Friday, 31 May 2024

इस एंटी मोदी स्क्वॉड के क्या कहने !

दयानंद पांडेय  


इस एंटी मोदी स्क्वॉड के क्या कहने ! यह मोदी को हरा कर ही मानेंगे। मोदी की जीत की सुनामी को तहस-नहस कर के ही मानेंगे। ठाना तो यही है। इस एंटी मोदी स्क्वॉड में राजनीतिक पार्टियों के लोग तो भर्ती हैं ही , तमाम लेखक , पत्रकार और बुद्धिजीवी भी इन के अल्सेशियन बन कर , लंगोट पहन कर झूठ के अखाड़े में कूदे पड़े हैं। एंटी मोदी स्क्वॉड के यह लोग जब देखिए तब युधिष्ठर बने रहते हैं। अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा ! का भ्रम भूजते हुए अपने फ्रस्ट्रेशन की नित नई रोटी सेंकते रहते हैं। फिर इस एंटी मोदी स्क्वॉड के अल्सेशियनों की जब देखिए , तब कांग्रेसी हड्डी या वामी हड्डी की पार्टी चलती रहती है। उदाहरण अनेक हैं। पर यहां अभी दो ही उदाहरण। पहला उदाहरण हर आदमी के खाते में पंद्रह लाख रुपए आने का है। यह 2014 का मामला है। सच यह है कि नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विदेशों में देश का काला धन इतना ज़्यादा है कि अगर वापस आ जाए तो हर किसी के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख आ जाएगा। मोदी ने कहा था , अगर वापस आ जाए तो इतना धन आ जाए कि सब के खाते में पंद्रह लाख आ जाए। यह मात्र उस काले धन का आकलन था , सब के खाते में डालने का आश्वासन नहीं। पर कान ले गए कौवे के पीछे भागने का जो यह अभ्यास है , बहुत मुश्किल से छूटता है। आज तक इस कौवे के पीछे भाग रहे हैं यह एंटी मोदी स्क्वॉड के अल्सेशियन। 

पूरे विश्वास के साथ एंटी मोदी स्क्वॉड के अल्सेशियन ले उड़े हैं इस पंद्रह लाख को। अब दस साल बीत जाने पर भी अपने खाते में पंद्रह लाख की प्रतीक्षा में विक्षिप्त हैं। जब देखिए तब पंद्रह लाख की माला जपते रहते हैं। इन दस सालों में अगर मेहनत से काम किए होते तो पंद्रह लाख तो क्या पंद्रह करोड़ भी कमा कर अपने खाते में जमा कर सकते थे। पर कोढ़ में खाज की तरह यह पंद्रह लाख की खुजली मुसलसल जारी है। तिस पर मोदी के नंबर दो अमित शाह ने मज़ा लेते हुए कह दिया कि यह पंद्रह लाख तो एक जुमला था ! अब अमित शाह के इस जुमले वाले डायलॉग को भी एंटी मोदी स्क्वॉड ने खट से कैच कर लिया। इन दस बरसों में समंदर में जाने कितनी नदियों का पानी मिल गया। मीठे से खारा हो गया पानी पर एंटी मोदी स्क्वॉड के चैंपियंस के खातों में पंद्रह लाख की मिठास नहीं आई , जो नहीं ही आनी थी। एंटी मोदी स्क्वॉड की टीम को लगता है कि इस नैरेटिव से वह मोदी की सत्ता को उखाड़ फेकेंगे। जनता को इतना मूर्ख समझना भी इन की बलिहारी है। 

दूसरा उदाहरण :

एंटी मोदी स्क्वॉड ने अब एक नया अश्वत्थामा फिर मारा है। बतर्ज पंद्रह लाख महात्मा गांधी आ गए हैं। आप वह क्लिपिंग देखिए न कभी। जिस में मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि जब गांधी फ़िल्म बनी तब दुनिया में ज़्यादा लोगों ने गांधी को जाना। क्या यह काम हम नहीं कर सकते थे ? नरेंद्र मोदी ने यह पूछा है। उन के पूछने का आशय यह है कि किसी भारतीय फ़िल्म निर्देशक ने बहुत पहले यह काम क्यों नहीं किया। किया तो आज तक नहीं है। यह तो ठीक बात है। इस में ग़लत बात क्या है। अब एंटी मोदी स्क्वॉड के खूंखार अल्सेशियन तो जैसे झपट पड़े। कि बताइए फ़िल्म नहीं बनती तो गांधी पैदा ही नहीं होते ? गांधी को लोग जानते ही नहीं ? 

एंटी मोदी स्क्वॉड का यह अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा ! का ड्रामा अब इतना बचकाना हो चला है कि बस ऐसा नैरेटिव बनाने वालों की मानसिक ख़ुराक़ बन कर रह गया है। यह लोग ख़ुद ही पाद कर ख़ुद ही हंसने का खेल खेलने में इतने शिशुवत हो गए हैं कि भारतीय मतदाता अब इन्हें बालिग़ मानने से इंकार कर इन के पक्ष में वोट नहीं डालते। लगातार दस बरस से यह लोग राहुल गांधी के हमराह बने हुए हैं। एक सॉलिड मुस्लिम वोट बैंक के बूते यह लोग कब तक देश को मारीच बन कर धोखा देते रहेंगे भला ! वह मुस्लिम वोट बैंक जिस का मिथ 2014 में ध्वस्त हो चुका है। फिर भी बच्चों वाले खेल के खोल से बाहर निकलने में इन्हें डर लगता है। ऐसे जैसे मोगली हो गए हैं। याद कीजिए एक पुराने टी वी सीरियल में मोगली नाम का बच्चा जंगल में जानवरों के साथ पला-बढ़ा। बाद में जब उसे मनुष्यों के साथ रहना पड़ा तो उस को मुश्किल हो गया। वह जंगल के अपने साथी जानवरों को मिस करने लगा। जंगल-जंगल बात चली है पता चला है / चड्ढी पहन कर फूल खिला है गाना ख़ूब मशहूर हुआ था। तो जाने कब राहुल गांधी इस गाने से बाहर निकलेंगे। राहुल तो राहुल , समूचा विपक्ष इसी त्रासदी से दो-चार है। चाहिए कि तमाम फोटो सेशन के तलबगार राहुल गांधी चरखे पर सूत कातना शुरू करें। इस से उन में धैर्य धारण करने का सलीक़ा आएगा। सत्य और अहिंसा का भाव भी शायद आ जाए। मोटर साइकिल की मरम्मत , बढ़ई का काम , धान रोपने जैसे काम के फ़ोटो सेशन से बेहतर होगा। गांधी को समझने का रास्ता मिलेगा। एंटी मोदी स्क्वॉड का फर्जी मूवमेंट चलने से भी फुरसत मिले शायद। 

यह सही है कि 1982 में ब्रिटिश डायरेक्टर रिचर्ड एटनबरो निर्देशित जब गांधी फ़िल्म आई और बेन किंग्सले ने गांधी की भूमिका में गांधी का अनूठा अभिनय परोसा तो दुनिया ने गांधी के बारे में ठीक से जाना। गांधी का डंका पहले से बजता था , और ज़्यादा बजने लगा। गांधी को तो लोग जानते थे। पर गांधी का नाम , उन का सत्य , उन की अहिंसा जैसी बातें , उन के जीवन के बारे में , उन के संघर्ष के बारे में लोग ठीक से नहीं जानते थे। इतना नहीं जानते थे। न जानने वाले अभी भी ठीक से नहीं जानते। गांधी नामधारी सोनिया , राहुल और प्रियंका तो अभी भी गांधी के बारे में ठीक से नहीं जानते। कभी कोई इन लोगों से गांधी के बारे में बात कर के देख तो ले। गांधी की खादी तक तो अब यह लोग पहनते नहीं। गांधी की टोपी भी नहीं जानते। गांधी का सत्य और अहिंसा का पाठ भी इस गांधी परिवार से कोसो दूर है। गांधी का सत्य और अहिंसा जानते तो रोज इतना झूठ न बोलते। हार-हार जाते पर लोगों को बरगलाते नहीं। जातीय जनगणना की नफ़रती बात नहीं करते। हां , दुर्भाग्य से राहुल गांधी और उन की आज की कांग्रेस मुस्लिम वोट ख़ातिर गांधी का मुस्लिम तुष्टिकरण ज़रूर जानते हैं। दिन-रात इसे ओढ़ते-बिछाते हैं। 

अलग बात है कि गुजराती नरेंद्र मोदी भी गुजराती महात्मा गांधी के विचारों को ओढ़ते-बिछाते नहीं हैं। गांधी के विचार और सिद्धांतों से कोसों दूर रहते हैं। बस जब तब गांधी का नाम लेते रहते हैं। बस। गांधी के सत्य और अहिंसा का पाठ अब किताबों और कुछ गांधीवादी विचारकों के विमर्श तक सीमित रह गया है। महात्मा गांधी मार्ग भी अब हर जगह एम जी मार्ग हो गया है। दिल्ली में गांधी समाधि अरविंद केजरीवाल जैसे भ्रष्ट लोगों की आड़ बन कर रह गया है। कुछ विदेशी मेहमानों द्वारा औपचारिक तर्पण और कुछ संस्थानों के नामकरण में ही शेष रह गया है , गांधी नाम। राजनीति में जहां सब से ज़्यादा ज़रूरत है गांधी की , वहां मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी का अवशेष भी अब समाप्त हो चला है। गांधी नाम का खंडहर भी अब पहचान में नहीं आता। बहुत नज़दीक से भी नहीं। नेहरू जो गांधी के सब से प्रिय रहे , उन नेहरू ने ही गांधी की सब से ज़्यादा उपेक्षा की। प्रधान मंत्री बनते ही गांधी की सभी नीतियों को नाबदान में डाल दिया। स्वदेशी , अहिंसा , सत्य , कुटीर उद्योग आदि सब को तिलांजलि दे दी। वामपंथियों ने तो गांधी को सर्वदा दुश्मन ही माना। उन की सशस्त्र क्रांति के आड़े आ जाती थी गांधी की अहिंसा और सत्य की बात। गांधी को मानते तो नक्सल मूवमेंट होता ही नहीं कभी। मुसलमान भी गांधी को मानते होते तो कश्मीर को जहन्नुम न बनाते। आतंक की फसल देश भर में नहीं काटते। पश्चिम बंगाल और केरल में हिंसा का तांडव नहीं करते। 

गांधी जब गोलमेज कांफ्रेंस में लंदन गए तो जार्ज पंचम ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया। गांधी एक धोती पहने और उसी को लपेटे , मामूली चप्पल पहने पहुंचे। सूटेड-बूटेड सर्दी में कांप रहा जार्ज पंचम यह देख कर चकित हुआ। गांधी से पूछा , आप के कपड़े कहां हैं ? गांधी ने छूटते ही कहा , मेरे और मेरे देशवासियों के कपड़े आप ने लूट लिए हैं। ठीक इसी तरह कांग्रेस ने अपने लंबे कार्यकाल में देश को बुरी तरह लूटा है। कंगाल बनाया है। 

आप सभी को याद होगा कि योगी आदित्यनाथ जब 2017 में मुख्यमंत्री बने थे तब योगी ने उत्तर प्रदेश में एंटी रोमियो स्क्वॉड बनाया था। अखिलेश यादव के राज में लव जेहाद की जैसे सुनामी आई हुई थी। तमाम हिंदू लड़कियों को मुस्लिम लड़के हिंदू बन कर फंसाते थे। प्यार का ड्रामा करते थे। फिर धर्म परिवर्तन करवा कर निकाह पढ़वाते थे। फिर इन लड़कियों को बेच भी देते थे। इस काम में इन लड़कों को अच्छी खासी फंडिंग मिलती थी। तो ऐसी लड़कियों को बचाने के लिए योगी ने एंटी रोमियो स्क्वॉड बनाया। काफी मुस्लिम लड़के तब पकड़े गए थे। लगातार पकड़े गए। अंतत: उत्तर प्रदेश में लव जिहाद पर भारी अंकुश लग गया। एंटी रोमियो स्क्वॉड से भयभीत ऐसे अराजक लोगों का खात्मा हो गया। लव जिहाद के मामले अब इक्का-दुक्का ही सामने आते हैं। अखिलेश यादव राज के समय की लव जिहाद की सुनामी लगभग चली गई। 

तो इसी तर्ज़ पर मोदी की जीत की सुनामी को रोकने के लिए , मोदी राज को समाप्त करने के लिए एंटी मोदी स्क्वॉड का गठन हुआ है कोई दस सालों से। पहले इस का नाम यू पी ए था , अब इंडिया है। इस एंटी मोदी स्क्वॉड में कांग्रेसी , वामपंथी , सपाई , राजद टाइप के तमाम सेक्यूलर रसगुल्ले एक साथ सक्रिय हैं। सोशल मीडिया पर माहौल बनाने के लिए एन जी ओ धारी सेक्यूलर लेखक , पत्रकार बुद्धिजीवी शामिल हैं। ख़ास माइंड सेट के तहत एक कहता है हुआं ! फिर सुर में सुर मिला कर सभी कहने लगते हैं , हुआं-हुआं ! कुछ भौ-भौ वाले भी इन के साथ सुर में सुर मिलाने लगते हैं। अपने-अपने इलाके में भले एक दूसरे को न आने दें पर अपने-अपने इलाके से सामूहिक भौ-भौ से माहौल बना कर इलाक़ाई कलक्टर तो बन ही जाते हैं। इन इलाक़ाई कलक्टरों का ट्रैक्टर जब चल पड़ता है तो माहौल तो बन ही जाता है। उन को लगता है कि मोदी अब गया कि तब गया। एंटी मोदी स्क्वॉड की इतनी सी ही सही पर उन की राय में यही भारी सफलता है। वह नहीं समझ पाते कि इस तरह मुसलसल ऐसा ख़याली पुलाव पकाना एक गंभीर बीमारी है। बहुत ख़तरनाक़ बीमारी। झूठ के प्राचीर पर सत्ता का क़िला नहीं बनता। भाड़े के यू ट्यूबर माहौल तो बना सकते हैं , उसे वोट में कभी कनवर्ट नहीं कर सकते। 

हां , एंटी मोदी स्क्वॉड की एक और तकलीफ़ अभी सामने आई है चुनाव प्रचार ख़त्म होने के बाद कन्याकुमारी में विवेकानंद मेमोरियल में मोदी के ध्यान की। एंटी मोदी स्क्वॉड के कबीले के सारे सूबेदार एक सुर में खड़े हुए हैं कि मोदी के इस ध्यान सत्र को टी वी पर हरगिज न दिखाया जाए ! टी वी वाले दिखा भी नहीं रहे हैं। बस फ़ोटो आई है। पर एक तानाशाह के साथ ऐसी तानाशाही का सपना गुड बात तो नहीं है। क्या पता कोई याचिका ही न दायर हो जाए सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत। क्यों कि जो अभिषेक मनु सिंघवी अपने मुख मैथुन सुख का वीडियो यू ट्यूब से हटवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को कनविंस कर सकते हैं , हटवा लेते हैं , वह या कोई और सही इतना तो कर ही सकता है। लेकिन मोदी ने तो 2019 में भी ध्यान लगाया था। मीडिया ने उसे भी दिखाया था। तो क्या उस एक ध्यान से भाजपा का प्रचार हो जाता है ? मोदी भारी अंतर से जीत जाता है। मोदी मैजिक चल जाता है। 

अगर ऐसा है तो क्या बात है ! 

फिर तो यह देश भर में सड़कों का संजाल , रेल और रेलवे स्टेशनों का कायाकल्प , नदी के बीच से मेट्रो , समुद्र पर सेतु , सरहदों तक सड़क , टनल , सरहद पर गांव का फिर से बसना , बेशुमार हवाई अड्डों आदि का बनना , गरीबों के लिए कल्याणकारी योजना , पक्का मकान , शौचालय , गैस , नल से जल इत्यादि चौतरफा विकास की चांदनी की कोई ज़रूरत ही नहीं। चांद पर भी जाने की क्या ज़रूरत। इतने रोड शो , इतनी रैली , इतने इंटरव्यू , रात-दिन इतनी मेहनत की ज़रूरत भी क्या है। शराब घोटाला करो। संदेशखाली करो। शिक्षक भर्ती घोटाला करो। जगह-जगह नोटों का पहाड़ खड़ा करो। हेलीकाप्टर में मछली खाने का वीडियो बनाओ , मुस्लिम वोटरों को भयभीत करो , जातीय जनगणना का जहर घोल कर ध्यान करो और वोट लो।  गज़ब है एंटी मोदी स्क्वॉड की यह हुआं-हुआं और भौं-भौं ! 

याद कीजिए नोटबंदी , जी एस टी , सर्जिकल स्ट्राइक , एयर स्ट्राइक , अभिनंदन , राफेल , तीन तलाक़ , धारा 370 , अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा। जातीय जनगणना , इलेक्टोरल ब्रांड का तराना। कोरोना वैक्सीन का फ़साना। इन सब मामलों में एंटी मोदी स्क्वॉड का सुर एक भी सूत जो इधर-उधर हुआ हो। एंटी मोदी स्क्वॉड के सभी लोग एक सुर में हुआं-हुआं और भौं-भौं का आलाप जो लिए हुए हैं , इन का जो आरोह-अवरोह है , वह अद्भुत है। बड़े-बड़े बड़े गुलाम अली खां , बिस्मिल्ला ख़ान , भीमसेन जोशी , किशोरी अमोनकर फेल। नो तथ्य , नो तर्क पर माहौल बिलकुल टनाटन ! बार-बार एक अश्वत्थामा की आड़ में एंटी मोदी स्क्वॉड के इस अपने ही ईगो मसाज की भी कोई हद होती है क्या ? 

होती हो तो प्लीज़ बताइए भी न ! 

बात फिर भी शेष रह जाती है : अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा !




Monday, 27 May 2024

संविधान तो बदलेगा और उस में सरकार जेल से नहीं चलाने की बात लिखी जाएगी

दयानंद पांडेय 

बहुत हल्ला है इंडिया गठबंधन द्वारा संविधान बदल देने का। कि मोदी सरकार आएगी तो संविधान बदल देगी। आरक्षण हटा देगी। आदि-इत्यादि। तो सच तो यह है कि मोदी क्या किसी सरकार में यह हिम्मत नहीं है कि आरक्षण को हटाए। अगर ऐसा हो गया तो आरक्षण की बैसाखी थामे लोग देश में आग लगा देंगे। और यह आग संभाले नहीं संभलेगी। फिर यह आरक्षण वैसे भी कोढ़ में खाज बराबर ही है। सरकारी नौकरी है ही कितनी ? पढ़ने के लिए आरक्षण की मार से बचने के लिए बच्चे विदेश चले जा रहे हैं। एजूकेशन लोन मिल ही जा रहा है। पढ़-लिख कर बच्चे वहीं नौकरी पा कर सेटल्ड हो जा रहे हैं। बड़े-बड़े पैकेज पर। देश की प्रतिभाएं पलायन कर रही हैं तो आरक्षण की बला से। वैसे भी ज़्यादातर नौकरियां और पैसा अब प्राइवेट सेक्टर में ही है। मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल में एक बार प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण का पासा फेंका था। सारा कारपोरेट सेक्टर एक साथ आंख दिखा कर खड़ा हो गया था। मनमोहन सिंह ख़ामोश हो गए थे। समझ गए थे कि अभी प्रतिभा देश छोड़ रही है। प्रतिभा पलायन हो रहा है। ब्रेन ड्रेन। कहीं यह बड़े-बड़े उद्योगपति भी पलायन कर गए तो देश कंगाल हो जाएगा। मनमोहन सिंह भी ओ बी सी थे। मोदी भी ओ बी सी हैं। देवगौड़ा भी ओ बी सी। तीन-तीन प्रधान मंत्री ओ बी सी होने के बाद भी आरक्षण की आग को ख़त्म नहीं कर पाए। वह आग जो कभी राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह लगा गए। तो अब आगे भी किस की हिम्मत है भला जो इसे ख़त्म करने की सोचे भी। 

पर हां , मोदी सरकार जो भारी बहुमत से आ रही है , संविधान तो बदलेगी। और कस के बदलेगी। समान नागरिक संहिता , जनसंख्या नियंत्रण , एन आर सी जैसी कई बातें हैं। इन सब में थोड़ा समय भी लगेगा। लेकिन अभी-अभी बिलकुल अभी तो पहला संविधान संशोधन यह होगा कि जेल जाने वाले मुख्य मंत्रियों या मंत्रियों को जेल से काम करने की इजाजत नहीं होगी। वर्क फ्रॉम जेल पर विराम लगेगा। जेल जाने पर इस्तीफ़ा देना बाध्यकारी होगा। इस लिए भी कि इस वर्ष और आगे के वर्षों में ऐसे बहुत से लोगों को जेल जाना ही जाना है। ग़ौरतलब है कि पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया , रंजन गोगोई सिर्फ़ शोभा या शुकराना के एवज में राज्य सभा में नहीं उपस्थित किए गए हैं। इन सब मुद्दों पर वह चुपचाप काम कर रहे हैं। बड़ी ख़ामोशी और गंभीरता से। परिणाम बहुत ही शुभ और हैरतंगेज आने वाले हैं। 

एक समय था कि एक रेल दुर्घटना के कारण तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफ़ा दे दिया था। 1956 में महबूब नगर रेल हादसे में 112 लोगों की मौत हुई थी। इस पर शास्त्री ने इस्तीफा दे दिया। इसे तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकार नहीं किया। तीन महीने बाद ही अरियालूर रेल दुर्घटना में 114 लोग मारे गए। लालबहादुर शास्त्री ने  फिर इस्तीफा दे दिया। नेहरू ने शास्त्री जी का इस्तीफा स्वीकारते हुए संसद में कहा कि वह इस्तीफा इसलिए स्वीकार कर रहे हैं कि यह एक नजीर बने। इसलिए नहीं कि हादसे के लिए किसी भी रूप में शास्त्री जिम्मेदार हैं। अलग बात है कि तब तीस से अधिक सांसदों ने नेहरू से अपील की थी कि शास्त्री का इस्तीफ़ा न स्वीकार किया जाए। बाद में यही लालबहादुर शास्त्री नेहरू के निधन के बाद देश के प्रधान मंत्री बने।

तब नैतिकता और शुचिता की राजनीति थी। बाद के समय में नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण मामले में 12 जून, 1975 को अपने फैसले में इंदिरा गांधी के चुनाव को अयोग्य करार दिया था। 12 जून, 1975 को इंदिरा गांधी की अयोग्यता का फ़ैसला आया था। जस्टिस सिन्हा ने अगले 6 सालों तक इंदिरा गांधी को संसद और राज्य विधानमंडल के चुनावों को लड़ने पर रोक लगा दी थी  तो क़ायदे से इंदिरा गांधी को प्रधान मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था। लेकिन तब सारी नैतिकता और शुचिता बंगाल की खाड़ी में डुबो कर इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल लगा दिया। देश भर में सभी विरोधियों को जेल में ठूंस दिया। यह लंबी कहानी है। फिर भी राजनीति में नैतिकता और शुचिता के अवशेष शेष रहे हैं। पर अरविंद केजरीवाल की राजनीति ने इन अवशेषों को भी नेस्तनाबूद कर दिया है। निरंतर करते जा रहे हैं। ख़ैर !

तो यह हेकड़ी अब और नहीं चलेगी कि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। कि संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि जेल से सरकार नहीं चलाई जा सकती। तो पहली व्यवस्था तो यही होगी और कि डंके की चोट पर होगी। संविधान में स्पष्ट रूप से लिखा जाएगा कि जेल से सरकार नहीं चलाई जा सकती। न सरकार , न प्रशासन। एक और क़ानून भी साथ ही साथ बनेगा जिस की मोदी चर्चा भी कर रहे हैं कि जिन लोगों के पास से भ्रष्टाचार का धन या ज़मीन , संपत्ति भ्रष्टाचार के तहत मिलेगी , उसे संबंधित व्यक्ति को वापस भी की जाएगी। जिस से कि धन या ज़मीन ली गई है। जैसे पश्चिम बंगाल का शिक्षक भर्ती घोटाला। बिहार का ज़मीन के बदले रेल की नौकरी। और केरल का कोऑपरेटिव बैंक घोटाला। इन मामलों का उल्लेख भी किया है , मोदी ने। 

आप को क्या लगता है यह सोनिया गांधी , राहुल , रावर्ट वाड्रा आदि ज़मानत का अमर फल खा कर आजीवन बचे रहेंगे ? अब आने वाले दिनों में या तो अदालतों से क्लीन चिट पा जाएंगे या दोषी साबित हो कर जेल जाएंगे। ज़मानत की अंत्याक्षरी ज़्यादा दिनों तक नहीं चलने वाली। और भी ऐसे कई भ्रष्टाचारी , ज़मानतधारी नेताओं के साथ भी यही सुलूक़ होगा। वह चाहे किसी पार्टी के हों। भाजपा के ही क्यों न हों। अदालतें फास्ट काम करें , ऐसे मामलों पर , ऐसा भी कुछ क़ानून बन सकता है। भ्रष्टाचार पर केंद्र सरकार की ज़ीरो टालरेंस की नीति है ही , बस भ्रष्टाचार वाली संपत्ति की वसूली के दिन आए समझिए। जगह-जगह छापे जैसे हो रहे हैं , आगे और बढ़ेंगे। 2013 - 2014 में अच्छे दिन आने वाले हैं वाला नारा याद कीजिए। और यह सब बिना अदालतों को सुधारे संभव नहीं है। पैसा ले कर , प्रभाव में आ कर अदालतें कैसे खुदा बन कर क्या से क्या कर जाती हैं , सब के सामने है। तो अदालतों के , ख़ास कर सुप्रीम कोर्ट के कुछ मामलों में हाथ काटने की भी क़वायद संभव है। जैसे कि अभी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप समाप्त किया गया है। आहिस्ता-आहिस्ता कॉलेजियम सिस्टम का कलेजा भी चीरा जा सकता है। न्याय लक्ष्मी की दासी बन कर न रहे , इस का इंतज़ाम अब बहुत ज़रूरी हो चला है। लक्ष्मी से संचालित होने वाली न्याय व्यवस्था पर लगाम बहुत ज़रूरी हो चला है। 

कुछ और क़ानूनों में एकरूपता लाए जाने की क़वायद हो सकती है। उदाहरण के लिए सुप्रीम कोर्ट आए दिन जिस तरह न्यायिक अराजकता की मिसाल पेश करने के लिए अभ्यस्त हो गई है। हो सकता है , उस पर भी लगाम लगाने के लिए कोई क़ानून बने। न्यायिक सक्रियता और उस में समाई अराजकता की अनेक मिसालें हैं। मसलन आतंकियों के लिए आधी रात अदालत खोलने की क़वायद लोग भूल गए हैं क्या ? सुप्रीम कोर्ट में राजनीतिज्ञ लोगों की , बड़े-बड़े उद्योगपतियों , व्यापारियों और अपराधियों की जिस तरह खड़े-खड़े ज़मानत हो जाती है , राहत मिल जाती है , सामान्य लोगों , साधारण और ग़रीब आदमी को ऐसी ज़मानत और राहत क्यों नहीं मिलती। ताज़ा मिसाल है , अरविंद केजरीवाल को मिली अंतरिम ज़मानत। इस बाबत भी कोई क़ानून बनाने की तरफ संसद बढ़ सकती है। आप देखिए कि पी एम एल एक्ट में ही अरविंद केजरीवाल भी ग़िरफ़्तार हुए हैं , हेमंत सोरेन भी। केजरीवाल को अगर अंतरिम ज़मानत दी सुप्रीम कोर्ट ने तो आख़िर किस बिना पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ज़मानत देने से इंकार कर दिया ? वह एक शेर याद आता है : 

जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते,

सज़ा ना दे के अदालत बिगाड़ देती है। 

तो भ्रष्टाचार को ले कर नरेंद्र मोदी की सरकार बहुत सख़्त होने वाली है। बहुत सख़्त क़ानून बनाने वाली है। ताकि भ्रष्टाचार की नाव में क़दम रखते समय आदमी सौ बार कांप-कांप जाए। भ्रष्टाचार देश का सब से बड़ा दीमक है। इस दीमक को समूल नष्ट किए बिना देश और समाज किसी सूरत तरक़्क़ी नहीं कर सकता। नज़ीर के तौर पर आप उत्तर प्रदेश में योगी सरकार को देख लीजिए। योगी राज में न सिर्फ़ माफिया मिट्टी में मिल चुके हैं , उन की अरबों रुपए की संपत्तियां भी गरीबों के हाथ में जा रही हैं। उन की कब्जाई ज़मीनों को सरकार ज़ब्त कर रही है और गरीबों के लिए आवास बना कर उन्हें गरीबों को दे रही है। पूरी निष्पक्षता के साथ। याद कीजिए एक समय कुंडा के गुंडा राजा भैया की कई संपत्तियां मायावती सरकार ने ज़ब्त की थीं। मुलायम सरकार आई तो सब राजा भैया को वापस मिल गईं। भाजपा भी आंख मूंदे रही। बल्कि मदद करती रही भाजपा भी। तो क्या फ़ायदा हुआ ? ऐसे अनेक मामले हैं। 

आप गौर कीजिए कि उत्तर प्रदेश में एक समय हर साल कुछ नए माफ़िया पैदा हो जाते थे। आतंकियों से कहीं ज़्यादा आतंक इन माफियाओं का हुआ करता था। किसी ठेके के लिए टेंडर होता था , टेंडर खुलते ही या खुलने के पहले भी गोली , बंदूक़ , हत्या का मंज़र आम था। जाने कितने माफिया , जाने कितने सिंडिकेट , जाने कितनी हत्या। कोई हिसाब ही नहीं था। माफ़िया खुल्ल्मखुल्ला ए के सैतालिस लिए घूमते थे। और तो और मुख़्तार अंसारी जैसे हत्यारे लखनऊ की जेल से थोड़ी देर के लिए निकल कर उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक से मिलने उन के आफिस पहुंच जाते थे। कभी कोई तबादला , कभी कोई और काम करवाने के लिए। जेल से ही फोन भी आम था। ठेका , हत्या जैसे शग़ल था उस का। पुलिस महानिदेशक मतलब प्रदेश का सब से बड़ा पुलिस अफ़सर। लखनऊ जेल में वह ताज़ी मछली खाने के लिए तालाब खुदवा लेता था। गाज़ीपुर जेल में जब वह था तब गाज़ीपुर के डी एम , एस पी उस के साथ बैडमिंटन खेलने जाते थे। समाजवादी बयार थी यह। 

याद कीजिए जेल में रहते हुए ही मुख़्तार ने फ़ोन पर ही विधायक कृष्णानंद राय की हत्या की न सिर्फ़ प्लानिंग की बल्कि उस का आंखों देखा हाल भी सुनाता रहा था। यह सब आन रिकार्ड है। पुलिस अफसरों , जेल अफसरों का तबादला , हत्या आदि उस के लिए सिगरेट की राख झाड़ने जैसा ही था। नौकरी भी खा जाता था। कई उदाहरण हैं। अतीक़ अहमद के भी एक से एक खूंखार किस्से हैं। अतीक़ और मुख़्तार जैसे अपराधी मुलायम सिंह जैसे धरती पुत्र को डिक्टेट करते थे। डी पी यादव जैसे लोग तो मंत्री भी बने। जैसे कभी बिहार में शहाबुद्दीन और महतो जैसे अपराधी लालू यादव को डिक्टेट करते थे , फोन पर , जेल से ही। याद कीजिए अटल बिहारी वाजपेयी ने जब स्वर्णिम चतुर्भुज योजना शुरू की थी। दिल्ली, मुम्बई, चेन्नै, कोलकाता, अहमदाबाद, बेंगलुरु, भुवनेश्वर, जयपुर, कानपुर, पुणे, सूरत, गुंटुर, विजयवाड़ा, विशाखापत्तनम को इस के जरिए जोड़ना था। तब इस के काम में लगे इंडियन इंजीनियरिंग सेवा के इंजीनियर सत्येंद्र दुबे की बिहार के गया में ठेकेदारी के चक्कर में हत्या कर दी गई थी। उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग निर्माण में भ्रष्टाचार को उजागर किया था। 27 नवंबर , 2003 को एक माफिया ने उनकी हत्या कर दी थी। वे कोडरमा में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में परियोजना निदेशक थे। अटल जी ने सत्येंद्र दुबे की हत्या को बड़ी गंभीरता से लिया। उस ठेकेदार को गिरफ़्तार कर जेल भिजवाया। 

पर अब ? 

आज की तारीख में किसी ठेकेदार या माफिया की हिम्मत नहीं है कि देश भर में बन रहे सड़कों के संजाल में , भ्रष्टाचार में कूदने की सोच भी सके। एक पैसे के भ्रष्टाचार का कोई आरोप भी नहीं। इस सड़क क्रांति के नायक नितिन गडकरी तो बारंबार चुनौती भी देते रहते हैं कि कोई मुझ पर एक चाय पिलाने की रिश्वत भी देने की नहीं सोच सकता। 

उत्तर प्रदेश में भी नए माफ़िया पैदा होना तो छोड़िए पुराने माफ़िया भी जाने किस चूहे के बिल में समा गए हैं। एक से एक दंगाई तौक़ीर रज़ा की नफ़रती आवाज़ उलटे बांस बरेली हो गई है। 2024 का पूरा चुनाव बीतने को है , मौलाना तौक़ीर रज़ा की एक तक़रीर भी नहीं आई है। जो कि हर चुनाव में होती थी। नफ़रत में डूबी हुई। तो जैसे ऐसे-ऐसे लोगों की सिटी-पिट्टी गुम हुई है , भ्रष्टाचारियों की भी गुम होगी। आप सोचिए कि केंद्र सरकार द्वारा देश में विकास के चौतरफा काम हो रहे हैं। चांद से ले कर कश्मीर तक विकास की जगमग रौशनी सब के सामने है। गरीबों के लिए लोक कल्याणकारी योजनाएं सिर चढ़ कर बोल रही हैं। कोरोना काल में लोग कोरोना से भले मरे पर भूख से कोई एक नहीं मरा। वैक्सीन , आक्सीजन आदि की व्यवस्थाएं चटपट हुईं। दुनिया में कहीं भी कोई भारतीय फंसे , उसे सकुशल निकाल कर लाना , आसान नहीं होता। पर युद्ध क्षेत्र हो या कोई अन्य आपदा। सभी सकुशल वापस होते हैं। बिना किसी भेदभाव के। 

सड़क , रेल , हवाई अड्डा , मेडिकल कालेज और जाने क्या-क्या ! केंद्र सरकार द्वारा अरबों-खरबों रुपए के ज़्यादातर काम टेंडर के मार्फत ठेके पर ही हो रहे हैं। कहीं भ्रष्टाचार , कहीं गोली-बंदूक़ , हत्या , अपहरण क्यों नहीं हो रहा ? दूसरी तरफ वहीँ दिल्ली में एक से एक शीश महल घोटाला , शराब घोटाला और न जाने कौन-कौन से घोटाले सामने आ रहे हैं। प्रदूषित यमुना ही नहीं है , बहुत सारा प्रदूषण दिल्ली प्रदेश सरकार के सिस्टम में समा गया है। मुख्य मंत्री आवास में उन्हीं की पार्टी की एम पी स्वाति मालीवाल , उन्हीं के पी ए बिभव कुमार से पिट जाती है। पूरी पार्टी बिभव कुमार के पीछे खड़ी हो जाती है। पूरे कुतर्क के साथ। राहुल गांधी , अरविंद केजरीवाल , अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव टाइप के लोगों को अपने कमीनेपन और धूर्तई पर बहुत नाज़ है। इन लोगों को बड़ी ख़ुशफ़हमी है कि इन से बड़ा कमीना और धूर्त कोई और नहीं। यह लोग नहीं जानते कि नरेंद्र मोदी इन सब से बड़ा कमीना और धूर्त है। बतर्ज़ लोहा , लोहे को काटता है। दिल थाम कर बैठिए। मोदी का तीसरा कार्यकाल शुरू होते ही पंजाब की मान सरकार भी आप को भ्रष्टाचार और अराजकता के मामले में अरविंद केजरीवाल सरकार के कान काटने वाले अनेक प्रसंग ले कर बस उपस्थित ही होना चाहती है। पश्चिम बंगाल में भी भ्रष्टाचार के नित नए अंदाज़ खुलेंगे। बिहार के पुराने गुल भी गुलगुला बन कर छनेंगे। 

ऐसे अनेक मामले हैं। अनेक नए काम हैं। नरेंद्र मोदी कहते ही रहते हैं कि यह दस साल तो ट्रेलर था। अब बहुत बड़े-बड़े काम होंगे। तय मानिए मोदी यह सच ही कहते हैं। विकास की यह गंगा मोदी ही बहा सकते हैं। भागीरथी अपनी जनता के लिए बड़ी तपस्या कर गंगा को लाए थे धरती पर। भागीरथी की तरह ही मोदी विकास की गंगा लाए हैं भारत में। मेरा तो स्पष्ट मानना है कि नरेंद्र मोदी को 2014 की जगह अगर और दस बरस पहले ही प्रधान मंत्री पद देश की जनता ने सौंप दिया होता तो देश की यह तस्वीर और चमकदार , और संपन्न , और विकसित दिखती। अभी भी बहुत कुछ नहीं बिगड़ा है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अगर देश और दस बरस और रह गया तो जैसा कि लगता भी है , देश विकसित देशों में अवश्य शुमार हो जाएगा। 2047 के लक्ष्य से पहले ही। बाक़ी राफेल से लगायत इलेक्टोरल बांड और वैक्सीन आदि-इत्यादि का गाना गाने वालों पर तरस खाइए। कांग्रेस और वामपंथियों की गोद में बैठ कर गोदी मीडिया का भजन गाने वाले छुद्र जनों के गायन का भी मज़ा लीजिए। उन को भी जीने-खाने दीजिए। उन का यह लोकतांत्रिक अधिकार भी , उन से मत छीनिए। आनंद लीजिए। निर्मल आनंद ! 

