Tuesday, 16 May 2023

अपराध और विरोधी को भी निपटाने की कला की एक मुकम्मल किताब हैं हरिशंकर तिवारी

दयानंद पांडेय 

जो भी हो अब वह कल तिरंगे में विदा होंगे। वाणी और व्यवहार में अतिशय विनम्रता लेकिन आतंक का पर्याय भी। अद्भुत कंट्रास्ट था उन के व्यक्तित्व में। नाम था हरिशंकर तिवारी।  सत्तर और अस्सी का दशक के गोरखपुर और पूर्वांचल का ख़ूनी इतिहास हरिशंकर तिवारी के नाम के बिना कभी लिखा ही नहीं जा सकता। आज जब अभी-अभी  उन के विदा होने की ख़बर मिली है तो जैसे किसी सिनेमा की तरह वह सत्तर-अस्सी का दशक आंखों में नाच सा गया है। फिर नब्बे का दशक भी उसी तरह झांक गया है। जब वह बाहुबली की छवि लिए दिए कल्याण सिंह के मंत्रिमंडल में शपथपूर्वक शामिल हुए। कल्याण सिंह से तो नहीं लेकिन लखनऊ के राजभवन में मैं ने तभी अटल बिहारी वाजपेयी से पूछा था कि यह क्या है पंडित जी ? अटल जी किंचित चिंतित हुए। थोड़ा पॉज लिया और बोले , ' जनता ने चुन कर भेजा है। और क्या कहें ! ' क्यों कि तब कल्याण सिंह के मंत्रिमंडल में तब हरिशंकर तिवारी ही नहीं , राजा भैया , मार्कण्डेय चंद जैसे और भी कई बाहुबली शपथपूर्वक शामिल हुए थे। राजनीतिक विवशता कम सत्ता का स्वार्थ ज़्यादा था। राजनीति में शुचिता के कायल थे अटल जी। 31 मई , 1996  को लोकसभा में अपनी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर अटल जी ने कहा था 'मैं 40 साल से इस सदन का सदस्य हूं, सदस्यों ने मेरा व्यवहार देखा, मेरा आचरण देखा, लेकिन पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा।' उन की सरकार गिर गई थी। लेकिन यह 1997 था। 1997 से 1999 तक वह कल्याण सिंह मंत्रिमंडल में थे। वर्ष 2000 में रामप्रकाश गुप्ता और 2001 में राजनाथ सिंह मंत्रिमंडल में रहे। वर्ष 2002 में मायावती मंत्रिमंडल में और वर्ष 2003  में तिवारी मुलायम मंत्रिमंडल में आ गए। जैसे इन अस्थिर सरकारों की अनिवार्यता बन कर उपस्थित हुए हरिशंकर तिवारी। 

इतना नियोजित और अनुशासित जीवन जीते हुए किसी एक दूसरे माफ़िया को अभी तक नहीं देखा। नहीं उन के पहले और बाद के दिनों में भी जाने कितने माफ़िया आए और भभक कर बुझ गए। जेल हो गई। हत्या हो गई। अपमानित हुए। जाने क्या-क्या हुए। लेकिन हरिशंकर तिवारी ने सब कुछ के बावजूद न सिर्फ़ सम्मानित जीवन जिया बल्कि अपनी निर्धारित मृत्यु को पाए। स्वाभाविक मृत्यु। कहते हैं , बाढ़े पूत पिता के कर्मा , खेती बाढ़े अपने कर्मा ! तो तिवारी शायद अपने पिता के पुण्य की कमाई पर जीते रहे। हरिशंकर के पिता पुरोहित थे। सदाचारी थे। पूजा-पाठ ही उन का जीवन था। बहुत से परिवारों के वह गुरु बाबा थे। ख़ास कर यादव परिवारों के। यही यादव हरिशंकर तिवारी को बंपर वोट देते थे। पर तिवारी ठेके-पट्टे और पैसे के चक्कर इन यादवों से विमुख होते गए। मान लिया की हमारी जागीर हैं यह यादव वोट। तो दिन-ब-दिन हालत पतली हो गई। एक बार मुलायम ने   गोरखपुर में बड़हलगंज की एक सभा में मुलायम सिंह को कहना पड़ा कि यहां जितने यादव हैं , हाथ उठाएं। सभी यादवों ने हाथ उठाया। मुलायम ने कहा , कसम है तुम सभी यादवों को कि हरिशंकर तिवारी को वोट देना। तब भी कोई चार सौ कुछ वोट से ही उस बार जीत पाए। और तो और मुलायम का साथ भी छोड़ दिया। मुलायम इस बात को बड़ी कसक के साथ कहते थे। कहते थे कि बताओ , सभी यादवों से हाथ उठवा कर कसम खिलाई , तब किसी तरह तिवारी जीते और हमारा साथ छोड़ गए। ख़ैर , अगले चुनाव में बसपा प्रत्याशी राजेश तिवारी ने न सिर्फ़ हरिशंकर तिवारी को हरा दिया बल्कि मायावती सरकार में मंत्री भी बने। पर हरिशंकर तिवारी ने लोकपाल के यहां शिकायत दर्ज करवा कर मुक्तिधाम ट्रस्ट मामले की जांच करवा दी। राजेश तिवारी दोषी पाए गए और मंत्री पद से त्याग पत्र देना पड़ा। 2017 के चुनाव में तिवारी के बेटे ने राजेश तिवारी को हरा दिया। अब राजेश तिवारी 2022 का चुनाव जीत कर भाजपा विधायक हैं। 

हरिशंकर तिवारी भी खान-पान में सदाचारी थे। नियमित जीवन में भी। एक बार उन का विधान सभा क्षेत्र चिल्लूपार उन के साथ घूम कर लौट रहा था तो रास्ते में मेरा गांव भी पड़ा। वह मेरा गांव जानते थे। अचानक मेरे गांव पर अपना काफिला रोक कर बोले , ' आइए आप का घर भी देख लेते हैं। ' वह घर आए तो उन का पूरा काफिला आ गया। सब के चाय-नाश्ते का प्रबंध आनन-फानन हुआ। लेकिन उन्हों ने कुछ भी ग्रहण करने से इंकार कर दिया। बहुत दबाव पर बोले , ' अगर गाय की दही हो तो ले लूंगा। ' संयोग से उस समय मेरे घर पर दूध देने वाली दो गाय थीं। सो गाय की दही भी उपलब्ध थी। जब वह दही खाने लगे तो उन के कुछ ख़ास लोग चकित थे। मेरे छोटे भाई से उन का एक लेफ्टिनेंट बोला , ' पंडित जी कहीं कुछ खाते नहीं हैं। पर यहां तो दही खा रहे हैं। ज़रुर कोई ख़ास बात है। ' सचमुच वह हर बात में एहतियात बरतते थे। खान-पान और यात्रा में भी। यात्रा का रूट भी वह अचानक बदल देते थे। एक ही यात्रा में कार भी वह कई बार बदलते रहते थे। कभी इस कार में कभी उस कार में। कभी आगे बैठ जाते , कभी पीछे। ट्रेन से तो कभी चलते ही नहीं थे। कहते थे कि ट्रेन से चलूं तो पता नहीं कहां चेन पुलिंग कर के कोई मार दे। जहाज का टिकट रखा ही रह जाता , वह बाई रोड चल देते थे। बाई रोड चलने का कार्यक्रम होता , वह जहाज पकड़ लेते। लखनऊ से गोरखपुर अमूमन लोग अयोध्या होते हुए जाते हैं। वह गोंडा या सुल्तानपुर , आज़मगढ़ होते हुए भी चले जाते थे। लोगों की नींद उड़ाने वाले तिवारी ख़ुद नहीं सो पाते थे। बहुत कम सोते थे। कोइ दो घंटे। अमूमन रात दो से चार बजे तक। वह सोते भी थे तो चार-छ लोग उन के सोने की निगरानी में होते। सरकारी सुरक्षाकर्मी वह रखते नहीं थे। अपने निजी सुरक्षा साथियों को भी अकसर बदलते रहते थे। मृत्यु सर्वदा उन के क़रीब होती थी। सो कभी किसी पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं करते थे। अपने आप पर भी नहीं। अपने को कसौटी पर सर्वदा कसते रहते थे। अपने भांजे गणेश शंकर पांडेय पर ज़रुर ज़्यादा विश्वास किया। ठेके-पट्टे में भी और राजनीति में भी। गणेश पांडेय भी उन के प्रति समर्पित थे। इसी लिए विधान परिषद् अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचे। ठेके में उन के गंगोत्री इंटरप्राइजेज ने भी बहुत उत्कर्ष देखा। अरबों-खरबों में खेला। गंगोत्री हरिशंकर तिवारी की मां का नाम है। 

