कुछ फेसबुकिया नोट्स !
- मौक़ा मिलने पर मजारों , चर्चों , गुरद्वारों , बौद्ध मठों में भी मैं जाता हूं। शीश नवाता हूं उसी श्रद्धा और उसी भावना के साथ , जिस भावना से मंदिर जाता हूं। वह चाहे लखनऊ में खम्मन पीर बाबा की मजार हो , दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की मजार हो या अजमेर शरीफ । इसी तरह लखनऊ की कैथड्रेल चर्च हो , दिल्ली , गोरखपुर की कोई चर्च हो , शिलांग की चर्च हो या फिर लखनऊ से लगायत दिल्ली तक के गुरुद्वारे , हर जगह जाता हूं । कुशी नगर, सारनाथ से लगायत गंगटोक तक के बौद्ध मठों में जाता हूं। सपरिवार जाता हूं , शीश नवाता हूं । यह मेरा अपना यकीन है , मेरी आस्था है । मैं बहाई समुदाय के लोटस टेम्पल भी गया हूं । लेकिन इन मजारों , चर्चों , गुरुद्वारों , बौद्ध मठों में भी मुझ से कभी नहीं पूछा गया कि किस धर्म और जाति के हो ? जैसे कि किसी मंदिर में कभी नहीं पूछा जाता । तो यह कौन लोग हैं जिन्हें हर जगह तंग किया जाता है ? यह किस ग्रह के लोग हैं ? जो इतनी नफरत , इतना जहर लिए घूमते-फिरते हैं ? इन की जहरीली बातों को हम लोग सुनते भी क्यों हैं चुपचाप ? इन का प्रतिकार क्यों नहीं करते खुल कर ? आप आस्तिक हैं , नास्तिक हैं , यह आप का अपना निजी फैसला है। आप मत मानिए , मंदिर , गिरिजा , मजार , मस्जिद, गुरुद्वारा । यह आप का अपना चयन है । लेकिन इस सब के नाम पर जहर फैलाना , गलत है , यह आप का निजी मसला नहीं है । बंद कीजिए यह जहरीली और हिंसक जुबान ! यह मनुष्यता का हनन है , मनुष्य विरोधी है यह सब मूर्खता , यह जहरीली हिंसा है।
- हमारे गोरखपुर में दो बहुत पुराने मंदिर हैं। एक बाबा गोरखनाथ का मंदिर । बड़ी मान्यता है इस मंदिर की । इस गोरखनाथ मंदिर के महंत सर्वदा से ही क्षत्रिय ही होते आए हैं । अभी आदित्य नाथ हैं । इस के पहले अवैद्यनाथ थे इस के पहले नौमीनाथ , इस के पहले दिग्विजय नाथ यह सभी क्षत्रिय ही हैं । इस मंदिर के तमाम उप मंदिरों में तमाम योगी हैं जो किस जाति के हैं , कोई नहीं जानता । कम से कम यहां दुनिया भर से आने वाला श्रद्धालु तो नहीं ही जानता । यहां आने वाला श्रद्धालु किस जाति का है , किस धर्म का है कोई नहीं जानता । न इस बाबत कोई जांच होती है । जांच होती भी है कभी कभार तो बस सुरक्षा जांच होती है । जो वहां का जिला प्रशासन करता है । यही बात मैंने काशी के विश्वनाथ मंदिर में भी देखी है। या किसी भी मंदिर में यही सुरक्षा जांच देखता हूं, जो वहां का प्रशासन करता है । मंदिर के लोग नहीं । बड़े-बड़े सेक्युलरिस्ट यथा राजा दिग्विजय सिंह , लालू प्रसाद यादव इस गोरखनाथ मंदिर में आ कर इन के चरण छूते हैं । अखबारों में ऐसी फोटुएं छपी मैं ने देखी हैं । दूसरा मंदिर है डोमिनगढ़ के पास बसियाडीह का मंदिर । यहां के महंत एक माली हैं । माली मतलब फूल तोड़ने वाले , शादी के लिए मौर बनाने वाले । मतलब सवर्ण नहीं हैं । पिछड़ी जाति के हैं। लेकिन क्या ब्राह्मण , क्या यह , क्या वह सब इन के पैर छूते हैं । किसी को तकलीफ नहीं होती । इन मंदिरों में लोग अपने पारिवारिक कार्य यथा मुंडन , विवाह आदि भी करते हैं । सभी जातियों के लोग । किसी को कोई दिक्क़त नहीं होती । तो यह कौन लोग हैं जिन्हें मंदिरों में बहुत दिक्क़त होती है । ब्राह्मण वहां न होते हुए भी उन्हें रोक दिया करते हैं ? यह समाज में जहर फैलाने वाले लोग कौन हैं ? अरे आप की मंदिर में श्रद्धा नहीं है , विश्वास नहीं है , मत कीजिए। लेकिन इस तरह की नफरत फैलाने वाली जहरीली बात भी तो मत कीजिए ।
