हमारा देश भारत एक विवाद प्रिय देश है। भारत रत्न जैसे अलंकरण भी विवाद में आ जाते हैं। राष्ट्रपिता जैसे मान के शब्द भी विवाद में आ जाते हैं। यहां तक कि राष्ट्रगीत वंदेमातरम भी। लोग उस की सरेआम उपेक्षा करते हैं और ठाट से रहते हैं। लोकसभा तक में आन रिकार्ड यह काम करते हैं और उन का बाल-बांका नहीं होता। बेशर्मी के अपने-अपने अंदाज़ हैं। लोगों के भी, कानून के भी, संविधान के भी। और हद तो तब हो गई जब खेल का व्यापार करने वाले एक खिलाड़ी को बाज़ार के जुनून में जिसे लोग क्रिकेट का भगवान कहने लगे उस सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया गया। साथ ही एक वैज्ञानिक सी एन आर राव का नाम भी भारत रत्न के लिए नत्थी कर दिया गया। यह भारत रत्न का अपमान तो था ही, उस वैज्ञानिक और विज्ञान का भी अपमान था, देश का भी अपमान था।
आप उस वैज्ञानिक सी एन आर राव की यातना का अंदाज़ा लगाइए कि भारत रत्न पाने के बाद तो उन्हें भाव-विभोर हो जाना चाहिए था। लेकिन इस वैज्ञानिक की पहली प्रतिक्रिया बहुत ही बौखलाई हुई थी। वह बोले, देश के नेता ईडियट हैं ! विवाद तूल पकड़ता कि नरेंद्र मोदी का महिला प्रेम सुर्खियों में छा गया। अभी यह उन के इश्कजादे का प्रसंग हवा में तारी था ही कि तरुण तेजपाल का दुराचार प्रसंग भारी पड़ गया। और यह देखिए अरुषि के माता-पिता तलवार दंपति को भी आजीवन कारावास हो गया। कुल मिला कर यह कि भारत रत्न के विवाद पर प्रेम और सेक्स कथाएं भारी पड़ गईं। इस से यह भी पता चल गया कि हमारा देश विवाद प्रिय तो है ही पर उस में भी उसे सेक्स विवाद ज़्यादा पसंद है। वास्तव में मुद्रा और और मैथुन यही दो आज के सार्वभौमिक सच बन चले हैं ! आज के हालात यही हैं। बाकी आप की मर्जी ! अब देखिए न कि तरुण तेजपाल का सेक्स प्रसंग ही नहीं उने आर्थिक साम्राज्य की भी कहानियां अब हमारे सामने हैं। देश में फ़ासीवाद का और सांप्रदायिकता का विरोध करते-करते वह पोंटी चड्ढा के पार्टनर कब बन गए यह तब किसी को पता ही नहीं चला। अब गांठें खुल रही हैं। यह आज के समाज का खौफ़नाक सच है। अब इस दौड़ में नैतिकता आदि शब्द बेमानी हो गए हैं। तो इस सेक्स विवाद में सचिन को भारत रत्न विवाद सर्द पड़ गया है। लेकिन क्या सचमुच? कांग्रेस ने तो अपनी डूबती नैया बचाने के फेर में सचिन को भारत रत्न दे दिया कि देश के युवाओं का वोट कांग्रेस को मिल जाएगा। अब वोट मिलेगा कि नहीं, कांग्रेस का राज बचेगा कि नहीं यह तो समय बताएगा लेकिन भारत रत्न की गरिमा तो सचिन और कांग्रेस की भेंट चढ़ गई। बताइए कि एक क्रिकेट से ज़्यादा विज्ञापन से कमाई करने वाला सचिन तेंदुलकर जिस की उम्र अभी चालीस साल की है यह भारत रत्न संभालेगा कैसे? इस की गरिमा को बचाएगा कैसे? यह एक अनुत्तरित प्रश्न है। इस पर फिर कभी। फ़िलहाल तो कुछ फ़ेसबुकिया नोट्स गौरतलब हैं :
आप उस वैज्ञानिक सी एन आर राव की यातना का अंदाज़ा लगाइए कि भारत रत्न पाने के बाद तो उन्हें भाव-विभोर हो जाना चाहिए था। लेकिन इस वैज्ञानिक की पहली प्रतिक्रिया बहुत ही बौखलाई हुई थी। वह बोले, देश के नेता ईडियट हैं ! विवाद तूल पकड़ता कि नरेंद्र मोदी का महिला प्रेम सुर्खियों में छा गया। अभी यह उन के इश्कजादे का प्रसंग हवा में तारी था ही कि तरुण तेजपाल का दुराचार प्रसंग भारी पड़ गया। और यह देखिए अरुषि के माता-पिता तलवार दंपति को भी आजीवन कारावास हो गया। कुल मिला कर यह कि भारत रत्न के विवाद पर प्रेम और सेक्स कथाएं भारी पड़ गईं। इस से यह भी पता चल गया कि हमारा देश विवाद प्रिय