हरिशंकर तिवारी के ख़िलाफ़ मैं ने बहुत लिखा है। उन के लोगों ने मुझे धमकियां भी बहुत दीं। मेरी ससुराल तक धमकी पहुंची। जान से मारने तक की धमकी। मैं ने हरिशंकर तिवारी के दो इंटरव्यू लिए। एक गोरखपुर जेल में , दूसरा लखनऊ जेल में। वह मुझ से सर्वदा पूरे सम्मान के साथ बात करते। रऊरे कह कर संबोधित करते। एक बार गोरखपुर जेल में मैं ने उन से पूछा , ' आप बड़ी धमकियां दिलवाते हैं , मुझे ! '

वह फ़ौरन हाथ जोड़ कर बोले , ' रऊरे का कहत हईं ? ई सब हमरे दुश्मन लोगन क काम है। हमें बदनाम करे खातिर ! वह अकसर चलते समय मुझे बाहर तक छोड़ने आते। घर में घर के बाहर तक। जेल में , जेल के गेट तक। बाद में जब वह मंत्री हो गए तो न मैं कभी उन से मिलने गया न उन्हों ने मुझे कभी बुलाया। बिना बुलाए मैं किसी से मिलने जाता भी नहीं। या फिर अख़बार किसी ख़बर या इंटरव्यू के लिए एसाइन करे तब जाता था। मेरी बीट में भी कभी उन का कोई मंत्रालय नहीं रहा। हां , जब उन्हें पहली बार विज्ञान और पर्यावरण मंत्रालय मिला तो उन के समर्थक बहुत क्षुब्ध थे। अकसर कहते फिरते कि यह तो पंडित जी का अपमान है। एक बार वीरेंद्र शाही के एक समर्थक पत्रकार ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा , पंडित जी का अपमान है यह ? अरे प्रदेश के वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का अपमान है यह ! हरिशंकर तिवारी को ले कर गोरखपुर के बिगड़ैल युवा ब्राह्मणों में एक समय बड़ा क्रेज था। सब उन्हें पंडित जी नाम से संबोधित करते। कटे आम की तरह उन के चरणों में गिरते और नथुने फुला कर बाहर निकलते। जैसे जाने कितनी ऊर्जा मिल गई हो उसे। बाद के समय में जो जितना झुक कर पंडित जी के चरण छूता , उस के लिए वह कहते , बाहर यही सब से ज़्यादा मुझे बेचेगा। सच भी यही था। अस्सी के दशक में गोरखपुर के हर गांव में पंडित जी को बेचने वाले कुछ युवा मिल जाते। नान ब्राह्मण भी। पंडित जी ब्रांड थे गुंडई के। पंडित जी के इन शिष्यों से पूरा गांव-जवार दहशत में रहता। 

यह सत्तर-अस्सी का दशक था। पूरब से पश्चिम तक ठेके पट्टे में हरिशंकर तिवारी का ही नाम चलता था। शराब हो , कोयला हो , वन हो , पी डब्लू डी , सिंचाई या फिर रेल। हर कहीं तिवारी का दबदबा। तिवारी सिंडिकेट का तब कोई जवाब नहीं था। पश्चिम में डी पी यादव भी बाद में तिवारी के आशीर्वाद से खड़ा हुआ। वीरेंद्र शाही वगैरह तिवारी के आगे कुकुरमुत्ते की तरह थे। तब तो यह था कि तिवारी को देखना ही दुर्लभ था। हरिशंकर तिवारी बस नाम था। ब्रांड था। दूर-दूर तक। एक से एक कहानियां और किवदंतियां हरिशंकर तिवारी के बारे में चलती थीं। ऐसा दहशत भरा नाम मैं ने अभी तक दूसरा नहीं देखा। गोरखपुर में गोलघर जैसे भरे बाज़ार में बलवंत सिंह जैसे लोग मार दिए गए। विधायक रवींद्र सिंह सुबह-सुबह रेलवे स्टेशन पर मार दिए गए। डंवरपार जैसे बाज़ार में एक साथ सात लोग मार दिए गए। हरिशंकर तिवारी को एम एल सी चुनाव में 11 वोट से हराने वाले शिवहर्ष उपाध्याय की उन्हीं के कालेज में भरी बरसात में बस्ती में हत्या हो गई। और भी तमाम हत्याएं। ऐसे जैसे कोई फ़िल्म हो। हत्याओं और उगाही के नित नए क़िस्से। अपहरण कब किस का हुआ , कौन छूटा , कोई जान भी नहीं पाता था। नतीज़ा यह था कि गोरखपुर और पूर्वांचल में व्यापार और उद्योग ठप्प ! वीरेंद्र शाही तो अस्पताल में भर्ती रहता था और अपराध के नित नए रिकार्ड बनाता था। हत्या और डकैती कर के अस्पताल में आ कर सो जाता था। महीनों अस्पताल में भर्ती रहता। किसी डाक्टर , किसी डी एम , किसी एस पी की हैसियत नहीं थी कि अस्पताल से उसे निकाले। अस्पताल में भर्ती होने के कारण कोई एफ आई आर भी मुमकिन नहीं थी। तिवारी और शाही के ठेके-पट्टे विवाद को ब्राह्मणवाद-ठाकुरवाद का रंग दिया गया। जब कि ऐसा नहीं था। हक़ीक़त तो यह थी कि हरिशंकर तिवारी का मुख्य सुरक्षा करने वाला ठाकुर था। कई सारे ठाकुर भी तिवारी गैंग में थे। इसी शाही के गैंग में भी बहुत से ब्राह्मण थे। 

एक समय हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के कारनामों और अपराध के चलते गोरखपुर की तुलना अमरीका के शिकागो से की जाती थी। बी बी सी पर रिपोर्ट आती थी। लेकिन हरिशंकर तिवारी ने कभी मीडिया को इंज्वाय नहीं किया। जब कि मीडिया पर उन की पकड़ और संपर्क बहुत बढ़िया और ज़बरदस्त रहा है। गोरखपुर से लखनऊ तक बहुत से मीडियाकर्मियों से उन के मधुर संबंध रहे हैं और कि हैं। तिवारी ने कई सारे मीडियाकर्मियों की नौकरी भी खाई और बहुत सारे मीडियाकर्मियों को नौकरियां भी दिलवाते रहे। कई बार तो संपादक भी वह तय करवा देते थे। ख़बरों को प्लांट करने में उन का जवाब नहीं था। लेकिन कैमरे आदि के सामने आने से वह मुसलसल बचते रहते थे। गोरखपुर के अखबारों में एक समय तो बाक़ायदा तय हो गया था कि जितनी ख़बर माफ़िया हरिशंकर तिवारी की छपेगी , उतनी ही माफ़िया वीरेंद्र शाही की भी। एक लाइन या एक कालम भी कम नहीं। सालों-साल यह सिलसिला चला है। कहूं कि कोई तीन दशक तक यह सिलसिला जारी रहा। 