- मनु राजा थे। क्षत्रिय थे । मनुस्मृति भी उन्हों ने ही लिखी । लेकिन यह जहर से भरे कायर जातिवादी, मनुवाद के नाम पर ब्राह्मणों को गरियाते हैं। जानते हैं क्यों ? इस लिए कि ब्राह्मण सहिष्णु होता है , सौहार्द्र में यकीन करता है। गाली गलौज में यकीन नहीं करता। अप्रिय भी बर्दाश्त कर लेता है। करता ही है । दूसरे , यह कायर , नपुंसक , जहरीले जातिवादी अगर क्षत्रिय को मनुवादी कह कर गरियाएंगे तो क्षत्रिय बर्दाश्त नहीं करेगा , गिरा कर मारेगा। सो इन जहरीले जातिवादियों के लिए ब्राह्मण एक बड़ी सुविधा है अपने नपुंसक विचारों को डायलूट करने के लिए। अब कुछ मूर्ख कहेंगे कि मैं तो बड़ा जातिवादी हूं , कैसा लेखक हूं? कैसे इतनी अच्छी कविताएं लिखता हूं , उपन्यास लिखता हूं आदि-आदि ! कहते ही रहते हैं । अच्छा यह नपुंसक और कायर जो लगातार ब्राह्मणों को गरियाने का शगल बनाए हुए हैं , यह सब कर के बड़ी-बड़ी दुकान खोल कर समाज में क्या संदेश दे रहे हैं ? आप उन को क्या मानते हैं ? कभी सांस भी लेना जुर्म क्यों समझते हैं उन के जहरीले बोल के खिलाफ ? इतने नादान और बेजान क्यों हैं आख़िर आप ? दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है , इस घोर वैज्ञानिक युग में भी यह मूर्ख ब्राह्मण-ब्राह्मण के पहाड़े से आगे निकलना ही नहीं चाहते ! अजब है यह भी ! अच्छा कोई मुझे यह भी तो बता दे कि आज की तारीख़ में कौन समाज है जो मनु स्मृति से भी चलता है ? मनुस्मृति की ज़रूरत भी किसे है अब ? सिवाय इन गाली गलौज वालों के ? यह विज्ञान , यह संविधान , यह क़ानून अब समाज चलाते हैं , मनुस्मृति नहीं ! क्या यह बात भी लोग नहीं जानते ? अच्छा कुछ लोग जान दिए जाते हैं इस बात पर कि दलितों को मंदिर में घुसने नहीं दिया जाता ? अच्छा आप जो मनुवाद के इतने खिलाफ हैं तो मंदिर जाते भी क्यों हैं ? दूसरे ज़रा यह भी तो बता दीजिए कि किस मंदिर में आप को नहीं घुसने दिया गया ? किस मंदिर में घुसते समय आप से पूछा जाता है कि आप किस जाति से हैं ? किस मंदिर में यह पूछने का समय है ? और डाक्टर ने कहा है कि आप अपने काम काज में ब्राह्मण बुलाइए ? कि संविधान में लिखा है ? कौन सी कानूनी बाध्यता है आख़िर? क्यों बुलाते हैं आप ? मत बुलाईये , अपना काम जैसे मन वैसे कीजिए लेकिन आंख में धूल झोंकना बंद कीजिए ! अच्छा डाक्टर ने कहा है कि किसी क़ानून ने कि शादी में या मरने में भी पंडित बुलाइए ? बैंड वाला , कैटरिंग वाला या और भी तमाम जोड़ लीजिए अपनी हैसियत से तो पंडित से ज़्यादा पैसा लेते हैं , लेकिन वहां प्राण नहीं निकलता ? अच्छा जब जमादार बुलाते हैं मरने में ही सही , तो क्या उसे उस की मजदूरी नहीं देते ? श्मशान के डोम को पैसा नहीं देते कि लकड़ी वाले या कफन वाले , या वाहन वाले को पैसा नहीं देते ? इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की फीस भी नहीं देते ? कि डाक्टर को फीस नहीं देते ? वकील को नहीं देते ? तो पंडित को देने में प्राण निकलते हैं ? मत बुलाइए पंडित को ! क्यों बुलाते हैं पंडित ? पंडित की गरज से ? कि अपनी गरज से ? मनुस्मृति या कर्मकांड में इतना जीते क्यों हैं , बाध्यता क्या है ? फिर घड़ियाली आंसू भी बहाते हैं ! गोली मारिए मनु स्मृति को , मत मानिए मनु स्मृति और कर्म कांड को ? यह डबल गेम कब तक ?यह दोगला जीवन कब तक और क्यों ? किस के लिए ? यह व्यर्थ का रोना-धोना और लोगों को गुमराह करना !
