‘मैं ज़िद्दी नहीं हूं।’ कहने वाली फ़िल्म अभिनेत्री पूजा भट्ट अब एक नई भूमिका में हैं। तमन्ना फ़िल्म की प्रोड्यूसर बन कर वह अपने कैरियर के महत्वपूर्ण मोड़ पर आ गई हैं। उन की अभिनेत्री की चहक अब प्रोड्यूसर के प्रेशर में साफ दिखती हैं। तमन्ना फ़िल्म में वह खुद मुख्य भूमिका में भी हैं। पिता महेश भट्ट निर्देशक हैं। पूजा भट्ट को तमन्ना से बड़ी उम्मीदें हैं। तमन्ना की सफलता के लिए उसे टैक्स फ्री करवाने के लिए इन दिनों वह दौरे पर दौरे कर रही हैं।
आज लखनऊ वह इसी सिलसिले में आईं। वह आज दिन भर व्यस्त रहीं। देर रात जब मैं पूजा भट्ट से मिला तो थकान उन के चेहरे पर साफ तिर रही थी। कानों में बड़े बड़े बूंदे पहने, एक हाथ में फ़ोन एक हाथ में सिगरेट लिए वह बातचीत में व्यस्त थीं। यह प्रोड्यूसर बनने की उन की नई कैफ़ियत है। 24 बरस की उम्र में ही प्रोड्यूसर बन जाने वाली, 12 वीं कक्षा तक पढ़ी और बेधड़क बोलने वाली पूजा भट्ट ने साफ माना कि वह अपनी कई फ़िल्मों में भी वैसी ही हैं जैसी कि वह रीयल लाइ्फ़ में हैं। पेश है पूजा भट्ट से बातचीत:
प्रोड्यूसर की नई भूमिका में कैसा महसूस कर रही हैं?
एकदम अलग एक्सपीरियंस है। एक्टिंग में तो सब कुछ आप को दिया जाता है। पर प्रोडक्शन में सब कुछ खुद देना पड़ता है।
तमन्ना शूट करने में कितना समय लगा?
शूटिंग तो सिर्फ़ दो महीने में हो गई लेकिन पोस्ट प्रोडक्शन में स्क्रिप्ट से कॉपी निकलने तक कोई डेढ़ साल लगे।
प्रोड्यूसर बनने की ठानी कैसे?
मेरी फ़ेमिली, फिल्म फ़ेमिली है। पापा डायरेक्टर, चाचा प्रोड्यूसर। फिर मैं एक्टिंग के अलावा भी कुछ और करना चाहती थी। अलग तरह की पिक्चर भी बनाना चाहती थी।
आप को उम्मीद है कि तमन्ना उ.प्र. में टैक्स फ्री हो जाएगी?
उम्मीद तो है। कर्नाटक में तीन-चार दिन पहले हो गई है। बंगाल में इस के और दो दिन पहले हो गई है। बंगाल तो भट्ट साहब गए थे। कर्नाटक मैं खुद गई थी। यहां भी आई हूं। उम्मीद भी पूरी है। पर जब तक लेटर नहीं मिलता तब तक क्या कहा जाय। पर मैं कहना चाहती हूं कि तमन्ना फ़िल्म टैक्स फ्री के लिए डिजर्ब करती है। क्यों कि यह सोशली रिलीवेंट पिक्चर है। सच्ची कहानी है। हमारे देश में जो लोग लड़की मारते हैं, लड़का प्रेफ़र करते हैं उन पर बेस।
आप की फ़िल्म डैडी भी तो टैक्स फ्री हो गई थी?
पर उस के लिए अप्लीकेशन नहीं दी थी, इस के लिए दी है।
एक्ट्रेस और प्रोड्यूसर दोनों में क्या फ़र्क पाती हैं?
दोनों को कंपेयर नहीं कर सकती। पर कह सकती हूं कि पहले एक्ट्रेस हूं फिर प्रोड्यूसर हूं।
डायरेक्शन के बारे में सोच रही हैं?
डायरेक्शन के बारे में मैं ने तो सोचा ही नहीं। एक्सपीरियंस नहीं है ना। सोच भी नहीं सकती। इंडिया में मैं पहली एक्ट्रेस हूं जो इतनी कम एज में प्रोड्यूसर बन गई। चौबीस साल की उमर में।
हेमा मालिनी भी तो प्रोड्यूसर हैं?
