फ़ोटो : निखिलेश त्रिवेदी |
ग़ज़ल
का गुइयां का करें अब पंछी हो जाने को दिल करता है
नीले आकाश में तुम्हारे साथ उड़ जाने को दिल करता है
यह हरी दूब , यह फूल , फूल की ख़ुशबू साथ ले चलेंगे
प्रेम के अनंत आकाश में घरौदा बनाने को दिल करता है
नदी बेचैन है सागर से मिलने को बहुत बेचैन मैं भी हूं
तुम्हारे प्रेम के समंदर में डूब जाने को दिल करता है
दूध जैसे उबलता है उफन कर गिरता है ठीक वैसे ही
मचल कर तुम्हारी बांह में घिर जाने को दिल करता है
पूर्णमासी की रात है मचलती हुई काशी की गंगा है
इस चांदनी में तुम्हारे साथ नहाने को दिल करता है
शीत में डूबी हुई है सुबह , सांझ कोहरे के धुंध में
तुम्हारी देह के कोहरे में खो जाने को दिल करता है
ड्राइंग रूम भी कोई बैठने मिलने की जगह है भला
गांव वाले घर के ओसारे में बैठने को दिल करता है
[ 29 दिसंबर , 2015 ]
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