इन नकली चेहरे वालों का पर्दाफ़ाश बहुत ज़रुरी है !
क्यों कि स्वस्थ समाज के लिए यह बहुत बड़े नासूर हैं
क्या मिलिए ऐसे लोगों से ,जिन की फितरत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आये ,असली सूरत छुपी रहे !
क्यों कि स्वस्थ समाज के लिए यह बहुत बड़े नासूर हैं
क्या मिलिए ऐसे लोगों से ,जिन की फितरत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आये ,असली सूरत छुपी रहे !
यह एक बहुत पुराना एक फ़िल्मी गाना है साहिर लुधियानवी का लिखा और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत से सजा मोहम्मद रफी की दिलकश आवाज़ में जो 1968 में रिलीज हिंदी फिल्म 'इज्जत ' का है। इस फ़िल्म में बतौर नायक धर्मेंद्र और नायिका जयललिता ने अभिनय किया था । पहले उस गाने का लुत्फ़ लें:
क्या मिलिए ऐसे लोगों से ,जिनकी फितरत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आये ,असली सूरत छुपी रहे !
खुद से भी जो खुद को छुपाएँ ,क्या उनसे पहचान करें ,
क्या उनके दामन से लिपटें, क्या उनका अरमान करें !
जिनकी आधी नीयत उभरे ,आधी नीयत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आये ,असली सूरत छुपी रहे !
दिलदारी का ढोंग रचा कर जाल बिछाए बातों का ,
जीते जी का रिश्ता कहकर, सुख ढूंढे कुछ रातों का !
रूह की हसरत सामने आए , जिस्म की हसरत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आए ,असली सूरत छुपी रहे !
जिनके ज़ुल्म से दुखी है जनता , हर बस्ती ,हर गाँव में ,
दया - धरम की बात करें वो , बैठ के भरी सभाओं में !
दान का चर्चा घर-घर पहुंचे , लूट की दौलत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आए , असली सूरत छुपी रहे !
देखें,इन नकली चेहरों की कब तक जय-जयकार चले ,
उजले कपड़ों की तह में , कब तक काला संसार चले !
कब तक लोगों की नज़रों से छुपी हकीकत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आए , असली सूरत छुपी रहे !
इन दिनों फ़ेसबुक पर जैसे यह गाना अपने पूरे दम के साथ पूरे उरुज में उपस्थित है। एक से एक क्रांतिकारी लफ़्फ़ाज़ हैं इन दिनों फ़ेसबुक पर कि उन की अपनी कोई पहचान नहीं, उन के बाप का कोई नाम नहीं, उन के शहर का कोई नाम नहीं, उन का कोई रिश्तेदार नहीं, उन का कोई जीवन नहीं पर फ़ेसबुक पर तमाम बहस में वह ऐसे उतरते हैं और इस अंदाज़ में उतरते हैं गोया उन के मुहल्ले में कोई अनजान आदमी आ गया है। और उस का विरोध इस कदर भूंक-भूंक करते हैं गोया मुहल्ले के कितने बड़े रखवाले हैं। जातिगत जहर और धार्मिक उन्माद के कुतर्क में आकंठ डूबे यह लोग फ़ेसबुक पर सिर्फ़ जातीय और धार्मिक उत्पा्त मचाने के लिए उपस्थित हैं। ऐसे जैसे भीड़ में कुछ मुट्ठी भर दंगाई उपस्थित होते हैं और समूचे शहर में दंगा फैला ही देते हैं। तो यह लोग भी फ़ेसबुक पर जातीय और धार्मिक दंगा में पूरी ताकत से उपस्थित हैं। ज़रुरी है कि इन जहरीले लोगों की शिनाख्त की जाए और समय बेसमय इन्हें निरंतर नंगा किया जाए। क्यों कि फ़ेसबुक की आबोहवा बिगाड़ने वाले यह फर्जी लोग अब उन्माद पर आमादा हैं। फ़ेसबुक को यह लोग निरंतर प्रदूषित कर रहे हैं। फ़ेसबुक पर यह लोग अनगिनत हैं। इन की राय से जो लोग असहमत होते हैं और इन के पास जब कोई तर्क और तथ्य नहीं रह जाता तो यह अगले आदमी को ब्राह्मण बता देते हैं। और जो वह ब्राह्मण नहीं है तो उसे ब्राह्मणवादी सोच का बता देते हैं। इस से भी पेट नहीं भरता तो यह लोग अगले को बिना संकोच संघी या भाजपाई घोषित कर देते हैं।
फ़ेसबुक पर यह फर्जी लोग दलित लोग है, मुस्लिम लोग हैं, पिछड़े लोग हैं। कांग्रेसी और भाजपाई लोग भी हैं। भाजपाई भी कुछ ऐसे हैं जो अपने से असहमत होने वालों को यह लोग तुरंत वामपंथी घोषित कर देते हैं। तो कांग्रेसी लोग भाजपाई बता देते हैं। कुछ लोग फर्जी महिलाओं के नाम से भी उपस्थित हैं। दुर्भाग्य से इस बीच मैं ने फ़ेसबुक पर उपस्थित कुछ लोगों के कुतर्क से आजिज आ कर से उन की पहचा्न पूछ लेने की औपचारिकता कर ली।
