फ़ोटो : संतोष झा |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
अपने विरोधी को गोडसे और संघी बताते हैं
कुतर्क देखिए मां को बाप की बीवी बताते हैं
ऐब छुपाने के लिए क्या से क्या कर जाते हैं
रहते दिल्ली में लेकिन इस्लामाबाद गाते हैं
पूरे देश में असहिष्णुता का माहौल बताते हैं
खुद फासिस्ट हैं सब को फासिस्ट बताते हैं
भारत विरोध उन की वैचारिकी की खुराक
भारत को बर्बाद करने की मुहिम चलाते हैं
बाजते रहते हैं वह जैसे बाघ से बिल्ली बाजे
मन बढ़ जाता है तो जनमत से बाज जाते हैं
देश को घायल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी
अपना घाव दिखाने में तिल का ताड़ बनाते हैं
तुष्टिकरण खातिर देश तोड़ने की हद तक गए
सनक देखिए हिंदू होने को वह गाली बताते हैं
[ 19 फ़रवरी , 2016 ]
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-02-2016) को "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का माहौल बहाल करें " (चर्चा अंक-2258) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारत के 'ग्लेडस्टोन' - गोपाल कृष्ण गोखले - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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