महेश भट्ट ओशो टाइम्स के संपादक स्वामी कीर्ति की ताजी टिप्पणी से काफी नाराज है। स्वामी कीर्ति ने कहा कि यू.जी. मतलब उधार के गुरु। यह टिप्पणी आचार्य रजनीश की है जिसे उन्हों ने दुहरा दिया है। इस पर महेश भट्ट कहते हैं कि, ‘ यह तो पहला पत्थर है, अभी और भी पत्थर आएंगे।’ महेश भट्ट फिर कहते हैं कि, ‘मैं स्वामी कीर्ति की दिक्कत समझता हूँ। वह ओशो टाइम्स में इनवेस्टर हैं। तो यह उनकी दुकानदारी है। उन्हें अपनी दुकान की रक्षा करने का हक है। मैं बिलकुल नहीं चाहता कि वह मेरा समर्थन करें। पर यह ज़रुर चाहता हूं कि पहले वह यू.जी. की बातें पढ़ लें। पर वह सच का सामना नहीं करेंगे, गाली देंगे। क्यों कि उन्हें अपनी दुकान की चिंता है।’
महेश भट्ट बताते हैं कि मैं तब यातना में था तो रजनीश के पास गया था। शांति के लिए। फिर यू.जी. के पास गया। पर आज यू.जी. भी मुझे शांत नहीं कर पाए हैं। वह जोड़ते हैं, ‘शायद मेरे स्वभाव में अशांत रहना ही है।’ वह कहते हैं कि ‘मेरे अशांत स्वभाव ने ही मुझे ज़िंदा रखा है। मुझे कामयाब बनाया है। दरअसल मैं अपने आप को तोड़ता हूं। खुद बनाता हूं। बार-बार। पर मैं किसी को यह नहीं कहता कि आप मेरे जैसा जिएं। फिर मेरा तो कहना सिर्फ़ इतना है कि पहले किताब पढ़ें कोई फिर बात करें। मुझे लगता है कि कीर्ति स्वामी ने बिना पढ़े ही टिप्पणी कर दी है। क्यों कि यू.जी. ने खुद कहा है कि बेहतर है कि आप हमें ठग कहें, गुरू नहीं।’
महेश भट्ट कहते हैं कि ‘अगर कोई सच्चा गुरू है तो आप को अपने से मुक्त कर देता है। कुत्ता बना कर नहीं रखता। मुझे लगता है कि रजनीश कुत्ता बना कर रखते हैं। तो अलग हो गया।’ वह कहते हैं कि ‘मेरी तकलीफें भी वैसी ही हैं जैसी पहले थी। जैसे एक आम आदमी की ज़िंदगी का रंग होता है, वैसा ही रंग मेरी ज़िंदगी का भी है।’ वह जोड़ते हैं, ‘यू.जी का न कोई आश्रम है, न कोई शिक्षा देने की दुकान। उन्हों ने कोई तांत्रिक सेंटर नहीं खोला है।’
यह पूछने पर कि आखिर रजनीश से आप असहमत क्यों हुए? महेश भट्ट बोले,‘ढाई साल गुज़ारे ज़िंदगी के उन के साथ। रोज 5 घंटे। पर जब गहराई में देखा तो कोई अंतर नहीं पाया।’ वह बोले, ‘मैं सारी दुनिया से झूठ बोल सकता हूं पर अपने आप से नहीं। फिर रजनीश के यहां मैं खुद गया था। उन को कभी ज़िम्मेदार नहीं मानता।’ महेश भट्ट ने बात और साफ की। कहा कि जैसे शराब की दुकान पर जाता था, जब पीता था। अब नहीं पीता तो शराब की दुकान पर भी जाना बंद कर दिया।
यू.जी. की बात चली तो वह बोले, ‘यू.जी. के पास तो देने के लिए कुछ है भी नहीं। दुकान भी नहीं है उनके पास।’ फिर वह जोड़ते हैं, ‘यह तो पहला पत्थर है अभी और भी पत्थर आएंगे!’
[वर्ष १९९७ में लिया गया इंटरव्यू]
महेश भट्ट बताते हैं कि मैं तब यातना में था तो रजनीश के पास गया था। शांति के लिए। फिर यू.जी. के पास गया। पर आज यू.जी. भी मुझे शांत नहीं कर पाए हैं। वह जोड़ते हैं, ‘शायद मेरे स्वभाव में अशांत रहना ही है।’ वह कहते हैं कि ‘मेरे अशांत स्वभाव ने ही मुझे ज़िंदा रखा है। मुझे कामयाब बनाया है। दरअसल मैं अपने आप को तोड़ता हूं। खुद बनाता हूं। बार-बार। पर मैं किसी को यह नहीं कहता कि आप मेरे जैसा जिएं। फिर मेरा तो कहना सिर्फ़ इतना है कि पहले किताब पढ़ें कोई फिर बात करें। मुझे लगता है कि कीर्ति स्वामी ने बिना पढ़े ही टिप्पणी कर दी है। क्यों कि यू.जी. ने खुद कहा है कि बेहतर है कि आप हमें ठग कहें, गुरू नहीं।’
महेश भट्ट कहते हैं कि ‘अगर कोई सच्चा गुरू है तो आप को अपने से मुक्त कर देता है। कुत्ता बना कर नहीं रखता। मुझे लगता है कि रजनीश कुत्ता बना कर रखते हैं। तो अलग हो गया।’ वह कहते हैं कि ‘मेरी तकलीफें भी वैसी ही हैं जैसी पहले थी। जैसे एक आम आदमी की ज़िंदगी का रंग होता है, वैसा ही रंग मेरी ज़िंदगी का भी है।’ वह जोड़ते हैं, ‘यू.जी का न कोई आश्रम है, न कोई शिक्षा देने की दुकान। उन्हों ने कोई तांत्रिक सेंटर नहीं खोला है।’
यह पूछने पर कि आखिर रजनीश से आप असहमत क्यों हुए? महेश भट्ट बोले,‘ढाई साल गुज़ारे ज़िंदगी के उन के साथ। रोज 5 घंटे। पर जब गहराई में देखा तो कोई अंतर नहीं पाया।’ वह बोले, ‘मैं सारी दुनिया से झूठ बोल सकता हूं पर अपने आप से नहीं। फिर रजनीश के यहां मैं खुद गया था। उन को कभी ज़िम्मेदार नहीं मानता।’ महेश भट्ट ने बात और साफ की। कहा कि जैसे शराब की दुकान पर जाता था, जब पीता था। अब नहीं पीता तो शराब की दुकान पर भी जाना बंद कर दिया।
यू.जी. की बात चली तो वह बोले, ‘यू.जी. के पास तो देने के लिए कुछ है भी नहीं। दुकान भी नहीं है उनके पास।’ फिर वह जोड़ते हैं, ‘यह तो पहला पत्थर है अभी और भी पत्थर आएंगे!’
[वर्ष १९९७ में लिया गया इंटरव्यू]
यू॰जी॰ से तात्पर्य स्पष्ट करना चाहिए…जिन्होंने उनकी चर्चा नहीं सुनी, वे कैसे जानेंगे और इस इंटरव्यू की तह तक पहुँचेंगे?
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