Sunday, 30 June 2024

अराजक महावत किसी हाथी को जब मिल जाता है

दयानंद पांडेय 

कहते हैं कि विपक्ष सत्ता पर अंकुश का काम करता है। अपने सकारात्मक व्यवहार से। किसी महावत की तरह। लेकिन अठारहवीं लोकसभा को सब से ज़्यादा विध्वंसक विपक्ष मिला है। विपक्ष को बहुत गुरुर है कि राम मंदिर बनवाने का श्रेय लेने वालों को राम के प्रतीक अयोध्या , प्रयाग , चित्रकूट समेत तमाम संसदीय क्षेत्रों में बड़ी पटकनी दे दी है। संविधान बदल कर , आरक्षण ख़त्म करने का डर दिखा कर , हर महीने 8500 रुपए की लालच दिखा कर झंडा ऊंचा करने वाला विपक्ष नहीं जानता कि कोई अराजक महावत किसी हाथी को जब मिल जाता है तब हाथी बिना चूके महावत का काम तमाम कर देता है , क्षण भर में। आह भी भरने का समय नहीं देता , महावत को। 

ऐसा अनेक बार देखा और सुना गया है। 

यक़ीन न हो तो लोकसभा अध्यक्ष के हालिया चुनाव में यह घटना अभी-अभी गुज़री है। याद कर लें। पूर्व में नज़ीर और भी कई हैं। 2014 में भी , 2019 में भी। 2024 के इस सत्र में ऐसी घटनाएं और भी गुज़रने ही वाली हैं। कि आह भी लेने का अवकाश नहीं मिलने वाला। फिर जब सत्ता की जगह जब प्रतिपक्ष ही मदांध हो जाए तो लोकतंत्र का भगवान ही मालिक है। तब और जब समूचा विपक्ष किसी चुने हुए प्रधानमंत्री को निरंतर तानाशाह घोषित करते हुए , अघोषित आपातकाल की घोषणा करने का अभ्यस्त हो चला हो। जीतने पर भी नैतिक हार बताने की बीमारी हो गई हो जिस विपक्ष को , उस से रचनात्मक विपक्ष की उम्मीद करना बैल से दूध दूहने की कल्पना जैसा है। क्यों कि ऐसा नकारात्मक नेता प्रतिपक्ष किसी लोकसभा को कभी नहीं मिला। हिंसक और अराजक बयान ही जिस की आत्मा हो , आत्ममुग्धता ही जिस का सरोकार हो छल-कपट ही जिस की खेती हो , उस नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति में लोकसभा कभी किसी भी सत्र में निरापद ढंग से चल भी पाएगी , मुझे शक़ है। 

इस लिए भी कि नेता प्रतिपक्ष को संसदीय अनुभव चाहे जितना हो , संसदीय परंपरा और मूल्यों का ज्ञान शून्य है। हिंसक बयान और अराजकता ही नेता प्रतिपक्ष की बड़ी पूंजी है। अराजकता ही उन की ताक़त है। तब जब कि नेता प्रतिपक्ष को शैडो प्राइम मिनिस्टर माना जाता है। लेकिन वर्तमान नेता प्रतिपक्ष प्राइम मिनिस्टर के पीछे-पीछे चलते हुए शैडो तो बन सकते हैं पर शैडो प्राइम मिनिस्टर कैसे बनेंगे , यह यक्ष प्रश्न है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर नेता प्रतिपक्ष ने जो रुख़ अपना कर अपने संसदीय ज्ञान का जो परिचय दिया है , वह विलक्षण है। भूतो न भविष्यति !

नेता प्रतिपक्ष का एकमात्र मक़सद है कि येन-केन-प्रकारेण लोकसभा को सुचारु रूप से चलने नहीं देना है। कोई बिल पास नहीं होने देना है। जिस भी क़ीमत पर हो अराजकता की चादर ओढ़ कर तानाशाह , तानाशाह का उच्चारण करते रहना है। नैतिक हार का उदघोष करते रहना है। मछली की आंख की तरह लक्ष्य साफ़ है कि जैसे भी हो सरकार गिर जाए। और कि बिना चुनाव दूसरी सरकार बने और नेता प्रतिपक्ष प्रधान मंत्री बन जाएं। नीतीश और नायडू किसी उम्मीद , किसी छींके की तरह हैं। छींका टूटे और बिल्ली का भाग्य खुल जाए , मुहावरा ही नहीं , पुरानी आसानी भी है। 

छींका टूटता भी है और नहीं भी। क़िस्मत-क़िस्मत की बात है। राजनीति की नहीं। 

Monday, 10 June 2024

7 वर्ष से लगातार मुख्य मंत्री बने रह कर योगी ने एक बड़ा रिकार्ड बनाया

 दयानंद पांडेय 

दिल्ली का जश्न हो गया , अब एक जश्न लखनऊ में भी होना चाहिए। क्यों कि उत्तर प्रदेश में 7 वर्ष से लगातार मुख्य मंत्री बने रह कर योगी आदित्य नाथ ने एक बड़ा रिकार्ड बना दिया है। इस से ज़्यादा समय तक उत्तर प्रदेश में लगातार अभी तक कोई और मुख्य मंत्री नहीं रह पाया है। जो सूरतेहाल है वह बताता है कि योगी इस रिकार्ड को तोड़ते हुए दस साल लगातार मुख्य मंत्री बने रहने का रिकार्ड भी बना सकते हैं। या फिर मोदी को फॉलो करते हुए तीसरे कार्यकाल में भी मुख्य मंत्री बने रह सकते हैं। जो भी हो योगी के इस रिकार्ड की भी चर्चा होनी चाहिए। तब और जब नेहरू के बाद मोदी के तीसरी बार लगातार प्रधान मंत्री बनने की बड़ी चर्चा है। योगी  ने लगातार सर्वाधिक  7 वर्ष, 83 दिन उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बने रहने का रिकार्ड बना लिया है। 19 मार्च 2017 से 25 मार्च 2022  तक बतौर विधान परिषद सदस्य और फिर  गोरखपुर शहर से बतौर विधायक 25 मार्च 2022 से लगातार मुख्य मंत्री बने हुए हैं। 

सवाल है कि आगे भी बने रहेंगे योगी ?