गोरखपुर के पत्रकारों में इस बात को ले कर बहुत दहशत रहती थी। एक बार दैनिक जागरण , कानपुर से ट्रांसफर हो एक रिपोर्टर झा साहब गोरखपुर पहुंचे। हरिशंकर तिवारी के ख़िलाफ़ एक विज्ञप्ति टाइप ख़बर छाप दिया। तिवारी के लोगों ने झा को फ़ोन कर तिवारी के घर बड़े मनुहार से बुलाया। जिसे गोरखपुर में हाता नाम से पुकारा जाता है। रिपोर्टर झा पहुंचे तिवारी के घर। बड़ी विनम्रता से तिवारी ने उन का स्वागत किया। उन की ख़ूब तारीफ़ की। और बर्फी भरी एक प्लेट रख दी। कहा खाइए। और लीजिए , और लीजिए की मनुहार भी करते रहे। झा भी अजब पेटू थे। कोई 32 बर्फी खा गए। फिर जब चलने लगे तो झा को लगातार 32 झन्नाटेदार थप्पड़ भी रसीद किए गए। जितनी बर्फी , उतने ही थप्पड़। झा के गाल लाल ही नहीं , गरम भी हो गए। वह भयवश कोई प्रतिरोध भी नहीं कर पाए। ध्वस्त हो कर वह किसी तरह दफ़्तर पहुंचे और रो पड़े। फूट-फूट कर रोए। कहा कि उन का ट्रांसफर तुरंत वापस कानपुर कर दिया जाए। गोरखपुर में वह अब एक दिन भी नहीं रहना चाहते। तुरंत तो नहीं पर जल्दी ही उन का ट्रांसफर वापस कानपुर हो गया। 

हरिशंकर तिवारी और गोरखनाथ मंदिर का रिश्ता सर्वदा से छत्तीस का रहा है। हरिशंकर तिवारी का माफ़िया अवतार ही गोरखनाथ मंदिर के ख़िलाफ़ हुआ। यह अवतार करवाया था एक आई ए एस अफ़सर सूरतिनारायण मणि त्रिपाठी ने। गोरखपुर विश्विद्यालय के फाउंडर मेंबर थे तब गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजय सिंह। गोरखपुर के तत्कालीन कमिश्नर सूरतिनारायण मणि त्रिपाठी भी फाउंडर मेंबर थे। थे तो आचार्य कृपलानी जैसे लोग भी। पर कार्यकारिणी की जब भी कोई बैठक होती दिग्विजयनाथ भारी पड़ जाते। मंदिर के लठैत दिग्विजयनाथ के लिए खड़े हो जाते। लाचार हो कर सूरतिनारायण मणि त्रिपाठी ने एक दबंग की तलाश शुरू की। हरिशंकर तिवारी तब विश्विद्यालय के छात्र थे। दबंग थे। मणि ने तिवारी को तैयार किया। मंदिर के ख़िलाफ़ खड़ा किया तिवारी को। कमलापति त्रिपाठी जैसे राजनीतिज्ञों का आशीर्वाद मिला तिवारी को। बाद के दिनों में तिवारी बड़े ठेकेदार बन गए। इस की एक लंबी अंतर्कथा है। जो फिर कभी। पर तिवारी के खिलाफ दो मोर्चे लगातार खुले रहे। एक गोरखनाथ मंदिर का दूसरे , वीरेंद्र शाही का। बीच-बीच में और भी कई। फिर 1986 में जब वीरबहादुर सिंह मुख्य मंत्री हुए तो उन्हों ठेके -पट्टे के मामले में न सिर्फ़ तिवारी की कमर तोड़ दी बल्कि एन एस लगा कर तिवारी और शाही दोनों को जेल भेज दिया। 

बाद के दिनों में समय पलटा और तिवारी कैबिनेट मंत्री भी बने। शाही की हत्या हो गई। पर मंदिर और हाता का मोर्चा खुला रहा। फिर जब योगी मुख्य मंत्री बने 2017 में तो तिवारी मीडिया तो छोड़िए , सार्वजनिक जीवन से भी अपनी सक्रियता समाप्त कर दी तिवारी ने। अपने दोनों बेटों को भी निष्क्रिय करवा दिया। शुरू -शुरू में कुछ छापेमारी वगैरह हुई। पर मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए जैसे मेढक ग़ायब हो जाता है , सर्दी और गर्मी में , पूरी तरह ग़ायब हो गए। अब तो सुनता हूं , बढ़ती उम्र के कारण वह अस्वस्थ भी हैं। हरिशंकर तिवारी और चाहे जो हों , आप जो भी कहें पर उन के तीन-चार गुण बहुत प्रबल हैं। एक तो वह निजी बातचीत में अतिशय विनम्र हैं। अहंकार बिलकुल नहीं है। शराब , औरत आदि का व्यसन बिलकुल नहीं है। उन के होमो होने की बात ज़रुर चर्चा में रही है। फिर रास्ता कैसे बदला जाता है , उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक से सीखना चाहिए। ज़िक्र ज़रूरी है कि बृजेश पाठक एक समय न सिर्फ़ ठेकेदारी बल्कि दबंगई में भी हरिशंकर तिवारी के ख़ास लेफ्टिनेंट रहे हैं। यहां तक कि लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव भी हरिशंकर तिवारी का आशीर्वाद ले कर वह विजयी हुए थे। 

वैसे भी जो होशियार अपराधी होते हैं , सत्ता के ट्रक से अपनी साइकिल को नहीं लड़ाते। हरिशंकर तिवारी ने भी तमाम विपरीत स्थितियां बारंबार देखीं पर कभी ऐसा नहीं किया। योगी जब पहली बार 2017 में मुख्य मंत्री बने तो हरिशंकर तिवारी ने तुरंत अपना ढंढ-कमंडल संभाल कर सार्वजनिक जीवन से अंतर्ध्यान हो गए। परिजनों और सहयोगियों को समझा दिया , ख़ामोश ! सब ने ख़ामोशी को ओढ़ना-बिछौना बना लिया। और अब वह ख़ुद ससम्मान ख़ामोश हो गए हैं। सम्मानजनक मृत्यु इसे ही तो कहते हैं। नहीं एक से एक वीरेंद्र शाही , श्रीप्रकाश शुक्ल , ओमप्रकाश पासवान जैसे तमाम माफ़िया और बाहुबली अपमानजनक मृत्यु को प्राप्त हुए। अब देखिए न अमरमणि त्रिपाठी को। मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में अस्पताल से ही सही जेल काट रहे हैं। तो अमरमणि त्रिपाठी को जेल भेजने की बिसात भी इन्हीं हरिशंकर तिवारी ने बिछाई। नहीं मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला के अकेले के बूते की बात नहीं थी। अमरमणि त्रिपाठी भी एक समय वीरेंद्र शाही , बृजेश पाठक की तरह ही हरिशंकर तिवारी के लेफ्टिनेंट थे। पर बाद में ठेके पट्टे के विवाद और वर्चस्व को ले कर जैसे वीरेंद्र शाही तिवारी से अलग हो गए उसी तरह अमरमणि त्रिपाठी भी तिवारी से अलग हो गए। अमरमणि ने बाद के दिनों में बड़ी ग़लती यह की कि श्रीप्रकाश शुक्ला को हरिशंकर तिवारी को मारने की सुपारी दे दी। हरिशंकर तिवारी ने साक्षी महराज के मार्फ़त कल्याण सिंह को समझा दिया कि श्रीप्रकाश शुक्ला कल्याण सिंह को मारना चाहता है। कल्याण सिंह ने एस टी एफ़ गठित की और श्रीप्रकाश शुक्ला ही मारा गया। जीवन जीने में ही नहीं , अपराध और विरोधी को भी निपटाने की कला की एक मुकम्मल किताब हैं हरिशंकर तिवारी। जिस को यह सब सीखना हो , हरिशंकर तिवारी नाम की यह किताब ज़रुर पढ़े। और यह भी जानें कि हरिशंकर तिवारी के ख़िलाफ़ सैकड़ो मामले दर्ज हुए पर कभी किसी मामले में कोई सजा नहीं हुई। सजा ? अरे कोई चार्जशीट भी नहीं। सभी फाइलें धूल खा कर जाने किस नमक में घुल गईं। वह कहते भी थे , ' राम-राम हम ने तो कभी कोई चींटी भी नहीं मारी ! लोग नाहक बदनाम करते हैं। '

मृत्यु पाया व्यक्ति कैसा भी हो , दस्तूर है श्रद्धांजलि देने का। हरिशंकर तिवारी को विनम्र श्रद्धांजलि !




