कहां
तो अपने बड़बोले राजनीतिक लबार लालू प्रसाद यादव इन के गालों जैसी चिकनी
सड़क बनाने का ख्वाब देख रहे थे एक समय। कहां ये गुलाबी गाल आ गए मथुरा
की पगडंडियों में अपना स्वप्न जैसा सौंदर्य ले कर। यह औचक सौंदर्य इस तरह
खेतों में गेहूं की बाल कटवाए, हैंड्पंप
चलवाए ! मथुरा की यह पगडंडियां और यह हमारी रुपसी संसद के द्वार जाने के
लिए इस चैत मास में इतना कंट्रास्ट भर रही है। ताहि अहीर की छोकरियां,
छछिया भरि छांछ पे नाच नचावैं! तो सुना था पर कोई स्वप्न सुंदरी भी ऐसे
नाचेगी, वोटरों के वोट के छांछ पर। यह भी भला कौन जानता था? हाय रे यह
राजनीति! और ऐ दिले नादां! आरजू क्या है, जुस्तजू क्या है ! क्या इसी दिन
के लिए लिखा गया था मेरी जान ! तेरे सदके जाऊं ! हे नंदकिशोर, यह कौन सी
लीला है, जो इस रुपसी को आप इस तरह अपनी गलियों में मीरा बनाए भटका रहे
हैं?
सोच रहा हूं अब बिक जाऊं।
-हमदम गोरखपुरी
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