यह सवाल इस लिए भी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में तमाम राजनीतिज्ञों की तरह योगी अभिनेता नहीं हैं। उन के जो भीतर है , वही बाहर है। वह कुछ छुपाते नहीं। बेधड़क बोल देते हैं। फ़िल्टर नहीं रखते। कि क्या कहना है , क्या नहीं कहना है। वह जानते हैं कि जो है , वही कहना है। योगी मुखौटा भी नहीं पहनते। अभी लोकसभा के सेंट्रल हाल में जब नरेंद्र मोदी को एन डी ए का नेता चुना गया तब लगभग सभी के चेहरे पर चमक थी। दर्प था। सभी मुस्कुराते हुए , सीना ताने हुए बैठे थे। इकलौते योगी ही थे जिन का चेहरा कुम्हलाया हुआ था। अवसाद था उत्तर प्रदेश में अपेक्षित सीट नहीं ला पाने का। चेहरे पर चमक का गुलाल नहीं , सीटें गंवाने का मलाल था। चेहरा बुझा-बुझा सा। अंग-अंग कुम्हलाया हुआ था। अभिनय नहीं , आह थी। चुनाव में झुलस जाने की आंच में चेहरा तप रहा था। यह किसी योगी से ही संभव था। ऐसे जैसे तमाम अभिनेताओं के बीच एक आदमी बैठा था। ऐसे जैसे आग में सोना तप रहा था। 

राजनीति में दुःख का ऐसा कोलाज , ऐसा कोई कोना अब दुर्लभ है। बहुत दुर्लभ। 

गौरतलब है कि बीते लोकसभा चुनाव में मोदी और योगी की जोड़ी बड़ी मशहूर रही है। उत्तर प्रदेश में हिट नहीं हुई यह अलग बात है। तो भी योगी ने उत्तर प्रदेश में क़ानून का राज स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। माफियाओं का अहंकार , गुरुर और उन का जाल तोड़ा है। अयोध्या , काशी की गरिमा को गर्व और गुमान दिया है। उत्तर प्रदेश में विकास की गंगा बहाई है। 

इन सारी बातों के आलोक में राजनीति के इस रंगमंच पर उत्तर प्रदेश में बतौर मुख्य मंत्री योगी द्वारा बनाए गए इस लगातार 7 वर्ष के रिकार्ड का ज़िक्र किसी इत्र की तरह होना चाहिए। इस रिकार्ड की सुगंध दूर-दूर तक जानी चाहिए। 

आइए जायज़ा लेते हैं उत्तर प्रदेश के अन्य मुख्य मंत्रियों के कार्यकाल और उन के रिकार्ड का। योगी के पहले अधिकतम दिन वाला संपूर्णानंद के नाम 5 वर्ष 345 दिन उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बनने का रिकार्ड दर्ज है। वाराणसी से विधायक रहे संपूर्णानंद 10 अप्रैल 1957 से 7 दिसंबर 1960 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे थे। तीसरे नंबर पर अखिलेश यादव का नाम दर्ज है जो 15 मार्च 2012 से 19 मार्च 2017 तक यानी 5 वर्ष, 4 दिन उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे बतौर विधान परिषद सदस्य। संपूर्णानंद से पहले यह रिकार्ड गोविंद बल्लभ पंत के नाम दर्ज है। बरेली से विधायक रहे गोविंद वल्लभ पंत पहले 26 जनवरी 1950 से 20 मई 1952 और फिर 20 मई 1952 से 28 दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे थे। इस तरह कुल 4 वर्ष, 336 दिन गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के लगातार मुख्य मंत्री रहे थे। 13 मई 2007 से 15 मार्च 2012 तक बतौर विधान परिषद सदस्य मायावती भी 4 वर्ष, 307 दिन मुख्य मंत्री रहीं। इस के पहले 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक मायावती 1 वर्ष, 118 दिन मुख्य मंत्री रही थीं। इस के पहले 1995 में 137 दिन और 1997 में 184 दिन मायावती मुख्य मंत्री रहीं। 

सब से कम 20 दिन मुख्य मंत्री रहने का रिकार्ड सी बी गुप्ता के नाम दर्ज है। 14 मार्च 1967से 3 अप्रैल 1967 तक। इस के पहले सी बी गुप्ता 2 वर्ष, 299 दिन तक मुख्य मंत्री रह चुके थे। 7 दिसंबर 1960 से 14 मार्च 1962 और 14 मार्च 1962  से 2 अक्टूबर 1963 तक। 26 फरवरी 1969 से 18 फरवरी 1970 तक 357 दिन तक भी सी बी गुप्ता मुख्य मंत्री रहे। सुचेता कृपलानी 2 अक्टूबर 1963 से 14 मार्च 1967 तक यानी 3 साल, 163 दिन मुख्य मंत्री रहीं।चरण सिंह एक बार 328 दिन और दूसरी बार 225 दिन मुख्य मंत्री रहे। 

कमलापति त्रिपाठी 2 वर्ष 70 दिन और हेमवती नंदन बहुगुणा 2 वर्ष 22 दिन मुख्य मंत्री रहे। नारायण दत्त तिवारी तीन बार मुख्य मंत्री रहे और एक वर्ष कुछ दिन पूरा होते न होते हटा दिए जाते रहे। राम नरेश यादव 1 वर्ष 250 दिन , बनारसी दास 354 दिन और विश्वनाथ प्रताप सिंह 2 वर्ष 40 दिन मुख्य मंत्री रहे। श्रीपति मिश्र 2 वर्ष 15 दिन और वीर बहादुर सिंह 2 वर्ष 275 दिन मुख्य मंत्री रहे। मुलायम सिंह यादव तीन बार मुख्य मंत्री रहे। दो बार एक साल कुछ दिन तो तीसरी बार 3 वर्ष 257 दिन। 

