दयानंद पांडेय
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि ये इस्लामी आतंकी , तालिबानी आदि-इत्यादि कभी किसी फ़ौज से क्यों नहीं सीधा मुक़ाबला करते। जब भी अपनी बहादुरी यह आजमाते हैं , सर्वदा निर्दोष और मासूम जनता से ही मुक़ाबला करते हैं और अपनी कायरता का परचम लहराते हैं। स्त्रियों और बच्चों को ही पहला निशाना बनाते हैं। अफगानों की बहादुरी के नकली किस्से अब की क़ाबुल हवाई अड्डे पर दिखे। घर-परिवार , बीवी-बच्चों को लावारिश छोड़ कर अमरीकी जहाज के आगे-पीछे दौड़ रहे थे। अभी अमरीकी या भारतीय सेना अफगानिस्तान पहुंच जाए तो सारे तालिबानी आतंकियों के पठानी सूट खराब हो जाएंगे। न इन के पास बहादुरी है , न शऊर , न सभ्यता , न मनुष्यता।
कश्मीर से सीरिया तक , भारत , अमरीका , फ़्रांस और यूरोप तक इन की कायरता की एक ही कहानी है। इस्लाम का अपना आतंकी एजेंडा सिर्फ़ निर्दोषों पर आजमाते हैं। सेना के कैम्प में भी छुप कर दहशतगर्दी करते हैं। इस्लामी आतंक के बूते समूची दुनिया को जहन्नुम बनाए हुए हैं। भारत जैसे देश में सेक्यूलर हिप्पोक्रेट इन्हें अकसर कवरिंग फायर देते रहते हैं। जैसे अफगानिस्तान में तालिबान प्रेस कांफ्रेंस कर अपना नकली उदार चेहरा पेश कर रहे हैं , उसी तरह भारत में भी यह भाई-चारा की नक़ली सूरत पेश कर पीठ में छूरा भोंकते हैं। आमने-सामने की लड़ाई में इन्हें कभी यक़ीन नहीं रहा। क्यों कि यह कायर और बुजदिल लोग हैं। निहत्थों पर अपनी बहादुरी आज़माने के अभ्यस्त मनुष्यता विरोधी लोग हैं। लोगों की उदारता का दुरूपयोग करने में सिद्धहस्त।
इन आतंकियों के शरिया आदि का इलाज सिर्फ और सिर्फ फौजी बूट , टैंक , मिसाइल और बम वर्षक जहाज हैं ,बातचीत नहीं । बातचीत का ड्रामा शरीफों के साथ होता है। आतंकियों के साथ नहीं। मनुष्यता और स्त्री विरोधियों के साथ नहीं। समूची दुनिया में इन्हें पूरी सख्ती और पूरी बेरहमी से कुचल कर मनुष्यता का राज कायम करने की सख्त ज़रूरत है। इन्हें सुधरने का कोई अवसर देना कोरी नादानी है। इन के सुधरने की उम्मीद करना मूर्खता और कायरता है। लोकतंत्र आदि को मुल्तवी कर कश्मीर में महबूबा जैसी जहरीली नेताओं को सीधे गोली मार देनी चाहिए। इस मामले में चीन को फॉलो करना चाहिए। फिर महबूबा ही क्यों , ऐसे हर किसी के साथ यही सुलूक़ होना चाहिए। बहुत हो चुका पाकिस्तान-पाकिस्तान , शरिया और इस्लाम आदि-इत्यादि। देश सर्वोच्च है , कोई मज़हब , फ़ज़हब नहीं। हिंदू हो , मुसलमान हो या कोई और। सब के साथ एक सुलूक़। नो रियायत। देश और मनुष्यता के साथ कोई समझौता नहीं। बहुत हो चुका। पंजाब में के पी एस गिल की तरह सुलूक़ करना होगा। नो अरेस्ट , नो सुनवाई , डायरेक्ट जजमेंट ! तभी इस आतंक से फुर्सत मिलेगी। महबूबा ? अरे महबूबा जैसों की बू भी नहीं मिलेगी कभी। पाकिस्तान , शरिया सब भूल जाएंगे यह लोग।
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