 दिल्ली से प्रकाशित दिनमान के 23 -29 दिसंबर , 1984 अंक में 
प्रकाशित हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही का इंटरव्यू। 

कोलकाता से प्रकाशित रविवार के 7 -13 अक्टूबर , 1984 में प्रकाशित रिपोर्ट की फ़ोटो । 


Monday, 1 May 2023

शिकस्त

दयानंद पांडेय 

वह बहुत मेहनत और द्वंद्व फंद कर के कैबिनेट मंत्री के पद तक पहुंचा था। आस्था , निष्ठा को विष्ठा बनाते , दल-बदल को धता बताते , घात-विश्वासघात सब की हदें लांघता हुआ वह यहां तक पहुंचा था। और अब यह फ़िल्मी अभिनेत्री , मंत्री पद पर लांछन लगा कर उस का मंत्री पद छीन लेना चाहती थी। और वह मंत्री पद किसी सूरत गंवाना नहीं चाहता था। चाहे जो हो। उस के पिता भी विधायक रहे थे लेकिन वह उसी में ख़ुश थे। मंत्री पद की कभी सोची भी नहीं थी। पिता पूरमपुर गांधीवादी तो नहीं थे पर गांधीवादी पार्टी में थे। निरंतर दो बार विधायक रहे थे। तीसरी बार चुनाव हार गए। पर विधायक निवास का फ़्लैट नहीं छोड़ा। बीमारी के बहाने उसे रोके रहे। पार्टी की ही सरकार थी। सो तीन महीने के लिए वह फ़्लैट पुन : आवंटित करवा लिया था। पर तीन साल बाद भी काबिज रहे। छोड़ा नहीं विधायक निवास का वह फ़्लैट। 

वह भी तब तक राजनीति में कूद-फांद करने लगा। पर उस का मक़सद पिता की तरह कोरी राजनीति करना नहीं था। वह पैसा कमाना चाहता था। सत्ता की सवारी और पैसा दोनों ही उस का लक्ष्य था। विधायक होते हुए भी पैसे के लिए उस ने रंगदारी , अपहरण से भी गुरेज़ नहीं किया। देखते ही देखते वह लखपति और लखपति से करोड़पति बन गया। अरबपति और खरबपति होने के लिए राजपथ उसे बुला रहा था। आहिस्ता-आहिस्ता नहीं , वह सरपट इस राजपथ पर दौड़ता जा रहा था। और यह देखिए वह अरबपति भी बन गया। इसी बीच उस ने अपहरण और रंगदारी के पैसे से एक रसूख़दार कॉलोनी में एक साथ के बड़े-बड़े चार अलग-अलग प्लॉट ख़रीद कर उन पर एक आलीशान बंगला बनवा लिया था। नाम रखा ह्वाइट हाऊस। यह ह्वाइट हाऊस का ख़याल अमरीका जा कर ही उसे आया था। अमरीकी राष्ट्रपति के ह्वाइट हाऊस की तरह सफ़ेद रंग में समाया और इतराता हुआ यह ह्वाइट हाऊस जल्दी ही मशहूर भी हो गया। संभ्रांत लोगों को बुला कर गृह प्रवेश भी हो गया। विधायक निवास के मामूली फ़्लैट से निकाल कर पिता को भी इसी ह्वाइट हाऊस में विराजमान कर दिया। दिलचस्प यह कि जिस बड़े व्यवसाई के दोनों बेटों का अपहरण किया था कभी , उस व्यवसाई ने भी अपने नए आलीशान बंगले का नाम ह्वाइट हाऊस ही रखा। उस व्यवसाई का बंगला और भव्य और ज़्यादा सफ़ेदी में दमकता था। ह्वाइट हाऊस बना कर ही वह ख़ुश नहीं हुआ। अपहरण , ठेका और रंगदारी में डूबा यह आदमी अब शिक्षा माफ़िया बन कर अचानक उपस्थित हो गया। मैनेजमेंट कालेज , इंजीनियरिंग कॉलेजों की चेन पर चेन खोलता जा रहा था। बहुत से भ्रष्ट अफ़सर उस के इस शिक्षा व्यवसाय में अपना काला धन इनवेस्ट कर रहे थे। कोई ख़ुशी-ख़ुशी तो कोई जबरिया। लक्ष्मी की जैसे बरसात हो रही थी। 

और यह देखिए अब कैबिनेट मंत्री पद भी उस के चरणों में अनायास लोटने लगा। सरकार बनाने में जोड़-तोड़ का यह हासिल था। पार्टी तोड़ कर दूसरी पार्टी की सरकार बनवा देने का तोहफ़ा था यह। 

अब कैबिनेट मंत्री बनते ही उस ने खरबपति होने के लिए कुबेर का दरवाज़ा खटखटा दिया था। जाने कितनी फाइलों के वारे-न्यारे करते हुए उस के पांव अब ज़मीन पर नहीं थे। बिलकुल इसी वक़्त दस हज़ार करोड़ के टेंडर की फ़ाइल उस की मेज़ पर थी। बस उस के एक अनुमोदन के लिए तरसती हुई। उस की एक दस्तखत की दरकार थी। बस ठेका लेने वाली कंपनी के सी ई ओ से उस ने सौ करोड़ का इशारा कर दिया था। सी ई ओ ने मुस्कुरा कर उस का इशारा फौरन मंज़ूर कर लिया था। पर साथ ही उस ने हिंदी फ़िल्मों की एक ख़ास अभिनेत्री से हमबिस्तरी की भी फ़रमाइश इशारों में नहीं खुल कर , कर दी थी। इन दिनों उस का यह जैसे दस्तूर सा बन गया था , व्यसन सा बन गया था कि मुद्रा के साथ मैथुन का भी वह जुगाड़ जिस तिस से हर सौदे में करने को कह देता था। न कोई शील , न कोई संकोच। ऐसे जैसे किसी से कह रहा हो कि चाय पिला दो या पान खिला दो। वह औरतों की फ़रमाइश खुल कर कर देता। कभी कोई अभिनेत्री , कभी कोई मॉडल , कभी कोई और सुंदरी। लाखो , हज़ारो करोड़ के सौदे में यह सब बहुत आसान सा मामला होता था। अमूमन लोग मान जाते थे। इस बार भी उस की बात मान ली गई थी। उस ने कह दिया था कि अभिनेत्री की देह पर दस्तख़त करने के बाद ही वह फ़ाइल पर भी दस्तख़त कर देगा। सब कुछ डन था। बस अभिनेत्री ने कह दिया कि इस के लिए मिनिस्टर को मुंबई ही आना होगा। उस ने यह प्रस्ताव सुनते ही ठुकरा दिया। यह कहते हुए कि इतना समय कहां है उस के पास। कि एक रात की हमबिस्तरी के लिए वह मुंबई आए और जाए। मुंबई जाने का कारण भी क्या बताएगा। फिर मुंबई उस के क़ाबू में नहीं। कहीं अभिनेत्री ने कोई वीडियो , फ़ोटो करवा लिया तो ? लेने के देने पड़ जाएंगे। अंतत: अभिनेत्री ने रेट दोगुना कर दिया। एक करोड़ से दो करोड़ कर दिया। अभिनेत्री नई थी और बाज़ार में चढ़ी हुई। सो अभिनेत्री की डिमांड भी पूरी कर दी गई। दो करोड़ रुपए एडवांस उस को दे दिए गए। 

आने-जाने के फ़्लाइट का बिजनेस क्लास का टिकट , होटल का सुइट आदि तय हो गया। तय तारीख़ और समय पर अभिनेत्री होटल आ गई। उस को बता दिया गया कि अभिनेत्री आ गई है। उस ने बताया कि आज तो कैबिनेट मीटिंग है। और भी व्यस्तताएं हैं। आज की मुलाक़ात कैंसिल करवा दीजिए। दो दिन बाद का रख लीजिए। दो दिन बाद का सुनते ही अभिनेत्री भड़क गई। बोली , ' फिर तो न हो पाएगा। ' उस ने जोड़ा , ' बार-बार मुंबई से लखनऊ आने का रीजन क्या दूंगी ? '

अभिनेत्री उस की पसंदीदा थी। सो उस ने अभिनेत्री के नखरे को क़ुबूल कर लिया। कैबिनेट मीटिंग के बाद ही वह सीधे होटल पहुंच गया। साथ में दो मुंहलगे दोस्त भी थे। वह उन दोस्तों को चकित करना चाहता था कि देखो आज किस अभिनेत्री की देह को भोग रहा है। अभिनेत्री का सुइट अलग था , उस का स्वीट अलग। फ्लोर एक था। अब एक ईगो फिर फंसा कि कौन किस के स्वीट में जाए। उस की ज़िद थी कि अभिनेत्री आएगी , वह नहीं जाएगा। अंतत : अभिनेत्री आई। साथ में और दो लोगों को देख कर अभिनेत्री भड़की। उस ने बताया कि , '  घबराओ नहीं , अपने यार हैं। '

' तो क्या यह लोग भी ? '

' अरे नहीं ! बस मैं ही। ' और उन दोनों दोस्तों को बाहर के ड्राइंग रुम में छोड़ कर अभिनेत्री को ले कर भीतर बेडरुम में चला गया। 

स्कॉच की बोतल खोलते हुए अभिनेत्री से उस ने पूछा , ' आप भी लेंगी न ! '

' श्योर !'

