दयानंद पांडेय
अजब मंज़र है। पाकिस्तान में आज महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति तोड़ दी गई। पर भारत का सिख समाज खामोश रहा। वह पागल और अराजक सिद्धू भी नहीं भौंका। उधर अफगानिस्तान में तालिबान की दहशतगर्दी में फंसे सिख समाज के लोग खुद को बचाने के लिए अमरीका और कनाडा से गुहार लगा रहे हैं , भारत से नहीं। लेकिन कनाडा और अमरीका उन की मदद करने से रहे। इधर मोदी कह रहे हैं , अफगानिस्तान के हिंदू और सिख भाइयों को भारत शरण देगा। ई वीजा की भी बात कही है।
दिलचस्प यह कि पाकिस्तान में जश्न है , अफगानिस्तान में तालिबान की आमद पर। पर कोई अफगानी पाकिस्तान नहीं जाना चाहता। जो भी हो , अमरीका ने ठीक ही किया है अफगानिस्तान छोड़ कर। कब तक अफगानिस्तान का बोझ उठाता भला। आज नहीं , कल यह क़यामत अफगानिस्तान में आनी ही थी। आ गई। देर-सवेर पाकिस्तान में भी यह क़यामत आएगी ही आएगी।
रही बात भारत की तो जब तक नरेंद्र मोदी नाम की चौकीदारी है , निश्चिंत रहिए। जब कभी अवसर आया तो इन हिंसक तालिबानियों के खून का तालाब बना देगा यह चौकीदार। सो फिकर नाट ! यक़ीन न हो तो 370 समेत , उरी , बालाकोट से लगायत अभिनंदन तक को याद कर लीजिए। इंटरनेशनल डिप्लोमेसी वाली उलटी-सीधी बातों पर बहुत परेशान न हों। बिलकुल न हों। सेक्यूलर चैंपियंस की हिप्पोक्रेसी पर भी कान न दें। इन की हैसियत हाथी के पीछे भौंकने से ज़्यादा की नहीं है।
तालिबान की ट्रेजडी के धागे अंतहीन नहीं हैं। अंत भी होगा। कहावत बहुत पुरानी है कि लोहा , लोहा को काटता है। तो शरिया , शरिया को मज़ा दे रहा है। देने दीजिए। आप को दिक़्क़त क्या है। शरिया को शरिया से निपटने दीजिए। सुनते-सुनते कान पक गए हैं कि हमारे मज़हब में दखल मत दीजिए। जाने क्यों लोग मनुष्यता-मनुष्यता उच्चार कर दखल देना चाहते हैं। भारत में तो भाईजान लोग भी चुप हैं और वामपंथी भी , कांग्रेसी , ममता , सपा , बसपा इत्यादि सभी। फ़िल्मी जन भी , बुद्धिजीवी जन भी। जब सभी हिप्पोक्रेट्स शरिया के नाम पर ख़ामोश हैं तो शेष लोगों को भी चुप रहना चाहिए। शरिया में कोई दखल नहीं ! नो आह , नो वाह ! कहते ही हैं कि मूर्ख और मृतक राय नहीं बदलते। तो यह तालिबान मूर्ख भी हैं और मृत भी। पर जाने क्यों लोग इन में बदलाव भी चाहते हैं। अजब मासूमियत और अजब लाचारी है।
है न !
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