क्यों कि जो आदमी कश्मीर का कोढ़ 370 हटा सकता है , कश्मीर को फिर से ज़न्नत बना सकता है। देश को आतंक मुक्त बना सकता है। अयोध्या में सकुशल राम मंदिर बनवा सकता है। विकास की चांदनी में देश को नहला सकता है , वह कुछ भी कर सकता है। बस महंगाई , भ्रष्टाचार और विकराल बेरोजगारी के उन्मूलन का इंतज़ार है। एक समय राजनीतिक पार्टियों का नारा होता था हर हाथ को काम , हर खेत को पानी। हर खेत को पानी तो सुलभ हो गया है। हर हाथ को काम शेष है। यह एक बड़ी चुनौती है। इस से निपटे बिना देश विकसित देश की पंक्ति में कभी खड़ा नहीं हो सकता। 

Sunday, 19 May 2024

भ्रष्ट नेता और दल्ले वकीलों में राज्य सभा की जुगलबंदी

दयानंद पांडेय 

भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की जैसे ख़ुराक़ बन गई है बड़े और दल्ले वकीलों को राज्य सभा में भेजना। इस लिए भी कि खग जाने खग ही की भाषा। अपराधी राजनेताओं ख़ास कर भ्रष्टाचार में चौतरफा घिरे राजनीतिज्ञों की कमज़ोरी रही है कि किसी न किसी बड़े वकील की शरण में रहने का। भारी फीस के अलावा गुरुदक्षिणा में राज्य सभा सदस्यता से नवाजने का। सोचिए कि आधा घंटा के लिए पचास लाख से एक करोड़ रुपए तक की फीस है , ऐसे वकीलों की। जाहिर है जजों का हिस्सा अलग से देना होता है। जजों और मुअक्किलों के बीच यह वकील ही दलाल बनते हैं। तभी तो आधी रात भी यह सुप्रीम कोर्ट खुलवा लेने की क्षमता रखते हैं। भले ही वह किसी आतंकी का ही मामला क्यों न हो। अभी तुरंत-तुरंत का मामला देख लें। अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन दोनों ही को ई डी ने एक ही एक्ट पी एम एल ए में गिरफ्तार किया है। चुनाव प्रचार के लिए अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत दे दी है। ठीक इसी ज़मानत के बाद , इसी आधार पर हेमंत सोरेन भी सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मांगने पहुंचे। पर उन्हें ज़मानत देने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया। 

क्यों ?

इसलिए कि अभिषेक मनु सिंघवी उन के वकील नहीं थे। या कहिए कि हेमंत सोरेन का वकील अभिषेक मनु सिंघवी की तरह सुप्रीम कोर्ट में सेटिंग नहीं कर पाया। 

याद कीजिए कि मायावती जब गले तक भ्रष्टाचार में धंस गईं तो उन्हों ने सतीशचंद्र मिश्रा को पकड़ा। सतीश मिश्रा ने जैसे अघोषित ठेका ले लिया कि वह किसी सूरत मायावती को जेल नहीं जाने देंगे। मायावती ने बहुत पहले सतीश चंद्र मिश्रा को न सिर्फ़ राज्य सभा भेजा , लगातार भेजती रहीं। पार्टी में भी सतीश मिश्रा को ससम्मान रखा हुआ है। जाने कितने लोग आए और गए पर सतीश मिश्रा को कोई सूत भर भी नहीं हिला सका। आज तक सतीश मिश्रा और मायावती की बांडिंग बनी हुई है। इन दोनों के फेवीकोल में फ़र्क़ नहीं पड़ा। मायावती के ही रास्ते चलते हुए लालू प्रसाद यादव ने राम जेठमलानी को राज्य सभा में अपनी पार्टी से भेजा। पर जेठमलानी लालू को जेल जाने से नहीं बचा सके। फिर जेठमलानी दिवंगत हो गए। अब तो लालू सज़ायाफ्ता हैं। जेल आते-जाते रहते हैं। स्वास्थ्य के आधार पर पेरोल और ज़मानत का खेल खेलते रहते हैं। 

मुलायम सिंह यादव ने भी जेल जाने से बचने के लिए वर्तमान में भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया के पिता वीरेंद्र भाटिया को राज्य सभा में भेजा था। वीरेंद्र भाटिया ने भी मुलायम को जेल जाने से बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जेल जाने से बचने के लिए मुलायम सिर्फ़ वकील के भरोसे ही नहीं रहे। मुलायम पहले कांग्रेस के आगे फिर भाजपा के आगे भी दंडवत रहे मुलायम। अपनी ज़ुबान पर भी लगाम लगाए रखा। जब कि लालू की ज़ुबान मुसलसल बेलगाम रही है। जैसे कि इन दिनों अरविंद केजरीवाल की ज़ुबान मुसलसल बेलगाम है। अटल जी एक समय कहा करते थे , चुप रहना भी एक कला है। जो लालू या केजरीवाल जैसे लोग नहीं जानते और भुगत जाते हैं। ख़ैर , अब अखिलेश यादव ने भी पुराने कांग्रेसी कपिल सिब्बल को सपा की तरफ से राज्य सभा में बैठा रखा है ताकि जेल की नौबत न आए। जानने वाले जानते हैं कि कपिल सिब्बल वकालत कम , अपनी दलाली के लिए कुख्यात रहे हैं। अभी-अभी वह सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए हैं। राम मंदिर मामले को अपनी दलाली और कुतर्क के मार्फ़त ही सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल लटकाए रखने के लिए परिचित हैं। 

इसी तरह पवन खेड़ा जैसों अराजक को खड़े-खड़े अभिषेक मनु सिंघवी ने एफ आई आर होने के बाद कुल दो घंटे में ही सीधे सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत दिलवा दिया। कांग्रेस में चिदंबरम , सलमान खुर्शीद , अभिषेक मनु सिंधवी समेत अनेक वकीलों की फ़ौज सर्वदा से रही है। रहेगी। सोनिया , राहुल , रावर्ट वाड्रा की हिफाजत के लिए। ग़ौरतलब है कि यह तीनों भी ज़मानत पर बाहर हैं। अलग बात है कि भाजपा में जेल जाने वालों की सूची ऐसी नहीं रही फिर भी अरुण जेटली , सुषमा स्वराज , रविशंकर जैसे अनेक वकीलों की फ़ौज भाजपा ने बनाए रखी। हर छोटी-बड़ी पार्टी के पास इसी तरह वकीलों का फ़ौज-फाटा बना रहता है। वकील पार्टियों को दूहते हैं , पार्टियां इन को। ज़िक्र ज़रूरी है कि रविशंकर ही वह वकील थे जिस ने पटना हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ते हुए चारा घोटाले में सज़ा दिलवाई थी। अयोध्या में राम मंदिर का मुकदमा भी रविशंकर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जीता था। सकारात्मक , नकारात्मक बहुत से ऐसे उदाहरण हैं। जैसे कि हरीश साल्वे भी एक वकील हैं जो इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में सिर्फ़ एक रुपए की फीस पर कूलभूषण जाधव का मुकदमा लड़ कर जीत लिया था और वह एक रुपया भी नहीं लिया। पर यही हरीश साल्वे सलमान ख़ान जैसे हत्यारे को आनन-फानन मुंबई हाईकोर्ट से ज़मानत दिलवा देते हैं। याद कीजिए मुंबई में हिट एंड रन केस। सड़क की फुटपाथ थके-हारे पर सोए मज़दूरों को शराबी सलमान ख़ान ने अपनी कार से कुचल कर मार दिया था। पर सलमान ख़ान पैसे वाला अभिनेता है। मुंह मांगा पैसा खर्च कर बच जाता है। समय बीत जाने के बाद भी देर शाम तक कोर्ट बैठी रही सलमान ख़ान को ज़मानत देने के लिए। इधर लोवर कोर्ट ने सज़ा घोषित की उधर हाथोहाथ मुंबई हाईकोर्ट ने ज़मानत दी। 

तो अनायास ? 

बहरहाल अब भ्रष्टाचार के ढेर सारे कुएं खोद लेने के बाद अरविंद केजरीवाल को भी किसी ऐसे वकील की दरकार पड़ गई है जो उन्हें जेल आदि संकटों से मुक्ति दिलाने का ठेका ले ले। सोमनाथ भारती जैसे छुटभैए वकील बेअसर साबित हुए हैं। अभिषेक मनु सिंघवी में केजरीवाल को अपनी ज़रुरत पूरी होती दिख रही है। अभिषेक मनु सिंघवी राज्य सभा में रह चुके हैं। एक बार मुख मैथुन का लाभ लेते हुए एक महिला वकील को जस्टिस बनाने का वायदा करते हुए कैमरे में कैप्चर हो गए तो दुकान फीकी पड़ गई। उस समय वह आलरेडी राज्य सभा में थे भी। बहुतों को जस्टिस बनवा चुके थे। बाद में भी बनवाते रहे पर सार्वजनिक रूप से उस वीडियो के बाद राज्य सभा का फिर रिनुवल नहीं हुआ। कांग्रेस की राजनीति में भी साइडलाइन कर दिए गए। पर कांग्रेस के प्रति निष्ठां बनी रही। अलग बात है यूट्यूब से उस मुख मैथुन वाले वीडियो को सुप्रीम कोर्ट से आदेश दिलवा कर हटवा दिया। 

अभिषेक मनु सिंघवी के पिता लक्ष्मीमल सिंघवी भी बड़े वकील रहे थे। वह राज्य सभा में भी रहे। उन की बड़ी प्रतिष्ठा रही है। एक भी दाग नहीं लगा कभी उन पर। दिल्ली के साऊथ एक्सटेंशन में उन के घर पर मेरी उन से अच्छी मुलाक़ात भी रही है। कई बार। लेखकों , पत्रकारों को भी बहुत पसंद करते थे। ख़ुद भी लेखक थे। सरल और विनम्र व्यक्ति थे। अभिषेक मनु सिंघवी ने अपने पिता से क़ानूनी दांव पेंच तो सीख लिया पर शुचिता और नैतिकता बिसार गए हैं। प्रतिष्ठा गंवा दी है। अभी हिमाचल में कांग्रेस विधायकों की पर्याप्त संख्या होने के बाद भी भाजपा के दांव में फंस कर राज्य सभा की सीट जीतते-जीतते हार गए। वह कहते हैं न कि क़िस्मत अगर ख़राब हो तो ऊंट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है। अभिषेक मनु सिंघवी के साथ भी लगभग यही हो गया। सो भाजपा से वह खार खाए बैठे ही थे कि केजरीवाल शराब घोटाले की जद में आ गए। अभिषेक मनु सिंघवी ने यह अवसर बढ़ कर दोनों हाथ से लपक लिया। बीच चुनाव में अरविंद केजरीवाल को अंतरिम ज़मानत दिलवा कर उन्हों ने भाजपा से अपना हिसाब न सिर्फ़ हिसाब बराबर कर लिया बल्कि राज्य सभा में जाने का सौदा भी केजरीवाल से कर लिया। सुप्रीम कोर्ट का वकील वैसे ही तो नहीं , अरविंद केजरीवाल के लिए लोवर कोर्ट में बहस करने पहुंच जाता है। यह आसान नहीं था। एक समय ऐसे ही कन्हैया कुमार के लिए कपिल सिब्बल पैरवी के लिए पहुंच गए थे। अलग बात है कुछ वकीलों ने कन्हैया कुमार को इस तरह घेर कर मारा कि उन की पेंट ख़राब हो गई। मामला ही ऐसा था। भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्ला , इंशा अल्ला का नारा कन्हैया कुमार ने जे एन यू में लगाया था। कन्हैया कुमार अभी फिर माला पहन कर थप्पड़ खा गए हैं। केजरीवाल की तरह। 

अरविंद केजरीवाल ने अभिषेक मनु सिंघवी को राज्य सभा भेजने में थोड़ी नहीं ज़्यादा हड़बड़ी दिखा दिया। सामंती ऐंठ दिखा दी। स्वाति मालीवाल अभी ताज़ा-ताज़ा राज्य सभा सदस्य बनी हैं। रिपीट तो संजय सिंह भी हुए हैं। पर केजरीवाल को राजनीतिक रूप से सब से ग़रीब , कमज़ोर और अनुपयोगी स्वाति मालीवाल ही लगीं। इस लिए उन्हें ही शिकार बनाया। सुनीता केजरीवाल को सौतिया डाह था ही , सामंती रवैया दिखाते हुए स्वाति मालीवाल को डिक्टेशन दे दिया गया। आप जिस को लेडी सिंघम कहते रहे हों उसे कीड़े-मकोड़े की तरह ट्रीट करेंगे तो एक बार तो कीड़ा-मकोड़ा भी तन कर खड़ा हो जाएगा , अपने अपमान से आजिज आ कर। फिर यह तो स्वाति मालीवाल ठहरी। राज्य सभा की सदस्य ठहरी। राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष ठहरी। 

स्वाति का एक नाम तारा है और एक नक्षत्र का भी नाम भी स्वाति है। जाने कौन भारी पड़ा अरविंद केजरीवाल पर कि आए थे हरिभजन को , ओटन लगे कपास वाली दुर्गति हो गई। टेकेन ग्रांटेड ले लिया स्वाति मालीवाल को केजरीवाल ने। अपने दरबार की बांदी मान बैठे। अभ्यस्त थे वह इस के। एक से एक कद्दावर प्रशांत भूषण , योगेंद्र यादव , कुमार विश्वास , आशुतोष , आनंद कुमार आदि-इत्यादि तो छोड़िए , गुरु अन्ना हजारे तक को निपटा चुके थे अपनी अराजक शैली में। तो यह स्वाति मालीवाल क्या चीज़ थी। पर यहीं केजरीवाल गच्चा खा गए। उन की अराजकता की खेती स्वाति मालिवाल नीलगाय बन कर एक रात में चर गई। उन को पता ही नहीं चला। सुबह हुई तो पता चला भी पर सामंती अकड़ और अहंकार में अपने पालतू बिभव कुमार को ले कर लखनऊ आ गए। स्वाति मालीवाल भड़क गई इस बिंदु पर। अभिषेक मनु सिंघवी और केजरीवाल की खिचड़ी जल गई। केजरीवाल चुनाव प्रचार तो छोड़िए , अब पूरी पार्टी को जेल भेजने के लिए आंदोलनरत हो गए हैं। बिभव की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ आंदोलनरत हो गए। क्यों कि बिभव उन के तमाम राज जानता है और स्वाति मालीवाल सिर्फ़ बिस्तर के राज। 

बिलकुल अभी 2 जून को जेल तो खैर केजरीवाल जाएंगे ही पर अभिषेक मनु सिंघवी भी राज्य सभा ज़रूर जाएंगे। क्यों कि अभिषेक मनु सिंघवी की ज़रूरत अब केजरीवाल को लंबे समय तक पड़नी है। और नियमित पड़नी है। पैसा तो बहुत है केजरीवाल के पास अभिषेक मनु सिंघवी को देने के लिए। करोड़ो रुपए दे रहे हैं। देते रहेंगे। पर अभिषेक मनु सिंघवी का ईगो मसाज करने के लिए उन्हें राज्य सभा का सम्मान कहिए , ख़ुराक़ कहिए देनी ही है। अब देखना है कि केजरीवाल किस को बलि का बकरा बनने के लिए चुनते हैं। और कि वह भी आसानी से इस्तीफ़ा दे कर अभिषेक मनु सिंघवी के लिए सीट छोड़ता है कि नहीं। आम आदमी पार्टी के राज्य सभा में पर्याप्त  सदस्य हैं। 

राज्य सभा सदस्य होना वैसे तो सभी पार्टियों में सर्वदा से महत्वपूर्ण रहा है। आम आदमी पार्टी में तो बहुत ही ज़्यादा। कुमार विश्वास और आशुतोष गुप्ता का तो आम आदमी पार्टी से मोहभंग हुआ ही इस एक राज्य सभा की सदस्यता ख़ातिर। हालां कि यह दोनों ही आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ कर हार चुके थे और चाहते थे कि राज्य सभा मिले। पर केजरीवाल ने दोनों की ठेंगा दिखा दिया। आशुतोष तो अभी भी आम आदमी पार्टी के लिए के ख़िलाफ़ कभी खुल कर नहीं बोलते। भाजपा विरोध और सेक्यूलरिज्म की आड़ में अकसर कोर्निश बजाते रहते हैं। आम आदमी पार्टी से अपने प्यार का इज़हार जताते रहते हैं। लेकिन कुमार विश्वास जब भी कभी अवसर मिलता है अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। प्रशांत भूषण , आनंद कुमार , योगेंद्र यादव जैसे लोगों को भी चूहे की तरह कुतर कर रख दिया। 

याद कीजिए कि पीटने को तो प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण भी कई बार पिटे हैं। अपने ही चैंबर में पिटे हैं। आम आदमी पार्टी में रहते हुए हैं। पर उन के लिए पक्ष या विपक्ष में कोई इस तरह नहीं खड़ा हुआ। पिटे बड़े वकील राम जेठमलानी भी थे। चंद्रशेखर के लोगों ने पीटा था। चंद्रशेखर के घर पर ही पीटा था। स्पष्ट है कि चंद्रशेखर की शह पर पीटे गए थे। पर चंद्रशेखर से जब इस जेठमलानी की पिटाई के बाबत पूछा गया तो वह बोले , मुझे इस बारे में नहीं मालूम। पर अगर जेठमलानी जी की पिटाई अगर हुई है तो यह निंदनीय है। मैं इस की निंदा करता हूं। तब जब कि जेठमलानी चंद्रशेखर के घर धरना देने पहुंचे थे कि वह प्रधान मंत्री पद की दावेदारी से अपना नाम वापस ले लें। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने हफ़्ता भर बीत जाने के बाद भी एक बार भी अपने ही शीश महल में स्वाति मालीवाल की पिटाई की निंदा नहीं की है। उलटे स्वाति मालीवाल की पिटाई करने वाले बिभव कुमार के पक्ष में आंदोलनरत हो गए हैं। 

यह कौन सी संसदीय परंपरा है भला ! तब जब कि राज्य सभा को उच्च सदन का दर्जा दिया गया है। स्वाति मालीवाल उसी राज्य सभा की सदस्य हैं। यह कहां आ गए हैं हम ? 