एक हैं संदीप वर्मा। पूर्व प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की फ़ोटो अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर के तौर पर लगा रखी है। संदीप वर्मा की खासियत यह है कि वह फर्जी आई डी के बावजूद कई बार शालीनता से बात करते हैं। लेकिन विमर्श में जब हारने लगते हैं तो कुतर्क की शरण में अंतत: आ ही जाते हैं। और विमर्श से फ़ुर्र हो जाते हैं। मैं ने संदीप वर्मा की वाल पर ही जा कर एक टिप्पणी लिखी और सीधे-सीधे उन की पहचान पूछ ली। उन्हों ने बड़ी विनम्रता से अपनी फ़र्जी आई डी की बात स्वीकार कर ली। संदीप वर्मा हालां कि औरों से थोड़े अलग हैं और कि लगता है फ़ासिज्म की सारी कसरत के बावजूद कुछ लोकतांत्रिकता उन में शेष है। तो भी वह आखिर में कुतर्क की शरण में आ गए।
दू्सरे जनाब हैं कुलदीप कुमार कंबोज। मैं ने फ़ेसबुक पर उपस्थित एक अतीतजीवी और लफ़्फ़ाज़ चंचल बी एच यू के बाबत एक टिप्पणी लिखी और उन्हें कहा कि फ़ेसबुक पर जुगाली करने के बजाय काशी से मोदी के खिलाफ़ चुनाव लड़ जाएं। एक बार उन्हों ने अपनी वाल पर यह इच्छा जताई भी थी। खैर चंचल तो खामोश रहे, सांस नहीं ली उन्हों ने। पर एक कुलदीप कुमार कंबोज अवतरित हो गए। चंचल और सलमान खुर्शीद की पैरवी में। कुतर्क का रंगीन कुर्ता पहने हुए। पर जब उन को उन की पहचान की चुनौती दी तब दुम दबा कर दुबक गए।
और तीसरे हैं दिव्य संदेश। एक दंभी भंगी कालीचरन स्नेही ने लखनऊ के पुस्तक मेलें में एक दिन देशद्रोह पर उतर आए। बोल गए कि दलित हितों के लिए वह राष्ट्र के खिलाफ़ भी जा सकते हैं। उन के बोलने में पंजाब के आतंकवादी भिंडरावाले की बू आती है। मैं ने अपने ब्लाग सरोकारनामा पर इस बाबत एक टिप्पणी लिखी। यह दिव्य संदेश दंभी भंगी कालीचरन स्नेही के टट्टू बन कर मुझ पर टूट पड़े। मैं ने उन से भी उन की पहचान पूछी। अपनी पहचान बताने के बजाय वह मेरा मानसिक संतुलन नापने लगे वह। तो उन के पिता जी का नाम पूछा। तब वह हा हा करने लगे। और कि बाद में अपनी वाल से लाल जी निर्मल की टैग की हुई यह पोस्ट ही मिटा दी। जिस पर उन्हों ने लफ़्फ़ज़ी की थी। हालां कि लाल जी निर्मल की वाल पर वह पोस्ट अभी भी है। लेकिन इस बाबत लफ़्फ़ाज़ी और नकलीपन दिव्य संदेश ने अपनी वाल पर की। दिव्य संदेश नाम का कोई अखबार भी है, ऐसा सुनता हूं। पर उस की साइट खुली नहीं। बहुत कोशिश के बाद भी।
खैर जो भी बेवकूफी कहिए, विमर्श कहिए फ़ेसबुक पर उपस्थित इन नकली सूरमाओं का विमर्श बांचिए और इन के ही दर्पण में इन का मानसिक तापमान जांच लें। मैं कौन होता हूं इन फर्जी लोगों पर कोई निर्णय देने वाला। सो मित्रों इन को इन के ही दर्पण में, इन के ही हमाम में देखिए। बारी-बारी। हालां कि यह कतई कोई रचनात्मक कार्य नहीं है इस का पूरा एहसास है और कि ऐसे बेवकूफी के कामों में न सिर्फ़ वक्त और ऊर्जा व्यर्थ ही जाया होती है और कि लगभग दीवार में सर मारना ही है, क्यों कि यह दुराग्रही लोग अपना एक माइंड सेट बना चुके हैं और कि लाइलाज बीमारी बन चुके हैं, न सुधरने वाले हैं न शर्म खाने वाले हैं। फिर भी अति हो गई है सो इस का प्रतिकार बहुत ज़रुरी है। बहुत संभव है कि यह लोग मुझे फिर ब्राह्मणवादी आदि कह कर खीझ मिटाएंगे, कुतर्क करेंगे, तथ्यहीन बातें करेंगे, तो भी कोशिश होगी कि इन का पूरे तर्क और ताकत के साथ प्रतिवाद करुं और कि यह कोशिश आगे भी जारी रखूं। आमीन !
क्या मिलिए ऐसे लोगों से ,जिनकी फितरत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आये ,असली सूरत छुपी रहे !
खुद से भी जो खुद को छुपाएँ ,क्या उनसे पहचान करें ,
क्या उनके दामन से लिपटें, क्या उनका अरमान करें !
जिनकी आधी नीयत उभरे ,आधी नीयत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आये ,असली सूरत छुपी रहे !
दिलदारी का ढोंग रचा कर जाल बिछाए बातों का ,
जीते जी का रिश्ता कहकर, सुख ढूंढे कुछ रातों का !
रूह की हसरत सामने आए , जिस्म की हसरत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आए ,असली सूरत छुपी रहे !
जिनके ज़ुल्म से दुखी है जनता , हर बस्ती ,हर गाँव में ,
दया - धरम की बात करें वो , बैठ के भरी सभाओं में !
दान का चर्चा घर-घर पहुंचे , लूट की दौलत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आए , असली सूरत छुपी रहे !
देखें,इन नकली चेहरों की कब तक जय-जयकार चले ,
उजले कपड़ों की तह में , कब तक काला संसार चले !
कब तक लोगों की नज़रों से छुपी हकीकत छुपी रहे ,
नकली चेहरा सामने आए , असली सूरत छुपी रहे !
