इन नशीली आंखों को देखिए। यह नशीली नहीं , विष-कन्या की आंखें हैं। यह तथ्य बारंबार साबित किया है , इन आंखों ने। आगे भी करेंगी। बीते हफ़्ते इन्हें विष-कन्या कह दिया तो इन आंखों को इतना बुरा लग गया कि अपने पूरे गैंग के साथ टूट पड़ीं। न सिर्फ़ टूट पड़ीं बल्कि पूरे गैंग के साथ फ़ेसबुक को रिपोर्ट कर के वह पोस्ट हटवा दी और मुझे हफ़्ते भर के लिए फ़ेसबुक पर निर्वासन दिलवा दिया। फ़ेसबुक का सिस्टम भी हमारी न्यायपालिका की तरह अंधा है। आंख पर काली पट्टी बांधे हुए। न तथ्य देखता है , न तर्क। अगर सौ-पचास लोगों ने भेड़ बन कर रिपोर्ट कर दी तो फ़ेसबुक बस यही जानता है। गुण-दोष नहीं जानता। हो सकता है , यह विष-कन्या फिर अपनी भेड़ों को लगा दे कि रिपोर्ट करो। फिर यह पोस्ट भी फ़ेसबुक हटा दे। फिर मुझे निर्वासन दे दे फ़ेसबुक। पर मुझे इस की परवाह नहीं है। बिलकुल नहीं है। नि:संदेह फ़ेसबुक एक बहुत बड़ा , सक्षम और सार्थक प्लेटफार्म है अपनी बात कहने का। पर बात कहने का माध्यम सिर्फ़ एक फ़ेसबुक ही तो नहीं है। बात कहीं भी किसी भी प्लेटफार्म से कही जा सकती है।
खैर , जैसे कि पिछली पोस्ट जो इस विष-कन्या ने हटवाई , तो इस पोस्ट को मैं ने अपने ब्लॉग सरोकारनामा पर तुरंत लगा दिया। जिसे बहुत सी और वेबसाइटों ने भी अपने यहां लगाया। फिर वही पोस्ट तमाम मित्रों और लोगों ने इसी फ़ेसबुक पर अपनी-अपनी वाल पर लगाया। ट्यूटर , वाट्सअप आदि पर भी। स्पष्ट है कि इन पोस्टों की शिकायत इस विष-कन्या ने नहीं करवाई तो फ़ेसबुक को कोई आपत्ति नहीं हुई और वही तथ्य शब्दशः जगह-जगह पोस्ट होते रहे। जैसे अभियान बन गई यह पोस्ट। फिर यह विष-कन्या किस-किस पोस्ट पर अपनी भेड़ों को लगाती भला।
दिलचस्प यह कि एन जी ओ के विष में सनी , बिहार की रहने वाली , तंजानिया में रहना बताने वाली यह विष-कन्या ख़ुद को लेखिका भी बताती है। अरे , अगर लेखिका हो तो तथ्य और तर्क के साथ बात करने का अभ्यास करो। चार सौ बीसों की तरह फ़ेसबुक पर रिपोर्ट करने की फ़ासिस्ट हरकत क्यों ? लेकिन आदत , अभ्यास और फ़ितरत ही अगर चार सौ बीसी और निगेटिव रहने की हो तो कोई कुछ कर भी क्या सकता है ? एन जी ओ चलाने का फ्राड पैसा कमाने में भले सफलता दे देता हो पर तथ्य और तर्क से बात करने का कौशल तो नहीं ही सिखा पाता। अच्छा फिर अगर तथ्य और तर्क न हो तो चुप रह जाना भी एक कला होती है। लेकिन एन जी ओ चला कर हराम की कमाई का दंभ , अहंकार और अतिवादिता सारा विवेक छीन लेती है। कोई करे भी तो क्या करे। लोक कल्याण का कार्य भी फ्राड लगने लगता है।
महाभारत में एक कथा आती है। भीष्म पितामह शर शैया पर लेटे मृत्यु की प्रतीक्षा में हैं। एक दिन भीष्म पितामह श्रीकृष्ण से कहते हैं कि मुझ से मिलने लगभग हर कोई आता है। लेकिन एक द्रौपदी ही है जो कभी नहीं आई। कभी उस को भी ले आओ। एक दिन श्रीकृष्ण द्रौपदी को ले कर पहुंचे। द्रौपदी से भी अपनी व्यथा बताई भीष्म पितामह ने कि तुम अभी तक कभी क्यों नहीं आई। द्रौपदी ने भीष्म पितामह से कहा कि आप तो बहुत नीतिवान व्यक्ति माने जाते हैं। पर जब भरी सभा में दुर्योधन ने दुशासन से मेरा चीर हरण करवाया तो आप की नीति कहां चली गई थी। मेरा चीर हरण होता रहा और आप सिर झुकाए सही , बैठे रहे गुरु द्रोणाचार्य के साथ। क्यों नहीं कुछ बोले। अपनी कोई नीति क्यों नहीं बताई , जैसा कि अकसर बताते रहते हैं। यह सुन कर भीष्म पितामह कुछ क्षण चुप रहे। फिर बोले , असल में आदमी जैसा भोजन करता है , वैसा ही सोचता है। उस समय मैं दुर्योधन का अन्न खा रहा था तो उसी की तरह सोच भी रहा था। भटक गया था , पुत्री ! मुझे क्षमा करना। तो यह एन जी ओ धारिणी नशीली आंखें भी जब बेईमानी का अन्न ग्रहण करती हैं तो उसी तरह हर बात सोचती हैं। छल-कपट में सनी इन आंखों को अपनी ही तरह हर आदमी इन्हें फ्राड लगने लगता है। तिस पर वैचारिक गुलामी का हठ सारा विवेक भी छीन लेता है।
