कुछ फ़ेसबुकिया नोट्स
 
  • हमारे देश का सेक्यूलरिज्म बनारस में किस पड़ाव पर आ कर ठिठक गया है कि देख कर हैरत होती है। नरेंद्र मोदी का सारा विरोध ही सेक्यूलरिज्म की बुनियाद पर टिका है। लेकिन मोदी के खिलाफ़ किसी को कोई मज़बूत उम्मीदवार उतारने की ज़रुरत नहीं महसूस हुई। कांग्रेस को अजय राय मिले। वह अजय राय जो कभी भाजपा में भी रह चुके हैं। अपराधी पृष्ठभूमि है सो अलग। इतना ही नहीं इन अजय राय के समर्थन में कुख्यात अपराधी मुख्तार अंसारी
 
सेक्यूलरिज्म के बिना पर अपनी उम्मीदवारी वापस ले लेते हैं। वह मुख्तार अंसारी जो अजय राय के एक भाई की हत्या में नामजद मुल्जिम भी हैं। क्या सेक्यूलरिज्म है ! सपा-बसपा के उम्मीदवार भी बस नामजदगी के बाद गुमनामी गुज़ार रहे हैं। वामपंथियों का कुछ पता ठिकाना ही नहीं है। विरोध के नाम पर एक अरविंद केजरीवाल हैं जिन पर भगोड़ा होने और फ़ोर्ड फ़ाऊंडेशन से पैसा लेने की मुहर इस कदर लग गई है कि वह इसी से मुक्त नहीं हो पा रहे। तो सेक्यूलरिज्म? अब बहुत दुरुपयोग हो चुका इस शब्द का मुसलमानों की आंख में धूल झोकने के लिए। अब बंद हो जानी चाहिए सेक्यूलरिज्म की यह नौटंकी। और कि मुसलमानों को भी जान लेना चाहिए कि देश में और भी अल्पसंख्यक लोग हैं। सिख, जैन, इसाई, पारसी, बौद्ध आदि। पर यह राजनीतिक पार्टियां इन की आंख में क्यों नहीं धूल झोंक पातीं? सिर्फ़ मुसलमानों को ही वोट बैंक का टट्टू क्यों बनाया जाता है? यह उन्हें ज़रुर सोचना चाहिए।


  • लालू प्रसाद यादव ने आज दावा किया है कि नीतीश कुमार की पार्टी जद यू का बिहार में खाता नहीं खुलेगा। बात ही बात में उन्हों ने इस बाबत एक करोड़ रुपए की शर्त लगा दी रवीश कुमार से एन डी टी वी पर । रवीश ने कहा कि हमारे पास एक करोड़ रुपए ही नहीं हैं। तो लालू बोले अपने मालिक से मांग कर देना। लालू का यह भी दावा था कि बिहार में भाजपा भी साफ है। गरज यह कि अगर कोई है बिहार में तो बस लालू !


  • जातिवादी राजनीति और
सामाजिक समता की राजनीति का पतन दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। मुलायम सिंह यादव ने आज मायावती को संकेतों में कांशीराम की श्रीमती कह कर इस पतन को आगे बढ़ाया ही था कि मायावती ने भी उन की पहली पत्नी यानी अखिलेश यादव की माता जी से उन के अप्रिय संबंधों का ज़िक्र कर उन्हें आगरा के पागलखाने में भेजने की बात कह कर इस पतन को नया पायदान दिया है।

और इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए उन्हों ने कह दिया कि रामदेव के खिलाफ़ इस लिए कार्रवाई नहीं हो रही क्यों कि वह यादव हैं। तो क्या राजनीति की तरह कानूनी कार्र्वाई भी अब जाति देख कर ही होगी? ऐसी गैर ज़िम्मेदार राजनीति जितनी जल्दी खत्म हो वही बेहतर ! क्यों कि मुलायम का बयान तो निंदनीय है ही, मायावती का बयान भी कोई स्वागत योग्य नहीं है। राजनीति और सार्वजनिक जीवन में संयम और शुचिता दोनों ही ज़रुरी है।


  • जाने यह कौन सा मनोविज्ञान है कि दिग्विजय सिंह का टी वी एंकर अमृता राव से संबंध लोगों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
 
अमृता राव और दिग्विजय सिंह के कई-कई अंतरंग फ़ोटो जगह-जगह जारी हो रहे हैं। लेकिन सेक्यूलर खेमा और इस के ठेकेदार इस मामले पर पूरी तरह खामोश हैं। इस खेमे के टिप्पणीबाज़ सन्नाटा बुन रहे हैं। ऐसे ही एक समय लोग नरेंद्र मोदी से उन की एक लड़की के फ़ोन मसले पर घेरने, पत्नी यशोदा बेन को परित्यक्ता बनाने पर लोग बहुत परेशान हो गए थे। तब भाजपा खेमे के लोग सन्नाटा बुन रहे थे। अब यह लोग खासा सक्रिय हैं। एक गाना याद आ रहा है : इश्क के नाम पे करते सभी अब रासलीला है,मैं करूँ तो साला, करेक्टर ढीला है ! दिग्विजय सिंह शायद आज यही गाना गा रहे होंगे। लेकिन मेरा मानना है कि व्यक्तिगत को व्यक्तिगत ही रहने दिया जाना चाहिए। वह चाहे किसी भी का हो। यह चर्चा का विषय नहीं होना चाहिए। अगर दोनों पक्षों में से किसी को एक दूसरे से शिकायत नहीं है तो लोगों को काजी बन कर दुबला होने से बचना चाहिए । लोहिया कहते ही थे कि अगर किसी संबंध में ज़बरदस्ती या शोषण नहीं है तो वह नाजायज नहीं है।