कल्याण सिंह भी दो बार मुख्य मंत्री रहे हैं। अतरौली से विधायक रह कर 24 जून 1991 से 6 दिसंबर 1992 तक एक वर्ष 165 दिन और दूसरी बार 21 सितम्बर 1997 से 12 नवंबर 1999 तक 2 वर्ष, 52 दिन जब कि रामप्रकाश गुप्त 12 नवंबर 1999 से 28 अक्टूबर 2000 351 दिन मुख्य मंत्री रहे। राजनाथ सिंह 28 अक्टूबर 2000 से 8 मार्च 2002 तक यानी 1 वर्ष, 131 दिन उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे। कहने को कुछ घंटे जगदंबिका पाल ने भी मुख्य मंत्री पद की शपथ ली थी। वह अर्जुन सिंह की साज़िश थी कल्याण सिंह को हटाने की। जिस में राज्यपाल रोमेश भंडारी ने साथ दिया। लेकिन ज्यों जगदंबिका पाल ने शपथ ली , त्यों हाईकोर्ट ने जगदंबिका पाल की शपथ को अवैध घोषित कर दिया , आधी रात। इसी लिए किसी भी अभिलेख या आदेश में बतौर मुख्य मंत्री जगदंबिका पाल का नाम दर्ज नहीं है। 

प्राण जाए पर वचन न जाए फ़िल्म में एस एच बिहारी का लिखा एक गीत है जिसे आशा भोसले ने ओ पी नैय्यर के संगीत में गया है : चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया ! उत्तर प्रदेश के तमाम मुख्य मंत्री या तो केंद्र द्वारा कठपुतली बनाने , बर्खास्त होने या फिर परिस्थितिवश , साझा सरकार होने के कारण अपना कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर सके थे। इंदिरा गांधी , राजीव गांधी ने कांग्रेसी मुख्य मंत्रियों को भी ताश की तरह फेंटा ही , अटल बिहारी वाजपेयी ने  भी कल्याण सिंह को राजनाथ सिंह की महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ा दिया। कल्याण सिंह को हटा कर पहले रामप्रकाश गुप्ता को मुख्य मंत्री बनाया फिर अंतत : राजनाथ सिंह को मुख्य मंत्री बना दिया। कल्याण सिंह को चैन से नहीं रहने दिया। कई बार योगी के चैन में भी खलल पड़ते देखा गया है। वह तो योगी हैं कि सारी बाधाओं को जाग मछेंदर , गोरख आया के बल पर सारी बलाएं टाल देते रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि नरेंद्र मोदी अपने रिकार्ड के साथ योगी के रिकार्ड को भी बनते रहने देते हैं या फिर अपने पूर्ववर्तियों की तरह योगी को यह गाना गाना देने के लिए मज़बूर कर देते हैं : चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया !



Friday, 7 June 2024

भाजपा की अयोध्या में लगी आग कैसे बुझेगी !

दयानंद पांडेय 

भाजपा की अयोध्या में लगी आग कैसे बुझेगी ! समय बता रहा है कि त्रेता की इस आधुनिक और चुनावी अयोध्या में लगी आग शायद द्वापर का अर्जुन ही बुझाए। ऐसे जैसे कभी शर-शैया पर लेटे गंगा पुत्र भीष्म की प्यास तीर मार कर अर्जुन ने ही बुझाई थी। दरअसल आज सेंट्रल हाल से एक बड़ी ख़बर यह मिली है कि अठारहवीं लोकसभा को प्रधानमंत्री के रूप में अभिमन्यु नहीं अर्जुन मिला है। कौरवों के सारे चक्रव्यूह तोड़ कर लोकतंत्र में गहरी आस्था जगाने के लिए। देश के चौतरफा विकास ख़ातिर यह अर्जुन कुछ भी करने के लिए बेक़रार दिखता है। वह अर्जुन जो कृष्ण नीति से चलता है। तीसरी अर्थव्यवस्था जैसी बहुत बड़े-बड़े काम करने का अब भी दम भरता है। मोदी ने अपने भाषण में इंडिया गठबंधन पर जैसे मिसाइल पर मिसाइल दागे। तेजाबी मिसाइल। आंकड़ों के आइने में कांग्रेस को उतार कर किसी धोबी की तरह पीट-पीट कर धोया। ऐसे जैसे सर्जिकल स्ट्राइक हो। कांग्रेस अभी तक निरुत्तर है। सहयोगी दलों को एड्रेस करते हुए मंत्री आदि मामलों में भी न झुकने का संकेत देते हुए मोदी ने स्पष्ट बता दिया है कि कामकाज और सरकार तो वह अपनी शर्तों पर ही चलाएंगे। 

पर क्या सचमुच ? 

लगता तो है। क्यों कि जो धुंध कल तक एन डी ए के सहयोगी दलों की तरफ से छाई थी , तात्कालिक रूप से यह धुंध अब छंटी हुई दिखती है। और तो और इंडिया गठबंधन में रहते हुए भाजपा और नरेंद्र मोदी की हाहाकारी जीत में लंगड़ी मारने वाले नीतीश कुमार ने मंच पर अपने उदबोधन के बाद अनायास और अचानक नरेंद्र मोदी के पांव छू कर न सिर्फ़ इस लंगड़ी मारने का प्रायश्चित किया है बल्कि यह भी सुनिश्चित  करने की कोशिश की है कि अब वह और पलटी नहीं मारेंगे। अलग बात है कि लोग भूल गए हैं कि नीतीश पहले भी मोदी को बैठे-बैठे प्रणाम कर चुके हैं। आज खड़े हो कर कर दिया। भावुकता में , सम्मान में हो जाता है ऐसा भी। इस बात को तिल का ताड़ बनाना ठीक नहीं। मोदी के पांव तो आज चिराग़ पासवान ने भी छुए। और भी कुछ लोगों ने। सब के सब विनयवत रहे। यहां तक कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तो आज मोदी को दही-चीनी खिलाया अपने हाथ से राष्ट्रपति भवन में। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद भी मोदी को मिठाई खिलाते दिखे आज। 

बहरहाल , आप पूछ सकते हैं कि नीतीश कुमार ने भाजपा की हाहाकारी जीत में लंगड़ी कैसे मारी है ? 