Friday, 17 May 2024

अरविंद केजरीवाल के हरम की अभी और कहानियां आनी शेष हैं

दयानंद पांडेय 


पिटाई हुई यह तो अब हक़ीक़त है। पर पिटाई हुई क्यों ? स्वाति मालीवाल ने न किसी बयान , न किसी ट्वीट आदि या एफ आई आर में यह बात बताई है। पीटा विभव ने यह बताया है एफ आई आर में पर अरविंद केजरीवाल के इशारे पर पिटाई हुई कि सुनीता केजरीवाल के इशारे पर। क्यों हुई ? इस दोनों बिंदु पर ख़ामोश क्यों हैं स्वाति मालीवाल। यह तो वही जानें। बार-बार हिटमैन भी वह किसे कह रही हैं , बहुत साफ़ नहीं है। राजनीति में महिलाओं की यह करुण कथा कोई नई नहीं है। लेकिन आम आदमी पार्टी में नई है। अब तो आम आदमी पार्टी की संस्थापक सदस्य योगिता भवाना आज कह रही थीं कि यह आम आदमी पार्टी नहीं , एंटी औरत पार्टी हो गई है। स्वाति मालीवाल भी आम आदमी पार्टी की संस्थापक सदस्य रही हैं। 

तो क्या शीश महल में सौतिया डाह में पिट गईं , राज्य सभा सांसद स्वाति मालीवाल। कि अपनी राज्य सभा सदस्यता बचाने की ज़िद में पिट गईं स्वाति मालीवाल। कि कोई तीसरी कहानी है , तीसरा-चौथा एंगिल भी है , इस पिटाई के पीछे। जो भी हो अरविंद केजरीवाल का जेल से बाहर आना उन के लिए बहुत भारी पड़ गया है। अरविंद केजरीवाल ने स्वाति मालीवाल को पिटवाया है तो कोई नई बात नहीं है। अपने चीफ सेक्रेटरी को भी इसी शीश महल में वह पिटवा चुके हैं और उन का कुछ नहीं हुआ। चीफ सेक्रेटरी मतलब आई ए एस अफ़सर और दिल्ली प्रदेश सरकार का सब से बड़ा अफ़सर। वह तो अभ्यस्त हैं। योगेंद्र यादव , प्रशांत भूषण , आनंद कुमार आदि पर भी वह बाउंसरों की ताक़त आजमा चुके हैं। तो अगर अभिषेक मनु सिंधवी को राज्य सभा भेजने के लिए स्वाति मालीवाल की सदस्यता की बलि लेने के लिए पिटवा दिया है तो केजरीवाल के लिए यह सामान्य बात है। हां , अगर सुनीता केजरीवाल ने स्वाति मालीवाल की पिटाई करवाई है तो कहानी बड़ी है। कोई औरत किसी औरत को एक ही वज़ह से पिटवा सकती है , वह सौतिया डाह ही है , कुछ और नहीं। फिर तो अरविंद केजरीवाल के हरम की अभी और कहानियां भी आनी शेष हैं। अभी तो शुरुआत है। साढ़े चार घंटे दिल्ली पुलिस अगर स्वाति मालीवाल के घर रह कर लौटी है तो ख़ाली हाथ तो नहीं ही आई। विभव कुमार के ख़िलाफ़ एफ आई आर का कागज़ ले कर एफ आई आर दर्ज कर दी है। मेडिकल हो गया है। मजिस्ट्रेट के सामने बयान भी। शीश महल में पुलिस की पड़ताल भी। विभव ने भी एफ आई आर की तहरीर दे दी है। पुलिस को जब स्वाति मालीवाल ने फ़ोन कर बताया कि उन्हों ने मुझे पिटवाया है। यह ' उन्हों ने ' कौन है। अरविंद कि सुनीता। इस का स्पष्टीकरण भी शेष है। वैसे भी स्वाति मालीवाल का ट्वीट बताता है कि स्वाति मालीवाल अभी बहुत संभल कर चल रही हैं। 

जो भी हो अमर मणि त्रिपाठी की याद आ गई है। अमर मणि त्रिपाठी मधुमिता शुक्ला को अपनी रखैल बनाए हुए। उस की बहन को भी। लोग अभी तक यही जानते हैं कि अमरमणि त्रिपाठी ने मधुमिता की हत्या करवाई। पर सच यह है कि अमरमणि त्रिपाठी की पत्नी ने मधुमिता शुक्ला की हत्या करवाई थी। अमरमणि की पत्नी का नाम भी मधुमणि है। हुआ यह कि तमाम एबॉर्शन और एहतियात के बावजूद मधुमिता शुक्ला फिर गर्भवती हो गई थी। और अब की वह गर्भ गिराने को तैयार नहीं थी। अमरमणि की रखैल बन कर रहने को अब और तैयार नहीं थी। पत्नी का हक़ मांग रही थी और संपत्ति में हिस्सा भी। यह बात अमरमणि की पत्नी तक जब पहुंची तो वह भड़क गईं। अमरमणि के चेलों से कह कर , अमरमणि की सहमति से हत्या करवा दी। बस सत्ता की सनक में सब कुछ खुल्ल्मखुल्ला करवा दिया। फिर हरिशंकर तिवारी ने तुरंत व्यूह रचना कर दी। राजेश पांडेय जैसे ईमानदार और साहसी पुलिस अफ़सर के हाथ यह जांच आ गई। राजेश पांडेय ने चूल से चूल मिला कर कील-कांटा ऐसे दुरुस्त कर दिया पुलिस दस्तावेज में कि कोई छेड़छाड़ नहीं कर पाया। हरिशंकर तिवारी ने मधुमिता की बहन निधि शुक्ला के मार्फ़त सुप्रीमकोर्ट तक लड़ाई लड़वाई। अमरमणि त्रिपाठी और मधुमणि त्रिपाठी को आजीवन कारावास हो गया। अलग बात है हरिशंकर तिवारी के निधन के बाद निधि को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक मदद समाप्त हो गई। अमरमणि छूट गए। 

जेल से कुछ दिन के लिए ही सही छूट कर तो अरविंद केजरीवाल भी आए हैं। आए हैं तो शीश महल में सत्ता के लिए मुगलियाकाल का सत्ता संघर्ष भी ले कर आए हैं। शीश महल , यानी रंग महल की कहानियों का पिटारा ले कर आए हैं। सिर्फ़ भ्रष्टाचार की कालिख में ही नहीं , लंपटता की कालिख में भी सराबोर हैं। सत्ता जाने क्या-क्या सुख , जाने क्या-क्या कालिख ले कर सर्वदा उपस्थित रहती है। सूर्पणखा से राम ही बच सकते हैं , हर कोई नहीं। अभी की कुछ समय पहले की क्लिपिंग्स में आतिशी मार्लेना , अरविंद केजरीवाल के साथ जिस नज़ाकत और अंदाज़ में उपस्थित दिखती हैं , बार-बार दिखती हैं , सब के ही लिए अचरज और रश्क का विषय होता है। उन का सौंदर्य दिखाने की ललक , देखते बनता है। उन के लटके-झटके भी। मार्लेना मतलब मार्क्स और लेनिन की मिली-जुली रचना। तिस पर नाम भी आतिशी। गौरतलब है कि आतिशी के माता-पिता वामपंथी हैं। जाने विवाह भी किया है कि नहीं। राम जाने। दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाते रहे हैं। मार्लेना तक तो समझ में आता है पर आतिशी ? ऐसे ही है जैसे कुछ लोग बेटियों का नाम कामिनी रखते हैं। ख़ैर , अब जब जेल से आने के बाद केजरीवाल दिल्ली में कनाट प्लेस के हनुमान मंदिर गए तो वामपंथियों की यह संतान आतिशी भी क़दमताल करती गई हनुमान मंदिर। तो आतिशी के लिए सत्ता सुख ने वामपंथियों की थीसिस धर्म अफीम है की बात भुला दी गई। वैसे एक बात यह भी हुई कि जेल से वापस आने के बाद केजरीवाल के साथ आतिशी की वह अटक-मटक देखने को नहीं मिली है। तो क्या सुनीता केजरीवाल ने इस पर भी केजरीवाल को टाइट कर दिया है ? 

क्या पता !

याद कीजिए आतिशी के पहले कभी इसी आतिशी की धज में कभी स्वाति मालीवाल भी केजरीवाल के आगे-पीछे उपस्थित रहती थीं। यही लटके-झटके। और यही नाज़ो-अदा-अंदाज़। तब के दिनों स्वाति मालीवाल को महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया था केजरीवाल ने। लेडी सिंघम बना और बता रखा था केजरीवाल ने स्वाति मालीवाल को। स्वाति मालीवाल के पति नवीन जयहिंद एक समय केजरीवाल के ख़ास दोस्त हुआ करते थे। अब स्वाति का नवीन से तलाक़ हो चुका है। पर जब स्वाति के साथ शीश महल में पिटाई हुई तो वह खुल कर स्वाति के साथ खड़े हो गए।

अच्छा तो क्या अरविंद केजरीवाल जेल जा कर भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा इस लिए नहीं दिए कि इस के उत्तराधिकार में कई पेचोख़म हैं। स्वाति मालीवाल भी मुख्य मंत्री पद की दावेदार रहीं ?  

और आतिशी मार्लेना ?

जिस तरह बन-ठन कर अदाएं दिखाते हुए आतिशी मार्लेना अरविंद केजरीवाल के आगे-पीछे वह मंडराती रहती वह देखी जाती रही हैं , उसी को देखते हुए आतिशी को भी मुख्यमंत्री पद का हक़दार माना जाने लगा था। पर हर कोई स्त्री लाख कुर्बानी दे दे जयललिता और मायावती की क़िस्मत ले कर तो नहीं ही पैदा होती। आंध्र में लक्ष्मी पार्वती भी नेता बनीं तो एन टी रामाराव की दूसरी पत्नी बन कर ही। अलग बात रामाराव के दामाद चंद्र बाबू नायडू ने लक्ष्मी पार्वती को ऐसे ध्वस्त किया कि लोग अब उन का नाम भी भूल गए हैं। याद कीजिए एक समय कांति सिंह लालू यादव के आगे-पीछे बनी रही थीं। पर बिहार की कमान उन्हें नहीं मिली। केंद्र में मंत्री बन कर ही समाप्त हो गईं। अब तो लोग कांति सिंह को भूल ही गए हैं। मुलायम सिंह यादव के आगे-पीछे डोलने वालियों की भी लंबी फ़ौज थी। 

जो भी हो अरविंद केजरीवाल के हरम की अभी और कहानियां भी आनी शेष हैं। अभी तो शुरुआत है। 

अकसर दहाड़ने वाले अरविंद केजरीवाल बिहार की बोली में लखनऊ में क्यों नरभसा गए। हुआ यह कि लखनऊ में अखिलेश यादव के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस करते हुए अरविंद केजरीवाल से पत्रकारों ने उन के दिल्ली के शीश महल में राज्य सभा सदस्य स्वाति मालीवाल की पिटाई के बाबत सवाल पूछ लिया था। सवाल सुनते ही अरविंद केजरीवाल नरभसा गए। मतलब नर्वस हो गए। जैसे सांप सूंघ गया हो। एक चुप तो हज़ार चुप। ऐसे जैसे कोई हत्यारी लग गई हो। अरविंद केजरीवाल की मुश्किल देखते हुए अखिलेश यादव ने माइक संभाला। पर वह भी लड़बड़ाते रहे। फिर माइक संभाला संजय सिंह ने। संजय सिंह मणिपुर , पहलवान आदि की भूलभुलैया में घूमते रहे। एक मिनट में ही अरविंद केजरीवाल उठ खड़े हुए। प्रेस कांफ्रेंस ख़त्म। 

दिलचस्प यह कि केजरीवाल अपने आरोपी पी ए विभव को ले कर लखनऊ आए थे। अंदर प्रेस कांफ्रेंस हो रही थी बाहर कार में विभव सिर झुकाए बैठा था। कार को आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता चारो तरफ से घेरे रहे ताकि मीडिया के हत्थे न चढ़ जाए। एयरपोर्ट पर भी विभव केजरीवाल के साथ फ़ोटो में कैप्चर हो गया था। विभव को लखनऊ में केजरीवाल के साथ देखते ही स्वाति मालीवाल भड़क गईं। उन के सब्र का बांध टूट गया। दिल्ली में स्वाति मालीवाल ने विभव के ख़िलाफ़ एफ आई आर दर्ज करवा दी है। अब केजरीवाल ज़रूर पछता रहे होंगे कि जेल से बाहर आए तो आए ही क्यों ? क्या इसी तरह नरभसाने के लिए ?

समझ नहीं आता कि अंबेडकर और भगत सिंह की फोटुओं के बीच बैठ कर बयान न अरविंद केजरीवाल जारी कर रहे हैं , न सुनीता। संजय सिंह ने जब प्रेस कांफ्रेंस कर स्वाति मालीवाल के पक्ष में बात की और पिटाई की निंदा की पर आतिशी ने प्रेस कांफ्रेंस कर स्वाति मालीवाल को साज़िशकर्ता बताते हुए भाजपा का मोहरा बता दिया है। आम आदमी पार्टी के नेताओं ने स्वाति मालीवाल को गद्दार का सर्टिफिकेट देने की होड़ मची हुई है। तिस पर कपिल मिश्रा का कहना है कि स्वाति मालीवाल ने भी अरविंद केजरीवाल को थप्पड़ मारा है। जो भी हो अरविंद केजरीवाल कांग्रेस की संगत में हैं आजकल। और कांग्रेस में महिलाओं को इसी दिल्ली में तंदूर में जला कर मार देने की पुरानी परिपाटी रही है। इसी लिए इस पूरे प्रसंग पर कांग्रेस सहित समूचा इंडिया गठबंधन सिरे से ख़ामोश है। 

एक सवाल यह भी है कि विभव के पास आख़िर कितने राज़ हैं अरविंद केजरीवाल के हरम के ? जो अरविंद केजरीवाल विभव के आगे मुर्गा बने बैठे हैं। कुमार विश्वास का कहना है कि विभव केजरीवाल के डर्टी गेम का बड़ा राज़दार भी है और केजरीवाल के डर्टी गेम का सरदार भी। औरंगज़ेब याद आता है। क़िस्सा है कि औरंगज़ेब की दो बहनें थीं। जहांआरा और रोशनआरा। औरंगज़ेब ने अपनी अकड़ के चलते इन दोनों बहनों की शादी नहीं की। बड़ी बहन ने चुपचाप अपने महल में नौ नौजवान रख लिए। अपनी यौन पिपासा शांत करने के लिए। बाद में छोटी बहन को जब पता चला तो वह भी बड़ी बहन को ब्लैकमेल कर इन नौजवानों की साझेदार बन गई। फिर दोनों बहनों में किसी बात पर अनबन हो गई तो इन नौ नौजवानों की ख़बर औरंगज़ेब तक पहुंची। औरंगज़ेब ने नौ नौजवानों की बेरहमी से क़त्ल करवा दिया। 

मतलब हिटमैन के क़त्ल अभी और भी बाक़ी हैं। कहानी तो ख़ैर बहुत सारी हैं। कहा भी जा रहा है कि अब की दोनों यानी केजरीवाल और विभव साथ-साथ तिहाड़ जाएंगे। 

सवाल एक यह भी है कि अरविंद केजरीवाल को जेल से सरकार चलाने के लिए संविधान खामोश है। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ज़मानत की एक शर्त यह भी लगा रखी है कि मुख्यमंत्री आफ़िस नहीं जाएंगे। कोई फ़ाइल नहीं साइन करेंगे। पर विधान सभा बुला सकते हैं कि नहीं , सुप्रीम कोर्ट ख़ामोश है। तो क्या केजरीवाल क्या विधान सभा बुला कर चिर-परिचित विष-वमन कर सकते हैं ? जैसा कि वह करते रहे हैं। विधान सभा में कही किसी बात पर कोई अदालत , कोई क़ानून कुछ नहीं कर सकता। इसी लिए राहुल गांधी संसद में बम फोड़ने की बात भी एक समय पूरी मूर्खता के साथ करते रहे थे। तानाशाह से निपटने के लिए केजरीवाल कुछ भी कर सकते हैं। 

बस एक धक्का और दो !