फ़िल्म और पॉलिटिक्स की इधर-उधर की बातों के बीच स्कॉच के दो-तीन पेग लगाने के बाद जब हल्का सा सुरुर सवार हो गया तो उस ने अचानक अभिनेत्री को बाहों में दबोच लिया। 

' अरे ! ' कह कर अभिनेत्री अचकचा गई। 

' क्यों क्या हुआ ?'

' इस तरह अचानक ! '

' अचानक ही सब कुछ हमारे साथ होता है। ' अभिनेत्री के कपोल पर चुंबन की बरसात करते हुए वह बुदबुदाया। वह अभिनेत्री को जैसे कच्चा चबा जाना चाहता था। थोड़ी देर तक वह यों ही भालू की तरह अभिनेत्री की देह को धांगता रहा। पर यह सब कुछ , सारा पौरुष , सारा जोश बाहरी तौर पर था। भीतर से वह जोश नहीं छलक पा रहा था। भीतर-भीतर वह लाचारी महसूस कर रहा था। जाने कैबिनेट मीटिंग में मुख्यमंत्री से हो गया आकस्मिक विवाद था कि अभिनेत्री की ऐंठ थी , कि क्या था , वह समझ नहीं पाया। पर अभिनेत्री के साथ वह सहज नहीं हो पा रहा था। अभिनेत्री भी उसे ' कोआपरेट ' नहीं कर रही थी। ऐसे पेश आ रही थी गोया देह नहीं , लाश हो। बिलकुल ठंडी। कोई गर्मजोशी नहीं। बाहरी तौर पर भी नहीं। फिर उसे इधर तो जल्दी-जल्दी है , उधर आहिस्ता-आहिस्ता की याद आ गई। और इसे अभिनेत्री को सुनाया भी। इस पर अभिनेत्री मुस्कुरा कर रह गई। फिर वह बड़ी देर तक वह इधर-उधर की बातें करता रहा। थोड़ी बहुत चिकोटी भी की अभिनेत्री को। लेकिन अभिनेत्री ने उस से धीरे से कह दिया , ' बी जेंटिल ! ' वह समझ गया कि काट बकोट नहीं चल पाएगी। सो जेंटली उस से बतियाते हुए ही उसे बाहों में फिर से घेरने लगा। अभिनेत्री से कहा , ' कुछ तो कोआपरेट कीजिए ! ' इतना सुनते ही अभिनेत्री भी उस का सहयोग करने लगी। वियाग्रा का एक डोज वह एहतियातन ले कर आया था। लेकिन अपेक्षित जोश उस की देह से दूर था। अधर पान पर वह आ गया। लगा कि कुछ बात बन जाएगी। वह आहिस्ता-आहिस्ता अभिनेत्री को निर्वस्त्र करता रहा। इधर-उधर उस की देह चूमता , चाटता और सहलाता रहा। अब तक अभिनेत्री का सारा प्रतिरोध और नारी सुलभ संकोच समाप्त हो चुका था। अब वह खुल कर इंज्वॉय कर रही थी। दो करोड़ का उस का उत्साह मंत्री को निराश नहीं करना चाहता था। लेकिन वह पटरी पर नहीं आ रहा था तो नहीं आ रहा था। अभिनेत्री उसे सारा सुख देने पर आमादा थी लेकिन अभिनेत्री के आगे अब वह हार रहा था। तो क्या वह अभिनेत्री को पा जाने की ख़ुशी के तनाव में शिथिल हो रहा था ?

वह अचानक अभिनेत्री के वक्ष पर टूट पड़ा। ऐसे जैसे कोई शिकारी शेर किसी हिरन पर टूट पड़े और उसे मुंह में दबोच ले। अभिनेत्री को मिनिस्टर का यह अंदाज़ अच्छा लगा। वह ऐसे शिकारियों , ऐसे पुरुषों को पसंद करती थी। उस ने अचानक अधर छोड़ अभिनेत्री के वक्ष को दबाते हुए निप्पल को चूसना शुरु कर दिया। ऐसे कि जैसे अभिनेत्री के वक्ष फूल कर गुब्बारा हो जाना चाहते थे। गैस वाला गुब्बारा। अभिनेत्री के वक्ष भी उस के हाथों की क़ैद से छूट कर मुख के आकाश में गुब्बारे की तरह उड़ जाना चाहते थे। अभिनेत्री अपने पूरे उरोज पर थी। अब वह जल बीच मीन प्यासी की तरह छटपटा रही थी और बुदबुदा रही थी , ' कम आन मिस्टर मिनिस्टर ! ' उस की वजाइना में हुक उठी थी। कूक रही थी यह हूक मुसलसल। लेकिन मिस्टर मिनिस्टर कम आन की जगह गो , वेंट , गान की स्थिति में थे। जो भी कुछ ज्वार था देह में, सब बाहर-बाहर ही था। हाथ में , अधर और जिह्वा में। असल मर्दानगी को काठ मार गया था। अभिनेत्री ने बहुत बकअप किया। लेकिन सब बेअसर। अब वह आहिस्ता-आहिस्ता अभिनेत्री पर सवार , उस के वक्ष से ऊपर बढ़ता हुआ अधर से भी ऊपर होते हुए और-और ऊपर हो रहा था। अभिनेत्री समझ गई मिस्टर मिनिस्टर की मंशा। वह धीरे से बुदबुदाई , ' इस के लिए तो कुछ और प्लस करना पड़ेगा , मिस्टर मिनिस्टर ! '

' इट्स ओके ! ' कह कर वह और ऊपर हुआ। 

अब अभिनेत्री मुख मैथुन में व्यस्त थी। और मिस्टर मिनिस्टर फ़ार्म में आ रहे थे। अभिनेत्री द्वारा प्रस्तुत अनुपम सुख में वह ऊभ-चूभ थे ही कि मोबाइल की रिंग टोन से वह डिस्टर्ब हो गए। मोबाइल की तरफ वह हाथ बढ़ा ही रहे थे कि अभिनेत्री ने उन्हें हाथ के इशारे से रोका। पर वह रुका नहीं। क्यों कि रिंगटोन रुटीन नहीं , स्पेशल थी। मुख्यमंत्री का फ़ोन था। मुख्यमंत्री ने जाने किस बात के लिए अपने बंगले पर तुरंत बुला लिया था। कहा कि , ' आइए , कुछ ज़रुरी वार्ता करनी है। फ़ोन रख कर वह पुन : युद्धरत हुआ। पर अब फिर से युद्ध में उतरना कठिन हो गया। अभिनेत्री से सहयोग मांगा। अभिनेत्री भी हार गई। बोली , ' अब मैं भी थक गई हूं ! '  फिर जैसे जोड़ा , ' रोक रही थी। पर आप रुके ही नहीं। ' 

' कैसे रुकता ? ' 

' क्यों ?' 

' अरे चीफ़ मिनिस्टर की काल थी। '

' तो क्या ? ' अभिनेत्री बोली , ' ऐसे में यमराज की कॉल इग्नोर कर दी जाती है। बाद में कॉल बैक कर लेते। '

' ओ के। ' वह बोला , ' अब मैं जा रहा हूं। नसीब में होगा तो फिर कभी मिलेंगे। '

' इट्स अपान यू ! ' वह धीरे से बुदबुदाई , ' सी यू ! '

वह कमरे से निकल गया। बाहर ड्राइंग रुम में उस के दोस्त शराब पी रहे थे। वह बोला , ' अभी तो मैं जा रहा हूं। ' फिर धीरे से बोला , ' पता नहीं क्यों आज मिस हो गया। ' 

' क्या ? ' दोनों दोस्त एक साथ बोल पड़े , ' नो फ़ायर ?' 