याद कीजिए जातीय जनगणना की क़वायद। शुरुआत नीतीश कुमार ने ही बिहार से की थी। बिहार विधान सभा से इस जातीय जनगणना का प्रस्ताव पास करवाया। जातीय जनगणना करवाई। आंकड़े आज तक सार्वजनिक नहीं किए। पर इसी बिना पर बिहार में 75 प्रतिशत आरक्षण भी लागू कर दिया। इसी दौरान विधान सभा में लड़का-लड़की के शादी के बाद वाला अश्लील बयान भी नीतीश का आया था। दरअसल यह जातीय जनगणना का दांव नीतीश कुमार ने बहुत सोच समझ कर चला था। भाजपा ने जो बड़ी मेहनत से मंडल-कमंडल का वोट बैंक 2014 और 2019 में एक किया था और चौतरफा लाभ लिया था। 303 सीट इसी बल पर लाई थी भाजपा। मंडल-कमंडल का वोट एक करना मतलब अगड़ा-पिछड़ा वोट बैंक एक कर हिंदू वोट बैंक खड़ा करना। इसी हिंदू वोट बैंक के चक्कर में मुस्लिम वोट बैंक ध्वस्त हो गया था। 

तो जातीय जनगणना एक ऐसा दांव था जिस ने अगड़े-पिछड़े वोट बैंक को तितर-बितर कर दिया। आप याद कीजिए अखिलेश यादव और कांग्रेस पोषित यू ट्यूबर अजित अंजुम को। जो बीते विधान सभा चुनाव में अकसर गांव-कस्बे में कुछ औरतों को घेरते और पूछते रहते थे कि किस जाति से हो ? संयोग से वह औरतें कहतीं हिंदू। बहुत कुरेदने पर भी वह औरतें जाति नहीं बताती थीं। अजित अंजुम निराश हो जाते थे। एक समय रवीश कुमार भी कौन जाति हो का सवाल लिए घूमते रहते थे। तो रणनीति बनी जातीय जनगणना की। प्रयोगशाला बना बिहार। जो पहले ही से जातीय दुर्गंध से बदबू मारता है। 

लालू , नीतीश की बिहार की सारी राजनीति ही जातीय नफ़रत और घृणा की ताक़त पर है। नक्सल कांग्रेसी बन चुके राहुल और यादवी राजनीति के सूरमा अखिलेश यादव ने इस लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना का बिगुल बजा दिया। आंख में धूल झोंकने के लिए नाम दिया पी डी ए। अपने को चाणक्य बताने वाले , सोशल इंजीनियरिंग के अलंबरदार अमित शाह पी डी ए के जाल में कब फंस गए , जान ही नहीं पाए। गरीबों के लिए लोक कल्याणकारी योजना चलाने वाली केंद्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों ने इस जातीय जनगणना के खेल को भी समय रहते समझा नहीं। मंडल-कमंडल के वोट इस जातीय जनगणना के व्यूह में कब तार-तार हो गए , चाणक्य लोग जान ही नहीं पाए। अयोध्या , चित्रकूट हाथ से निकल गया। अमेठी , रायबरेली , सुलतानपुर समेत आधा उत्तर प्रदेश निकल गया। बनारस जैसे-तैसे जाते-जाते बचा है। 

जातीय जनगणना की हवा में आग यह लगाई गई कि भाजपा संविधान बदल कर आरक्षण ख़त्म कर देगी।  और उत्तर प्रदेश की ज़्यादातर सीटें निकल गईं भाजपा के हाथ से तो यह वही रसायन है। वही केमेस्ट्री है। उत्तर प्रदेश ही नहीं , बिहार , महाराष्ट्र , बंगाल हर कहीं यह केमेस्ट्री काम आई और 400 की लालसा लिए भाजपा और सहयोगी दल औंधे मुंह गिरे। मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , हिमाचल जैसे प्रदेशों में जाने कैसे मंडल-कमंडल साथ रह गए तो भाजपा की जैसे-तैसे लाज बच गई। नीतीश कुमार एन डी ए में न आए होते तो भाजपा का जाने क्या हाल हुआ होता। याद कीजिए इस बाबत अमित शाह का एक डाक्टर्ड वीडियो भी कांग्रेसियों ने जारी किया था। भाजपा ने क़ानूनी एफ आई आर , कुछ गिरफ्तारी आदि से इतिश्री कर ली। लेकिन आरक्षण ख़त्म करने की आग सुलगती रह गई , भीतर-भीतर। भाजपा ज़मीन पर गई नहीं। गांव-गांव यह वीडियो फ़ैल चुका था। एल आई यू भी सोई रही। मीडिया भी। असल में आरक्षण ऐसी बीमारी है जिस के आगे राम , कृष्ण , शंकर सब फ़ालतू हैं। राम नहीं आरक्षण चाहिए। कान नहीं , कौआ चाहिए। जैसे मुसलमान को देश नहीं इस्लाम चाहिए , दलित और पिछड़ों को राम , कृष्ण , शंकर नहीं , आरक्षण चाहिए। बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि अब आप मुफ्त अनाज रोकने की हैसियत में नहीं हैं। गैस भी आप को देना है , शौचालय भी और पक्का मकान भी। एक बार रोक कर देखिए , आग लग जाएगी देश में। 

