पुण्य प्रसून वाजपेयी |
दि वायर में पुण्य प्रसून वाजपेयी का विधवा विलाप पढ़ कर पता लगा कि वह मोदी-मोदी भले बोल रहे हैं , फर्जी शहादत पाने के लिए लेकिन उन नौकरी के असली दुश्मन रामदेव ही हैं । आज तक और ए बी पी दोनों जगह से रामदेव और पतंजलि का विज्ञापन ही उन की विदाई का मुख्य कारण बना है । कम से कम उन के लेख की ध्वनि यही है । रामदेव आज की तारीख़ में सब से बड़े विज्ञापनदाता हैं । विज्ञापनदाता मीडिया का माई-बाप है । किसी मीडिया की हैसियत विज्ञापनदाता से पंगा लेने की नहीं है । वैसे भी पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसे व्यक्ति को यह तो मालूम है ही कि वह बाज़ार में हैं और बाज़ार नैतिकता से , नफ़रत से और एजेंडे से नहीं मुनाफ़े से चलता है । सिर्फ़ और सिर्फ़ मुनाफ़े से । आप की उस बढ़ती रेटिंग से चैनल को क्या फ़ायदा जब चैनल का विज्ञापन और उस का मुनाफ़ा डूब रहा हो । आप की राजनीतिक नफ़रत की क़ीमत कोई चैनल अपना मुनाफ़ा गंवा कर नहीं चुका सकता । पुण्य प्रसून का यह लेख यह भी बता देता है कि नरेंद्र मोदी से नफ़रत का एजेंडा ए बी पी न्यूज़ चैनल का नहीं , प्रसून जी का ख़ुद का है । फिर जो चैनल पर मास्टर स्ट्रोक का एयर से जाने का ड्रामा था , वह मालिकों का था , किसी नरेंद्र मोदी , किसी रामदेव का नहीं । ट्रांसपोंडर का सारा खेल है । जो मालिकों के हाथ में होता है । ट्रांसपोंडर में स्पेस देने वाले के हाथ में होता है । किसी नरेंद्र मोदी और उस की मशीनरी के हाथ में नहीं । प्रसून जी लेकिन मास्टर स्ट्रोक के चक्कर में यह सब भूल गए हैं । यह आंख में धूल झोंकने , झांसा देने का कौन सा स्ट्रोक है पार्टनर ?
मुझे याद है रामनाथ गोयनका का सत्ता से टकराना । बारंबार टकराना ।रामनाथ गोयनका इमरजेंसी से टकराए थे , तभी कुलदीप नैय्यर भी टकराए थे । सत्ता से विरोध में जीने-मरने की ज़िद गोयनका की अपनी थी । क्यों कि तब पत्रकारिता गोयनका के लिए मुनाफ़े का धंधा नहीं थी । वह तो छाती ठोंक कर कहते थे , न दे कोई इंडियन एक्सप्रेस को विज्ञापन , मैं तो एक्सप्रेस बिल्डिंग के किराए से भी अखबार निकाल लूंगा । निकालते ही थे । यह गोयनका की ही मर्दानगी थी कि कुलदीप नैय्यर , प्रभाष जोशी जैसे तमाम धाकड़ संपादक निकले । सत्ता से , सिस्टम से सर्वदा टकराते हुए । एम वी देसाई और बी जी वर्गीज जैसे शानदार संपादक । अरुण शौरी जैसे संपादक । लेकिन यह सब लोग बाज़ार में नहीं पत्रकारिता में थे । लेकिन आप तो बाज़ार में तन-मन-धन से न्यौछावर थे । खुल्लमखुल्ला । बाज़ार के मुनाफ़े में साझीदार भी । बतौर मोहरा ही सही ।