' नो फायर ! ' उदास होते हुए वह बोला , ' चीफ़ मिनिस्टर को भी यही टाइम मिला था , वार्ता के लिए। कैबिनेट में बात नहीं कर पाए। अब फिर बुला लिया है। कैबिनेट में मिले थे तो कुछ गरमा-गरमी हो गई थी। देखते हैं क्या बात है। ' कह कर वह निकल गया। बोला , ' तुम लोग इंज्वॉय करो। '

अभिनेत्री कमरे में ही थी अभी। उस ने तो शराब इंज्वॉय करने के लिए दोस्तों से कहा था। दोस्तों ने समझा कि अभिनेत्री को इंज्वॉय करना है। कुछ शराब का सुरुर था , कुछ अभिनेत्री का सुरुर। दोनों अभिनेत्री को इंज्वॉय करने कमरे में चले गए। अभिनेत्री ने तब तक कपड़े भी नहीं पहने थे। चादर ओढ़े लेटी पड़ी थी। इन दोनों को देखते ही हकबका गई। ज़ोर से बोली , ' कौन हो तुम लोग ?'

' भइया के दोस्त हैं। ' 

' कौन भइया ?'

' वही जो अभी यहां से गए हैं। ' एक ने जैसे जोड़ा , ' भइया कह गए हैं , इंज्वॉय करो ! '

' ऊ तो मुख्यमंत्री के टेंशन में फ़ायर कर नहीं पाए।  तो हम ही लोग कर देते हैं। ' दूसरा बोला। 

' ह्वाट रबिश इट ! ' गेट आऊट ! ' अभिनेत्री चीखी। 

' चिल्लाओ मत ! ' एक बोला , ' आराम से रहो। ' कहते हुए एक बिस्तर पर चढ़ गया। फिर अभिनेत्री पर। अभिनेत्री नहीं-नहीं करती रही। पर उस की नहीं-नहीं सुनने वाला कोई नहीं था। बारी-बारी दोनों दोस्तों ने अभिनेत्री का मान-मर्दन किया। और कपड़े पहन कर जाने लगे। अचानक अभिनेत्री ने उन्हें ' सर-सर !' कह कर एड्रेस किया और बोली , ' अब तो आप लोगों ने इंज्वॉय कर ही लिया है। रात बहुत हो गई है सो प्लीज़ मुझे भी मेरे रुम तक छोड़ दीजिए। '

' कोई बात नहीं छोड़ देते हैं आप को , आप के रुम में। ' एक दोस्त बोला , ' चलिए ! ' वह बोला , ' आप का रुम भी आबाद कर देते हैं। '

कपड़े पहन कर बिस्तर की दो चादर ओढ़ कर अभिनेत्री किसी गाय की तरह उन के साथ चल पड़ी। हालां कि अभिनेत्री का स्वीट भी इसी फ्लोर पर था। और चाभी उस के बैग में उस के पास ही थी। पर लिफ़्ट में आ कर बोली , ' मेरे रुम की चाभी असल में रिसेप्शन पर है। वहां से चाभी ले लेते हैं पहले। '

'  ओ के मैडम ! '

रिसेप्शन पर आते ही वहां उपस्थित सिक्योरिटी गार्ड को इंगित करती हुई अभिनेत्री चीख़ी , ' इन दोनों को पकड़ो। इन्हें जाने मत देना। ' अभिनेत्री के चीख़ते ही और भी गार्ड तथा दूसरे लोग आ गए। मिनिस्टर के वह दोनों दोस्त सकपका गए और भागने लगे। अभिनेत्री ने रिसेप्शन पर चिल्ला कर कहा , ' यह दोनों रेपिस्ट हैं। पकड़ो इन्हें। दोनों ने मेरे साथ रेप किया है। ' गार्ड और लोगों ने दौड़ा कर दोनों को पकड़ लिया। 

' आप तुरंत पुलिस को कॉल कीजिए और इन्हें अरेस्ट करवाइए। ' रिसेप्शनिस्ट को एड्रेस करती हुई अभिनेत्री बोली , ' मुझे तो पहचानते ही होंगे आप लोग। '

' जी मैंम कौन नहीं जानता आप को ? रिसेप्शनिस्ट बोली , ' आप इतनी बड़ी स्टार हैं। '

' तो तुरंत पुलिस बुलाइए।  इन्हें अरेस्ट करवाइए। ' अभिनेत्री बोली , ' मेरे पास इन के रेप के सुबूत हैं। ' 

' जाओ-जाओ ! तुम जैसी के तिरिया चरित्र हम लोग जानते हैं। ' एक आदमी बोला। 

' तुम हमारे भइया को नहीं जानती। ' दूसरा आदमी बोला , ' पुलिस आएगी तो उलटे तुम्हीं को अरेस्ट कर के ले जाएगी। '

' प्लीज़ काल पुलिस ! ' अभिनेत्री रिसेप्शनिस्ट से बिफर कर बोली , ' नहीं मुझे पुलिस कमिश्नर को काल करनी पड़ेगी इतनी रात को। '

' क्या सुबूत है तुम्हारे पास ? ' एक रेपिस्ट ने पूछा। फिर बोला , ' कोई रेप-सेप नहीं हुआ है किसी के साथ। ' वह बोला , ' हम लोग तो भइया के साथ आए थे। अब जा रहे हैं। '

' कौन भइया ? ' रिसेप्शनिस्ट ने पूछा। 

' माननीय मंत्री जी को नहीं जानती ? ' दूसरा रेपिस्ट मंत्री का नाम लेता हुआ बोला। 

मंत्री का नाम आते ही रिसेप्शनिस्ट चौकन्नी हो गई। सहम गई। फिर धीरे से उस ने अपने हायर मैनेजमेंट को इस वाकये से वाक़िफ़ करवा दिया। जल्दी ही जनरल मैनेजर वग़ैरह आ गए। रात के एक बजे इस सेवेन स्टार होटल में अजब अफ़रा-तफ़री मची हुई थी। बात एक स्टार अभिनेत्री और एक पॉवरफुल मिनिस्टर के बीच की सुनते ही समूचा होटल मैनेजमेंट सिर के बल खड़ा हो गया। प्रबंधन ने अभिनेत्री को बैठा कर समझाना शुरु किया। 

' मैम , आप के पास रेप के कुछ एविडेंस हैं क्या ? सोच लीजिए पुलिस आएगी तो पूछेगी। '

' है न एविडेंस ! ' वह देह पर ओढ़ी हुई चादर को उतार कर , हाथ में ले कर बोली , ' इन चादरों पर इन के स्पर्म हैं। रेप के सुबूत। ' उस ने जैसे जोड़ा , ' आप मेरा मेडिकल करवा दीजिए। '

होटल प्रबंधन ने डिप्लोमेसी बरती। दूसरी तरफ मिनिस्टर को भी सारे वाक़ये से वाकिफ़ करवाया। अब मिनिस्टर ने मोबाईल पर अपने दोस्तों को अर्दब में लिया। 

यह सब होते ही , इतन सब सुनते ही वह दोनों आदमी अभिनेत्री के पैर पकड़ कर बैठ गए। कहने लगे , ' माफ़ कर दीजिए बहन जी ! '

उधर मिनिस्टर ने अभिनेत्री का इंतज़ाम करने वाले सी ई ओ को इतनी रात में फ़ोन कर अभिनेत्री को संभालने और मामले को रफ़ा-दफ़ा करवाने के लिए कहा। 

' विल मैनेज सर ! ' उस ने मिनिस्टर को एश्योर करते हुए कहा , ' डोंट वरी सर ! '

सी ई ओ ने अभिनेत्री को मैनेज करने वाले एजेंट को फ़ोन किया और कहा कि इस बखेड़े को दस मिनट में ख़त्म कर के मुझे बताओ। एजेंट ने अभिनेत्री से बात की। लेकिन अभिनेत्री ने एजेंट की एक न सुनी। एजेंट ने जब बहुत मिन्नतें कीं तो अभिनेत्री ने कहा , ' ठीक है। पुलिस को नहीं इंवाल्व करती हूं। लेकिन इन दोनों ने जो रेप किया है , इन का ख़ामियाजा क्या है ? '

' आप क्या चाहती हैं मैम ! '

' मिनिस्टर के लिए दो में आई थी। इन दोनों के चार-चार दिलवा दो ! '

' यह तो बहुत ज़्यादा है मैम ! '

' देन फारगेट इट ! ' अभिनेत्री बोली , ' यू नो , आई हैव सॉलिड प्रूफ़ ! दोनों के स्पर्म हैं मेरे पास। जो बेड शीट पर पोछा था दोनों ने। वह बेड शीट मेरे पास है। मेडिकल में मेरी वजाइना में भी प्रूव होगा। और वो मिनिस्टर ! साला नामर्द ! कहां जाएगा वह इस के बाद। और जो भी तुम्हारे क्लाइंट की डील है , उस का क्या होगा ? ' वह बोली , ' सरकार हिल जाएगी !'