क्यों कि जैसे कभी  नक्सली वामपंथी होते थे , अब नक्सल कांग्रेसी हो चले हैं। समूची कांग्रेस की जुबान अब नक्सली हो गई है। जुबान ही नहीं , सारी गतिविधियां भी। राहुल ही नहीं , सारे प्रवक्ता भी। आप अवसर तो दीजिए। यह दोनों मिल कर आग लगाने को तैयार बैठे हैं। राहुल की कुतर्की आक्रामक शैली , और गाली-गलौज की भाषा , कांग्रेस की भाषा नहीं है। नक्सलियों की भाषा है। कांग्रेसियों को बड़ी शिकायत रहती है कि नरेंद्र मोदी प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते। हां , राहुल गांधी जब तब प्रेस कांफ्रेंस करते रहते हैं। किसी असहमत प्रश्न पर फौरन भड़कते हैं। कहते हैं यह तो भाजपा का सवाल है। और उस रिपोर्टर पर आक्रामक हो जाते हैं। ताज़ा मसला आज तक की मौसमी सिंह का है। मौसमी सिंह राहुल गांधी की प्रिय रिपोर्टर रही हैं। सालों से। कुछ पत्रकार उन्हें कांग्रेस की गोद में बैठी पत्रकार का तंज भी कसते रहे हैं , बतर्ज़ गोदी मीडिया। 

ख़ैर जातीय जनगणना ने भाजपा की अयोध्या में जो आग लगाई है। अगर इस आग को समय रहते नहीं बुझाया भाजपा ने तो 2027 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में साफ़ हो जाएगी। 

जो भी हो आज की तारीख़ में सारा राजनीतिक मंज़र मोदी के पक्ष में है। नीतीश ही नहीं , नायडू समेत सभी सहयोगी दल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक सुर से साथ खड़े दीखते हैं। समर्पित भाव में। नीतीश ने अपने उदबोधन में यहां तक कह दिया कि अगली बार जब आइएगा तो जो कुछ लोग इधर-उधर जीत गए हैं , वह सब भी हार जाएंगे। नीतीश का इशारा तेजस्वी की तरफ था। नीतीश तो और दो क़दम आगे जा कर बोल रहे हैं कि जल्दी काम शुरू कीजिए। यानी तेजस्वी को जेल भेजिए। 

नीतीश कुमार का सहसा नरेंद्र मोदी का पांव छूना बताता है कि लालू और तेजस्वी से बिहार में वह बहुत आजिज हैं। नरेंद्र मोदी की राजनीतिक छांव की उन्हें बहुत ज़रूरत है। मोदी को नीतीश की ज़रूरत कम , नीतीश को मोदी की ज़रूरत ज़्यादा है। जो भी हो नीतीश और नायडू समेत सभी सहयोगी दल अब इंडिया गठबंधन के खिलाफ न सिर्फ एकजुट हैं बल्कि फ़ायर के मूड में हैं। देखिए कि यह मंज़र कब तक बना रहता है। 

क्यों कि समय तो सर्वदा बदलता रहता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता। सब कुछ बदलता रहता है। पर राजनीति इतनी तेज़ बदलती है कि कई बार लगने लगता है कि घड़ी की सूई कहीं पीछे तो नहीं रह गई इस राजनीति से। राजनीति और वह भी नरेंद्र मोदी की राजनीति। मोदी निरंतर कपड़े बदलते रहते हैं। एक-एक दिन में आधा दर्जन बार कपड़े बदल लेते हैं। एक समय मनमोहन सरकार में गृह मंत्री शिवराज पाटिल भी निरंतर कपड़े बदलने के लिए जाने गए थे। पर मोदी उन से बहुत आगे हैं। फिर वह कपड़े से ज़्यादा अपना गोल बदलते रहते हैं। 

एक पुराना क़िस्सा याद आता है। 

एक कुम्हार अपने चाक पर घड़ा बना रहा था। अचानक मिट्टी बोली , कुम्हार , कुम्हार यह क्या कर रहे हो ? कुम्हार हैरत में पड़ गया। बोला , माफ़ करना हमारा ध्यान बदल गया था। मिट्टी बोली , तुम्हारा तो सिर्फ़ ध्यान बदल गया था , हमारी तो दुनिया बदल गई। घड़ा बनना था , सुराही बन गई। 

राजनीति की दुनिया भी कई बार ऐसे ही बदल जाती है। मतदाताओं का ज़रा सा ध्यान बदलते ही  देश घड़े की जगह सुराही या सुराही की जगह घड़ा बन जाता है। क्यों कि लोगों को आरक्षण और इस्लाम चाहिए होता है। जाति और भ्रष्टाचार चाहिए होता है। देश नहीं। देश का विकास नहीं। निजी स्वार्थ सर्वोपरि है मतदाता का भी। देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति का यह अर्जुन भाजपा की अयोध्या में लगी आग बुझा पाता है कि ख़ुद इस में झुलस जाता है। 


Thursday, 6 June 2024

अब गांव भर की भौजाई मोदी

 दयानंद पांडेय 

भारतीय राजनीति के महाबली नरेंद्र दामोदर दास ने अभी शपथ भी नहीं ली है लेकिन उन पर चढ़ाई शुरू हो गई है। दुहरी-तिहरी चढ़ाई। क्या सहयोगी , क्या विपक्ष। हर कोई चढ़ाई पर आमादा है। आंख दिखा रहा है। आंख मिला रहा है। नरेंद्र मोदी की हालत गांव के उस ग़रीब की लुगाई जैसी हो गई है , जो अब गांव भर की भौजाई है। भौजाई की इस दुर्गति को देखते हुए एक सवाल पूछने का मन हो रहा है कि नरेंद्र मोदी की नई सरकार की आयु कितनी है ? पूछना इस लिए लाजिम है कि दस बरस बाद सही भारत को मिलीजुली सरकार फिर मिल गई है। विशुद्ध मिलीजुली सरकार। गो कि हमारे मित्र और भोजपुरी के अमर गायक बालेश्वर एक समय गाते थे ‘दुश्मन मिलै सबेरे लेकिन मतलबी यार न मिले / हिटलरशाही मिले मगर मिली-जुली सरकार न मिले / मरदा एक ही मिलै हिजड़ा कई हजार न मिलै।’ यहीं दुष्यंत कुमार का एक शेर याद आता है :