इन दिनों फ़ेसबुक पर जैसे यह गाना अपने पूरे दम के साथ पूरे उरुज में उपस्थित है। एक से एक क्रांतिकारी लफ़्फ़ाज़ हैं इन दिनों फ़ेसबुक पर कि उन की अपनी कोई पहचान नहीं, उन के बाप का कोई नाम नहीं, उन के शहर का कोई नाम नहीं, उन का कोई रिश्तेदार नहीं, उन का कोई जीवन नहीं पर फ़ेसबुक पर तमाम बहस में वह ऐसे उतरते हैं और इस अंदाज़ में उतरते हैं गोया उन के मुहल्ले में कोई अनजान आदमी आ गया है। और उस का विरोध इस कदर भूंक-भूंक करते हैं गोया मुहल्ले के कितने बड़े रखवाले हैं। जातिगत जहर और धार्मिक उन्माद के कुतर्क में आकंठ डूबे यह लोग फ़ेसबुक पर सिर्फ़ जातीय और धार्मिक उत्पा्त मचाने के लिए उपस्थित हैं। ऐसे जैसे भीड़ में कुछ मुट्ठी भर दंगाई उपस्थित होते हैं और समूचे शहर में दंगा फैला ही देते हैं। तो यह लोग भी फ़ेसबुक पर जातीय और धार्मिक दंगा में पूरी ताकत से उपस्थित हैं। ज़रुरी है कि इन जहरीले लोगों की शिनाख्त की जाए और समय बेसमय इन्हें निरंतर नंगा किया जाए। क्यों कि फ़ेसबुक की आबोहवा बिगाड़ने वाले यह फर्जी लोग अब उन्माद पर आमादा हैं। फ़ेसबुक को यह लोग निरंतर प्रदूषित कर रहे हैं। फ़ेसबुक पर यह लोग अनगिनत हैं। इन की राय से जो लोग असहमत होते हैं और इन के पास जब कोई तर्क और तथ्य नहीं रह जाता तो यह अगले आदमी को ब्राह्मण बता देते हैं। और जो वह ब्राह्मण नहीं है तो उसे ब्राह्मणवादी सोच का बता देते हैं। इस से भी पेट नहीं भरता तो यह लोग अगले को बिना संकोच संघी या भाजपाई घोषित कर देते हैं।
फ़ेसबुक पर यह फर्जी लोग दलित लोग है, मुस्लिम लोग हैं, पिछड़े लोग हैं। कांग्रेसी और भाजपाई लोग भी हैं। भाजपाई भी कुछ ऐसे हैं जो अपने से असहमत होने वालों को यह लोग तुरंत वामपंथी घोषित कर देते हैं। तो कांग्रेसी लोग भाजपाई बता देते हैं। कुछ लोग फर्जी महिलाओं के नाम से भी उपस्थित हैं। दुर्भाग्य से इस बीच मैं ने फ़ेसबुक पर उपस्थित कुछ लोगों के कुतर्क से आजिज आ कर से उन की पहचा्न पूछ लेने की औपचारिकता कर ली।
एक हैं संदीप वर्मा। पूर्व प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की फ़ोटो अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर के तौर पर लगा रखी है। संदीप वर्मा की खासियत यह है कि वह फर्जी आई डी के बावजूद कई बार शालीनता से बात करते हैं। लेकिन विमर्श में जब हारने लगते हैं तो कुतर्क की शरण में अंतत: आ ही जाते हैं। और विमर्श से फ़ुर्र हो जाते हैं। मैं ने संदीप वर्मा की वाल पर ही जा कर एक टिप्पणी लिखी और सीधे-सीधे उन की पहचान पूछ ली। उन्हों ने बड़ी विनम्रता से अपनी फ़र्जी आई डी की बात स्वीकार कर ली। संदीप वर्मा हालां कि औरों से थोड़े अलग हैं और कि लगता है फ़ासिज्म की सारी कसरत के बावजूद कुछ लोकतांत्रिकता उन में शेष है। तो भी वह आखिर में कुतर्क की शरण में आ गए।
दू्सरे जनाब हैं कुलदीप कुमार कंबोज। मैं ने फ़ेसबुक पर उपस्थित एक अतीतजीवी और लफ़्फ़ाज़ चंचल बी एच यू के बाबत एक टिप्पणी लिखी और उन्हें कहा कि फ़ेसबुक पर जुगाली करने के बजाय काशी से मोदी के खिलाफ़ चुनाव लड़ जाएं। एक बार उन्हों ने अपनी वाल पर यह इच्छा जताई भी थी। खैर चंचल तो खामोश रहे, सांस नहीं ली उन्हों ने। पर एक कुलदीप कुमार कंबोज अवतरित हो गए। चंचल और सलमान खुर्शीद की पैरवी में। कुतर्क का रंगीन कुर्ता पहने हुए। पर जब उन को उन की पहचान की चुनौती दी तब दुम दबा कर दुबक गए।
और तीसरे हैं दिव्य संदेश। एक दंभी भंगी कालीचरन स्नेही ने लखनऊ के पुस्तक मेलें में एक दिन देशद्रोह पर उतर आए। बोल गए कि दलित हितों के लिए वह राष्ट्र के खिलाफ़ भी जा सकते हैं। उन के बोलने में पंजाब के आतंकवादी भिंडरावाले की बू आती है। मैं ने अपने ब्लाग सरोकारनामा पर इस बाबत एक टिप्पणी लिखी। यह दिव्य संदेश दंभी भंगी कालीचरन स्नेही के टट्टू बन कर मुझ पर टूट पड़े। मैं ने उन से भी उन की पहचान पूछी। अपनी पहचान बताने के बजाय वह मेरा मानसिक संतुलन नापने लगे वह। तो उन के पिता जी का नाम पूछा। तब वह हा हा करने लगे। और कि बाद में अपनी वाल से लाल जी निर्मल की टैग की हुई यह पोस्ट ही मिटा दी। जिस पर उन्हों ने लफ़्फ़ज़ी की थी। हालां कि लाल जी निर्मल की वाल पर वह पोस्ट अभी भी है। लेकिन इस बाबत लफ़्फ़ाज़ी और नकलीपन दिव्य संदेश ने अपनी वाल पर की। दिव्य संदेश नाम का कोई अखबार भी है, ऐसा सुनता हूं। पर उस की साइट खुली नहीं। बहुत कोशिश के बाद भी।
खैर जो भी बेवकूफी कहिए, विमर्श कहिए फ़ेसबुक पर उपस्थित इन नकली सूरमाओं का विमर्श बांचिए और इन के ही दर्पण में इन का मानसिक तापमान जांच लें। मैं कौन होता हूं इन फर्जी लोगों पर कोई निर्णय देने वाला। सो मित्रों इन को इन के ही दर्पण में, इन के ही हमाम में देखिए। बारी-बारी। हालां कि यह कतई कोई रचनात्मक कार्य नहीं है इस का पूरा एहसास है और कि ऐसे बेवकूफी के कामों में न सिर्फ़ वक्त और ऊर्जा व्यर्थ ही जाया होती है और कि लगभग दीवार में सर मारना ही है, क्यों कि यह दुराग्रही लोग अपना एक माइंड सेट बना चुके हैं और कि लाइलाज बीमारी बन चुके हैं, न सुधरने वाले हैं न शर्म खाने वाले हैं। फिर भी अति हो गई है सो इस का प्रतिकार बहुत ज़रुरी है। बहुत संभव है कि यह लोग मुझे फिर ब्राह्मणवादी आदि कह कर खीझ मिटाएंगे, कुतर्क करेंगे, तथ्यहीन बातें करेंगे, तो भी कोशिश होगी कि इन का पूरे तर्क और ताकत के साथ प्रतिवाद करुं और कि यह कोशिश आगे भी जारी रखूं। आमीन !
