवारी जी उन में विरले हैं । हालां कि अब वह बिखर से गए हैं और वह जो कहते हैं न कि वृद्ध और बालक एक जैसे होते हैं ! तो हमारे तिवारी जी उसी पड़ाव पर आ गए दीखते हैं ।
No comments:
Post a Comment