- एक बात आज तक समझ में नहीं आई कि राम कथा कहने के लिए रामायण बहुतेरे कवियों ने बहुतेरी भाषाओं में लिखी है लेकिन कुछ कुंठित और मतिमंद लोग गालियां सिर्फ़ गोस्वामी तुलसीदास को ही भरपेट क्यों देते हैं ? जब कि तुलसीदास जैसा अनूठा और प्रसिद्ध कवि उन की जोड़ का कोई एक भी दूसरा दुनिया भर में कम से कम मेरी राय में तो नहीं है। यहां तक कि कुछ कुंठित और 'वादी' टाइप के विद्वान निराला को अच्छा कवि मानते हुए भी राम की शक्ति पूजा लिखने के लिए उन्हें पापी बताने में सीना चौड़ा कर लेते हैं । अजब अन्तर्द्वन्द्व है ।
- जब वह अपने ही कुतर्कों से हांफ-हांफ जाते हैं , तथ्य से मुठभेड़ नहीं कर पाते, कोई राह नहीं पाते निकल पाने की तो बड़े ठाट से एक मूर्ति बनाते हैं। फिर इस मूर्ति को ब्राह्मण नाम दे देते हैं । मूर्ति को स्थापित करते हैं । उस के चरण पखारते हैं , उस का आशीर्वाद लेते हैं । उन का रचनाकार खिल उठता है । फिर वह अचानक अमूर्त रूप से इस मूर्ति से लड़ने लगते हैं । उन की विजय पताका उन के आकाश में फहराने लगती है । वह सुख से भर जाते हैं । हां लेकिन उन की धरती उन से छूट जाती है , वह गगन बिहारी बन जाते हैं। उन का यही सुख उन्हें, उन की रचना को छल लेता है । लेकिन उन की आत्म मुग्धता उन्हें इस सच को समझने का अवकाश नहीं देती। उन की क्रांतिकारी छवि कब प्रतिक्रांतिकारी में तब्दील हो जाती है , यह वह जान ही नहीं पाते । और वह फिर से ब्राह्मण-ब्राह्मण का पहाड़ा पढ़ते-पढ़ते उल्टियां करने लगते हैं । लोग इसे उन की नई रचना समझ बिदकने लगते हैं । पर हमारे यह गगन बिहारी मित्र अपने आकाश से कुछ देख समझ नहीं पाते और वहीँ कुलांचे मारते हुए नई -नई किलकारियां मारते रहते हैं। धरती से , धरती के सच से वह मुक्त हो चुके हैं । उन्हें इस धरती से और इस के सच से क्या लेना और क्या देना भला ! अब उन का अपना आकाश है , आत्म मुग्धता का आकाश।
- ब्राह्मणों के खिलाफ जहर भरी लफ्फाजी और दोगले विरोध की दुकानदारी अब जर्जर हो चुकी है। यह सब देख-सुन कर अब हंसी आती है और कि इन मूर्ख मित्रों पर तरस भी आता है। मित्रों अब अपनी कुंठा, हताशा , अपने फ़रेब और अपनी धांधली जाहिर करने का कोई नया सूत्र , कोई नया फार्मूला क्यों नहीं ईजाद कर लेते ? क्यों कि इस नपुंसक वैचारिकी का यह खोल और यह खेल दोनों ही आप की कलई खोल चुके हैं । यह कुतर्क आप को नंगा कर चुका है ।
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