संदीप वर्मा
संदीप
वर्मा जी, अन्यथा मत लीजिएगा पर जानना चाहता हूं कि इस फ़ेसबुक पर आप का
अपना कुछ भी व्यक्तिगत शेयर क्यों नहीं है। न कोई फ़ोटो, न शहर, न परिचय, न
परिवार, न कुछ और। जिस से आप की पहचान की जा सके। यह फर्जी आई डी बना कर
कैसे जी लेते हैं आप? कृपया दिल मर मत लीजिएगा इसे। और न ही कुतर्क की शरण
लीजिएगा। लेकिन जवाब ज़रुर दीजिएगा। खुशी होगी।
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- Rahul Rastogi, Varun Kumar Jaiswal, Shambhu Dayal Vajpayee and 13 others like this.
- Sandeep Verma जिन लोग से पहचान है वे तो पहचानते ही है . बाकी जिनसे मिलने की इच्छा होती है तो मुलाक़ात भी हो ही जाती है . बाकी विचारों से इतर पहचान के मायने भी क्या है किसी के .
- Dinesh Dadsena · 7 mutual friends
संदीप जी जैसे कई लोग है जो बहुत लोगो का रात दिन का नींद हराम करके रखे हुवे है। - Dayanand Pandey संदीप जी, वाल आप की है, आप पोस्ट कायम रखें या हटा दें, यह आप का अपना विवेक और सुविधा है। लेकिन आप ने जैसा कि पूछा है, मैं तो संतुष्ट नहीं हूं आप के इस जवाब से। यह कोई जवाब नहीं हुआ। विचार के साथ-साथ पहचान भी ज़रुरी होती है हमारे समाज में। और कि फ़ेस बुक एक सोशल साइट है। गांधी, लोहिया, अंबेडकर, मार्क्स, लेनिन ,बुद्ध, महावीर आदि तमाम लोग अपनी पहचान के साथ ही अपना विचार रखते थे। आप इस फर्जी पहचान के साथ अपना विचार रखते हैं तो बात कुछ समझ में आई नहीं। यह तो दाल में काला, दाढ़ी में तिनका वाली बात हो गई। यह आप की अपनी सुविधा तो हो सकती है लेकिन पहचान बताने वालों के समूह में फर्जी पहचान या किसी विचार का कोई मतलब नहीं। अपनी पहचान के साथ उपस्थित होइए तभी किसी विचार की शिनाख्त हो सकती है। नहीं हवा में गांठ बांधने का कोई मतलब नही है संदीप जी।
- Dayanand Pandey और देख रहा हूं कि आप के साथ ऐसे और लोग भी हैं। अब यह दिनेश दद्सेन का भी हाल आप जैसा ही है संदीप जी। इन की भी अपनी कोई पहचान नहीं है और तुर्रा यह कि आप को चिड़िया समझ कर आगाह कर रहे हैं। सावधान हो जाइए। हा हा ! अदभुत है यह सब भी।
- Awanish Sharma · 156 mutual friends
मुझे वर्मा जी की बातों से सरोकार है ...... वैसे मिलने के प्रस्ताव को मेरे इन्होने पिछली मायावती जी के रैली के दिन अनसुना कर दिया ..... लगता है मई के बाद ही मौका देंगे - Sandeep Verma Dayanand Pandey मै कोई पेशेवर लेखक या पत्रकार नहीं हूँ . कभी कभी सम्पाद्क् के नाम पत्र अवश्य लिखता था . मगर किसी सम्पादक को मेरे पत्रों एवं विचारों में कभी इतना वजन नहीं दिखाई दिया कि वह उन्हें छापे . आज मार्क जुकरबर्ग की कृपा से अपने विचारों को लिखता हूँ और कुछ लोग मेरे विचारों से सहमत या असहमत होते है . सहमत होने वाले साथियो के भरोसे को जिन्दा रहने के लिए जरूरी है कोई कोई भी ताकत जो विचारो को खरीदने का दम भरती है , मुझे खरीदने की कोशिश ना कर सके . हो सकता है उनकी ताकत मेरे जमीर को खरीद ले . मेरे समर्थक साथियो के विश्वास के जिन्दा रहने के लिए यह जरूरी है कि उन खरीद सकने वाली ताकतो से दूरी बनाए रखी जाय .. चुनाव का समय इमानदार विचारको के लिए संकट का समय होता है . Awanish Sharma जी से सहमती जताते हुवे चुनाव के संकट काल को निकल जाने दीजिये . बाकी अपनी एक ही आईडी है जिस पर मै लिखता हूँ . इसे कोई फर्जी कहे , कोई फर्क नही पड़ता .