Tuesday, 14 May 2024

तो दर्शन करेंगे राम का , वोट देंगे इंडिया गठबंधन को

 दयानंद पांडेय 

यह जो लाखो लोग रोज-रोज अयोध्या से राम के दर्शन कर के जा रहे हैं। मंदिर प्रबंधन वालों के मुताबिक़ करोड़ो रुपए का चढ़ावा भी यह लोग चढ़ा रहे हैं। तो आप को क्या लगता है यह करोड़ो-करोड़ लोग विदेशी हैं ?  यू के , यू एस और गल्फ आदि-इत्यादि देशों के लोग हैं ? भारत के नागरिक नहीं हैं ? और जो भारत के नागरिक हैं तो घर लौट कर आप को क्या लगता है , यह लोग इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को वोट दे देंगे ? दे रहे हैं ?

गुड है यह भी। 

आप को पता नहीं क्या लगता है पर इंडिया गठबंधन के लोगों को लगता है कि यह लोग वोट उन्हें दे देंगे। दे रहे हैं। उन की समझ यही है। एकमुश्त मुस्लिम वोट बैंक मिलने का गुरुर है यह। जातीय जनगणना का फितूर है यह। इसी समझ , फितूर और गुरुर के नशे में चूर हैं यह लोग। यह तो मुमकिन है कि आयुष्मान , राशन , पक्का मकान , शौचालय , गैस आदि सभी कल्याणकारी योजनाओं का सर्वाधिक लाभ पा कर भी कुछ लोग ऐलानिया मोदी को वोट नहीं देते हैं। क्यों कि अहसानफ़रामोश इंसानों की यह अलग प्रजाति है। यह उन का लोकतांत्रिक अधिकार भी है। कोई हर्ज़ नहीं। बंधुआ नहीं है कोई इस देश में। लेकिन अयोध्या में रामलला के दर्शन कर आप मोदी को वोट देने से मुकर जाएं , कुछ नहीं , बहुत मुश्किल है। यह तो राम की चाहत है। और चाहत को भुला देना कठिन होता है। स्थिति यह है कि अभी जिन असंख्य लोगों ने अयोध्या जा कर दर्शन नहीं किए हैं रामलला के , उन के वोट कहीं ज़्यादा मोदी को जा रहे हैं। यक़ीन न हो तो ज़मीन पर इस की पड़ताल कर लीजिए। और रामायण में गिलहरी प्रसंग याद कर लीजिए। लोग गिलहरी बने सक्रिय हैं। अयोध्या और काशी देश के पर्यटन नक्शे पर सब से बड़े केंद्र के रूप में उभर कर उपस्थित हैं तो अनायास। गोवा और आगरा के ताजमहल से ज़्यादा पर्यटक अब अयोध्या और काशी के सौभाग्य में उपस्थित हैं। अभी एक वीडियो में देखा कि अयोध्या में एक छोटा सा बच्चा तिलक , सिंदूर लगा कर रोज पंद्रह सौ रुपया कमाना बता रहा है। इंटरव्यू लेने वाला बच्चे से कहता है कि तब तो तुम एक डाक्टर के बराबर तनख्वाह ले रहे हो। बच्चा इतराते हुए अवधी में कहता है , डाक्टर से हम को कम समझे हो का ?

सोचना लाजिम है कि बिना किसी तर्क के , बिना किसी आधार के एक आदमी आह्वान कर देता है कि थाली बजानी है। समूचे देश में लोग थाली बजाने लगते हैं। एक आदमी कह देता है कि डाक्टरों पर फूल बरसाना है। लोग फूल बरसाने लगते हैं। लोग मर रहे हैं , कोरोना से तड़प रहे हैं पर दिया जलाने का आह्वान होता है। देश भर में लोग दिया जलाने लगाते हैं। थाली बजाने , दिया जलाने , फूल बरसाने से कोरोना नहीं जाने वाला था , सब लोग जानते थे।पर लोगों ने उस कठिन घड़ी में भी यह सब किसी उत्सव , किसी त्यौहार की तरह किया। यह दिया जलाना , थाली बजाना , फूल बरसाना दरअसल कोरोना के अवसाद से जूझ रहे लोगों को उन के अवसाद से बाहर लाने का एक उपक्रम था। मनोवैज्ञानिक तरीक़ा था , दुःख से बाहर खिड़की खोलने का। पर तंजबहादुरों के क्या कहने ! तंज की उन की वायलिन अभी तक बजती है। इन कुटिल कुंठितों का अवसाद आज तक नहीं गया। अच्छा इतने कम समय में , दुनिया की सब से बड़ी आबादी को तीन-तीन बार वैक्सीनेट करना , आक्सीजन देना हलवा परोसना था क्या ? पर यह सब संभव तो हुआ। वैक्सीनेट करने में , आक्सीजन देने में कहीं हिंदू-मुसलमान , ऊंच-नीच , अमीर-ग़रीब , जाति-पाति हुआ क्या ? एक छोटे से वर्ग द्वारा मूर्खता और कुटिलता की हद तक कुछ अफवाह फैलाई गई , यह अलग बात है। 

गांधी अतुलनीय हैं। गांधी और मोदी की तुलना हो नहीं सकती। पर गांधी के बाद एक नरेंद्र मोदी ही हुआ है कि जिस के एक आह्वान पर समूचा देश एक साथ खड़ा हो जाता है। पाकिस्तान से अभिनंदन को आना है और पूरा देश टी वी खोल कर बैठ जाता है। अभिनंदन को आते हुए देखने के लिए। यह आसान है क्या ? 22 जनवरी , 2024 को राम और हनुमान के झंडे देश के अधिकांश घरों , बाज़ारों में फहरा कर दीपावली एक ही साल में पहले भी कभी दुबारा मनाई थी देश के लोगों ने ? लेकिन मनाई। तो क्या यह सभी सांप्रदायिक लोग हैं। अनपढ़ , जाहिल और गंवार लोग हैं। वामपंथियों के हिसाब से अफीम चाटे हुए लोग हैं ? पर बहुत सारे यह झंडे अभी तक फहरा रहे हैं लोगों के घरों पर। यह मुनादी भी तो मोदी ने ही की थी। मोदी की एक मुनादी पर भारत की जनता तो छोड़िए विश्व के तमाम नेता एक साथ भारत के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। मिले सुर मेरा तुम्हारा , तो सुर मिले हमारा ! गाने लगते हैं।  

इंडिया गठबंधन का कोई नेता ऐसी कोई मुनादी करने का सोच भी सकता है क्या ? है साहस ? 

सपा की एक जन सभा में अखिलेश यादव की उपस्थिति में शिवपाल सिंह यादव माइक पर पूरी मज़बूती के साथ भाजपा के भारी बहुमत से जीतने का ऐलान कर देते हैं। तो आप इसे सिर्फ स्लिप ऑफ टंग मान लेते हैं तो यह आप की बलिहारी है। सच यह है कि देश के असंख्य लोगों की तरह शिवपाल के भी मन में यही चल रहा है। सो यह अनायास बाहर भी आ गया। स्लिप ऑफ टंग अगर है भी तो फिर यह  कुछ वैसे ही हुआ कि जैसे सोनिया गांधी खुद को आक्सफोर्ड से पढ़े जाने की सूचना लोकसभा में दर्ज करवाती हैं और जब सुब्रमण्यम स्वामी खोज कर लाते हैं और तथ्य सहित बताते हैं कि सोनिया गांधी ऑक्सफोर्ड में कभी नहीं पढ़ीं तो सोनिया बड़ी मासूमियत से चूक मानती हुई इस सूचना को टाइपिंग एरर बता कर तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष से माफ़ी मांग लेती हैं। इतना बड़ा टाइपिंग एरर भी होता है कहीं भला ! इतना बड़ा स्लिप ऑफ टंग भी होता है भला !

फारुख अब्दुल्ला का पाकिस्तान प्रेम बीच चुनाव भी अभी जाग उठा है। हुआ यह कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पी ओ के की बात की तो फारूख अब्दुल्ला तिलमिला गए। बोले पाकिस्तान ने भी कोई चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं। पाकिस्तान के पास भी परमाणु बम है। मोदी ने एक भाषण में फारूख अब्दुल्ला को जवाब देते हुए बड़े प्यार से कहा कि चूड़ियां नहीं पहनी है पाकिस्तान ने तो चूड़ियां पहना देंगे ! सच यह है कि मोदी ने इंडिया गठबंधन को भी  चूड़ियां पहना दी हैं। कांच की रंग-बिरंगी चूड़ियां। पूरे देश में खनखना-खनखना कर बज रही हैं यह चूड़ियां। मुसलसल बज रही हैं। 

सुनाई नहीं दे रहीं इन चूड़ियों की आवाज़ , उन की खनखनाहट ?

हालत यह है कि मात्र मुस्लिम वोट बैंक की लालसा में लटपटाए अयोध्या में राम मंदिर पर सपा और अखिलेश यादव के बिगड़े और नफ़रती रुख से , आए दिन अनाप-शनाप बयान से उत्तर प्रदेश में यादव समाज के ज़्यादातर लोग उन का साथ छोड़ चुके हैं। यह ज़मीनी सचाई है। चुनाव के चार चरण बीत जाने के बाद भी अखिलेश यादव और उन के मौसेरे चाचा रामगोपाल यादव को यह तथ्य नहीं मालूम हो सका है तो इस से उन की राजनीति की दशा और दिशा समझी जा सकती है। ज़मीन और जनता से कट जाने का परिणाम है यह। कांग्रेस के तो तमाम प्रवक्ता और नेता तक खुलेआम कांग्रेस के राम मंदिर के विरोधी रुख के चलते टाटा , बाई-बाई कर चुके हैं। प्रमोद कृष्णम , रोहन गुप्ता , गौरव वल्लभ , राधिका खेड़ा जैसे अनेक लोग हैं। जो यह ऐलान करते हुए कांग्रेस से निकले कि कांग्रेस का रुख़ राम विरोधी है। सनातन विरोधी है। राम की बात करने पर पार्टी में उन्हें अपमानित किया जाता है। प्रमोद कृष्णम ने तो यहां तक कह दिया है कि राहुल गांधी एक सुपर पावर कमेटी बना कर सुप्रीमकोर्ट के राम मंदिर के फैसले को बदलने की मंशा रखते हैं। जैसे कि कभी राजीव गांधी ने शाहबानो पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा था , संसद में। राधिका खेड़ा का कहना है कि उन्हें कांग्रेस कार्यालय के कमरे में बंद कर अयोध्या में रामलला के दर्शन करने पर अपमानित किया गया। शराब पिलाने की कोशिश की गई। दुराचार की कोशिश की गई। राहुल और प्रियंका से इस की शिकायत भी की राधिका खेड़ा ने। पर सब चुप रहे। महाराष्ट्र में चव्हाण , संजय निरुपम जैसे कई कांग्रेसी , कांग्रेस छोड़ गए। आम आदमी पार्टी को समर्थन को ले कर दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरविंद सिंह लवली ही कांग्रेस छोड़ गए। सपा और कांग्रेस में जैसे भगदड़ है। सपा कितनी बार तो अपने उम्मीदवार ही बदल-बदल कर परेशान है। तो मतदाताओं ने भी कांग्रेस और सपा की ज़मीन छोड़ दी है। जनता-जनार्दन यह बात जानती है। लेकिन पार्टी के नेता लोग जाने कौन सी अफीम चाट कर बैठे हैं कि कुछ जानते ही नहीं। 

अभी कुछ समय पहले वैक्सीन का गाना चला था। बुलबुले की तरह दो दिन में ही फूट गया , यह गाना , यह अलग बात है। पर यह गाना गाने वाले लोग भी कौन थे ? वह जो कहते थे कि यह तो भाजपा की वैक्सीन है , हम नहीं लगवाएंगे। और चुपके-चुपके लगवा भी लिए। बीच कोरोना में दिल्ली , मुंबई जैसे शहरों से मज़दूरों को भगाने वाले लोगों को लोग क्या भूल गए हैं। माना कि लोगों की याददाश्त बहुत कमज़ोर होती है। इमरजेंसी जैसे काले दिन भी भूल जाते हैं और अच्छे दिन आने वाले हैं का मज़ाक भी उड़ा लेते हैं। पर क्या लोग भूल गए हैं कि दिल्ली से मज़दूरों को भगाने के लिए अरविंद केजरीवाल ने और मुंबई से उद्धव ठाकरे ने क्या-क्या साज़िशें नहीं कीं। लोग नहीं भूले आक्सीजन की किल्लत के लिए अरविंद केजरीवाल का ड्रामा भी। न ही कोरोना को देश भर में फ़ैलाने के लिए तब्लीगी जमात की घृणित साज़िश। पर क्या आज तक तब्लीगी जमात के किसी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई हुई ?

हुई कार्रवाई सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के लिए सुबूत मांगने वालों के खिलाफ ? भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला , इंशा अल्ला का नारा लगाने वाला कन्हैया कुमार बीते लोकसभा चुनाव में बिहार के बेगूसराय में ज़मानत ज़ब्त करवा कर अब पूर्वी दिल्ली में कांग्रेस उम्मीदवार है। यह और ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिन में मोदी सरकार का धैर्य और उदारता पानी की तरफ साफ़ दिखती है। फिर भी मोदी तो तानाशाह है। फासिस्ट है। जुमलेबाज है। मोदी ने 2014 के चुनावी भाषणों में कहा था कि विदेशों में इतना काला धन है कि अगर वापस आ जाए तो सब के खातों में पंद्रह-पंद्रह लाख आ जाएगा। इस पाठ को विकृत कर आज तक बेचा जा रहा है और पूछा जा रहा है कि पंद्रह लाख खाते में आया क्या ? ऐसे ही कुछ पोलिंग बूथों पर मुस्लिम स्त्री-पुरुष की लंबी लाइन देख कर ऐलान पर ऐलान हुए जा रहे हैं कि मोदी तो गया। वोटिंग के कम प्रतिशत पर भी कुछ लोग ऐसे ख़ुश हो कर नाच रहे हैं गोया मोदी की ज़मानत भी नहीं बचने वाली है। ऐसे हसीन सपने देखने पर सिर्फ़ मुंगेर के ही लोगों का हक़ तो नहीं। हर कहीं , हर किसी का है। 

कोरोना जैसी महामारी में लोग कोरोना से ज़रूर मरे पर भूख से भी कोई मरा क्या ? देश के किसी गांव , किसी शहर में ? किसी के पास कोई आंकड़ा हो , तथ्य हो तो बताए न। किसी के पास सूचना हो तो बताए कि हिंदू को राशन मिला , मुसलमान को नहीं मिला। इस जाति को मिला , उस जाति को नहीं मिला। हिंदुओं को वैक्सीन मिली , मुसलमानों को नहीं मिली। कहीं किसी सुविधा यथा पक्का मकान , शौचालय , गैस आदि में हिंदू-मुसलमान या जाति-पाति का खेल हुआ क्या ? जैसे कि उत्तर प्रदेश में मुलायम और अखिलेश की सरकार में सर्वदा यादव और मुस्लिम को प्राथमिकता दी जाती थी। हर प्राइज पोस्टिंग पर यादव , हर थानेदार यादव , हर ठेकेदार यादव। यादव नहीं तो मुसलमान। इसी लिए सपा में एम वाई फैक्टर को मुस्लिम-यादव की जगह अब मोस्टली यादव कहा जाने लगा है। मायावती राज में यही मामला दलित और मुसलमान का हो जाता था। बिहार में भी लालू-राबड़ी राज इसी लिए परिचित है। बकौल मनमोहन सिंह हर संसाधन पर पहला तो मुसलमानों का है ही। उत्तर प्रदेश के दंगों में अखिलेश यादव ने सिर्फ़ मुसलमानों को ही मुआवजा दिया। दिल्ली दंगों में केजरीवाल ने भी मुस्लिमों को ही मुआवजा दिया। डाक्टरों में भी मुस्लिम ही खोजा एक करोड़ रुपया देने के लिए। 

मोदी-योगी राज में भी ऐसा हो रहा है क्या ? हो रहा है तो यह सब पब्लिक डोमेन में क्यों नहीं आ रहा। आना चाहिए। अतीक़ अहमद और मुख़्तार अंसारी जैसे हत्यारों की पैरवी में लगे लोग लेकिन कैसे बोलेंगे ऐसी बातों पर। सेक्यूलरिज्म की अफीम चाट कर कांग्रेस की गोद में बैठे राजदीप सरदेसाई , ध्रुव राठी रवीश कुमार , पुण्य प्रसून वाजपेयी , अजित अंजुम , अभिसार आदि-इत्यादि गोदी मीडिया कहते नहीं अघाते। पर इधर मोदी , अमित शाह  के धड़ाधड़ इंटरव्यू चैनलों , अख़बारों में आ रहे हैं। तो यह लोग भी राहुल , अखिलेश , तेजस्वी , उद्धव ठाकरे , शरद पवार , सोनिया गांधी , ममता बनर्जी आदि-इत्यादि के इंटरव्यू क्यों नहीं चला रहे। है कुछ कहने -बताने के लिए इन के पास भी ? 