अभिनेत्री की यह सारी बात एजेंट ने सी ई ओ को बताई। सी ई ओ ने मिनिस्टर को। मिनिस्टर डर गया। सी ई ओ से कहा , ' जैसे भी हो उस रंडी को निपटाओ। मेरे ऊपर कोई छींटा नहीं पड़े। कल तुम्हारा आदेश निर्गत हो जाएगा। '

' वेरी वेल सर ! ' वह धीरे से बोला , ' डन सर ! गुड नाइट सर ! '

हालां कि रात के दो बज गए थे। सो सी ई ओ को गुड मॉर्निंग बोलना चाहिए था। जो भी हो अंतत : डील फ़ाइनल हो गई। अभिनेत्री की डिमांड पूरी हो गई। अभिनेत्री का कहना था कि यह चार-चार करोड़ यानी आठ करोड़ मुंबई में इस रात ही उस के घर पहुंच जाना चाहिए ताकि सुबह की फ़्लाइट वह इत्मीनान से पकड़ सके। अगर ऐसा नहीं होता है तो वह फ़्लाइट छोड़ देगी। सीधे पुलिस में जा कर या आन लाइन रिपोर्ट लिखवा देगी। मीडिया बुला लेगी। मिनिस्टर का रेजिगनेशन तो हो ही जाएगा। 

आख़िर सुबह हुई और अभिनेत्री को सी ऑफ़ करने के लिए होटल का पूरा हायर मैनेजमेंट हाजिर था। जाते समय अभिनेत्री ने वह दोनों बेडशीट होटल प्रबंधन को दिखाते हुए अपने पास रख लिया। कहा कि , ' यह दोनों बेडशीट मैं लिए जा रही हूं। '

' नो इशू मैम ! ' होटल के जनरल मैनेजर ने झुक कर अभिनेत्री से कहा। 

अभिनेत्री की फ़्लाइट टेक ऑफ़ होने तक मिनिस्टर सोया नहीं। नींद ही नहीं आ रही थी उस ह्वाइट हाऊस में। उस का ह्वाइट हाऊस , उसे ब्लैक हाऊस की तरह दिखने लगा था। जब फ़्लाइट के टेक ऑफ होने की ख़बर मिली तब वह नहाने गया। 

दूसरे दिन उस होटल में कोई पुलिस तो नहीं पर एक अख़बार का रिपोर्टर पहुंचा। तहक़ीक़ात करने। होटल मैनेजमेंट ने रिपोर्टर की ख़ूब आवभगत की और बताया कि इस होटल में ऐसी कोई घटना नहीं घटी। न ही मुंबई से आई कोई अभिनेत्री उन के यहां ठहरी। न कोई मिनिस्टर आया। रिपोर्टर के पास ट्रिप सही थी पर वह आवभगत में इतना मगन हो गया कि ख़बर निकाल नहीं पाया। उसे इस ख़बर की ट्रिप देने वाला पछता कर रह गया। 

अभिनेत्री की देह पर दस्तख़त से वंचित मंत्री ने दूसरे दिन दस हज़ार करोड़ के ठेके की फ़ाइल पर दस्तख़त कर दिए। प्रमुख सचिव से कह कर आदेश भी निर्गत करवा दिया। उसी शाम दोस्तों के साथ शराब पीते हुए मिनिस्टर बोला , ' बेटा तुम लोग तो हमारी मिनिस्ट्री पर ग्रहण लगा बैठे थे। ' फिर उस ने जोड़ा , ' मालूम है तुम दोनों लोगों का इंज्वॉय कितने का बैठा है ! '

' कितने का ? '

'आठ करोड़ का। '

' क्या ? ' कह कर दोनों दोस्तों ने मुंह बा दिया। 

लेकिन दूसरे दिन जब मुख्यमंत्री ने उसे फिर बुला लिया तो वह घबराया। मुख्यमंत्री ने अब की आफ़िस में बुलाया। मुख्यमंत्री की मेज़ पर दस हज़ार करोड़ रुपए के उक्त ठेके की फ़ाइल थी। फ़ाइल के साथ अभिनेत्री के साथ आपत्तिजनक स्थिति में फ़ोटो भी। मुख्यमंत्री ने उस के पहुंचते ही कुछ कहा नहीं। फ़ाइल और फ़ोटो सामने कर दी। सौ करोड़ के बाबत भी पूछा। प्रत्युत्तर में वह बेशर्मी से बोला , ' यह मेरे ख़िलाफ़ साज़िश है। '

' तो क्या यह फ़ोटो फेक है ? '

' पूरी तरह फेक है। ' उस ने कहा , ' फ़ोटोशॉप का कमाल है। '

' पर उस दिन कैबिनेट में भी आप इसी कपड़े में थे। मुझे कैबिनेट के बाद ही ख़बर मिली कि आप होटल में रंगरेलियां मनाने गए हैं। इसी लिए आप को फ़ौरन बुलाया था। ताकि सरकार की फ़ज़ीहत न हो। पर आप ने तो फंसा दिया। '

' मुख्यमंत्री जी , यह साज़िश है। '

' साज़िश तो है सरकार को घेरने की। और आप जानते हैं कि भ्रष्टाचार को ले कर हमारी ज़ीरो टालरेंस की नीति है। ' मुख्यमंत्री ने कहा , ' चुपचाप इस्तीफ़ा लिख दीजिए। नहीं आप को बर्खास्त करना पड़ेगा। यह अच्छा नहीं लगेगा। मैं यह ठेका भी निरस्त कर रहा हूं। '

' ऐसा न कीजिए। ' वह बोला , ' मैं साबित कर दूंगा। ' वह ज़रा रुका और बोला , ' दो दिन में साबित कर दूंगा कि साज़िश है। '

' सब कुछ साबित हो चुका है। आप के दोस्तों की कुंडली भी आ गई है। आप की औरतबाज़ी और भ्रष्टाचार की कई कहानियां इकट्ठी हो गई हैं। क्या-क्या साज़िश के फ़्रेम में मढ़िएगा। सरकार की छीछालेदर मत करवाइए। इस्तीफ़ा लिख दीजिए अभी। सरकार और आप के हित में यही है। बात दब जाएगी। नहीं बात अगर मीडिया में लीक हो गई तो आप का पोलिटिकल मर्डर हो जाएगा। ' 

' बस दो दिन का समय दे दीजिए। '

' दो मिनट का समय है। ले लीजिए। नहीं हमारी चिट्ठी तैयार है , आप की बर्खास्तगी की। दस्तख़्त कर के महामहिम को भेजना शेष है। ' मुख्यमंत्री ने जैसे जोड़ा  , ' आप पोलिटिकल नहीं कारपोरेट वार का शिकार हो गए हैं। '

' क्या ?'