- Dinesh Dadsena · 7 mutual friends
भैय्या जैसे ब्राह्मण देश में हर जगह गिरोह बना कर बैठे है। निर्दोष लोगो को आतंकवादी तक बना देती है। वैसे में जो देश से ब्राह्मणवाद को उखाड़ फेंकने में अपना misson जारी रखे हुवे है। उनका नकाब ओढ़ कर रहना लाजिमी है। - Awanish Sharma · 156 mutual friends
हालांकि मैं इस आभाषी दुनिया को असल दुनिया के आदतों सरीखा जीना और व्यवहार करने का प्रयास करता हूँ लेकिन राजनितिक और सामाजिक सरोकारों में पब्लिक चर्चा में किसी आईडी के पीछे आगे के सच को बहुत महत्व भी नहीं देता ..... वाल क्या कह रही है ये महत्व रखता है मेरे लिए , लेकिन मैं गर्व से ये भी कहता हूँ की मुझे अपनी लिस्ट के सक्रीय मित्रों में से एक अच्छे प्रतिशत के साथ कम से कम बात और बहुत अच्छी संख्या में मुलाकात का भी मौका मिला
सहमत हूँ Sandeep Verma जी से .... विचार , सहमति , असहमति की बातों से और ये मानता हूँ की व्यक्तिगत आरोप और भाषा की मर्यादा के साथ बातचीत के किसी भी स्तर तक जाने में कोई गुरेज नहीं। मैं और वर्मा जी राजनितिक मामलों से लेकर कई सामाजिक मामलों में कट्टर विरोधी भाव रखते हैं लेकिन बात का मामला समान मर्यादा और स्तर से करने का कोई मौका भी नहीं छोड़ते ...... इन सबके बीच सबसे अच्छी बात ये है की हम किसी के जरखरीद गुलाम नहीं अपनी कमाते खाते हैं और अपने मन की बात लिख मारते हैं। - Dayanand Pandey संदीप जी, विचार और जमीर बिकाऊ नहीं होते। मुझे तो आज तक न कोई खरीद पाया न दबा पाया न ऐसा कर पाएगा कोई कभी। जब मैं रिपोर्टर था तब मेरी खबरों को भी कोई नहीं खरीद पाया, न दबा पाया। मैं ने ज़िंदगी में देखा है कि इस तरह के बहाने अकसर लोग छुप कर वार करने के लिए करते हैं। यह फ़ासिस्ट तरीका है। आप को पता ही होगा कि हिटलर अपने कई डमी लोग रखता था। सब से मिलता भी नहीं था। अपनी पहचान हरदम छुपाता था। मुझे लगता है कि आप भी वही तरीका अपना रहे हैं। अपने विचारों को खुल कर सामने रखिए, अपनी सही पहचान के साथ। देखिएगा आप को भीतर से खुशी मिलेगी। लोकतांत्रिक तरीका यही है। आप मे्रे विचार से अगर कहीं असहमत हैं तो इस का मतलब यह हरगिज नहीं है कि आप मेरे दुश्मन हैं। सहमति-असहमति तो लोकतंत्र की असली ताकत है। मुख्य धारा में आइए, असली पहचान के साथ। जाति-पाति और धार्मिक कट्टरता में कुछ नहीं रखा। फ़ासिस्ट तरीके छोड़िए, लोकतांत्रिक बनिए। असली पहचान के साथ मुख्यधारा में आइए।
- Alok Bajpai AAp bhi kaha fas gaye sandip ji.ye pandey saheb ko keval dusro par ugli uthana ata hai.Inhone be sir pair ki bate Chanchal saheb ke liye bhi ki thi.
- Ballove Badshah · 3 mutual friends
@Dayanand Pandey ji आप व्यक्तिगत टिप्पणी कर रहे हैं, जबकि यहाँ एक गेंग चलती है.. इन्होने समाचार पत्रिका में काम किया है, क्लासिफाइड बेचते थे..और गॉव में कहते थे हम पत्रकार हैं, दहेज भी बटोरे, अब इज्जत फेसबुक पे बचानी थी, सो औने पौने कॉपी पेस्ट करते हैं.. हर बात को विचार जैसी इज्जत नहीं मिलनी चाहिए, मसलन मैंने किसी को छाया बाड़ी गाली दे दी.. अब लोग गाहे बगाहे मुझे खोजना तो सुरु करेंगें ही, कमोबेश यही इश्थिति यहाँ बनी हुई है..ये किसी भी लेख की इज्जत इस प्रकार बढ़ाते हैं.. " फलने गली में एक कुत्ता मर गया.. अब कोई मोदी समर्थक हो तो उस कुत्ते को उठा के ले जाए, क्यूंकि कुत्ता मोदी का बाप था, आपका चचा तो लगे गा ही" ..ऐसे सड़क पे चलता पागल भी अपने तरफ बहुतों की ध्यान केन्द्रित कर लेता है.. - Sandeep Verma Dayanand Pandey जी आपने उज्ज्वला शर्मा को अपने बेटे को गर्भ में ही मार देने की सलाह दी थी . शुक्र है उन्होंने यह सलाह नहीं मानी ,वरना आज पंडित जी को बेटा होने का सुख नहीं मिलता . .. हो सकता है आपका वह विचार स्वतंत्र हो , जातिवाद विहीन हो ,मगर उस ...See More
- Dayanand Pandey संदीप जी, जिस बात का डर था, वही आप ने कर दिया। अब आप कुतर्क की शरण में आ गए हैं और अपनी बात मेरे मुंह में रख रहे हैं। आप को खुली चुनौती दे रहा हूं कहीं एक जगह भी दिखा दें या सिद्ध कर दें कि मैं ने उज्जवला शर्मा को उन के बेटे को गर्भ में मार देने की सला...See More
- Sandeep Verma दयानंद जी , आपका वह लेख मुझे अच्छी तरह याद है ,और मेरी आपसे इस विषय पर इनबॉक्स में चर्चा भी हवी थी . मैंने आज तक किसी पर कोई फर्जी आरोप नहीं लगाया . आपको लगातार पढता रहता हूँ .
- Sandeep Verma बेहतर हो ,उस सम्बन्ध के अपने ब्लॉग स्वयं ही खोज कर लाये और साबित करिएँ कि आपने महज एक कहानी का उदाहरण दिया था ,और उससे सलाह नही साबित होती .
- Dayanand Pandey संदीप जी, मेरे ब्लाग पर तिवारी जी और उज्जवला जी को ले कर दो लेख हैं। दोनों लेख का लिंक यह रहा। दूसरे, यह दोनों लेख मेरी किताब यादों का मधुबन में भी संकलित हैं। यादों का मधुबन २०१३ में छप चुकी है। यह लेख पढ़ लें। और अपना चेहरा दस बार दर्पण में देख लें और...See More
- Dayanand Pandey शिवानी की कहानी है करिए छिमा। उस में उस की नायिका अपने शिशु की गर्भ में हत्या नहीं करती। मरने के बाद करती है। और जेल जाती है क्यों कि उस के बच्चे की सूरत उस के प्रेमी से मिलती है। वह अपना प्रेम बचाती है। अपनी कुर्बानी दे कर। प्रेम और उस की लाज का हवाला है इस लेख में। कहीं भी किसी को कोई सलाह आदि नहीं है। पर आप की कुतर्की बुद्धि कैसे कुछ समझेगी भला? विवेक तो आप का जातियों के झगड़े में भैस चर रहा है। तिस पर विचारों और जमीर की दुहाई ! ऐसे ही विचार और जमीर हैं आप के?
- Rising Rahul naam me pahchan talashne wale kya bazar se prerit nahi? sir i think we have to taste the product not the name...naam me kya rakha hai??