  • यह हिंदू-मुसलमान, अगड़ा-पिछड़ा-दलित तो हर बार के चुनाव का खेल रहा है। इस में नया क्या है? बिना इस के कभी कोई चुनाव हुआ है क्या जो चैनलों से लगायत सोशल साइट्स तक पर लोग हाय-तौबा कर रहे हैं?

  • मनमोहन सिंह वह पत्थर हैं जो देश और कांग्रेस दोनों के गले में उन्हें डुबोने के लिए ही लटके हैं।

  • यह तो ठीक बात है कि फ़ारूख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला की भूमिका कश्मीर में जो होनी चाहिए थी नहीं है। देश को कश्मीर से काटने में इन दोनों बाप बेटे का योगदान बहुत है। लेकिन एक सच यह भी है कि अगर शेख अब्दुल्ला न होते तो कश्मीर का जो भी हिस्सा भारत में है, वह भी भारत में नहीं होता। यह बात कैसे कोई भूल सकता है? नरेंद्र मोदी को भी यह बात जान लेनी चाहिए। यह तथ्य याद कर लेना चाहिए।
मित्रो, मैं उस समय की बात कर रहा हूं जब राजा हरि जय सिंह ने कश्मीर रियासत को हिंदुस्तान में मिलाने से मना कर दिया था। तो जिन्ना ने पाकिस्तान से कबाइलों को भेज कर कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की मुहिम शुरु की। और जब लगातार वह कश्मीर पर कब्जा करने लगे तब हरि जय सिंह घबरा कर भारत सरकार से फ़ोन पर बात कर कश्मीर को बचाने की गुहार लगाई। क्यों कि जय सिंह के पास सिर्फ़ राजा को सलामी देने वाली सेना थी, लड़ने वाली नहीं। कबाइली लगातार कशमीर पर कब्जा करते जा रहे थे। जिन्ना ने भी सेना भेजना चाहा उसी समय लेकिन तब के दिनों भारत और पाकिस्तान दोनों की सेना का कमांडर एक था। जो ब्रिटेन का ही था। पाकिस्तान में जो डिप्टी कमांडर था वह भी अंगरेज था। उस ने भारत में कमांडर से आदेश लिए बिना पाकिस्तानी सेना को कश्मीर कूच करने से मना कर दिया। हरि जय सिंह ने जब फ़ोन किया तब रात हो गई थी। सेना किसी भी तरह कश्मीर नहीं पहुंच सकती थी। उन को आश्वासन दिया गया कि सुबह हर हाल में सेना विमान से पहुंच जाएगी। हरि जय सिंह ने अपने पी ए को उस रात अपनी रिवाल्वर दे कर कहा कि अगर सुबह भारत का जहाज सेना ले कर न आए तो मुझे सोते में ही गोली मार देना। लेकिन भारतीय सेना का विमान तड़के ही पहुंच गया। और जवाबी कार्र्वाई शुरु कर दी। उस वक्त शेख अब्दुल्ला ने भी अपने लोगों के साथ उन कबाइलों का मुकाबला किया था। और कि उस के पहले भी शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने के बजाय हिंदुस्तान में मिलाने की बात लगातार कही थी। लेकिन हरि जय सिंह शेख अबदुल्ला से सहमत नहीं थे। हरि जय सिंह ही चाहते थे कि कश्मीर रियासत का पूरी तरह हिंदुस्तान में विलय न हो। और कि उसी रात नेहरु ने संयुक्त राष्ट्र से कश्मीर बचाने की अपील कर दी। बात वहीं बिगड़ गई। नेहरु को सेना को रोकने का आदेश संयुक्त राष्ट्र संघ के दखल पर देना पड़ा। और मामला तब से ही विवादित हो गया। फ़ारुख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ही क्यों मुफ़्ती अहमद सईद ने भी मामला खूब बिगाड़ा। तथ्य यह भी है कि जब जगमोहन राज्यपाल थे तब ही कश्मीरी पंडितों ने भारी संख्या में कश्मीर से पलायन किया। यह जगमोहन की उन को अनाफ़िशियल सलाह भी थी। और जो कश्मीरी पंडित तब वहां से पलायन न किए होते तो वहीं भून दिए गए होते। और आज कोई उन की बात भी न कर रहा होता। जान है तो जहान है के चक्कर में यह लोग वहां से पलायन कर गए।