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये

कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये

तो चार सौ सीट का सपना था। लक्ष्य था। कहां-कहां , कब और कैसे यह टूटा। राजनीतिक पंडित लोग लोग गुणा-भाग में लगे हुए हैं। पक्ष भी विपक्ष भी। घमासान मचा हुआ है। विपक्ष का भी सपना टूटा है। दुष्यंत फिर याद आ गए हैं : शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। लेकिन बुनियाद तो हिली नहीं। लक्ष्य तो नरेंद्र मोदी को हटाना था। हटा नहीं मोदी। चाहे जैसे भी हो नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधान मंत्री बन गए हैं। मनो बुनियाद बच गई है। 

सांप-सीढ़ी का खेल बन कर रह गई है राजनीति। राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। पर भाजपा लोकसभा के इस सत्र में बहुमत के 272 के जादुई आंकड़े को अब किसी सूरत नहीं छू सकती। छोटी पार्टियां भाजपा में विलय करने से रहीं। हां , नीतीश और नायडू की ब्लैकमेलिंग का घनत्व कम करने के कुछ उपाय अवश्य संभव हैं। होंगे भी देर-सवेर। जैसे कि इंडिया गठबंधन के कुछ धड़ों को तोड़फोड़ कर एन डी ए परिवार को बढ़ा कर बड़ा करना। लेकिन यह भी टेम्परेरी इंतज़ाम है। 272 का जादुई आंकड़ा न होने से बड़े-बड़े काम का जो वादा , डंका बजा कर महाबली कर चुके हैं , उन का क्या होगा। समय-बेसमय चौआ , छक्का मारने की जो आदत है , जो धुन और सनक है , उस का क्या होगा। क्या होगा उन तमाम सुधारों का , विकास कार्यों का , इंफ्रास्ट्रक्चर का , जो अपेक्षित हैं। एन आर सी , जनसंख्या नियंत्रण , मुसलमानों का आरक्षण ख़त्म करने का वायदा क्या पूरा होगा ? वन नेशन , वन इलेक्शन का क्या होगा ? 

अभी और अभी तो मदारी की रस्सी बंध चुकी है महाबली नरेंद्र दामोदर दास मोदी के लिए। देखना दिलचस्प होगा कि महाबली मदारी की भूमिका में इस रस्सी पर कैसे और कितनी देर चल सकते हैं। धराशाई होते हैं या अटल बिहारी वाजपेयी की तरह संतुलन बना कर पांच बरस निकाल लेते हैं। क्यों कि सरकार अभी बनी नहीं और नीतीश कुमार के के सी त्यागी अग्निवीर का त्याग खुल कर मांग रहे हैं। इशारों में कई और सारी लगाम लगा रहे हैं। विशेष दर्जा बिहार को भी चाहिए और आंध्र को भी। 

यह लगाम तोड़ पाएंगे , महाबली ? 

तिस पर 12 सांसद पर आधा दर्जन मंत्री पद की फरमाइश। उस में भी रेल सहित तमाम मलाईदार विभाग। उधर चंद्र बाबू , चंद्र खिलौना लैहों पर आमादा हैं। 16 सांसद पर आधा दर्जन मलाईदार विभाग वाले मंत्री पद और लोकसभा अध्यक्ष के पद की फरमाइश। जीतन राम माझी , अठावले जैसे एक-एक सीट वाले भी हौसला बांधे हुए हैं। अगर यह ख़बरें सच हैं तो महाबली का बल तो सारा छिन जाएगा। गृह , वित्त , रक्षा , कृषि ,परिवहन , रेल आदि तो महाबली किसी सहयोगी को देने से रहे। न लोकसभा अध्यक्ष पद। तमाम सुधार अपेक्षित हैं इन हलकों में। फिर इन सहयोगियों पर सारे सपने न्यौछावर हो जाएंगे तो मोदी के अपने भाजपाई सिपहसालार क्या करेंगे ? लोकसभा का सत्र शुरू नहीं हुआ है , कांग्रेस के मोहम्मद बिन तुग़लक़ ने शेयर की उछल-कूद पर जे पी सी की फरमाइश कर दी है। मतलब महफ़िल सजी नहीं और मुजरे पर मुजरे की फरमाइश शुरू ! 

सूर्योदय हुआ नहीं , सुबह हुई नहीं कि गरीब की लुगाई यानी गांव भर की भौजाई की सांसत शुरू। 

गांव में मैं ने देखा है कि तमाम मुश्किलों के बावजूद गरीब की लुगाई यानी गांव भर की भौजाई भी लेकिन सम्मान सहित जीने की जुगत लगा लेती है। गरीबी में अपना आन और अना बचा कर रख लेती है। सारे शोहदों की सनक शांति से उतार कर अपना शील बचा लेती है। फिर यह महाबली नरेंद्र दामोदर दास मोदी तो इवेंट मैनेजर ठहरे। डिप्लोमेट ठहरे। अहमदाबादी व्यापारी ठहरे। 