तो है ही पर उस में भी उसे सेक्स विवाद ज़्यादा पसंद है। वास्तव में मुद्रा और और मैथुन यही दो आज के सार्वभौमिक सच बन चले हैं ! आज के हालात यही हैं। बाकी आप की मर्जी ! अब देखिए न कि तरुण तेजपाल का सेक्स प्रसंग ही नहीं उने आर्थिक साम्राज्य की भी कहानियां अब हमारे सामने हैं। देश में फ़ासीवाद का और सांप्रदायिकता का विरोध करते-करते वह पोंटी चड्ढा के पार्टनर कब बन गए यह तब किसी को पता ही नहीं चला। अब गांठें खुल रही हैं। यह आज के समाज का खौफ़नाक सच है। अब इस दौड़ में नैतिकता आदि शब्द बेमानी हो गए हैं। तो इस सेक्स विवाद में सचिन को भारत रत्न विवाद सर्द पड़ गया है। लेकिन क्या सचमुच? कांग्रेस ने तो अपनी डूबती नैया बचाने के फेर में सचिन को भारत रत्न दे दिया कि देश के युवाओं का वोट कांग्रेस को मिल जाएगा। अब वोट मिलेगा कि नहीं, कांग्रेस का राज बचेगा कि नहीं यह तो समय बताएगा लेकिन भारत रत्न की गरिमा तो सचिन और कांग्रेस की भेंट चढ़ गई। बताइए कि एक क्रिकेट से ज़्यादा विज्ञापन से कमाई करने वाला सचिन तेंदुलकर जिस की उम्र अभी चालीस साल की है यह भारत रत्न संभालेगा कैसे? इस की गरिमा को बचाएगा कैसे? यह एक अनुत्तरित प्रश्न है। इस पर फिर कभी। फ़िलहाल तो कुछ फ़ेसबुकिया नोट्स गौरतलब हैं :
- किसी लेखक या पत्रकार को नोबल या बुकर तो मिल सकता है पर भारत रत्न? सोचा भी नहीं जा सकता। भारत रत्न तो दूर की कौड़ी है अब तो पद्म पुरस्कार, राज्य सभा सदस्यता या विधान परिषद की सदस्यता भी लेखकों से दूर हो गई है। सिनेमा, क्रिकेट और कारपोरेट की गठजोड़ ने देश को कितना दरिद्र और हीन बना दिया है। इस के लिए लेखक भी ज़िम्मेदार हैं और समाज भी। पत्रकार तो खैर दलाल हो ही गए हैं और बाज़ार की बांदी बन चले हैं। कामयाबियों और विचारों की सल्तनत का यह कौन सा मुकाम है? कितना कठिन समय है यह?
- यह दो कौड़ी का खेल क्रिकेट क्या इतना बड़ा है, कि विज्ञान की विशालता और एक वैज्ञानिक लोगों को दिखता ही नहीं। क्या मीडिया इतना बड़ा गधा है कि उसे पेप्सी बेचने वाले, कारपोरेट सेक्टर के तलुवे चाटने वाले और एक नामचीन वैज्ञानिक का फ़र्क नहीं मालूम, यह मोल और अनमोल का अंतर नहीं मालूम ? इंडिया इतना छोटा और टुडे इतना बड़ा क्यों हो गया है ? सवाल सिर्फ़ हाकी और क्रिकेट का ही नहीं है, ध्यानचंद और सचिन का ही नहीं है, सवाल तो रावण के नित बड़ा होते जाने का है ! वाकई यह कला, साहित्य, संगीत, विज्ञान और समाज को बहुत अपमानित करने वाला कठिन समय है !
- अच्छा यह बताइए कि जिस क्रिकेट मैच के कारण सन्नाटा होने का लाभ लेते हुए कसाब और अन्य आतंकी मुंबई में समुद्र के रास्ते घुस आए और २६/११ जैसा हादसा हो गया। कितनों की जान गई,. कितने घायल हुए। इसे देश पर हमला भी कहा गया। दुनिया के किसी और देश में जो इतना बड़ा ऐसा हादसा हुआ होता तो क्या वह देश भी क्रिकेट के प्रति ऐसी ही दीवानगी दिखाता ? और तो और पैसे के पीछे पागल एक खिलाड़ी को जिस ने अभी आधी उम्र भी न देखी हो, ऐसे ही सर्वोच्च सम्मान दे कर अपने सर पर बिठाता ? धन्य है यह भारत देश भी ! और इस अतुल्य भारत की महिमा भी ! राजनीति और कारपोरेट की यह शतरंजी चाल भी अतुल्य है !
आपकी बात में दम न हो ये हो नहीं सकता मगर में आपकी बातो में समस्याओ का समाधान भी चाहता हु जिसका अभाव मुझे खलता हे पांडेय जी आपकी लेखनी दमदार हे कोई नेतृतव प्रदान करिए हमारे समाज को में खास आपके जैसा लिख पाता तो देश देश और सिर्फ देश के लिए लिखता और देश को फिर से भारत देश बनाता/
ReplyDelete