- Mohammad Anas Dayanand Pandey जैसे लोग संघ और कट्टर हिंदू की पहचान ले कर फेसबुक पर कैसे चले आते हैं. इन्हें तनिक भी आत्मग्लानि नहीं होती क्या ?
- Mohammad Anas Dayanand Pandey पक्के ब्राहमण हैं. ये दूसरों को पढ़ते/लिखते/बोलते कभी सहन नहीं कर पाएं ,आगे भी नहीं कर पाएंगे. इन्हें इग्नोर कीजिए. संवाद के प्रारम्भिक छोर पर भी ये वार्तालाप करने लायक लोग नहीं हैं. अब देश का वर्तमान हम दलित/बहुजन मिल कर लिखेंगे. ये संघ के पोर्टलों और अखबारों में छपें या दिखें ,हम इन्हें फेसबुक पर नहीं जमने देंगे.
- Dayanand Pandey अरे मतिमंदों मुद्दे पर बात करो ! ब्राह्मण तो मैं हूं ही ठीक वैसे ही जैसे तुम मुस्लिम, दलित या पिछड़े हो। ब्राह्मण होना अपराध नहीं है। मुझे अपने ब्राह्मण होने पर तनिक भी शर्म नहीं है। हां, लेकिन मतिमंदो अपने फर्जी होने पर, दुराग्रही और फ़ासिस्ट होने पर शर्म करो। मुद्दे की बात करो। और यह बताओ कि कोई विमर्श करने के लिए फर्जी आई डी की ज़रुरत आखिर क्यों है? अपना परिचय नहीं मालूम, अपने माता-पिता नहीं मालूम और चले हैं कुतर्क की खेती पर बहस करने ! ब्राह्मण है, संघी है, भाजपाई है कहने वालो अपने गिरेबान में झांको पहले और अपनी असली पहचान के साथ विमर्श करो सब का तार्किक जवाब दूंगा। लेकिन गिरगिट की तरह ही सही अपनी कोई शिनाख्त तो पहले ले आओ।
- Dayanand Pandey संदीप जी, आप साबित नहीं कर पाए अपना आरोप अभी तक? आखिर कितना समय चाहते हैं अपना आरोप साबित करने के लिए?
- Mohammad Anas पाण्डेय जी , संदीप वर्मा से मैं मिला हूं और भी सैकड़ों लोग मिले हैं. क्या आप नरेंद्र मोदी से मिले हैं ? तो क्यों उसका गुणगान करते हैं ,उसके अस्तित्व को स्वीकारते हैं ? बताइए पाण्डेय जी उर्फ़ देशतोडू
- Ballove Badshah · 3 mutual friends
मोहम्द साहब देश जोडू आप किसे कहेंगें? जिसे मोदी के समर्थन में बात की वो देश तोरू हो गया.. जिदगी में तर्क शस्त्र की भी इज्जत करा सीखिए..मोदी का समर्थक देश तोडू है और है तो कैसे इसे सिर्फ सिद्ध अ कर पाने की इस्थिति में ही आप जैसे अक्ल के अंधे अक्लित्यों ने मोदी का वोट बढाया है,,हिदुस्तान में रहने के लिए हिंदुत्वा छबि को आप स्वीकारने की आदत बना लीजिये...] - Dayanand Pandey मोहम्मद अनस, बात यहां फ़र्जी आई डी की हो रही है। आप उस पर बात कीजिए दूसरे नरेंद्र मोदी से मिलना आप को मुबारक ! वैसे अगर बता सकें कि नरेंंद्र मोदी का गुणगान मैं ने कब और कहां किया है? लफ़्फ़ाज़ी की भी हद होती है। जब कुछ नहीं मिलता आप जैसे कुतर्कियों को तो ब्राह्मण और नरेंद्र मोदी भौकने लगते हैं। हद है !
Mohammad Anas पाण्डेय
जी, फर्जी तो मुझे आप लगते हैं ,हमेशा से. ढोंगी और अतार्किक . कुतर्क की
पहचान ये पोस्ट है जिसमे आपने सवाल उठाया है. ब्राह्मण जब भिक्षा के बजाए
ज्ञान और तर्क में उतरता है तो ऐसे ही कुंठित और मानसिक दिवालिया हो जाता
है जैसे आप हो गए हैं .
कुलदीप कुमार कंबोज
- Ballove Badshah · 2 mutual friends
पाण्डेय जी आपका खोज सही है. ये महमद भी फेक है.. लगता है सदीप वर्मा 142 है ये ..
कुलदीप कुमार कंबोज
का चुप साधि रहा बलवाना !
चंचल जी, आप ने कुछ समय पहले ऐलान किया था अपनी ही वाल पर कि आप बनारस से चुनाव लड़ेंगे। तो अपनी उस इच्छा का सम्मान कीजिए। अपने समाजवादी शस्त्रों के साथ उतर आइए काशी के चुनावी मैदान में। हार-जीत की चिंता किए बिना और कि इन तानाशाहों को चुनौती दे डालिए और बता दीजिए दुनिया को कि हम सिर्फ़ फ़ेसबुक पर जुगाली करने ही के लिए पैदा नहीं हुए हैं। तय मानिए आप का साथ देने आप के तमाम साथी तो आएंगे ही, आप अनुमति देंगे तो हम भी अपने दस-बीस साथियों के साथ अपने खर्चे पर आएंगे। आप के प्रचार में। छोड़िए उस चोर, बेइमान सलमान खुर्शीद का फरुखाबाद और उस का प्रचार। और निर्दलीय ही सही, प्रतीकात्मक ही सही जूझ जाइए। भले बिल्ली की तरह ही सही इन बाघों से बाज जाइए। अभी समय शेष है। और कि समर भी शेष है। नहीं बाद मे पछताइएगाऔर गाइएगा कि चड़िया चुग गई खेत ! तब कोई फ़ायदा नहीं होगा। फिर काशी के आप पुराने वीर हैं। का चुप साधि रहा बलवाना !