आप मित्रों को याद होगा कि इसी फ़ेसबुक पर गोरखपुर की 4 साल की बच्ची शिवा के लीवर ट्रांसप्लांट खातिर मैं ने आर्थिक मदद की अपील की थी। लेकिन इसी विष-कन्या ने पोस्ट लिखने के कोई एक घंटे बाद ही इस पोस्ट और शिवा की बीमारी को फ्राड घोषित कर दिया। फ़िशी बता दिया। बहुत से लोगों से मदद की पोस्ट मिटवा दी थी। तमाम लोगों ने जब घेर लिया तो दो-तीन दिन बाद माफ़ी मांग कर सधुआइन बन गई। लेकिन पहले राउंड में जो क्षति पहुंचानी थी , इस विष-कन्या ने बुरी तरह पहुंचा दी थी। बहुत से लोग मदद से बिदक कर दूर हो गए। मैं सवालों के घेरे में आ गया। लेकिन अपनी उज्जवल और ईमानदार छवि के कारण लोगों के सवालों के घेरे से मैं तुरंत मुक्त हो गया। फिर तो लोगों ने शिवा को साझी बेटी बना कर अपील और मदद का जन-अभियान चला दिया। इतना कि पांच-छ दिन में कोई 16 लाख रुपए शिवा के पिता सत्येंद्र के खाते में लीवर ट्रांसप्लांट खातिर इकट्ठा हो गया। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस पोस्ट का स्वत: संज्ञान ले कर दस लाख रुपए की मदद की। इस मदद में योगी के मीडिया सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी ने भी अदभुत भूमिका निभाई। ख़ैर , आप सभी मित्रों के सहयोग और आशीर्वाद से शिवा का लीवर ट्रांसप्लांट सफलता पूर्वक संपन्न हो गया है। शिवा के पिता सत्येंद्र ने लीवर डोनेट किया था। सत्येंद्र भी अस्पताल से अब दो दिन पहले डिस्चार्ज हो चुके हैं। शिवा अभी अस्पताल में है। इलाज जारी है। आज डाक्टरों ने बताया कि शिवा का टांका टूट गया है। इंफेक्शन का खतरा था। फिर से उसे आपरेशन थिएटर ले जाया गया। टांका लगवा कर अब फिर से वह आई सी यू शिफ्ट हो गई है।
इस बीच तमाम मित्रों ने जब कोई मेरी पोस्ट हफ़्ते भर से नहीं देखी तो मेसेज बॉक्स में संदेश भेज-भेज कर और फिर फ़ोन कर-कर पूछना शुरू किया कि कोई पोस्ट क्यों नहीं लिख रहे। शिवा का हाल क्यों नहीं बता रहे। ज़्यादातर लोग शिवा का हालचाल जानने के लिए उत्सुक थे। उतावले थे। सब का जवाब देते-देते जीवन असहज हो गया। अब उन्हें क्या बताता , किस-किस से बताता कि विष-कन्या ने आख़िर अपना काम दुहरा दिया है। विष-कन्या तो विष-कन्या ठहरी। बारंबार अपना काम करेगी। संन्यासी और बिच्छू वाला किस्सा याद आता है। लीजिए आप भी सुनिए :
एक सुबह एक संन्यासी नदी में नहा रहा था। पानी में एक बिच्छू डूबता मिला। संन्यासी ने उसे बचाने की गरज से निकाला और पानी के बाहर फेंक दिया। लेकिन बिच्छू ने जाते-जाते संन्यासी के हाथ में डंक मार दिया। अचानक बिच्छू फिर फिसल कर पानी में आ गिरा। संन्यासी ने फिर उसे पानी से निकाला। बिच्छू ने फिर डंक मारा। ऐसा जब तीन-चार बार हो गया तो नदी किनारे खड़े एक व्यक्ति ने संन्यासी से पूछा कि हर बार बिच्छू आप को डंक मार रहा है फिर भी आप उसे लगातार बचा रहे हैं। ऐसा क्यों ? संन्यासी ने जवाब दिया कि मैं अपना काम कर रहा हूं , बिच्छू अपना काम कर रहा है। सब का अपना-अपना स्वभाव है।
बहुत मुमकिन है यह पोस्ट भी हट जाए और मुझे फ़ेसबुक से फिर से निर्वासन मिल जाए। पर आप मित्र लोग घबराइए नहीं। बिलकुल नहीं घबराएं। अपने ब्लॉग पर यह पोस्ट पहले ही डाल कर फिर इसे फ़ेसबुक पर पोस्ट कर रहा हूं। सरोकारनामा पर पढ़िएगा। बीती पोस्ट का लिंक भी नीचे कमेंट बॉक्स में दिए दे रहा हूं। शिवा बिलकुल ठीक है। आप सभी की बेटी है वह। आप सभी की शुभकामनाएं और आशीर्वाद शिवा के साथ है। इस लिए भी कि बेटियां साझी होती हैं।
ये फेसबुक का काम ही क्या है? फेसबुक पर वामपंथी एजेंडा और जिहाद खुलेआम फैलता है उसपर कोई कार्यवाही नहीं होता। मेरे भी कई पोस्ट को फेसबुक डिलीट कर चुका है। खैर आप इन जैसे का पोल खोलते रहिए।
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