पेंटिंग : डाक्टर लाल रत्नाकर |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
इस लिए मैं चुप रहता हूं सर्वदा सब के सामने
देवदास लोग रोया नहीं करते सब के सामने
नयन में नीर सब के होता है दिखाता कोई नहीं
छुपाता हर कोई पर घाव होता है सब के सामने
टूट जाते हैं , मिट जाते हैं, मर जाते हैं बड़े-बड़े सूरमा
प्रेम की नुकीली नागफनी जब डसती है सब के सामने
हंसना सब को आता नहीं मुश्किल बहुत है चोट खा कर
मस्त बहारों का आशिक बन कर घूमना सब के सामने
ज़िंदगी का जहर सब को सूट करता नहीं वह तो मैं हूं
बात-बेबात ठहाका लगाता रहता हूं सब के सामने
नौकरी बांधती है बैल की तरह खूंटे से पर मैं हाज़िर हूं
आवारा बादल की तरह घूमता हुआ सब के सामने
नागफनी की मुश्किल किस के जीवन में उगती नहीं
गुलाब खिलता है कांटों के बीच रह कर सब के सामने
रोता मैं भी हूं अकेले में जब-तब अपने घाव सहलाते हुए
अभिनेता नहीं हूं पलकें भीग भी जाती हैं सब के सामने
सफलता बांध लेती है बेजमीरी के गमले में बोनसाई बना कर
बड़े-बड़ों को देखा है कुत्तों की तरह पट्टा बांधे सब के सामने
कभी झुकता नहीं बेचा नहीं जमीर किसी सुविधा की तलब में
असफल हूं तो क्या हुआ सीना तान कर खड़ा हूं सब के सामने
जुबां अना जमीर सब सही सलामत है बेचा नहीं कभी कहीं
मेरी ज़िंदगी खुली किताब है हाजिर है सर्वदा सब के सामने
मुहब्बत में जहांपनाह होना आसान नहीं होता यारो
ताजमहल बना कर रोते हैं शाहजहां सब के सामने
[ 27 दिसंबर , 2015 ]
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