चंचल जी, आप ने कुछ समय पहले ऐलान किया था अपनी ही वाल पर कि आप बनारस से चुनाव लड़ेंगे। तो अपनी उस इच्छा का सम्मान कीजिए। अपने समाजवादी शस्त्रों के साथ उतर आइए काशी के चुनावी मैदान में। हार-जीत की चिंता किए बिना और कि इन तानाशाहों को चुनौती दे डालिए और बता दीजिए दुनिया को कि हम सिर्फ़ फ़ेसबुक पर जुगाली करने ही के लिए पैदा नहीं हुए हैं। तय मानिए आप का साथ देने आप के तमाम साथी तो आएंगे ही, आप अनुमति देंगे तो हम भी अपने दस-बीस साथियों के साथ अपने खर्चे पर आएंगे। आप के प्रचार में। छोड़िए उस चोर, बेइमान सलमान खुर्शीद का फरुखाबाद और उस का प्रचार। और निर्दलीय ही सही, प्रतीकात्मक ही सही जूझ जाइए। भले बिल्ली की तरह ही सही इन बाघों से बाज जाइए। अभी समय शेष है। और कि समर भी शेष है। नहीं बाद मे पछताइएगाऔर गाइएगा कि चड़िया चुग गई खेत ! तब कोई फ़ायदा नहीं होगा। फिर काशी के आप पुराने वीर हैं। का चुप साधि रहा बलवाना !
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- Raghwendra Pratap Singh, Saurabh Shukla, C.n. Chalu Ramnagar and 66 others like this.
- Ranjeet Gupta चंचल जी कैसे चुनाव लड़ सकते है , सोनिया जी ने तो ......नही-नही प्रियंका जी ने यहा से पुराने भाजपाई अजय राय जी को टिकट थमा दिया है और चंचल जी अब समाजवादी भी नही रहे जो विरोध कर चुनाव लड़ जाये . पहले वाले चंचल जी होते तो वह लड़ भी जाते .....
- Artiman Tripathi लगता है कि चंचल जी से आपकी मित्रता काफी गहरी है, लेकिन इस बार काफी समय के बाद याद आई.
- राघवेन्द्र डी किन्नरों को आज ही तो इतना सब कुछ दिया है सुप्रीम कोर्ट ने, अब चुनाव लड़के और क्या ले लेगा। बिन मांगे इतना मिला, मांगे मिले न भीख . . .
- Gyanendra Tripathi Ese kahate hain baton se chingoti katna ............... wo bhi poore jor se ......
- Kuldip Kumar Kamboj पाण्डेय जी, किस आधार पर आप ये कह पा रहे हैं -"छोड़िए उस चोर, बेइमान सलमान खुर्शीद का फरुखाबाद और उस का प्रचार।" क्या चोर और बेईमान सिर्फ राजनीति में होंते हैं ? क्या लेखन में भी चोर और बेईमान होते हैं ? में बतोर पाठक ये बात पूंछ रहा हूँ ?
- Dayanand Pandey कुलदीप जी दुनिया के हर हलके में चोर उचक्के होते हैं। लेखन जगत भी इस से अछूता नहीं है। रही सलमान खुर्शीद के चोर होने की बात तो यह बात राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित हो चुकी है। सलमान के एन जी ओ ने विकलांगो तक को नहीं छोड़ा।
- Kuldip Kumar Kamboj कौन सी 'लेबोरेटरी' में ये बात प्रमाणित हो गयी है ? मुझे उस लेबोरेटरी का पता ठिकाना देंगे ?
- Kuldip Kumar Kamboj पाण्डेय जी, आरएसएस और उसके समर्थक इस बात के लिए क्या अभिशप्त हैं, कि जो बोलेंगे झूट बोलेंगे ?
- Dayanand Pandey चोरों की जांच लैब्रोट्री में नहीं होती। उत्तर प्रदेश सरकार की जांच में उन की चोरी साबित हो चुकी है। आज तक के स्टिंग को भी पूरे देश ने देखा। प्रेस कांफ़्रेंस में आज तक के रिपोर्टर से सलमान अभद्रता पर उतर आए और अपने ऊपर लगे आरोपों से आंख चुराने लगे। एक सवाल का सामना नहीं कर पाए। लेकिन आप यह बताइए कि उस चोर सलमान के आप हैं कौन? साझेदार? वकील? प्रवक्ता या रिश्तेदार?
- Kuldip Kumar Kamboj ये है सही बात ? मैं कौन हूँ ? आपकी उलटबासी में टांग अड़ाने वाला मैं कौन हूँ ? अगर ऐसा करूँगा तो मुझे भी अपना करेक्टर सार्टिफिकेट साथ में संलग्न करना होगा. में ये भी अंदाजे से कह सकता हूँ कि बहुत शीघ्र आपकी और से गाली गलोज जरी हों वाली है. धन्य हैं प्रभु आप !
- Dayanand Pandey मैं लखनऊ में रहता हूं। पढ़ने-लिखने वाला आदमी हूं। गाली गलौज वाला नहीं। लेकिन आप ने जिस अंदाज़ में सवाल पूछा है उस पर ज़रा गौर फ़रमा लीजिए दो बार। फिर कोई सवाल आप पूछें तो जवाब देने में आनंद आएगा। एक चीज़ और बड़ी विनम्रता से बताना चाहता हूं कि अगर एक अक्षर भी कुछ लिखता हूं, कोई आरोप लगाता हूं तो पूरी ज़िम्मेदारी और पूरे तर्क और तथ्य के साथ। लफ़्फ़ाज़ी या फेकना मेरे मिजाज में नहीं। और जो कोई सवाल आप या कोई और मित्र करता है तो उसे पूरे तर्क और पूरी विनम्रता से जवाब देता हूं। पीठ नहीं दिखाता, कुतर्क नहीं करता। आप लेकिन ऐसे सवाल कर रहे थे गोया चोर और बेइमान सलमान खुर्शीद नहीं, मैं ही होऊं ! ज़रा पलट कर अपना लिखा पढ़ लीजिए और बेइमानों की पैरवी बंद कीजिए। एक बात और नोट कर लीजिए कि मैं संघी या भाजपाई नहीं हूं। दूसरे हर चोर की पैरवी करने के लिए हर किसी को संघी या भाजपाई करार देना फ़ासिस्ट तरीका है। यह फ़ासिज्म बंद कीजिए। बहुत हो गया।
- Kuldip Kumar Kamboj पाण्डेय जी, दुर्भाग्य से मुझे पढने लिखने का अवसर नहीं मिला. आपका सौभाग्य कि आप पढ़ने-लिखने वाला आदमी हैं. मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ. आपकी शालीनता ने भी मुझे प्रभावित किया. चलते चलते ये बात कह कर में सोने जा रहा हूँ "व्यक्ति जहाँ से चलना प्रारम्भ करता है, लौट कर वही आजाता है." शायद ये ही मनुष्य की नियति है. धन्यवाद !
