Thursday, 26 August 2021

सुरेंद्र वर्मा ने किसी शोधार्थी से इंटरव्यू के लिए पैसा मांग लिया तो हर्ज क्या है

दयानंद पांडेय 

सुरेंद्र वर्मा मेरे पसंदीदा लेखक नहीं हैं। लेकिन अगर किसी शोधार्थी से इंटरव्यू देने के लिए पैसा मांग लिया तो क्या बुरा कर दिया ? बहुत से विदेशी लेखक इंटरव्यू देने के लिए पैसे लेते हैं। लखनऊ में एक बार अमर उजाला अखबार के रिपोर्टर ने श्रीलाल शुक्ल का इंटरव्यू लिया। श्रीलाल शुक्ल का अमर उजाला में छपा वह इंटरव्यू श्रीलाल शुक्ल की किताब मेरे साक्षात्कार में भी संकलित है। खैर , अमर उजाला में इंटरव्यू छपने के बाद श्रीलाल शुक्ल ने अमर उजाला अखबार को पैसे के लिए लीगल नोटिस दे दी। अमर उजाला ने श्रीलाल शुक्ल को पैसा तो नहीं दिया , उलटे रिपोर्टर को ज़िम्मेदारी दी कि श्रीलाल शुक्ल का इंटरव्यू उन्हों ने लिया है तो उन्हें पैसा न लेने के लिए मनाएं भी। 

रिपोर्टर ने किसी तरह उन्हें मना लिया। बाद में एक मदिरा महफ़िल में मैं ने श्रीलाल जी से इस बाबत ज़िक्र किया तो वह बोले हिंदुस्तान के अखबार चोर और बेईमान हैं। यूरोप के देशों में अखबारों के लिए इंटरव्यू देने के लिए लेखक को पैसा देने की परंपरा है। बहुत से और देशों में। भारत में भी फूलन देवी को इंटरव्यू देने के लिए विदेशी पत्रकारों ने पैसे दिए थे। ऐसे कई प्रसंग हैं। अभिनेता दिलीप कुमार से मैं ने इंटरव्यू लिया तो इंटरव्यू के बाद वह बहुत गंभीर हो कर बोले , मेरी फीस कहां है ? मैं ने छूटते ही उन से विनयवत कहा कि आप की फीस मैं आप को दे सकूं , ऐसी मेरी हैसियत नहीं है ! दिलीप कुमार हंसते हुए बोले , जाइए , जीते रहिए ! 

ऐसे भी कई सारे प्रसंग मेरी जानकारी में हैं कि लोगों ने इंटरव्यू देने और छपवाने के लिए भी भारी भुगतान दिए हैं। देते ही रहते हैं। ख़ास कर उद्योगपति , व्यवसाई , फ़िल्मी लोग और खिलाड़ी। कुछ लेखक भी पैसा दे कर इंटरव्यू छपवाते हैं। किस-किस का नाम लूं  ?  ऐसे में किसी शोध करने वाले से कोई लेखक पैसा मांग लेता है तो मुझे यह बात कतई गलत नहीं लगती। हिंदी के लेखक को लोगों ने जाने क्या समझ रखा है कि उसे किसी काम के लिए , पैसा देना लोगों को बुरा लगता है। अब तो अख़बार और पत्रिकाएं भी लेखक को कोई भुगतान नहीं देते। तमाम वेबसाइटें भरपेट और भरपूर पैसा कमा रही हैं पर लेखक को एक पैसा नहीं देतीं। क्यों भाई , क्यों ? तमाम सेमीनार और अब वेबिनार में भी आयोजक खुद तो पैसा कमाते हैं लेकिन लेखक को पैसा नहीं देते। मार्ग व्यय भी नहीं। 

और तो और प्रकाशक काग़ज़ , छपाई , बाइंडर , प्रूफ रीडर , अनुवादक हर किसी को मुंह माँगा भुगतान देते हैं। कई बार एडवांस भी। लेकिन लेखक को पैसा देने में प्रकाशक के प्राण निकल जाते हैं। अब अलग बात है , बहुत सारे गिरे हुए लेखक प्रकाशक को पैसा दे कर , लेखिकाएं देह और पैसा दोनों दे कर किताब छपवाने में संलग्न हैं। ऐसे में अगर कोई लेखक इंटरव्यू देने के लिए पैसे मांग बैठे तो लोग चौंकेंगे ज़रूर। पर इस पूरे प्रसंग में देख रहा हूं कि तमाम फतवेबाज लेखक पैसे मांगने वाले लेखक सुरेंद्र वर्मा की हजामत बनाने में लग गए हैं। यह गुड बात नहीं है। अरे सीधी सी बात है कि लेखक अपने श्रम , अपने कार्य का पारिश्रमिक मांग रहा है तो उसे यह सहर्ष दिया जाना चाहिए। न मांगे तो भी देना चाहिए। आप पैसा कमाएं और आगे पैसा कमाने के लिए आप किसी का श्रम का मूल्य हड़प जाएं , यह कोई स्वस्थ बात तो हरगिज नहीं है। लेखक को हर बात के लिए , उस के श्रम के लिए सम्मानजनक पैसा देने की परंपरा अब से ही सही , शुरू हो जानी चाहिए। क्यों कि हिंदी का हर लेखक दिलीप कुमार नहीं है। 


Sunday, 22 August 2021

तो कल्याण सिंह इस बार के भारत-रत्न हैं कि पद्म-विभूषण ?