' जी ! ' मुख्यमंत्री ने कहा , ' इस कारपोरेट वार में हम अपनी सरकार नहीं क़ुर्बान कर सकते। न कोई छींटे आने दे सकते। '

' कौन कंपनी है ?' उस ने पूछा। 

' कोई कंपनी हो। ' मुख्यमंत्री ने कहा , ' कोई पीछे पड़ कर आप के सारे कपड़े उतार दे , इस से बचिए। आप के तमाम धंधे हैं। कालेज वगैरह भी हैं। ' मुख्यमंत्री बोले , ' आप की यह अश्लील फ़ोटो अगर किसी गैर ज़िम्मेदार आदमी के हाथ लग गई तो सोशल मीडिया पर वायरल होते देर नहीं लगेगी। सोशल मीडिया पर लोग आप को भून कर खा जाएंगे। '

' कारण क्या बताऊं ?'

' किस बारे में ?'

' इस्तीफ़े के बाबत। ' 

' निजी कारण। स्वास्थ्य आदि कुछ भी लिख सकते हैं। ' मुख्यमंत्री ने कहा , ' जैसे भी हो हम अपनी सरकार के मुंह पर कालिख नहीं पुतने दे सकते। ' मुख्यमंत्री बोले , ' यह ठीक है कि यह सरकार बनाने में आप का बहुत योगदान रहा है। लेकिन इस सरकार को गिरने से बचाना भी क्या आप की ज़िम्मेदारी नहीं बनती ? '

एक घंटे बाद ही न्यूज़ चैनलों पर स्वास्थ्य कारणों से उस के इस्तीफ़े की ख़बर चल गई। दूसरे दिन अख़बारों में भी यह ख़बर छप गई। 

अब वह पता करवा रहा है कि आख़िर किस कारपोरेट घराने ने उस की मिट्टी इस तरह पलीद करवा दी। पर पता नहीं चल पा रहा। उस ने उस कंपनी के सी ई ओ से भी कई बार पूछा है कि , ' आख़िर कौन कंपनी है , जिस ने इस तरह उस का मंत्री पद छिनवा कर उस का राजनीतिक गुरुर भी छीन लिया। वह कहने लगा , ' बरबाद कर दूंगा उस कंपनी को। ईंट से ईंट बजा दूंगा उस की। जानता नहीं है , वह मुझे अभी। कहीं वह छिनाल अभिनेत्री तो टूल नहीं बन गई ? ' 

' नो सर , नो टूल। ' सी ई ओ ने उसे बताया है कि आप के लफंगे दोस्तों ने सारा गुड़-गोबर किया है। ऐसी ट्रिप सीक्रेट होती है। आप यह भी नहीं जानते। '

' तो हमारे लफंगे दोस्त टूल बन गए ? '

' नो सर। वह न्यूज़ बनवा गए आप के इस ट्रिप की। न आप होटल उन को ले गए होते। न वह रेप करते। न हंगामा होता। होटल भी कारपोरेट वार में टूल होते हैं। वहीं से कहीं बात इधर-उधर हुई। और हमारे किसी एराइवल ने कैच कर लिया। '

' तो वह फ़ोटो। मेरे साथ उस रंडी की फ़ोटो ?'

' फारगेट सर ! ' सी ई ओ बोला , ' मे बी उस ने अपने मोबाइल से मैनेज कर लिया हो। आप को ब्लैकमेल करने के लिए। ख़ैर , अब जो होना था , हो गया। हमारा तो बहुत बड़ा नुकसान हो गया। इतना पैसा बर्बाद हुआ और हमारी डील भी रद्द हो गई। हमारी जो फ़ज़ीहत हुई है , शिकस्त हुई है , ऐसी शिकस्त कभी नहीं हुई थी। पूरे कारपोरेट वर्ल्ड में हमारी शिकस्त और फ़ज़ीहत के ही चर्चे हैं। '

' और यहां जो हमारी पोलिटिकल शिकस्त हुई है ? ' उस ने पूछा , ' उस का क्या करुं ? ' वह बोला , ' आहिस्ता-आहिस्ता आया था यहां तक। बहुत मेहनत की थी। तुम्हारे कारपोरेट की लड़ाई में हम कहीं के नहीं रहे। वह दो कौड़ी का मुख्यमंत्री , उस रंडी की फ़ोटो दिखा कर हमारा इस्तीफ़ा ले लिया। उस के पास वह फ़ोटो पहुंची कैसे ?'

' फॉरगेट इट सर ! ' वह बोला , 'आहिस्ता-आहिस्ता लोग भूल जाएंगे। आप फिर मिनिस्टर बनेंगे। '

' तुम तो ऐसे बोल रहे हो मिनिस्ट्री न हो , हलवा हो। '

'हलवा से भी आसान है सर ! ' सी ई ओ बोला , ' हम लोग कुछ करते हैं सर। '

' अच्छा। '

' सर सब ठीक होगा। हम इस शिकस्त को अपनी जीत में बदल कर जल्दी ही दिखाएंगे। '

' क्या बक रहे हो ?'

' बक नहीं रहा। सच बोल रहा हूं। ' सी ई ओ बोला , ' आप नहीं जानते मनी में पावर बहुत है। यही मनी आप को भी फिर से पावरफुल बनाएगी। '

' देखते हैं। '

' सर हम ने आप से सौ करोड़ वापस मांगे ? जब कि डील रद्द हो गई। '

' नहीं। '

' मांगेंगे भी नहीं। ' वह बोला , ' हमारी फ्रेंडशिप , हमारा ट्रस्ट पक्का है। इस लिए नहीं मांगेंगे। बस आप शांत रहिए। आप की दस्तख़त से ही हम अपनी शिकस्त को जीत में बदलेंगे। आप हमारे बहुत काम की चीज़ हो। '

बात भले ख़त्म हो गई थी। पर उसे लग रहा था कि उस की शिकस्त तब नहीं हुई थी जब मुख्यमंत्री ने उस से इस्तीफा मांग लिया था। असली शिकस्त तो अब हुई है। ऐसे लग रहा है , जैसे वह उस सी ई ओ का कुत्ता बन गया हो। कारपोरेट वर्ल्ड का कुत्ता। सी ई ओ के , ' आप हमारे बहुत काम की चीज़ हो। ' में वह अपने कुत्तेपन को खोज रहा है। 

जल्दी ही उस सी ई ओ का फिर फ़ोन आया। कि वह फला विभाग की एक डील करवा दे। ऑफर भी तगड़ा और एक दूसरी मशहूर अभिनेत्री के साथ हमबिस्तरी का बोनस। तो क्या वह मंत्री पद गंवाने के बाद भी महत्वपूर्ण बना हुआ है ? काम की चीज़ बना हुआ है। मंत्री से दल्ला बन गया है। कॉरपोरेट जगत का दल्ला। 

इन दिनों कॉरपोरेट जगत के काम करवाने के लिए वह स्पेशलिस्ट मान लिया गया है। वह सी ई ओ ही नहीं , तमाम और सी ई ओ और मालिकान भी उसे काम की चीज़ मानने लगे हैं। इस से बड़ी शिकस्त और क्या हो सकती है भला। 

वह कॉरपोरेट जगत का दल्ला बन गया है। दुलरुआ दल्ला ! शराफ़त की भाषा में जिसे लाइजनर कहा जाता है। 

इधर तो जल्दी-जल्दी है , उधर आहिस्ता-आहिस्ता , उसे फिर याद आ गया है। उसे एक जज की भी याद आ गई है जिस ने न्यायपालिका में क्रांति का बिगुल बजा कर इस्तीफ़ा दे दिया था। बाद में एक लॉ कंसल्टेंसी खोल कर लाइजनिंग करने लगा था। उस के भी कुछ कोर्ट केसेज उस जज ने ख़त्म करवा दिए। मनमाफ़िक पैसे ले कर। जज और क्लायंट के बीच का दल्ला हो गया था वह पूर्व जज। और अब वह ख़ुद कॉरपोरेट और सरकार के बीच का दल्ला बन गया है। ऐसी शिकस्त उस की होगी , यह भला कहां जानता था वह। तो क्या यह ह्वाइट हाऊस , ब्लैक हाऊस में तब्दील होता जा रहा है , आहिस्ता-आहिस्ता !

मारे दहशत के उस ने पूरे बंगले की पेंटिंग करवाना शुरु कर दिया है। ह्वाइट हाऊस की ह्वाइटनेस पर कोई एक धब्बा भी नहीं चाहता वह। 


[ पाखी के अप्रैल-मई , 2023 अंक में प्रकाशित कहानी ]