स्निग्धा श्रीवास्तव
व्यवस्था
चाहे देश की हो, समाज की हो, राजनीति की हो या फिर घर, स्कूल से लेकर सभी
छोटी-बड़ी इकाइयों की हो, अगर मामूली सी भी गड़बड़ी आई, तो पूरी व्यवस्था
चौपट ही समझो। प्रसिद्ध पत्रकार, कहानीकार और उपन्यासकार दयानंद पांडेय की
'व्यवस्था पर चोट करती सात कहानियां' में यही बात उभर कर सामने आई हैं। ये
सात कहानियां सिर्फ कहानियां नहीं हैं, बल्कि समाज के वे सात चेहरे हैं, जो
पूरे समाज का खाका खींचते हैं। इन कहानियों में अलग-अलग पात्रों के जरिये
लोंगो की विवशता को दर्शाने की कोशिश की गई है, सामाजिक अव्यवस्था के शिकार
होते हैं। कहानीकार दयानंद पांडेय ने यह भी बताने की कोशिश की है कि समाज
का हर व्यक्ति अच्छाई-बुराई के भंवरजाल में फंसा छटपटा रहा है। पहली कहानी
है, मुजरिम चांद। कहानी में एक पत्रकार को सिर्फ इसलिए कई तरह की जिल्लत
बर्दाश्त करनी पड़ती है क्योंकि उसने नेचुरल कॉल के चलते राज्यपाल का ट्वायलेट इस्तेमाल कर लिया था। इस कहानी में ग्रामीण पत्रकारों की व्यथा-कथा
के साथ-साथ प्रशासनिक व्यवस्था का चेहरा भी बेनकाब होता है। कहानी 'फेसबुक में फंसे चेहरे' बताती है कि अब दुनिया धीरे-धीरे नहीं, बल्कि बहुत तेजी
से आगे बढ़ रही है। पहले लोग घरेलू झगड़ों, आस-पड़ोस की बातें तथा पंचायत
में व्यस्त रहते थे, मगर अब लोग इंटरनेट, व्हाट्सअप और फेसबुक में उलझ गए
हैं। खाना खाएं या नहीं, व्हाट्सअप पर स्टेटस बदलने की जल्दबाजी जरूर रहती
है। साथ ही यह चिंता रहती है कि स्टेटस क्या दें? फेसबुक पर तो लोग कमाल
करते है, वे अपने स्टेटस कुछ ऐसे देते हैं-स्लीपिंग विद रवि, राम, राधा,
राजेश ईटीसी। या फिर फीलिंग लव विद अनुरंजन, भावेश, श्याम, ईटीसी। ऐसे ही
एक महोदय हैं राम सिंगार जी। राम सिंगार जी फेसबुक पर लड़कियों की फोटो पर
कमेंट आने से और अपनी फोटो पर कमेंट न आने से परेशान हैं। उन्हें खुद
फेसबुक खोलना नहीं आता, लेकिन वे इसके बिना रह भी नहीं सकते हैं। अजीब
विडंबना है। इससे बचने के लिए वे अपने गांव जाते है, मगर फिर वापस वहां से
फोटो खिंचवाकर फेसबुक पर ही अटक कर रह जाते हैं।
इस
कहानी संग्रह की एक विचारणीय कहानी है 'देहदंश।' कहानी देहदंश राजनीति में
महिलाओं की स्थिति का बेहद कटु किंतु साफगोई से किया गया विवेचन है। नेता
जी राजनीति में सब कुछ पा लेना चाहते हैं। सत्ता का लालच उन्हें
अच्छाई-बुराई का भी आभास नहीं होने देता है। यहां तक की उनकी पत्नी एक
मंत्री की अभद्रता का शिकार हो जाती है, लेकिन उन्हें कोई बहुत ज्यादा फर्क
नहीं पड़ता। हां, पत्नी यानी मिश्राइन जरूर इसे सदमे की तरह लेती हैं,
लेकिन फिर वे भी माहौल में ढल जाती हैं। असल में मिश्रा- मिश्राइन सिर्फ
कहानी के दो पात्र ही नहीं है, अपितु वे राजनीति के स्याह-सफेद पहलुओं के
जीते-जागते उदाहरण हैं जिनसे आज समाज गुजर रहा है। राजनीति में ऐसे कई नेता
हैं, जो न सिर्फ औरतों का इस्तेमाल करते है, उन्हें बुरी तरह भोगते हैं,
बल्कि अपनी सद्चरित्रता का चोला भी पहने रहते हैं। मिश्रा और मिश्राइन के
घावों को कुरेदने में मीडिया भी पीछे नहीं रहता है। राजनीति, पत्रकारिता की
शवपरीक्षा करती हुई यह कहानी समाज के चेहरे से छद्म मुखौटा खींच लेने का
दुस्साहस करती है। राजनीति और पत्रकारिता के लिए स्त्री की हैसियत एक देह
से बढ़कर नहीं है, यह कहानी 'देहदंश' बांचती हुई चलती है।
कहते
हैं कि इन्सान चाहे जितनी कामयाबी हासिल कर ले, रोजी-रोटी के लिए दूर देश
में बस जाए, लेकिन उसके मन में कहीं न कहीं बचपन में वापस जाने की इच्छा
मौजूद रहती है। ऐसा ही है कुछ, कहानी 'सुंदर लड़कियों वाला शहर' में। इसके
दो पात्र शरद और प्रमोट को सालों बाद परिस्थितियां अपने गांव वापस ले आती
हैं। बचपन से पढऩे में होशियार शरद शहर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, लेकिन
प्रमोद शुरू से ही लड़कियों पर ही अटका रहता है। दोनों इस कहानी में अपने
बचपन की यादों में, लड़कियों में डूबते उतराते हैं।
कहानी
'हवाई पट्टी के हवा सिंह' चुनावी दौरे पर गए एक नेता के हवाई दौरे की
कहानी है। हवाई पट्टी के क्षतिग्रस्त होने के बावजूद पायलट के हवाई जहाज
उतारने और अनियंत्रित भीड़ के व्यवहार की कहानी बयां हुई है इस कहानी में।
कहानी 'प्लाजा' इस संग्रह की अच्छी कहानियों में से एक है। यह वर्तमान समाज
में फैली बेरोजगारी से पीडि़त राकेश व्यथा-कथा ही नहीं, पूरे समाज की
व्यथा कथा बनकर रह जाती है। 'संगम के शहर की एक लड़की', 'चना जोर गरम वाले चतुर्वेदी जी' जैसी कहानियां काफी मार्मिक हैं। कुल मिलाकर पूरा कहानी
संग्रह पठनीय है।
[ दैनिक न्यू ब्राइट स्टार , से साभार ]
[ दैनिक न्यू ब्राइट स्टार , से साभार ]
समीक्ष्य पुस्तक :
कहानी संग्रह :
व्यवस्था पर चोट करती सात कहानियां
कहानीकार : दयानंद पांडेय
प्रकाशक : शाश्वत प्रिंटर्स एंड पब्लिशर्स
1/10781, पंचशील गार्डन,
नवीन शाहदरा, दिल्ली-32
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