पर इतनी कम उमर नहीं है उन की।
महिला और युवा होने के नाते ऐज प्रोड्यूसर क्या दिक्कतें आईं?
कोई खास प्रॉब्लेम नहीं हुई। क्यों कि यूनिट फ़ेमिली की थी। इंडस्ट्री और बाहर के सभी लोगों ने सपोर्ट किया।
जब यूनिट फ़ेमिली की थी तो प्रोड्यूसर बनना आप के लिए ज़रूरी था?
इस तरह की पिक्चर बनाना चाहती थी लोग बनाते नहीं। मैं ही इसे बना सकती थी।
खुद की फ़िल्म में खुद ही हीरोइन हो गईं?
पर खुद के लिए नहीं बनाई। और अपनी पिक्चर में मैं खुद हीरोइन नहीं हूं। काजोल को साइन किया है। जुगल हंसराज हीरो हैं।
तमन्ना में मुख्य पात्र परेश रावल हिजड़ा है। आप की एक और फ़िल्म सड़क में सदाशिव अमरापुरकर भी हिजड़े की भूमिका में थे?
सड़क में महारानी विलेन थी। तमन्ना में टिक्कू विलेन नहीं है। इस नाते महारानी और टिक्कू को कंपेयर नहीं कर सकते आप।
डैडी, दिल है कि मानता नहीं, सड़क, सातवां आसमान, अंगरक्षक सरीखी तमाम ऐसी फ़िल्में हैं जिनमें आप के कैरेक्टर में आप के अभिनय में एक ज़िद समाई रहती है और कहा जाता है कि आप भी ज़िद्दी हैं?
मैं ज़िद्दी नहीं हूं। रही बात फ़िल्मों की तो उस में ज़िद्दी के निगेटिव शेड भी हैं। और पाज़िटिव भी हैं। दिल है कि मानता नहीं , मैं ज़िद्दी लड़की थी तो इस लिए कि रईस बाप की बेटी थी। यह निगेटिव शेड है। पर डैडी में मेरी ज़िद का पाज़िटिव शेड है। ज़िद है कि पिता की दारू छुड़ा कर ही मानूंगी।
मैं देख रहा हूं कि इस वक्त आप का जो व्यवहार है, जो अंदाज़ है, जो मूवमेंट है, अपनी फ़िल्मों में भी कमोवेश आप ऐसी ही हैं। तो क्या अपने को जस का तस ही रख देती हैं किसी भी चरित्र के सामने?
हर एक का अपना करेक्टर होता है। करिश्मा, मनीषा, काजोल सब की अपनी अपनी स्टाइल है। तो मेरी भी है। आडियंस ने डैडी, दिल है कि मानता नहीं में पसंद किया। पर मैं ने कुछ ऐसी फ़िल्में भी की जिनमें टिपिकल हीरोइन का रोल था। उनमें न तो मुझे मज़ा आया, न लोगों ने एप्रीशिएट किया। तो मैं वापस आ गई। डैडी में मैं जो हूं तमन्ना में मैं जो हूं, रियल लाइफ़ में भी वैसी ही हूं।
फ़िल्म के अलावा भी कुछ सोचा है?
देखती हूं। अभी चौबीस की हूं, चालीस की थोड़ी ही हूं। बहुत टाइम है देखते हैं।
पिता की वज़ह से इंडस्ट्री में आसानियां मिलीं कि दुश्वारियां?
कहना तो आसान है कि फलां की बेटी है। पर कैमरे के सामने तो बाप का नाम काम नहीं आता? उल्टे उम्मीदें बढ़ जाती हैं।
ज़्यादातर फ़िल्में आप ने आप पापा महेश भट्ट के साथ ही की हैं?
क्यों नहीं करूं? नहीं करुं तो लोग कहते हैं कि घर में क्यों नहीं? पर अब वह भी बाहर काम कर रहे हैं और मैं भी।
पिता के सामने रोमांटिक सीन करने या रेप सीन करने में संकोच नहीं होता?
आज तक ऐसे सीन मैं ने किए नहीं जिसमें एंब्रेसमेंट हो। अपने को एक्सपोज़ किया नहीं। तो ऐसा होने का सवाल ही नहीं खड़ा होता। और फिर मेरे पिता इस तरह के डायरेक्टर है भी नहीं। वह बहुत ही साफ सुथरी फ़िल्में बनाते हैं।
आने वाली फ़िल्में?