कांग्रेस के मोहम्मद बिन तुग़लक़ से तो निपटना आसान है। वह तो बैटरी वाला खिलौना हैं। जितनी चाभी भरी वामियों ने उतना चले खिलौना वाली बात है। लेकिन यह सुशासन बाबू और नायडू बाबू की ब्लैकमेलिंग ? यह तो मुंबई में मुसलसल बरसात की तरह जारी रहने वाली है। यह फरमाइश पूरी तो वह फरमाइश। 272 का जादुई आंकड़ा होता तो यही लोग समर्पित सहयोगी होते। पर जैसे रखैलें होती हैं न , न जीने देती हैं , न मरने देती हैं। सुकून भर सांस नहीं लेने देतीं। बहुमत न होने पर सहयोगी पार्टियां सत्ता के सरदार के साथ वही सुलूक़ करने की सनक पर सवार रहती हैं। एक समय नरसिंहा राव तो बिना किसी सहयोगी दल के अल्पमत की सरकार बड़े ठाट से पांच साल चला ले गए थे। लेकिन चरण सिंह , अटल बिहारी वाजपेयी , विश्वनाथ प्रताप सिंह , चंद्रशेखर , देवगौड़ा , गुजराल , मनमोहन सिंह हर किसी सरकार की यही कहानी रही है। सहयोगी डिक्टेट करते रहे। पैरों में बेड़ियां डाले रहते। 370 , राम मंदिर आदि तमाम सवाल पर अटल बिहारी वाजपेयी तो अकसर लाचार हो कर कहते रहते थे कि हमारी बहुमत की सरकार नहीं है , मिलीजुली सरकार है , क्या करें ! 

मनमोहन सिंह सरकार के सहयोगी दलों ने तो जम कर भ्रष्टाचार और अनाचार किए। पर मनमोहन सिंह तो मूदें आँखि कतहुँ कोउ नाहीं। में ही दस बरस बिता ले गए। शेष लोग भी थोड़ा-थोड़ा। मनमोहन सिंह के लिए तो एक बड़ी आफत सोनिया गांधी भी थीं। सुपर प्राइम मिनिस्टर थीं। कोई राष्ट्राध्यक्ष आए तो सोनिया गांधी ही आगे बढ़ कर हाथ मिलाती थीं। स्वागत करती थीं। मनमोहन सिंह निठल्लों की तरह कठपुतली बने सोनिया गांधी के पीछे खड़े रहते थे। लोग मजा लेते हुए कहते फिरते थे कि मनमोहन सरकार इतनी अमीर सरकार है कि हाथ मिलाने के लिए भी एक रख रखा है। हां , देवगौड़ा ज़रूर एक बार जब बहुत परेशान हुए लालू प्रसाद यादव जैसे सहयोगी की ब्लैकमेलिंग से तो चारा घोटाले में लालू को बांध कर दुरुस्त कर दिया। सी बी आई इंक्वायरी करवा कर उन्हें रगड़ दिया। लालू अब इसी चारा घोटाले में बाक़ायदा सज़ायाफ्ता हैं। भूसी छूट गई है लालू प्रसाद यादव की। बीमारी के बहाने जेल से बाहर हैं। पर कब तक ? 

नीतीश कुमार पर तो कोई कुछ नहीं कर सकता। जातीय राजनीति और पलटी वह चाहे जितनी मारें , जैसे और जब मारें , भ्रष्टाचार का कोई दाग़ , कोई छींटा उन पर नहीं है। नायडू पर जांच की तलवार ज़रूर है। 

कई सारी कहानियां , कई सारे दृष्टांत हैं मिलीजुली सरकारों के। बीते दस बरस नरेंद्र मोदी ने भी मिलीजुली सरकार चलाई है। पर भाजपा अकेले स्पष्ट बहुमत में थी सो मोदी महाबली बन कर उपस्थित हुए। पर अब महाबली के पंख कट गए हैं। गगन को गाना कठिन हो गया है। 32 सीट कम पा कर ग़रीब की लुगाई बन गांव भर की भौजाई बने नरेंद्र दामोदर दास मोदी की यह कड़ी परीक्षा की घड़ी है। उन की तानाशाह की छवि अब चूर-चूर है। यह वही आदमी है जो एक सांस में किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित सारे मंत्री बदल देता रहा है और पार्टी में कोई चूं नहीं बोल पाता था। समूचा प्रदेश जीत कर आए लोगों को घर बैठा देता था। केंद्र में , प्रदेश में ताश की तरह मंत्रिमंडल फेट देता था। अमरीका को चिढ़ा कर रूस से तेल ले लेता रहा है। अमरीका और चीन जैसे महाबलियों को पानी पिलाने वाला महाबली , इजराइल और फिलिस्तीन को एक साथ चाहने वाला मोदी , पाकिस्तान को घुटने के बल खड़ा कर कटोरा थमा देने वाले विश्व नेता को घर में ही घात मार कर लोगों ने रगड़ दिया है। कंबल ओढ़ा कर। 

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करने वाला मोदी अयोध्या में ही मात खा गया है। देश में विकास की चहुंमुखी चांदनी खिलाने वाला , गरीबों के लिए बेशुमार कल्याणकारी योजनाएं फलीभूत करने वाला मोदी अब ख़ुद बहुत ग़रीब हो गया है। इन गरीबों का ही श्राप लग गया है। काशी में हज़ारो करोड़ की विकास योजना लाने वाला मोदी ख़ुद हारते-हारते बमुश्किल बचा है। ऐसे में क़ायदे से झोला उठा कर चल देना चाहिए था। अपमान का यह घूंट पीने से बेहतर था झोला उठा कर चल देना। जाने क्यों सहयोगी दलों का विष पीने को आतुर है यह महाबली। लगता है देश सेवा और देश को दुनिया के नक्शे में नंबर वन बनाने का नशा टूटा नहीं है अभी। बहुत मुमकिन है जल्दी है टूटे। अपमान कथा अभी शायद पूरी नहीं हुई है। हो सकता है जल्दी ही पूरी हो। क्यों कि इस देश के चुनाव के चक्के को विकास के आनबान शान की बयार नहीं , जाति की धरती , आरक्षण की हवा और मुसलमान का आसमान चाहिए। 