तो आप का करोड़ो का पैकेज और राजनीतिक नफ़रत का एजेंडा इस मुनाफ़े की भेंट चढ़ा है । नरेंद्र मोदी या रामदेव अगर आप से ज़्यादा मुनाफ़ा देते हैं तो चैनल मालिक आप को दूध की मक्खी बना कर फेंक देगा यह बाज़ार के दूधमुंहे भी जानते हैं । लेकिन मास्टर स्ट्रोक और दस्तक देने के बावजूद पुण्य प्रसून वाजपेयी नहीं जान पाते । तो उन की इस अबोधता पर मुझे कुछ नहीं कहना । किसी भी अभिनेता , किसी भी खिलाड़ी की क़ीमत मुनाफ़े पर ही मुन:सर होती है । बहुत बड़े अभिनेता थे संजीव कुमार लेकिन फारुख शेख से भी कम पैसा पाते थे । लेकिन प्राण जैसे अभिनेता राज कपूर , दिलीप कुमार , अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता से भी ज़्यादा पैसा लेते थे । सोचिए कि डान फिल्म में अमिताभ बच्चन को पचत्तर हज़ार रुपए मिले थे लेकिन प्राण को पांच लाख रुपए । यही प्राण राज कपूर की बाबी में एक रुपए लिए थे । सिर्फ़ शगुन के । भारत भूषण जैसे स्टार हीरो बाद में पांच सौ रुपए दिहाड़ी पर काम करने लगे थे । ऐसे ही इन्हीं न्यूज़ चैनलों के तमाम स्टार रहे लोग इन दिनों गुमनामी भुगत रहे हैं । कुछ तो घर , गाड़ी बेच कर बरबाद हो चुके हैं । किन-किन का नाम लूं ।
संजय लीला भंसाली जैसी बाजीगरी सब को नहीं आती कि पिट कर भी पैसा पीट ले जाए । अपनी पिटाई भी बेच ले । पुण्य प्रसून वाजपेयी आप ने कभी अपने उन साथियों के लिए आवाज़ क्यों नहीं उठाई जो इन्हीं चैनलों में दस पांच , तीन हज़ार की नौकरी कर रहे हैं और आप करोड़ों का पैकेज । आप तो नफ़रत और एजेंडे की लड़ाई लड़ रहे हैं , रोटी-दाल की नहीं । पत्रकारिता की नहीं । पत्रकारिता नहीं एजेंडा चला रहे हैं । नरेंद्र मोदी से नफ़रत का एजेंडा । पत्रकारिता पक्षकार बन कर नहीं होती । इसे एक किस्म की दलाली कहते हैं । दलाली सिर्फ़ सत्ता की ही नहीं होती , प्रतिपक्ष की भी होती है । यह बाज़ार है । कल तक सोनिया गांधी का बाज़ार था , आज नरेंद्र मोदी का बाज़ार है । बाज़ार किसी भी का हो , बाज़ार के मुनाफ़े में जब तक आप फिट हैं , आप बाज़ार के हैं । नहीं कौन किस का है । भोजपुरी के गायक बालेश्वर एक गाना गाते थे , बनले क सार बहनोइया , दुनिया में कोई नहीं अपना । फ़िराक ने भी लिखा है :
किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी।
फिर यह तो बाज़ार है । बाज़ार में कोई किसी का कभी नहीं होता । प्रसून जी , आप बाज़ार के एक मोहरा भर हैं , मालिक नहीं । नियंता नहीं । इस बेरहम और दोगले बाज़ार को गढ़ने में लेकिन आप भी भागीदार हैं । फिर कौन सा दोगला और हिप्पोक्रेट मीडिया बनाया है , इस की पड़ताल भी तो कीजिए कभी । कारपोरेट की आवारा पूंजी से बना यह हरामखोर मीडिया जनता की बात भी करता है कभी ? दि वायर जहां आप ने यह विधवा विलाप परोसा है , उस का तो एकमात्र मकसद ही है नरेंद्र मोदी से नफ़रत का एकमात्र जहरीला एजेंडा । और कुछ भी नहीं । यह दलाली ही नहीं , गैंगबाजी भी है । पत्रकारिता तो हरगिज नहीं । आप लोग पत्रकारिता के मुथुवेल करूणानिधि हैं ।
सहमत पूरी तरह से ...
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