अक्षय के साथ अंगारे, अनिल कपूर, जैकी श्रा्फ़ के साथ कभी न कभी, अजय देवगन के साथ गिरवी आमिर खान के साथ गुलाम और अक्षय खन्ना के सात बॉर्डर।
[१९९७ में लिया गया इंटरव्यू]
आज लखनऊ वह इसी सिलसिले में आईं। वह आज दिन भर व्यस्त रहीं। देर रात जब मैं पूजा भट्ट से मिला तो थकान उन के चेहरे पर साफ तिर रही थी। कानों में बड़े बड़े बूंदे पहने, एक हाथ में फ़ोन एक हाथ में सिगरेट लिए वह बातचीत में व्यस्त थीं। यह प्रोड्यूसर बनने की उन की नई कैफ़ियत है। 24 बरस की उम्र में ही प्रोड्यूसर बन जाने वाली, 12 वीं कक्षा तक पढ़ी और बेधड़क बोलने वाली पूजा भट्ट ने साफ माना कि वह अपनी कई फ़िल्मों में भी वैसी ही हैं जैसी कि वह रीयल लाइ्फ़ में हैं। पेश है पूजा भट्ट से बातचीत:
प्रोड्यूसर की नई भूमिका में कैसा महसूस कर रही हैं?
एकदम अलग एक्सपीरियंस है। एक्टिंग में तो सब कुछ आप को दिया जाता है। पर प्रोडक्शन में सब कुछ खुद देना पड़ता है।
तमन्ना शूट करने में कितना समय लगा?
शूटिंग तो सिर्फ़ दो महीने में हो गई लेकिन पोस्ट प्रोडक्शन में स्क्रिप्ट से कॉपी निकलने तक कोई डेढ़ साल लगे।
प्रोड्यूसर बनने की ठानी कैसे?
मेरी फ़ेमिली, फिल्म फ़ेमिली है। पापा डायरेक्टर, चाचा प्रोड्यूसर। फिर मैं एक्टिंग के अलावा भी कुछ और करना चाहती थी। अलग तरह की पिक्चर भी बनाना चाहती थी।
आप को उम्मीद है कि तमन्ना उ.प्र. में टैक्स फ्री हो जाएगी?
उम्मीद तो है। कर्नाटक में तीन-चार दिन पहले हो गई है। बंगाल में इस के और दो दिन पहले हो गई है। बंगाल तो भट्ट साहब गए थे। कर्नाटक मैं खुद गई थी। यहां भी आई हूं। उम्मीद भी पूरी है। पर जब तक लेटर नहीं मिलता तब तक क्या कहा जाय। पर मैं कहना चाहती हूं कि तमन्ना फ़िल्म टैक्स फ्री के लिए डिजर्ब करती है। क्यों कि यह सोशली रिलीवेंट पिक्चर है। सच्ची कहानी है। हमारे देश में जो लोग लड़की मारते हैं, लड़का प्रेफ़र करते हैं उन पर बेस।
आप की फ़िल्म डैडी भी तो टैक्स फ्री हो गई थी?
पर उस के लिए अप्लीकेशन नहीं दी थी, इस के लिए दी है।
एक्ट्रेस और प्रोड्यूसर दोनों में क्या फ़र्क पाती हैं?
दोनों को कंपेयर नहीं कर सकती। पर कह सकती हूं कि पहले एक्ट्रेस हूं फिर प्रोड्यूसर हूं।
डायरेक्शन के बारे में सोच रही हैं?
डायरेक्शन के बारे में मैं ने तो सोचा ही नहीं। एक्सपीरियंस नहीं है ना। सोच भी नहीं सकती। इंडिया में मैं पहली एक्ट्रेस हूं जो इतनी कम एज में प्रोड्यूसर बन गई। चौबीस साल की उमर में।
हेमा मालिनी भी तो प्रोड्यूसर हैं?
पर इतनी कम उमर नहीं है उन की।
महिला और युवा होने के नाते ऐज प्रोड्यूसर क्या दिक्कतें आईं?
कोई खास प्रॉब्लेम नहीं हुई। क्यों कि यूनिट फ़ेमिली की थी। इंडस्ट्री और बाहर के सभी लोगों ने सपोर्ट किया।
जब यूनिट फ़ेमिली की थी तो प्रोड्यूसर बनना आप के लिए ज़रूरी था?