Tuesday, 4 June 2024

जिस की पताका ऊपर फहराई

दयानंद पांडेय 


नरेंद्र मोदी की जीत को सैल्यूट कीजिए। ई वी एम की जीत को सैल्यूट कीजिए। लोकतंत्र की इस ख़ूबसूरती को भी सैल्यूट कीजिए कि लोग अपनी हार में भी जीत खोज ले रहे हैं। ख़ुशी में झूम रहे हैं। सैल्यूट कीजिए कि काशी में मोदी हारते-हारते बचे। इतना कुछ करने-कराने के बावजूद। पास ही रायबरेली में राहुल गांधी नरेंद्र मोदी से कहीं ज़्यादा मार्जिन से जीते। अमेठी में के एल शर्मा की जीत मोदी से अच्छी है। अमित शाह , शिवराज सिंह चौहान , नितिन गडकरी जैसे लोग लाखों की मार्जिन से रिकार्ड तोड़ते हुए जीते। लेकिन उन के नेता मोदी , जिन के नाम पर एन डी ए ने समूचा चुनाव लड़ा , वही अच्छी मार्जिन पाने के लिए तरस गए। 

आरक्षण भक्षण प्रेमी लोगों के आरक्षण खत्म हो जाने के भय की मार्केटिंग और साढ़े आठ हज़ार रुपए महीने की मुफ़्तख़ोरी की लालसा में लोगों ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को कुचल कर रख दिया। बंग्लादेशी और रोहिंगिया ने पश्चिम बंगाल में भाजपा को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा को कंगाल बना दिया। संदेशखाली कार्ड पिट गया। सारे अनुमान धराशाई हो गए। तो भी 2024 के इस लोकपर्व में आप भी उत्सव मनाइए और जानिए कि जीत कैसी भी हो , खंडित भी हो तो भी जीत लेकिन महत्वपूर्ण होती है। फिर भी जो आप कुछ नहीं समझ पा रहे हैं तो आप को कन्हैयालाल नंदन की यह कविता ज़रूर ध्यान में रख लेनी चाहिए। 

तुमने कहा मारो

और मैं मारने लगा 

तुम चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं हारने लगा

माना कि तुम मेरे योग और क्षेम का

भरपूर वहन करोगे

लेकिन ऐसा परलोक सुधार कर मैं क्या पाऊंगा

मैं तो तुम्हारे इस बेहूदा संसार में/ हारा हुआ ही कहलाऊंगा 

तुम्हें नहीं मालूम 

कि जब आमने सामने खड़ी कर दी जाती हैं सेनाएं 

तो योग और क्षेम नापने का तराजू 

सिर्फ़ एक होता है

कि कौन हुआ धराशायी

और कौन है 

जिस की पताका ऊपर फहराई 

योग और क्षेम के

ये पारलौकिक कवच मुझे मत पहनाओ

अगर हिम्मत है तो खुल कर सामने आओ 

और जैसे हमारी ज़िंदगी दांव पर लगी है

वैसे ही तुम भी लगाओ।

सो तमाम तकलीफ़ और मुग़ालते के बावजूद दिल थाम कर मान लीजिए। दिल कड़ा कर लीजिए। और  सारे इफ-बट के बावजूद मान लीजिए कि नरेंद्र मोदी अब तीसरी बार प्रधान मंत्री बनने जा रहे हैं। अपनी क़िस्मत के पट्टे में वह ऐसा लिखवा कर लाए हैं। अब सारी कसरत के बावजूद कोई इसे रोक नहीं सकता। पार्टी कार्यालय में आज के भाषण में मोदी ने अपनी पुरानी गारंटी वाली बातें दुहरा दी हैं। तीसरी अर्थव्यवस्था जैसी बातें उसी तेवर में दुहराईं जो चार सौ की गुहार में दुहराते थे। बड़े-बड़े काम करने का ऐलान भी किया। 

अलग बात है कि इंडिया गठबंधन के कुछ सूरमा भोपाली नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू में अपनी सत्ता की भूख को मिटाने ख़ातिर मुंगेरीलाल का हसीन सपना देखने में लग गए हैं। गुड है यह भी। पर बिना यह सोचे कि तोड़-फोड़ का यह काम उन से बढ़िया अमित शाह करने के लिए परिचित हैं। सो क़ायदे से आगे के दिनों में इंडिया गठबंधन को इस तोड़-फोड़ से सतर्क रहना चाहिए। जो कि देर-सवेर होना ही होना है। अरुणाचल और उड़ीसा में भाजपा की सरकार बनना , आंध्र में एन डी ए की सरकार का बनना लोग क्यों भूल रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी वाली भाजपा जैसी नैतिकता और शुचिता अगर कोई मोदी वाली भाजपा में तलाश कर रहा है तो उसे अपनी इस नादानी पर तरस खानी चाहिए। 

हां , राहुल गांधी को अभी चाहिए कि अभी और दूध पिएं और खेलें-कूदें। उत्तर प्रदेश में जो भी फतेह है , वह अखिलेश यादव और उन के पी डी ए की फ़तेह है। आरक्षण भक्षण प्रेमी लोगों के आरक्षण खत्म हो जाने के भय की मार्केटिंग और साढ़े आठ हज़ार रुपए महीने की मुफ़्तख़ोरी की लालसा की फ़तेह है। राहुल गांधी या इंडिया गठबंधन की नहीं। अच्छा अगर नीतीश और नायडू इंडिया गठबंधन रातोरात ज्वाइन ही कर लेते हैं तो भी बहुमत के लिए 272 के हिसाब से बहुमत का शेष आंकड़ा कहां से ले आएंगे ? बाक़ी नैतिक हार का पहाड़ा पढ़ने पर कोई टैक्स नहीं लगता। न कोई फीस लगती है। 

नैतिकता और शुचिता वैसे भी आज की राजनीति की किसी भी पाठशाला में शेष है क्या ? सब के सब अनैतिक और लुटेरे हैं।