दयानंद पांडेय
बहुत कठिन है डगर इत्र की। सत्ता के इत्र की ख़ुशबू की। सोचिए कि कभी टोटी-टाइल , कभी इत्र-वित्र। कभी ओमप्रकाश राजभर-वाजभर , कभी स्वामी प्रसाद मौर्य-वौर्य , दारा सिंह चौहान-वौहान। आगे कुछ और-और सही। भूले-बिसरे चाचा-वाचा तो फिर से साथ आ ही गए हैं। बताइए इन्हीं विवश और चुके हुए सूरमाओं के दम पर अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश विधानसभा की चार सौ तीन में से में चार सौ सीट जीतेंगे। आप कह सकते हैं कि मैं जयंत चौधरी का नाम क्यों भूल गया। तो जानिए कि जयंत चौधरी अभी मिल रही ख़बरों के मुताबिक़ अखिलेश को भूलने का रास्ता खोज रहे हैं। और कि अमित शाह ने उन पर डोरे डालने शुरु कर दिए हैं। स्वामी प्रसाद मौर्या का हिसाब इसी बहाने चुकता करने की कोशिश है।
आज अखिलेश के साथ टिकट बांटने पर बैठक थी। कहा जा रहा है कि जयंत चौधरी इस बैठक से अनुपस्थित थे। क्यों कि लाख किसान आंदोलन में जाट एकता के , जाटलैंड के जाट , अखिलेश से समझौता करने पर जयंत से नाराज हैं। मुज़फ्फर नगर का दंगा और सपा द्वारा मुसलमानों के ख़ून खराबे का पक्ष लेना अभी भूले नहीं हैं जाट। आज़म ख़ान मंत्री होते हुए भी दंगाई मुसलमानों को बचाने के लिए सीधे थानेदार को आदेश दे रहे थे। तो जाट-मुस्लिम एकता ख़तरे में है। जाट एकता में भी दरार दिख रही है , इस बिंदु पर। जयंत चौधरी इस पेंच में माया मिली न राम के भंवर में फंसते दिख रहे हैं। रही बात जयंत के उप मुख्य मंत्री बनने की बात की तो इस की सौदेबाज़ी वह भाजपा से भी कर सकते हैं। कर ही रहे हैं। क्यों कि सपा से समझौते में उन का जाट वोट विभाजित होता दिख रहा है।
बैठक के बाद आज ओमप्रकाश राजभर के माथे पर शिकन थी। चेहरे से चमक ग़ायब थी। आवाज़ से खनक भी ग़ायब थी। सारी आग बुझी हुई थी। स्वामी प्रसाद मौर्य के भाजपा छोड़ने की ख़ुशी भी नहीं छलक रही थी। बस निभा रहे थे। इस लिए भी कि स्वामी प्रसाद मौर्य की भी जो भी खेती है , पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही है। राजभर की भी। दोनों ही अति पिछड़े। सो खेत भी एक ही है। तो अभी समझौते में राजभर को कितनी सीट कब मिलेगी , यह भी नहीं पता था। बहुत पूछने पर कांखते हुए बोले , हमारी सीटें बाद के चरण में हैं। सो इस पर बाद में फ़ैसला होगा। बसपा के एक प्रवक्ता की स्पष्ट राय है कि सपा के टिकटों का ऐलान होते ही सपाइयों में सिर-फुटौवल नहीं , भारी मार-पीट होगी। पिता-पुत्र द्वारा जेल में सपरिवार सड़ रहे आज़म ख़ान के लिए कोई लड़ाई न लड़ने , आवाज़ न उठाने के कारण कुछ मुसलमान भी नाराज हैं सपा से। सो अलग। वैसे भी उत्तर प्रदेश में विधानसभा का यह चुनाव हिंदू-मुसलमान और जातियों के घालमेल की चाशनी में डूबा हुआ है। सामाजिक न्याय और सेक्यूलरिज्म के ड्रामे का मज़ा और दिलचस्प है। ठीक वैसे ही जैसे कभी स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा की तरफ से नेता विरोधी दल हुआ करते थे। सपा सरकार पर बसपा की तोप ताबड़तोड़ चलाते रहते थे। गो कि राजनीति में वह मुलायम की अंगुली पकड़ कर ही आए थे। सपाई , बसपाई , भाजपाई होते हुए फिर सपाई होने की राह पर हैं। जातीय ब्लैकमेलिंग चालू है।
सो फिर दुहरा रहा हूं कि बहुत कठिन है डगर इत्र की। सत्ता के इत्र की ख़ुशबू की।
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