इस तरह की पिक्चर बनाना चाहती थी लोग बनाते नहीं। मैं ही इसे बना सकती थी।
खुद की फ़िल्म में खुद ही हीरोइन हो गईं?
पर खुद के लिए नहीं बनाई। और अपनी पिक्चर में मैं खुद हीरोइन नहीं हूं। काजोल को साइन किया है। जुगल हंसराज हीरो हैं।
तमन्ना में मुख्य पात्र परेश रावल हिजड़ा है। आप की एक और फ़िल्म सड़क में सदाशिव अमरापुरकर भी हिजड़े की भूमिका में थे?
सड़क में महारानी विलेन थी। तमन्ना में टिक्कू विलेन नहीं है। इस नाते महारानी और टिक्कू को कंपेयर नहीं कर सकते आप।
डैडी, दिल है कि मानता नहीं, सड़क, सातवां आसमान, अंगरक्षक सरीखी तमाम ऐसी फ़िल्में हैं जिनमें आप के कैरेक्टर में आप के अभिनय में एक ज़िद समाई रहती है और कहा जाता है कि आप भी ज़िद्दी हैं?
मैं ज़िद्दी नहीं हूं। रही बात फ़िल्मों की तो उस में ज़िद्दी के निगेटिव शेड भी हैं। और पाज़िटिव भी हैं। दिल है कि मानता नहीं , मैं ज़िद्दी लड़की थी तो इस लिए कि रईस बाप की बेटी थी। यह निगेटिव शेड है। पर डैडी में मेरी ज़िद का पाज़िटिव शेड है। ज़िद है कि पिता की दारू छुड़ा कर ही मानूंगी।
मैं देख रहा हूं कि इस वक्त आप का जो व्यवहार है, जो अंदाज़ है, जो मूवमेंट है, अपनी फ़िल्मों में भी कमोवेश आप ऐसी ही हैं। तो क्या अपने को जस का तस ही रख देती हैं किसी भी चरित्र के सामने?
हर एक का अपना करेक्टर होता है। करिश्मा, मनीषा, काजोल सब की अपनी अपनी स्टाइल है। तो मेरी भी है। आडियंस ने डैडी, दिल है कि मानता नहीं में पसंद किया। पर मैं ने कुछ ऐसी फ़िल्में भी की जिनमें टिपिकल हीरोइन का रोल था। उनमें न तो मुझे मज़ा आया, न लोगों ने एप्रीशिएट किया। तो मैं वापस आ गई। डैडी में मैं जो हूं तमन्ना में मैं जो हूं, रियल लाइफ़ में भी वैसी ही हूं।
फ़िल्म के अलावा भी कुछ सोचा है?
देखती हूं। अभी चौबीस की हूं, चालीस की थोड़ी ही हूं। बहुत टाइम है देखते हैं।
पिता की वज़ह से इंडस्ट्री में आसानियां मिलीं कि दुश्वारियां?
कहना तो आसान है कि फलां की बेटी है। पर कैमरे के सामने तो बाप का नाम काम नहीं आता? उल्टे उम्मीदें बढ़ जाती हैं।
ज़्यादातर फ़िल्में आप ने आप पापा महेश भट्ट के साथ ही की हैं?
क्यों नहीं करूं? नहीं करुं तो लोग कहते हैं कि घर में क्यों नहीं? पर अब वह भी बाहर काम कर रहे हैं और मैं भी।
पिता के सामने रोमांटिक सीन करने या रेप सीन करने में संकोच नहीं होता?
आज तक ऐसे सीन मैं ने किए नहीं जिसमें एंब्रेसमेंट हो। अपने को एक्सपोज़ किया नहीं। तो ऐसा होने का सवाल ही नहीं खड़ा होता। और फिर मेरे पिता इस तरह के डायरेक्टर है भी नहीं। वह बहुत ही साफ सुथरी फ़िल्में बनाते हैं।
आने वाली फ़िल्में?
अक्षय के साथ अंगारे, अनिल कपूर, जैकी श्रा्फ़ के साथ कभी न कभी, अजय देवगन के साथ गिरवी आमिर खान के साथ गुलाम और अक्षय खन्ना के सात बॉर्डर।
[१९९७ में लिया गया इंटरव्यू]
देखती हूं। अभी चौबीस की हूं, चालीस की थोड़ी ही हूं। बहुत टाइम है देखते हैं।
ReplyDeleteये इंटरव्यू 1997 में लिया गया। अब तो वे चालीस की हो गयीं होंगी। :)