जी-20 की सफलता , और इस बहाने अधिकांश देशों के मुखिया जिस तरह गांधी समाधि पर नतमस्तक हुए यह क्या मामूली घटना थी ? सड़क , रेल , एयरपोर्ट जैसे क्षेत्र में युगांतरकारी कार्य क्या लोग देख नहीं रहे ? कि कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनते और देश से आतंकवाद को समाप्त होते हुए नहीं देख रहे लोग क्या ? कि पाकिस्तान को घुटना टेक भिखारी बनते नहीं देख रहे ? मालदीव जैसे देश ने अभी-अभी घुटने टेके हैं। देश की यह कूटनीतिक सफलता और आर्थिक संपन्नता एक साथ देखना सुखद है।  

कांग्रेस का घोषणा पत्र एक से एक उलटबासी परोसता है। घोषणा पत्र में फ़ोटो भी विदेशी छापता है। हिंदू वोट बांटने के लिए जाति जनगणना वाला शकुनि का पासा फ़ेंक कर मुस्लिम आरक्षण की बात करता है। फिर भी तोहमत यह कि मोदी हिंदू-मुसलमान करता है। अभी एक जनसभा में किसी स्त्री ने पूछ लिया राहुल गांधी से कि मोदी ने जो कंपनियां बेची हैं , आप की सरकार बनी तो क्या आप उसे वापस ले लेंगे ? पहले तो राहुल ने सवाल ही नहीं समझा। फिर मंच पर खड़ी प्रियंका से पूछा तो प्रियंका ने सवाल समझा दिया। सुन कर राहुल बड़ी बेचारगी से बोले , वापस तो नहीं ले सकते। फिर सैम पित्रोदा , मणिशंकर अय्यर जैसे नवरत्न भी हैं कांग्रेस के पास। और इन नवरत्नों से ऊपर स्वर्ण रत्न राहुल गांधी ख़ुद हैं। अल्लामा इक़बाल का वह एक शेर है न :

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

तो इसी तर्ज पर मान लीजिए राहुल गांधी चमन पूतिया जैसी अविरल प्रतिभा भी बड़ी मुश्किल से पैदा होती है। 

सेक्यूलरिज्म और मुस्लिम तुष्टिकरण की बीमारी में ध्वस्त इंडिया गठबंधन के लोगों को लगता है कि धर्म की गांठ और लत सिर्फ़ मुसलमानों में ही है। हिंदुओं में नहीं। जब कि तथ्य यह है कि हिंदुओं में भी धर्म की जड़ें बहुत गहरी हैं। बस वह एक सांस्कृतिक रंग लिए हुई हैं। अयोध्या , काशी , मथुरा की परंपरा और विरासत में पगी हुई हैं। कट्टरता के रंग में धंसी हुई नहीं हैं। सिर तन से जुदा के अंदाज़ में नहीं हैं। हिंसक नहीं हैं। जहालत की मारी हुई नहीं हैं। हां , लोगों को मालूम नहीं कि मुसलमानों में भी धर्म की कई धाराएं हैं , जो उन्हें बुरी तरह बांटती और तोड़ती हैं। मस्जिद , मजार और कब्रिस्तान तक बंटे हुए हैं। ठीक वैसे ही जैसे जब हिंदुओं की जातीय जनगणना की बात आती है तो इंडिया गठबंधन के लोग उछलने लगते हैं। क्या इंडिया गठबंधन के लोग नहीं जानते कि मुसलमानों में कट्टरता ही नहीं जातियां भी हिंदुओं से कहीं ज़्यादा हैं। लेकिन अभी चूंकि उन्हें मंडल-कमंडल के संयुक्त वोट बैंक में छेद करने की रणनीति पर काम करना है , इस लिए सिर्फ़ हिंदुओं की जनगणना। वामपंथी बुद्धिजीवियों के विष का तकिया लगा कर सोने वाले इंडिया गठबंधन के लोगों को इन दिनों गगन बिहारी राजनीति का चश्का इस क़दर लगा है कि वह भूल गए हैं कि देश के लोग विकास और सम्मान का स्वाद अब जान चुके हैं। अमरीकी व्यापारी जॉर्ज सोरस के फेंके पैसे के जाल में आने वाले नहीं हैं। चीनी फंडिंग वाले न्यूज़ क्लिक , वायर आदि औजारों पर जंग लग चुकी है। उन का एजेंडा तो पानी मांग गया है। 

कभी 1977 में इंदिरा गांधी को रायबरेली से चुनाव हराने वाले राजनारायण , चौधरी चरण सिंह के हनुमान कहे जाते थे। हनुमान मतलब पक्के भक्त। पर 1984 में यही राजनारायण , चौधरी चरण सिंह से नाराज हो कर बागपत से उन के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ गए। चौधरी चरण सिंह लेकिन राजनारायण से नाराज नहीं हुए। सतर्क हो गए। बागपत में चुनाव संभाल रहे लोगों की मीटिंग कर स्पष्ट निर्देश दिया कि राजनारायण का किसी भी स्तर पर अपमान नहीं होना चाहिए। राजनारायण या उन के लोग जहां कहीं भी मिल जाएं , आमने-सामने हो जाएं तो उन का सम्मान करें। पांव छू लें। हमेशा सतर्क रहें। अपने लोगों से कहा कि राजनारायण जी पेटिशन एक्सपर्ट हैं। उन से सर्वदा सतर्क रहें। ऐसी कोई ग़लती नहीं करें कि वह हमारे ख़िलाफ़ कोई पेटिशन दायर कर दें। चौधरी चरण सिंह के लोगों ने यही किया। राजनारायण को ऐसा कोई अवसर नहीं दिया कि वह पेटिशन की सोच भी पाएं। बागपत में उन का हर कहीं सम्मान करते रहे चौधरी के लोग। वह लोग जो जाट थे। जाट जो अपनी लंठई के लिए , अकड़ और अहंकार के लिए कुख्यात हैं। 

पर आज इंडिया गठबंधन के लोग ? 

ख़ास कर राहुल गांधी की भाषा देख लें। मोदी ने राहुल , प्रियंका को एन आर आई वैसे ही तो नहीं बता दिया है। अच्छा अमेठी में राजस्थान के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत किल्ला गाड़ कर बैठ गए हैं। ड्यूटी लगा दी गई है। इसी तरह रायबरेली में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य मंत्री भूपेश बघेल को तैनात कर दिया गया है। जिता लेंगे कांग्रेस को यह लोग ? 

22 जनवरी , 2024 के दिन अयोध्या में जिस दिन राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई देश के विभिन्न क्षेत्र के जितने सेलिब्रेटी एक साथ अयोध्या में इकट्ठे हुए , कभी किसी और अवसर पर नहीं हुए। कभी कहीं किसी एक अवसर पर हुए हों तो कोई बताए भी। लेकिन पहले मुहूर्त का रोना रोया गया। फिर शंकराचार्य का रोना रोया गया। एक शंकराचार्य ने कहा भी कि इस भीड़ में जा पाना मुमकिन नहीं है। पर कांग्रेस पोषित एक शंकराचार्य की बिना पर शंकराचार्य की बीन बजती रही। ठीक वैसे ही जैसे संविधान की बीन जब तब बजने लगती है। 2019 में भी यह संविधान की बीन बजी थी। कहा गया था कि अगर मोदी आ गया तो फिर कभी चुनाव नहीं होंगे। लेकिन 2024 में चुनाव तो हो रहे हैं। अच्छा ख़ुदा न खास्ता जब इंडिया की सरकार बन ही गई तो मुस्लिम समाज को आरक्षण क्या बिना संविधान में संशोधन के मिल जाएगा ?

नहीं न ?

लेकिन भरमाना है। भरमा रहे हैं। 

आज अभी-अभी मोदी के नॉमिनेशन में काशी की सड़कों पर जैसी अपार भीड़ दिखी है , वह अप्रतिम है। जैसे समूची काशी उमड़ पड़ी थी। इस भीड़ में बनारस के मुसलमान भी उपस्थित थे। पूरे जोश-खरोश के साथ। लोग सुबह 6 बजे से मोदी की प्रतीक्षा में खड़े हो गए। ट्रेन का टिकट कैंसिल करवा-करवा कर मोदी को देखने के लिए रुक गए।  बीमार होने के कारण नीतीश को छोड़ कर ग्यारह राज्यों के मुख्यमंत्री , कई केंद्रीय मंत्री और समूचा एन डी ए परिवार जिस तरह उपस्थित था हर बार की तरह , वह सायास नहीं अनायास था। प्रस्तावक में ज्योतिषी गणेश शास्त्री [ ब्राह्मण ] ,समेत दो ओ बी सी और एक दलित थे। वही गणेश शास्त्री जिन्हों ने अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त निकाला था। 

जैसा रोड शो मोदी ने लगातार दो दिन में पटना और बनारस में किया है , इंडिया गठबंधन के लोगों को क्यों नहीं करना चाहिए। क्यों नहीं करते। इन सभी रोड शो में , रैली में महाकुंभ जैसी भारी भीड़ तो थी ही , मोदी को देख कर , छू कर मारे ख़ुशी के लोग रोने लग रहे थे। क्या बच्चे , क्या स्त्रियां और क्या वृद्ध ! मालवीय जी की मूर्ति पर माल्यार्पण के बाद बनारस में जिस मार्ग पर मोदी का रोड शो होता है , हुआ है उस की एक सांस्कृतिक परंपरा भी है। आदि शंकराचार्य विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के लिए इसी मार्ग से गए थे। स्वामी विवेकानंद भी। नेता जी सुभाषचंद्र बोस भी। और भी अन्य लोग। दक्षिण भारत में नरेंद्र मोदी के तमाम शहरों के रोड शो में भी लोगों का हुजूम देखा गया है। लोग आरती की थाल ले कर दूर से ही मोदी की आरती करते दिखे हैं , दक्षिण भारत के शहरों में। घंटा-घड़ियाल बजाते हुए , पुष्प वर्षा करते हुए लोग विभोर होते रहे हैं। और यह बाहर से गए लोग नहीं , स्थानीय लोग थे। मुस्लिम पुरुष और स्त्रियां भी झुंड के झुंड थीं। तो आप को क्या लगता है काशी के कोतवाल बाबा भैरवनाथ ने इन्हें भेजा था , इस रोड शो में ? हो सकता है। पर असल बात है मोदी का चौतरफा काम। जो लोगों को चुंबक की तरह मोदी की तरफ खींच लाता है। केरल जैसे मुस्लिम और ईसाई बहुल प्रदेश में भी। तमिलनाडु जहां कुछ लोग सनातन को एड्स , कैंसर बताने में बढ़-चढ़ कर हैं। उत्तर भारत के प्रदेशों को गोमूत्र प्रदेश कहते हैं। वहां भी जनता-जनार्दन टूटी पड़ी दिखी है। 

नरेंद्र मोदी इस रोड शो को जनता का दर्शन बताते हैं। बनारस में जनता का दर्शन करते हुए , बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने जाते हैं। इस रोड पर सैकड़ों मंदिर हैं। दक्षिण से लगायत उत्तर तक के समुदाय के। मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग भी रहता है इसी मार्ग पर। लेकिन कभी कोई काला झंडा या विरोध नहीं दिखा। कल बनारस में इस मार्ग के दोनों तरफ भीड़ इतनी थी कि तिल रखने की जगह नहीं थी। मार्ग पर गुलाब की पंखुड़ियां। छत , खिड़की , बालकनी सब ठसाठस। इसी तरह एक दिन पहले पटना में हुए रोड शो में भी सड़क के दोनों तरफ भीड़ इस कदर थी कि वहां भी कहीं तिल रखने की जगह नहीं थी। छत , खिड़की , बालकनी ठसाठस। दो किलोमीटर का रोड शो , तीन किलोमीटर में अचानक बदल गया। पर क्या कीजिएगा , बनारस में कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय बड़े ठाट से कहते हैं कि हम बनारसी हैं। लोग हमारे साथ है और बनारस के लोग मोदी को भारी वोट से हरा रहे हैं। तब जब कि अजय राय की ज़मानत बचनी कठिन है। 

ठीक यही हाल समूचे इंडिया गठबंधन का है। जनता तो जनता , नेता साथ छोड़ चुके हैं। लेकिन यह लोग संविधान बचाने के लिए , आरक्षण बचाने के लिए , तानाशाह को हटाने के लिए एकजुट हैं। काश कि यह लफ्फाज लोग सचमुच एकजुट होते और जनता भी इन के साथ होती। आप की राज्य सभा सांसद स्वाति मालीवाल मुख्यमंत्री केजरीवाल के घर में उन के पी ए द्वारा पिट जाती हैं। पुलिस को फोन कर के बुलाती हैं। रिपोर्ट लिखवाने थाने भी जाती हैं। पर बिना रिपोर्ट लिखवाए वापस हो जाती हैं। फोन स्विच आफ कर अंतर्ध्यान हो जाती हैं। पर केजरीवाल समेत समूचा गठबंधन चुप रह जाता है। इस चुप्पी में सभी एकजुट हैं। 

एक समय मोदी से नाराज आडवाणी कहते थे कि मोदी बहुत बड़े इवेंट मैनेजर हैं। आडवाणी ठीक है कहते थे। पर तब आडवाणी यह बताना भूल गए थे कि मोदी बहुत बड़े इलेक्शन मैनेजर भी हैं। 2014 , 2019 में तो यह साबित हुआ ही। 2024 में यह कहीं ज़्यादा मज़बूती से साबित होने जा रहा है। 

नरेंद्र मोदी के कुछ अंतर्विरोध भी हैं। खुलेआम हैं। भाषणों में कई बार लटपटा जाते हैं। कुछ का कुछ बोल जाते हैं। जैसे 2014 में मगहर की एक सभा में बोल गए कि गोरख , कबीर , गुरू नानक आदि यहां बैठ कर विचार विमर्श करते थे। यह ठीक है कि कबीर और गुरू नानक जैसे लोग गुरू गोरखनाथ के अनन्य अनुयायी हैं। नाथपंथी हैं। पर समयकाल इन सब का अलग-अलग है। सो एक साथ कभी नहीं बैठे। विचार विमर्श का तो प्रश्न ही नहीं। अभी और बिलकुल अभी उड़ीसा में नवीन पटनायक की धुलाई करते हुए मोदी कह गए कि नवीन बाबू को तो ज़िलों की राजधानी के बारे में नहीं मालूम। ऐसी उलटबासियां जब तब नरेंद्र मोदी उपस्थित करते ही रहते हैं। 

पर अपने राहुल गांधी ? 

जैसे उलटबासियों के सागर हैं। बहुतेरे राजनीतिज्ञ हैं। किस-किस का नाम लें। राजीव गांधी और संजय गांधी भी एक से एक खटराग कर गए हैं। 

महाभारत में एक क़िस्सा आता है , जो कमोवेश सभी लोग जानते हैं। कि श्रीकृष्ण के पास पहले दुर्योधन पहुंचा था। मारे घमंड के श्रीकृष्ण के सिरहाने बैठा। अर्जुन बाद में पहुंचे और पैताने बैठे। श्रीकृष्ण ने पहले अर्जुन से बात शुरु की और दुर्योधन के पहले आने के हस्तक्षेप को मुल्तवी करते हुए तर्क दिया कि पहले उन्हों ने अर्जुन को देखा , सो वह पहले अर्जुन से बात करेंगे। और की भी। पर श्रीकृष्ण जब सोए हुए थे तब एक घटना और घटी। जो कम लोग जानते हैं। हुआ यह कि दुर्योधन तो पहले ही से पहुंचा हुआ था। पर जब अर्जुन आए तो दुर्योधन ने अर्जुन पर तंज करते हुए पूछा , कहिए इंद्र पुत्र कैसे आना हुआ ? अर्जुन तिलमिला कर रह गए पर चुप रहे। 

गौरतलब है कि कुंती के तीन पुत्र थे , युधिष्ठिर , भीम और अर्जुन। कर्ण को मिला लें तो चार पुत्र। कर्ण विवाह पूर्व सूर्य के पुत्र हैं। जब कि अर्जुन , कुंती-पाण्डु विवाह के बाद भी इंद्र पुत्र हैं। तो दुर्योधन ने इसी बात पर तंज किया। ख़ैर , बाद में श्रीकृष्ण की बात जब अर्जुन से हो गई तो दुर्योधन की तरफ मुखातिब होते हुए श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि कहिए व्यास नंदन , आप का कैसे आना हुआ ? यह सुन कर दुर्योधन तिलमिला गया। पर चुप रहा। कोई प्रतिक्रिया नहीं दी श्रीकृष्ण को। असल में श्रीकृष्ण दुर्योधन और अर्जुन के आने के समय सोए ज़रुर थे पर दोनों का संवाद सुन लिया था। 

सब जानते हैं कि धृतराष्ट्र , पाण्डु और विदुर महर्षि व्यास की संतान थे। लंबी कथा है , यह भी। तो इसी बिंदु पर कटाक्ष करते हुए श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को इंगित किया कि अगर अर्जुन इंद्र पुत्र हैं तो बेटा दुर्योधन , तुम भी पाक-साफ़ नहीं हो। हो तो व्यास नंदन ही। 

तो एक से एक व्यास नंदन हमारी भारतीय राजनीति में भरे बैठे हैं। अपना-अपना विष समेटे। आप के हिस्से किस का क्या आता है , आप ही को देखना-समझना और भोगना होगा। 


Sunday, 12 May 2024

राजीव गांधी की जीत को मात देती नरेंद्र मोदी की हाहाकारी जीत

दयानंद पांडेय 

2024 में अनुमान से कहीं अधिक नरेंद्र मोदी की हाहाकारी जीत 1984 के राजीव गांधी की कांग्रेसी जीत को मात देने जा रही है। तब इंदिरा लहर थी , अब की राम लहर है। बतर्ज राम से बड़ा राम का नाम। बड़े-बड़े अक्षरों में कहीं यह लिख कर रख लीजिए। स्क्रीनशॉट ले कर रख लीजिए। ताकि सनद रहे और वक़्त ज़रूरत काम आए। आलम यह है कि जनता के बीच कभी भूल से भी नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कोई टिप्पणी कर देने पर जनता मारने के लिए दौड़ा लेती है। समय पर चुप न हो जाइए तो पिटने की नौबत आ जा रही है। हालां कि राजनीति और चुनाव में असंभव जैसा शब्द कभी नहीं होता। कभी भी कुछ भी संभव हो सकता है। अपराजेय कहे जाने नरेंद्र मोदी भी कभी न कभी हार सकते हैं पर अभी और बिलकुल अभी तो नामुमकिन है। 2024 के इस चुनाव में मोदी के 400 पार के टारगेट को रोक पाना किसी भी के लिए असंभव सा ही दिखता है फ़िलहाल। 400 पार नहीं , न सही , 400 के आसपास तो है ही। दस-पांच सीट आगे-पीछे हो सकती हैं। बस।  बहुत ज़्यादा उलटफेर होता नहीं दीखता , 2024 की चुनावी धरती पर। विकास के असंख्य काम तो हैं ही भाजपा और एन डी ए के खाते में। आगे की रणनीति भी अदभुत  है। भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर पर जो लाजवाब काम किए हैं मोदी ने वह तो न भूतो , न भविष्यति। सड़कों का महाजाल , एयरपोर्ट , रेल , अंतरिक्ष हर कहीं धमाकेदार उपस्थिति। तिस पर गरीबों को मुफ़्त राशन , पक्का मकान , शौचालय , गैस , जनधन , आयुष्मान जैसी योजनाएं बिना किसी भेदभाव के , बिना हिंदू-मुसलमान के। लेकिन सेक्यूलरिज्म के थोथे नारे ने मुसलमानों को मुख्य धारा से काट कर सिर्फ़ यूज एंड थ्रो वाला वोट बैंक बना कर अभिशप्त कर दिया है। इतना कि मुसलमान सिर्फ़ इस्लाम सोचता है। ओवैसी जैसे लोग सिर्फ़ मुसलमान की बात करते हैं। देश , समाज , विकास आदि की परिधि से इतर सिर्फ़ इस्लाम और इस्लाम। नतीज़ा हिंदू-मुसलमान। वनली हिंदू-मुसलमान। यही चुनाव है और यही चुनाव परिणाम है। 