- Dayanand Pandey कुलदीप जी, बाध्यता नहीं है लेकिन क्षमा कीजिएगा आप कीआई डी पर भी मुझे संदेह है। अपना पूरा परिचय बता दीजिएगा तो इस आरोप को वापस ले लूंगा और कि आप से सार्वजनिक रुप से इस आरोप के लिए क्षमा मांग लूंगा।खुदा करे कि मेरा आरोप झूठा निकले और कि आप सही साबित हों। लेकिन एक नज़र में फ़ेक लगती है आप की आई डी। आप का कोई परिचय, फ़ोटो आदि सब गोल-गोल है। यह किस गिरोह के हैं आप जैसे लोग? जो बिना नाम पहचान के संघियों से लड़ने चले हैं, कुतर्क का बाना पहन कर? यह तो फ़ुल फ़ासिज्म है।
- Padampati Sharma bhai Dayanandji jis Samajwadi Flameboyent Chanchal ko ham jante the wo Chanchal kahi gum ho gaya uski jagah maine ek thake Boodhe ko Congress ke Manch se bolte hue paya aur han tabhi yani 30 baras bad jan paya ki samJwadi Chanchal congressi hote hi Chanchal singh ho gaye
- Artiman Tripathi पूरे देश में पहले से ही ऐसे लोगों की कमी नहीं थी और फेसबुक पर भी देश के लोग हैं. वैसे इस तरह के वाकयों को देखकर मानव मन और व्यवहार की विविधता का पता चलता है. कुछ लोग झगडा करने की नीयत लेकर ही पैदा होते हैं. फिर यह कोई अपवाद नहीं हैं. वैसे चांदी तो पाण्डेय जी की ही है, उन्हें एक और कैरेक्टर मिल गया, अपने आगामी उपन्यास के लिए.
- Dayanand Pandey फर्जी आई डी धारक कुलदीप कुमार कंबोज, कहां छुप कर सो गए? कुछ तो सांस लीजिए और अपने असली होने का प्रमाण दीजिए। सारी हुंकार गीदड़ भभकी में कैसे तब्दील हो गई? कम से कम यही बता दीजिए।
- Artiman Tripathi मैंने कही सुना या पढ़ा था कि सांप एक बार अगर अपने बिल में सर दाल दे तो फिर उसे पूँछ से पकड़कर बाहर खींचना असंभव होता है क्योंकि कहते हैं की उसके बदन पर कुछ कांटेदार अवयव होते हैं जो उसके पीछे घसिटने का रास्ता रोक देते हैं और बहके ही सांप बीच से टूट जाये, बैक गियर में वापस नही लौट सकता है. सो उसे पकड़ने के लिए शिकारी लोड बिल का दूसरा मुंह तलाशते है और जब वह बिल के दूसरे मुंह से बाहर निकलता है तभी उसे पकड़ते हैं. अब निवेदन है कि कोई मित्र मेरी इस बात में वैज्ञानिक दृष्टि न देने लगे. एक बात दिमाग में आई सो बक दी. अब कोई चाहे तो मुझे वह बुढिया समझ सकता है, जिसने चन्द्रगुप्त मौर्य को अनजाने में ही रोटी के बजाये युद्ध में विजय की रणनीति का मंत्र दे दिया था.दिव्य संदेश
Dayanand Pandey ने लिखा है -----------
लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के एक आचार्य हैं कालीचरण स्नेही। जब भी कहीं कुछ बोलते हैं विष-बुझा ही बोलते हैं। राम जाने वह विश्वविद्यालय में छात्रों को पढ़ाते कैसे होंगे? या कि छात्र पढ़ते भी कैसे होंगे इन से?
क्यों कि विषय कोई भी हो वह अपना एक रिकार्ड बजा देते हैं, ब्राह्मण विरोध का। वही मनुस्मृति आदि का पहाड़ा। भरपूर विष बुझी भाषा में लपेट कर। आज पुस्तक मेले में भी वह एक कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे और अपना वही रिकार्ड बजाते-बजाते यहां तक बोल गए कि दलित हितों के लिए वह पत्नी, भाई, बंधु यहां तक कि राष्ट्र के खिलाफ़ भी जाएंगे। बिलकुल बम-बम थे वह और हुंकार भर रहे थे। मंच पर सारे दलित समाज के लोग ही उपस्थित भी थे। अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। कोई पूर्व विधायक राही भी थे। और कि सूचना विभाग में डिप्टी डा्यरेक्टर और उत्तर प्रदेश पत्रिका के संपादक सुरेश उजाला कार्यक्रम का संचालन बिलकुल दलित उबाल में ही धधक कर कर रहे थे। सब के तेवर और तंज एक थे। बस दिक्कत यह भर थी कि जितने लोग मंच पर थे उस से दोगुने लोग ही नीचे श्रोता थे।
दयानंद पांडे की उपरोक्त टिप्पड़ी पर मैं चौंका और प्रो.कालीचरण स्नेही से वार्ता किया |उन्होंने कहा की पांडे झूठ बोल रहे हैं और उन्होंने राष्ट्र के खिलाफ जाने की कोई बात नहीं की थी |उन्होंने कहा आचार संहिता लागू है और प्रशासन कार्यक्रमों की रिकार्डिंग करा रहा है ,उन्होंने कहा कि यह पांडेय जी नही वरन उनकी जातीय सोच बोल रही है |उनका कथन था कि मैंने मजबूती से कहा था कि दलित साहित्यकार दलित हितों के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं |प्रो.कालीचरण स्नेही दलित पुरोधा हैं और लखनऊ वि.वि.में हिंदी विभाग के हेड हैं जिन्होंने अपने कार्यालय की पट्टिका पर यह लिखा है कि इस विभाग में चरण वंदन प्रतिबंधित है |हम सब जाति के खिलाफ संघर्ष में प्रो.कालीचरण स्नेही के साथ हैं |
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