चारबाग़ / फ़ोटो :अंशुल कुमार |
ग़ज़ल
बिरयानी की तरह सरकारी बजट खाना और पान की तरह चबाना है
बिरयानी की तरह सरकारी बजट खाना और पान की तरह चबाना है
यह अहले लखनऊ है कुल्लू मनाली की बर्फ़ नहीं जो गुड़ के साथ खाना है
सियासत होती है यहां इबादत की तरह बिल्डरों की तिजोरी खातिर
क्या कर लेंगे आप बिल्डरों और ठेकेदारों का आख़िर लखनऊ से याराना है
क्या कर लेंगे आप बिल्डरों और ठेकेदारों का आख़िर लखनऊ से याराना है
लखनऊ नशा है काम करने वालों का , कमीशन पिता जी को नियमित देते हैं
एक साल में सड़क बनेगी दो बार , दस बार टाइल उखाड़ कर फिर से लगाना है
अरबों का बजट पी गए पुल बनाने में , सिर्फ़ नदी नहीं थी बस योजनाएं थीं
हर तरफ ट्रैफ़िक जाम का समंदर है और चींटी की तरह लाइन से जाना है
चारबाग़ , कैसर बाग़ , सिकंदर बाग़ , बनारसी बाग़ अब सब नाम के हैं
बागों का शहर था कभी यह अब पत्थर के पार्क हैं ठेकेदारों का ज़माना है
इमामबाड़ा यहां का हुस्न , भूलभुलैया का जादू जागीर , चौक इस की शान
वह अमृतलाल नागर का ज़माना था , यह लंठों , धन्ना सेठों का ज़माना है
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