मोदी की मानें तो 2047 की कार्य-योजना पर वह कार्यरत हैं। 2047 की कार्य-योजना मतलब विकास की योजना। दुनिया में भारत को नंबर वन बनाने की योजना। हिंदू-मुसलमान की योजना नहीं। चौतरफा विकास की पूर्णिमा की यह चांदनी न भी होती तो भी सिर्फ़ कश्मीर में 370 हटाने और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण ही काफी था नरेंद्र मोदी की तिबारा सरकार बनवाने के लिए। हैट्रिक लगाने के लिए। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय सुनिश्चित कर दिया है। बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित इस सूर्योदय को अपने अहंकार के ग्रहण से ढंक लेना चाहते हैं। लेकिन सूर्योदय तो हो रहा है। सूर्य तो चमक रहा है। राजनीतिक पंडित दक्षिण भारत में राम लहर को नहीं देख पा रहे हैं तो यह उन का दृष्टिभ्रम है। दक्षिण भारत ही क्यों समूचे भारत में राम लहर अनायास ही देखने को मिल रहा है। शायद इसी लिए 2024 का यह लोकसभा चुनाव अंतत: हिंदू-मुसलमान और आरक्षण की मूर्खता के युद्ध में तब्दील हो चुका है। न विपक्ष मोदी के दस साल के कामकाज पर सवाल खड़े कर रहा है , न मोदी अपने कामकाज पर बात कर रहे हैं। यह गुड बात नहीं है। भ्रष्टाचार , बेरोजगारी और महंगाई जैसी सर्वकालिक समस्याएं भी इंडिया गठबंधन ने अपने अहंकार में बंगाल की खाड़ी में बहा दी हैं। उन की प्राथमिकता में हिंदू-मुसलमान ही रह गया है। 

एक मुस्लिम वोट बैंक के पागलपन के नशे में समूचा इंडिया गठबंधन धुत्त है। इतना कि इंडिया गठबंधन के लोग हर बार की तरह भूल बैठे हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की सारी ताक़त ही है मुस्लिम तुष्टिकरण। 2014 में नरेंद्र मोदी की विजय हिंदू-मुसलमान के नैरेटिव पर ही हुई थी। अन्ना हजारे के आंदोलन या मनमोहन सिंह सरकार के भ्रष्टाचार के आधार पर नहीं। सर्जिकल स्ट्राइक , एयर स्ट्राइक के सुबूत मांगने , नोटबंदी , जी एस टी , राफेल के तमाम शोर-शराबे और साज़िश के बावजूद 2019 का लोकसभा चुनाव भी मोदी ने हिंदू-मुसलमान की पिच पर ही न सिर्फ़ जीता बल्कि ज़्यादा बढ़त के साथ जीता। और जान लीजिए कि 2024 का लोकसभा चुनाव भी नरेंद्र मोदी इसी हिंदू-मुसलमान की पिच पर कहीं और ज़्यादा बढ़त के साथ जीतने जा रहे हैं। याद दिलाता चलूं कि भारतीय राजनीति में हिंदू-मुसलमान और जातीय राजनीति की जनक कांग्रेस है। हिंदू-मुसलमान की बुनियाद पर भारत का बंटवारा हो गया। इसी कांग्रेस की दुरंगी नीति के चलते। यही कांग्रेस अब भी हिंदू-मुसलमान की लालटेन जलाए रखती है। कांग्रेस की देखादेखी क्षेत्रीय पार्टियों यथा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी , बहुजन समाज पार्टी तथा बिहार राष्ट्रीय जनता दल ने तो रीढ़ और चेहरा ही बना लिया मुस्लिम वोट बैंक को। एम वाई का टर्म ही बन गया। अलग बात है कि पहले जो एम वाई का अर्थ था , मुस्लिम और यादव वह एम वाई धीरे-धीरे मोस्टली यादव में तब्दील हो गया है। फिर भी अभी एक इंटरव्यू में अखिलेश यादव कहने लगे एम वाई मतलब महिला और युवा। तो एंकर हंसती हुई बोली , अखिलेश जी जब आप राजनीति में नहीं थे तब से पत्रकारिता कर रही हूं। अखिलेश यह सुन कर पूरी बेशर्मी से टोटी बन गए। 

ख़ैर यह भी याद दिलाता और पूछता चलूं कि अगर गोधरा न होता तो ? 

गोधरा न होता तो 2002 में गुजरात दंगा न हुआ होता। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों को तब जिस तरह पूरी बेरहमी से कुचला और दंगाइयों के होश ठिकाने किए , वह एक नज़ीर बन गया। गोधरा जिस में ट्रेन की कई बोगियों का बाहर से फाटक बंद कर मिट्टी का तेल डाल कर अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों को ज़िंदा जला कर मारा गया , नरसंहार किया गया , इस पर सिरे से ख़ामोश रहने वाले लोगों ने गुजरात दंगों को स्टेट स्पांसर दंगे का नैरेटिव गढ़ा। सी बी आई जांच करवाई मनमोहन सिंह सरकार ने। बारह-बारह घंटे लगातार सी बी आई तत्कालीन मुख्यमंत्री , गुजरात नरेंद्र मोदी से पूछताछ करती थी तब के दिनों। यह वही दिन थे जब अमित शाह को पहले जेल फिर तड़ीपार किया गया मनमोहन सरकार के इशारे पर। सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर बताया। ख़ून का सौदागर बताया। एक से एक नैरेटिव गढ़े गए। तीस्ता सीतलवाड़ ने एन जी ओ बना कर , मोदी के ख़िलाफ़ तमाम फर्जी मुकदमे दर्ज करवाते हुए , आंदोलन करते हुए करोड़ो रुपए कमाए। तमाम अदालतों से होते हुए मामला सुप्रीमकोर्ट तक गया और सभी मामलों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिली। 

देश के लोगों को समझ आ गया कि दंगाइयों से अगर कोई निपट सकता है तो वह नरेंद्र मोदी ही है। मुस्लिम तुष्टिकरण का क़िला अगर कोई तोड़ सकता है तो वह वनली नरेंद्र मोदी। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सॉफ्ट लोग नहीं। लालकृष्ण आडवाणी जैसे हार्डकोरर भी नहीं। इसी बिना पर 2013 में 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री के लिए प्रस्तावित किया गया। तैयारी 2012 में ही हो गई थी। बताया गया विकास का गुजरात मॉडल। लेकिन यह परदा था। सच तो यह था जो खुल कर कहा नहीं गया , वह था मुसलमानों के तुष्टिकरण को रोकने का गुजरात मॉडल। दंगाइयों को सबक़ सिखाने का गुजरात मॉडल। 2014 में भी पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया था। प्रचंड बहुमत से जीत कर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। 

गुजरात का विकास मॉडल पूरे देश में लागू किया। विकास के साथ ही दंगाइयों को क़ाबू किया और मुस्लिम तुष्टिकरण के कार्ड को नष्ट और ध्वस्त करते हुए बता दिया कि मुस्लिम वोट बैंक नाम की कोई चीज़ नहीं होती , सत्ता की राह में। मुस्लिम वोट बैंक को ध्वस्त करने के लिए मंडल-कमंडल के वोट को एक साथ किया। बताया कि यह हिंदू वोट बैंक है। इस के लिए 2012 से ही काम किया गया तब जा कर 2014 में सफलता मिली। पहली बार देश में भाजपा की बहुमत की सरकार बनी। पर नाम एन डी ए ही रहा। घटक दलों को सरकार में भी सम्मान देते हुए शामिल किया गया। 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ गुजरात दंगे की तोहमत तो कांग्रेस ने लगाया ही , उन की डिग्री की जांच-पड़ताल भी बहुत हुई। मोदी की पत्नी यशोदाबेन की खोज भी दिग्विजय सिंह जैसों ने की। ऐसे जैसे कोलंबस ने भारत की खोज की हो। पर सारे जतन धराशाई हो गए। ख़ुद दिग्विजय सिंह की बेटी की उम्र की अमृता राय से उन की प्रेम कहानी मोदी ने परोसवा दी। दिग्विजय-अमृता के तमाम अंतरंग फ़ोटो सोशल मीडिया पर घूमने लगे। 

लाचार हो कर दिग्विजय सिंह को अमृता राय से विवाह करना पड़ा। फिर भी उन का राजनीतिक निर्वासन हो गया। तब के समय राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु दिग्विजय सिंह ही थे। मणिशंकर अय्यर हुए फिर। फिर सैम पित्रोदा। सब खेत हो गए बारी-बारी। अब वामपंथी बुद्धिजीवियों ने राहुल और उन की कांग्रेस को घेर लिया है। वामपंथी बुद्धिजीवी ही उन के भाषण लिखते हैं। नारे लिखते हैं। राहुल गांधी को कटखन्ना और अप्रासंगिक बना कर प्रियंका को लड़की हूं , लड़ सकती हूं का पाठ याद करवाते हैं। अहंकार ,  बदतमीजी की भाषा से सराबोर कर संपत्ति के समान बंटवारे की थीसिस समझा कर राहुल की राजनीति का बंटाधार करवाने की पूरी योजना बनाते हैं। नरेंद्र मोदी और भाजपा को वामपंथी बुद्धिजीवियों का विशेष आभार मानना चाहिए। क्यों कि राहुल गांधी को मोदी का बेस्ट प्रचारक बनाने में वामपंथी बुद्धिजीवियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।अपना बेस्ट एफर्ट लगा दिया है। लतीफ़ा और पप्पू बनने के बावजूद वामपंथी बुद्धिजीवियों का बेस्ट एसेट हैं राहुल गांधी। 

मोहब्बत की दुकान में नफ़रत और घृणा का सामान कैसे बेचा जाता है , वामपंथी बुद्धिजीवी ही तो सिखाते हैं राहुल गांधी को। यह हिंदू-मुसलमान भी वामपंथी ही सिखाते हैं। बुद्धू लेकिन धूर्त आदमी चने की झाड़ पर चढ़ जाता है। नहीं जानता कि विकास की पूर्णिमा की चांदनी के साथ ही साथ हिंदू-मुसलमान की पिच भी  नरेंद्र मोदी की ताक़त है। पाकिस्तान और उस के आतंक का जो बाजा बजा देता हो , भीख का कटोरा थमा देता हो , अभिनंदन जैसे जांबाज़ को रातोरात वापस ला सकता हो उस के सामने कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का मुस्लिम वोट बैंक तो बिना किसी मिसाइल के चित्त हो जाता है। इंडिया गठबंधन के रणनीतिकारों को अब से सही , आगामी 2029 के चुनाव में ही सही , तय कर लेना चाहिए कि हिंदू-मुसलमान की पिच न बनाएं। न भाजपा के बुलाने पर भी इस पिच पर आएं। यह पिच देश , समाज और राजनीति के लिए तो हानिकारक है ही , कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए बेहद हानिकारक। हिंदू-मुसलमान , आरक्षण की खेती , जाति-पाति इस वैज्ञानिक युग में छोड़ने का अभ्यास करना चाहिए। 

महाभारत का जुआ प्रसंग याद आता है। जुआ खेलने से पहले युधिष्ठिर कृष्ण को सभा से बाहर जाने को कह देते हैं। कृष्ण के सामने वह जुआ नहीं खेलना चाहते थे। बाद में कृष्ण कहते हैं कि एक तो जुआ खेलना नहीं था। खेला भी तो मुझे साथ रखना चाहिए था। जैसे दुर्योधन ने शकुनि को अपनी तरफ से पासे फेकने के लिए रखा , युधिष्ठिर भी मुझे रख सकते थे। मैं शकुनि को हरा देता। जीतने नहीं देता। द्रौपदी का चीर हरण नहीं होता। तो यही स्थिति नरेंद्र मोदी की है। जो लोग नहीं जानते , अब से जान लें कि राम मंदिर बनवाने के लिए भी नरेंद्र मोदी ने कृष्ण नीति का उपयोग किया। चुनाव जीतने में भी नरेंद्र मोदी कृष्ण नीति का डट कर उपयोग करते हैं। अश्वत्थामा मरो , नरो वा कुंजरो किसी युधिष्ठिर से कहलवा ही देते हैं। जयद्रथ को मरवाने के लिए सूर्यास्त का ड्रामा भी। जाने क्या-क्या। चाणक्य भी साथ रखते ही हैं। भाजपा के सारथी भी हैं नरेंद्र मोदी और अर्जुन भी। जब जो भूमिका मिल जाए। बन जाए। इसी लिए दुहरा दूं कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लोग जब हिंदू-मुसलमान और जाति-पाति के आचार्य जब थे , तब थे। अब इस का आचार्यत्व नरेंद्र मोदी के पास है। इसी लिए अनुमान से कहीं अधिक हाहाकारी जीत होने जा रही नरेंद्र मोदी की। पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा है। 

भाजपा हो , एन डी हो , कांग्रेस या इंडिया गठबंधन , मोदी नाम केवलम पर लड़ रहे हैं। 

तानाशाह कह लीजिए , सांप्रदायिक कह लीजिए , अंबानी , अडानी जैसे पूंजीपतियों का मित्र कह लीजिए , यह आप की अपनी ख़ुशी है , आप का अपना ईगो मसाज है। पर जनता-जनार्दन ने नरेंद्र मोदी का एक नाम विजेता रख दिया है। विश्व विजेता। समय की दीवार पर लिखी इस इबारत को ठीक से पढ़ लीजिए। नहीं पढ़ पा रहे हैं तो अपनी आंख का इलाज कीजिए , चश्मा बदल लीजिए। और जो फिर भी नहीं पढ़ पा रहे हैं , अपनी ज़िद और सनक पर क़ायम हैं तो आप को आप की यह बहादुरी मुबारक़ ! ठीक वैसे ही जैसे सैम पित्रोदा और मणिशंकर अय्यर अपने सुभाषितों से मोदी का बेड़ा गर्क कर रहे हैं , आप भी कीजिए न ! आप का भी यह मौलिक अधिकार ठहरा। ई वी एम का तराना अभी शेष ही था कि वैक्सीन का तराना भी लोग अचानक गाने लगे। लेकिन जैसे इलेक्टोरल बांड का गाना हिट नहीं हुआ , वैक्सीन का भी पिट गया है। 

1962 के चीन युद्ध का एक वाक़या है। एक युद्ध चौकी पर चीनी सैनिक बहुत कम रह गए थे। पास की भारतीय युद्ध चौकी पर भारतीय सैनिक ज़्यादा थे। चीनियों ने ख़ूब सारी भेड़ें इकट्ठी कीं। भेड़ों के गले में लालटेन बांध दीं। रात में लालटेन जला कर भेड़ों को भारतीय सीमा की तरफ हांक दिया। भारतीय सैनिकों को एक साथ इतने सारे लोग आते दिखे। लगा कि चीनी सैनिक आ रहे हैं। भारतीय सैनिक चीन के इस जाल-बट्टे में फंस गए। भारतीय सैनिक चौकी छोड़ कर भाग चले। चीन का नैरेटिव काम कर गया। भारतीय सेना हार गई। चौकी छिन गई। लेकिन चीन अब गले में लालटेन बांध कर , भेड़ हांक कर नहीं जीत सकता। कोरोना नाम की भेड़ लालटेन बांध कर आई थी चीन से , पराजित हो कर लौट गई। भारत का विपक्ष यानी इंडिया गठबंधन लेकिन अभी भी गले में लालटेन बांध कर भेड़ छोड़ने का अभ्यस्त है। भूल गया है कि थोक के भाव इधर-उधर के नैरेटिव रचने से चुनाव नहीं जीते जाते। कांग्रेसियों द्वारा जारी अमित शाह का आरक्षण संबंधी फर्जी वीडियो एक उदहारण है। इस डाल से उस डाल कूद कर मंकी एफर्ट से भी चुनाव नहीं जीते जाते। सेटेलाइट , नेट और ड्रोन का ज़माना है। घर बैठे दुनिया की किसी सड़क , किसी धरती , किसी आसमान का हालचाल तुरंत-तुरंत ले लेने का समय है यह। माना कि कुटिलता और धूर्तता राजनीति का अटूट अंग है। लेकिन इंडिया गठबंधन इस मामले में भी एन डी ए से बहुत पीछे है। नरेंद्र मोदी कुटिलता , धूर्तता और कमीनेपन में बहुत आगे हैं। कोसों आगे। राहुल गांधी जैसे लोग बहुत बच्चे हैं , इस मामले में। लालू यादव जैसे लोग दगे कारतूस हैं। एक शब्द है , मेहनत। नरेंद्र मोदी का कोई सानी नहीं है। दिन-रात इतनी मेहनत , इस उम्र में तो छोड़िए एक से एक लौंडे राहुल , अखिलेश , तेजस्वी सोच भी नहीं सकते। तेजस्वी तो इस चुनाव प्रचार में जाने कितनी बार ह्वील चेयर पर दिखा है। यह कैसी नौजवानी है ? 

