ग़ज़ल
गुलमोहर में भी फूल अब आने लगे हैं
आग बन कर मन को दहकाने लगे हैं
यह मौसम है कि मौसम की महक है
पलाश वन भी मन को सुलगाने लगे हैं
तुम्हारी याद है कि यादों का चंदन वन
चंदन की तरह मन को महकाने लगे हैं
एक दिन है एक रात है सूरज चांद भी
एक तुम्हारा काजल सब बौराने लगे हैं
फागुनी हवा में उड़ता तुम्हारा आंचल है
मादक हवा में मेरे बोल तुतलाने लगे हैं
महफ़िल में तुम्हारे हुस्न की दस्तक है
चूम लिया है तुम्हें लोग घबराने लगे हैं
तुम कहां हो कैसी हो किस नगरी में हो
यह मौसमी गाने हम को सताने लगे हैं
[ 29 फ़रवरी , 2016 ]
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