अब देखिए न बीच चुनाव में दिल्ली शराब घोटाले के पितामह अरविंद केजरीवाल को बिना मांगे सुप्रीमकोर्ट ज़मानत थमा देता है , चुनाव प्रचार के लिए। यह भी लगभग असंभव था पर केजरीवाल के लिए संभव बन गया। अलग बात है केजरीवाल के प्रचार का कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं दीखता इस लोकसभा चुनाव में। क्यों कि अरविंद केजरीवाल भी चीन की वही भेड़ हैं जो गले में लालटेन बांधे घूम रही है। केजरीवाल के जेल में रहने से कुछ सहानुभूति का लाभ मिल रहा था , वह भी अब जाता रहा। सुप्रीम कोर्ट और अभिषेक मनु सिंधवी ने अनजाने ही सही केजरीवाल का नुकसान कर दिया है। क़ानून का मज़ाक उड़ा दिया है। जाने कितने की डील हुई है। क्यों कि अदालतें ऐसे फ़ैसले बिना किसी डील के नहीं करतीं। परंपरा अभी तक की यही है। 

वैसे भी इंडिया गठबंधन एक डूबता हुआ जहाज है। राहुल ने मोदी को डेढ़ सौ सीट मिलने का ऐलान किया है। प्रियंका ने 180 और अरविंद केजरीवाल ने कोई दो सौ तीस सीट देने का ऐलान किया है और बताया है कि मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। फिर इसी सांस में यह भी कह दिया कि मोदी चूंकि 75 के होने वाले हैं इस लिए वह अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं। इसी सांस में वह योगी की छुट्टी और ममता बनर्जी को जेल में भेजने का ऐलान थमा देते हैं। और सरकार नहीं बनेगी का चूरन फांकते हुए खांसने लगते हैं। तानाशाह भी बता देते हैं। संविधान बचाने का गाना भी गा देते हैं। बताइए कि सुप्रीम कोर्ट के माननीय लोग इस केजरीवाल को इसी बिना पर मोदी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रोकने के लिए भेजे हैं। ग़ज़ब न्यायप्रिय लोग हैं। एक न्याय राहुल दे रहे हैं , दूसरा टोटी यादव के रूप में विख्यात अखिलेश यादव। संदेशखाली की ममता बनर्जी के अजब रंग हैं। एक पूर्व जस्टिस और एक संपादक मोदी-राहुल में बहस करवाने का न्यौता अलग लिए घूम रहे हैं। ऐसे गोया छात्र-संघ का चुनाव हो रहा हो। राहुल ने न्यौता क़ुबूल करने का ऐलान कर दिया है। पहले भी वह मोदी से डिवेट की तमन्ना रखते हुए चैलेंज देते रहे हैं। पर मोदी ने कभी लिफ्ट नहीं दी। तानाशाह जो ठहरा। 

देखिए तो वर्तमान में भी एन डी ए के पास भीतर-बाहर मिला कर 400 सीट है ही। हालां कि कुछ चतुर सुजान 2024 के इस लोकसभा चुनाव में 1977 के चुनाव की छाया देखते हुए सब कुछ उलट-पुलट होते हुए देख रहे हैं। इन चतुर सुजानों को लगता है कि जैसे तब 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी जैसी परम शक्तिशाली शासक की चुनावी नाव डूब गई थी , ठीक वैसे ही नरेंद्र मोदी की चुनावी नाव 2024 में डूबने जा रही है। पर यह तथ्य नहीं , उन चतुर सुजानों की मनोकामना है। और मनोकामना से कभी राजनीति नहीं सधती , न ही चुनाव। ग़ालिब लिख ही गए हैं :

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन 

दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है। 

असल में लोकसभा , 2024 का चुनाव इस क़दर एकतरफा हो चला है कि किसी आकलन , किसी विश्लेषण की आवश्यकता ही नहीं रह गई है। कोई आकलन करे भी तो क्या करे। फिर भी चर्चा-कुचर्चा तो हो ही सकती है। 

जैसे लड़की हूं , लड़ सकती हूं की हुंकार भरने वाली प्रियंका वाड्रा को सोनिया ने कहीं से क्यों लड़ने लायक़ नहीं समझा। रावर्ट वाड्रा तो खुलेआम इज़हार कर रहे थे कि अमेठी से वह लड़ना चाहते हैं। अब राज्य सभा की तान ले रहे हैं। सोनिया ने लेकिन वाड्रा को भी झटका दे दिया। अमेठी छोड़ कर रायबरेली से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने को राहुल गांधी के वर्तमान मुख्य चाटुकार जयराम रमेश ने बताया है कि राहुल गांधी राजनीति और शतरंज के मजे हुए खिलाड़ी हैं। वह सोच समझ कर फ़ैसला लेते हैं। राहुल सोचते-समझते भी हैं , यह मेरे लिए नई सूचना है। हक़ीक़त तो यह है कि इस मजे हुए खिलाड़ी ने समाजवादी पार्टी के कंधे पर बैठ कर रायबरेली का चुनाव जीतने की रणनीति बनाई है। इस रणनीति में जीत का अपना कोई दांव नहीं है। वायनाड का तो स्पष्ट नहीं पता पर रायबरेली से अगर राहुल गांधी चुनाव हार जाते हैं तो बिलकुल आश्चर्य नहीं करना चाहिए। अमेठी से स्मृति ईरानी की लपट रायबरेली तक पहुंचने में बहुत देर नहीं होगी। क्यों कि अमेठी में कांग्रेस ने सोनिया के मुंशी , मुनीम टाइप के एल शर्मा को खड़ा कर स्मृति ईरानी को जैसे वाकओवर दे दिया है। फिर मोदी-योगी-शाह की तिकड़ी की रणनीति को आप क्या हलवा समझते हैं , रायबरेली के लिए। अलग बात है कि अगर उसी दिन अगर भाजपा फुर्ती दिखाते हुए रायबरेली से स्मृति ईरानी का भी नामांकन करवा देती तो मंज़र कुछ और होता। 

खैर , बकौल जयराम रमेश शतरंज और राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी राहुल गांधी ने जिस समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के कंधे पर बैठ कर रायबरेली जीतने का मंसूबा बनाया है , वही अखिलेश यादव कन्नौज में फंसे दीखते हैं। जाने क्या सोच कर रामगोपाल यादव ने अखिलेश यादव को कन्नौज के कीचड़ में उतार दिया है। बदायूं , फ़िरोज़ाबाद , आज़मगढ़ भी सपा क्लीयरकट गंवा रही है। मुलायम सिंह यादव याद आते हैं। जब लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में सम्मलेन कर मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा कर अखिलेश यादव को अध्यक्ष बनाया गया तभी मुलायम ने कहा था , रामगोपाल यादव ने अखिलेश का भविष्य ख़राब कर दिया है। तब लोगों ने मुलायम के इस बयान को उन की हताशा बता दिया था। पर जब 2017 का विधान सभा चुनाव हुआ और अखिलेश की सत्ता चली गई तब लोगों की समझ में आया। अलग बात है कि बीच चुनाव ही अखिलेश यादव के लिए लोग कहने लगे थे कि जो अपने बाप का नहीं हो सकता , वह किसी का नहीं हो सकता। कुछ समय पहले भरी विधानसभा में योगी ने भी अखिलेश को लताड़ लगाते हुए कहा कि , तुम ने तो अपने बाप का सम्मान नहीं किया ! और अब राहुल उसी अखिलेश यादव के बूते रायबरेली साधने आए हैं , मां की विरासत संभालने। 

तो क्या जैसा मोदी कहते आ रहे हैं कि शाहज़ादे वायनाड हार रहे हैं ?

पता नहीं। पर रायबरेली वह ज़रूर गंवा रहे हैं। हमारे एक मित्र हैं। पुराने समाजवादी हैं। मुलायम सिंह के इर्द-गिर्द जमे रहते थे। मुलायम ने बारंबार उन्हें राज्य सभा भेजने का लेमनचूस चुसवाया पर कभी भेजा नहीं। हां , एक बार उन्हें राज्य मंत्री स्तर का एक ओहदा ज़रूर दे दिया। वह उसी में ख़ुश रहे। बाद में अखिलेश यादव की उपेक्षा से आजिज आ कर वह कांग्रेस की गोद में जा बैठे। कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्य प्रवक्ता भी बना दिया। कि तभी चुनाव घोषित हो गए और फिर कांग्रेस और सपा के बीच संभावित समझौता हो गया। वह लेकिन भाजपा के ख़िलाफ़ बिगुल बजाने में पीछे नहीं हुए। बीते महीने उन से बात हो रही थी। बात ही बात में वह भाजपा और मोदी के चार सौ पार के दावे की बात करने लगे। पूछने लगे कि यह चार सौ आएंगे कहां से ? बढ़ाएंगे कहां से ? मैं ने उन्हें धीरे से बताया कि दक्षिण भारत से। पश्चिम बंगाल से। इस पर मित्र कहने लगे , दक्षिण भारत और पश्चिम बंगाल से इतना ? मैं ने कहा , बस देखते चलिए। 

पहले ही कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय निश्चित कर दिया है। बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित इस सूर्योदय को अपने अहंकार के ग्रहण से ढंक लेना चाहते हैं। लेकिन दक्षिण भारत में राम लहर है। इंडिया गठबंधन इस से बेख़बर है क्या ? गिलहरी प्रसंग याद कीजिए। 

समुद्र पर सेतु बन रहा था। सभी अपने-अपने काम पर लगे थे। एक गिलहरी यह सब देख रही थी। उसे बड़ी पीड़ा हुई कि हम कुछ क्यों नहीं कर पा रहे। उस ने सोचा और फिर अचानक रेत में लोटपोट कर सेतु बनने की जगह जा कर अपनी देह झाड़ देती। बार-बार ऐसा करते उसे राम ने देखा। राम को लगा कि जब यह गिलहरी अपनी सामर्थ्य भर काम कर रही है तो हम भी कुछ क्यों न करें। राम ने एक पत्थर उठाया। लोग पत्थर पर राम नाम लिख कर समुद्र में डाल रहे थे। राम ने सोचा , अपना ही नाम क्या लिखना भला। बिना राम नाम लिखे पत्थर जल में डाल दिया। पत्थर तैरने के बजाय डूब गया। दूसरा पत्थर डाला , वह भी डूब गया। तीसरा-चौथा सभी पत्थर डूबते गए। राम घबरा गए। पीछे मुड़ कर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा। देखा तो पाया कि हनुमान देख रहे हैं। राम ने हनुमान को बुलाया और पूछा कि कुछ देखा तो नहीं ? हनुमान ने कहा , प्रभु ! सब कुछ देखा ! राम ने हनुमान से कहा, चलो तुम ने देखा तो देखा पर किसी से यह बताना नहीं। हनुमान ने कहा , कि ना प्रभु , हम तो पूरी दुनिया को बताएंगे कि प्रभु राम का भी राम नाम के बिना कल्याण नहीं। इसी प्रसंग पर बहुत सारी भजन हैं , कथाएं हैं। एक मशहूर भजन है , राम से बड़ा राम का नाम ! तो क्या दक्षिण , क्या उत्तर , क्या पूरब , क्या पश्चिम राम से बड़ा राम का नाम चल रहा है। राम की यही मार जब इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ने लगी तो हिंदू-मुसलमान कर दिया। मुस्लिम आरक्षण का दांव चल दिया। 

दक्षिण भारत और पश्चिम बंगाल से सौ सीट भले न आए पर खाता खुलना बड़ी बात है। केरल से एक भी सीट ला पाना भाजपा के लिए सपना है पर अगर वायनाड ही जीत गई भाजपा तो ? कर्नाटक , आंध्र और तेलंगाना से तो भाजपा आ ही रही हैं। तामिलनाडु भी दौड़ में है। यह पहली बार होगा कि भाजपा दक्षिण भारत में अंगद की तरह पांव रखने जा रही है। राम मंदिर का संदेश और मोदी की रणनीति , मेहनत ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय लिख कर रख दिया है। उत्तर पूर्व में भी स्थिति बेहतर है। पश्चिम बंगाल में संदेशखाली ने ममता बनर्जी को सकते में डाल दिया है। उत्तर प्रदेश , राजस्थान , गुजरात और मध्य प्रदेश में कोई लड़ाई ही नहीं है। इंडी गठबंधन के उम्मीदवार ही खूंटा तोड़-ताड़ कर भागने लगे हैं। महाराष्ट्र और बिहार में तो इंडी गठबंधन के लोग परिवार को ही सर्वोपरि मानने में सब कुछ लुटा बैठे हैं। 

पंजाब में भाजपा की स्थिति बहुत ख़राब है लेकिन बाक़ी के प्रदेशों में भाजपा की बल्ले-बल्ले है। ख़ास कर उत्तर प्रदेश में तो योगी ने भाजपा के आगे किसी को टिकने के लिए ज़मीन ही नहीं छोड़ी है। अस्सी सीट नहीं , न सही पचहत्तर-छिहत्तर सीट साफ़ तौर पर भाजपा की झोली में है। मैनपुरी से डिंपल यादव तो क्लीयरकट जीत रही हैं पर कन्नौज से अखिलेश यादव की जीत पक्की नहीं है। बुरी तरह फंसे हुए हैं। उन के ऊपर जूते-चप्पल चल रहे हैं। बदायूं , फ़िरोज़ाबाद , आज़मगढ़ भी सपा गंवा रही है। मुख़्तार अंसारी के परिवार में फूट पड़ जाने के कारण ग़ाज़ीपर और मऊ भी खटाई में पड़ गया है। 

लड़की हूं , लड़ सकती हूं का ज्ञान भाखने वाली प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की रायबरेली , अमेठी तो क्या देश में कहीं से भी अपने को लड़ने के लायक नहीं मानतीं। माता सोनिया गांधी हार के डर से राज्य सभा चली गईं ताकि 10 जनपथ , नई दिल्ली का आलीशान बंगला न छिन जाए। लतीफ़ा गांधी की जहां तक बात है , वह हारे चाहें जीतें , उन की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। वह सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस डबल ज़ीरो पाने के लिए लड़ रही है। राहुल गांधी शायद अपनी ज़मानत बचा लें पर बाक़ी कांग्रेसियों की ज़मानत ज़ब्त है। 

इस चुनाव को आप महाभारत के अंदाज़ में देख सकते हैं। जिस में एक राहुल गांधी ही नहीं दुर्योधन की भूमिका में उपस्थित हैं। संपूर्ण इंडिया गठबंधन में यत्र-तत्र दुर्योधन और दुशासन उपस्थित हैं। कोई लाक्षागृह बना रहा है , कोई चीर-हरण में संलग्न है , कोई अभिमन्यु की हत्या में। 

इंडिया गंठबंधन को एक बात से संतोष बहुत है कि इस चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक का बंटवारा नहीं हो रहा है। एक संतोष यह भी है कि मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने मंडल-कमंडल के वोट बैंक को एक कर के 2014 और 2019 में एक कर के अपनी विजय पताका फहराई थी , जातीय जनगणना के उन के दांव में उसे छिन्न-भिन्न कर दिया है। इसी उत्साह का कुपरिणाम है कि मल्लिकार्जुन खड़गे शिव को राम से लड़ाने और राम पर शिव के विजय की घोषणा करने की मूर्खता कर बैठते हैं। 

कभी क्षत्रिय समुदाय की भाजपा से नाराजगी , कभी कोविशील्ड की अफ़वाह , कभी स्कूलों में बम , कभी आरक्षण , कभी हिंदू-मुसलमान , कभी कुछ , कभी कुछ। हौसला इतना पस्त है , बदहवासी इतनी है कि अखिलेश यादव की उपस्थिति में मंच पर माइक से शिवपाल यादव भाजपा की बड़ी मार्जिन से जिताने का ऐलान कर बैठते हैं। राहुल गांधी की जुबान अलग बदजुबानी पर उतरती रहती है , तू-तड़ाक की भाषा बोलने लगते हैं। 

चुनाव के पहले ही राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन ने जातीय जनगणना की ढोल बजा दी थी। मंशा साफ़ थी कि मंडल और कमंडल के वोट बैंक जो 2014 में भाजपा की सोशल इंजीयरिंग में एक हो चले हैं , उन्हें छिन्न-भिन्न कर तार-तार कर देना। नीतीश कुमार जब इंडिया गठबंधन में थे , बिहार में जातीय जनगणना का झंडा गाड़ दिया। भाजपा ने अवसर गंवाए बिना नीतीश कुमार को ही तोड़ कर एन डी ए में समाहित कर इंडिया गठबंधन की ताक़त में मनोवैज्ञानिक सेंधमारी कर दी। धीरे-धीरे इंडिया गठबंधन के कई सारे लोग ऐसे कूदने लगे जैसे किसी डूबते हुए जहाज से कूदने लगते हैं। कांग्रेस के डूबते जहाज से कूदने वालों की संख्या बेहिसाब है। सिलसिला है कि रुकता नहीं। नीतीश कुमार तो इतने उत्साहित हो गए हैं कि 400 की जगह 4000 सीट जितवाने की बात कर जाते हैं। 

अपने मौलिक अधिकार और सवाल पूछने के अधिकार का प्रयोग करते हुए आप पूछ सकते हैं कि जब सब कुछ इतना आसान है , हिंदू-मुसलमान की पिच जो मोदी को इतनी ही रास आती है तो दिन-रात इतना खट क्यों रहे हैं। इतना तीन-तिकड़म क्यों कर रहे हैं भला तो आप को कन्हैयालाल नंदन की यह कविता ज़रूर ध्यान में रख लेनी चाहिए। 

 तुमने कहा मारो

और मैं मारने लगा 

तुम चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं हारने लगा

माना कि तुम मेरे योग और क्षेम का

भरपूर वहन करोगे

लेकिन ऐसा परलोक सुधार कर मैं क्या पाऊंगा

मैं तो तुम्हारे इस बेहूदा संसार में/ हारा हुआ ही कहलाऊंगा 

तुम्हें नहीं मालूम 

कि जब आमने सामने खड़ी कर दी जाती हैं सेनाएं 

तो योग और क्षेम नापने का तराजू 

सिर्फ़ एक होता है

कि कौन हुआ धराशायी

और कौन है 

जिसकी पताका ऊपर फहराई 

योग और क्षेम के

ये पारलौकिक कवच मुझे मत पहनाओ

अगर हिम्मत है तो खुल कर सामने आओ 

और जैसे हमारी ज़िंदगी दांव पर लगी है

वैसे ही तुम भी लगाओ।