दयानंद पांडेय 

तो कल्याण सिंह इस बार के भारत-रत्न हैं कि पद्म-विभूषण ? दोनों में से कोई एक सम्मान कल्याण सिंह को मरणोपरांत मिलना सौ फ़ीसदी तय है। यह लिख कर रख लीजिए। ज़्यादा संभावना भारत-रत्न की ही है। मेरा पक्का आकलन यही है। अयोध्या विध्वंस के आरोप से न्यायालय उन्हें पहले ही बरी कर चुका है , सो कोई नैतिक या क़ानूनी बाध्यता भी नहीं रही है। कल्याण सिंह के निधन के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति ने भी नई करवट ली है। कभी किसी के जीवन-मरण में कभी कहीं नहीं दिखने , पहुंचने वाली मायावती भी कल्याण सिंह के घर श्रद्धांजलि देने आज सुबह-सुबह पहुंच गईं। इतना ही नहीं मीडिया को कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि की बाइट देते हुए मायावती बहुत भाउक भी हुईं। एक बार तो लगा जैसे रो पड़ेंगी वह। मायावती ने उन्हें पिछड़ों का नेता बताया। यह सब तब है , जब भाजपा में कल्याण सिंह मायावती के विरोधियों में शुमार रहे हैं। 

बल्कि अपने दूसरे कार्यकाल में मायावती के छल पर वार करते हुए मायावती की पार्टी के विधायकों को तोड़ कर उन्हें मंत्री बना कर मायावती को राजनीतिक पटकनी दे कर मायावती के राजनीतिक जीवन में सत्ता सुख पर ताला लगा दिया था। मायावती तिलमिला कर रह गई थीं। कल्याण सिंह राम मंदिर के अगुआ नेताओं में शुमार रहे हैं। जब कि मायावती के आका कांशीराम अयोध्या में राम मंदिर की जगह शौचालय बनाने की तजवीज देते रहे हैं। एक समय कांशीराम खुद नारा लगाते थे , मिले मुलायम-कांशीराम , हवा में उड़ गए जय श्री राम ! अब उन्हीं जय श्री राम के हनुमान कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने मायावती का पहुंचना उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक आकस्मिक घटना है। इस के दूरगामी संकेत हैं। 

उत्तर प्रदेश के एक मुख्य मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भी रहे थे। जो बाद में बोफ़ोर्स का छल-कपट कर प्रधान मंत्री भी बने। प्रधान मंत्री बन कर भी लाल क़िला पर 15 अगस्त को अपने भाषण में मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें लागू कर देश में जातीय जहर का उन्माद घोल बैठे। जातीय आग लगा दी पूरे देश में। नतीजा यह हुआ कि विश्वनाथ प्रताप सिंह को सम्मानजनक मृत्यु भी नसीब नहीं हुई। लंबी बीमारी के बाद मरे तो कोई जान भी नहीं पाया। अखबारों में ख़बरों में पहले पेज पर भी जगह नहीं मिली। अंदर के पन्नों में चार लाइन की उपेक्षित सी ख़बर लगी। न्यूज़ चैनलों में एक लाइन की पट्टी वाली ख़बर। देश के अखबार और न्यूज़ चैनल उस दिन मुंबई में आतंकवादी हमले से भरे पड़े थे। इस आतंक को हवा भी वाया कश्मीर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बतौर प्रधान मंत्री दिया था। जब कश्मीर से कश्मीरी पंडित जलील हो कर अपने प्राण ले कर भागे , उन की किसी ने रक्षा नहीं की तो यही विश्वनाथ प्रताप सिंह तब देश के प्रधान मंत्री थे। कश्मीरी पंडितों की स्त्रियों के साथ परिवारीजनों के सामने बलात्कार , उन के सामने ही बलात्कार के बाद स्त्रियों को ज़िंदा आरा मशीन में आधा-आधा चीर देना वहां के मुसलामानों का शगल हो गया था। कश्मीरी पंडितों के घर , जायदाद और स्त्रियां छीन लेना , दुकानें लूट लेना इन का जैसे मुसलमानों का कारोबार बन गया था। सैकड़ों मंदिरों को तोड़ कर नदियों में बहा दिया। 

विश्वनाथ प्रताप सिंह का गृह मंत्री मुफ्ती इतना कमीना था कि आतंकवादियों को रिहा करने के लिए अपनी ही बेटी सईदा रुबिया का अपहरण करवा बैठा। यानी महबूबा मुफ्ती की बहन। आज जो हालत अफगानिस्तान में अफगानियों और शेष लोगों की है , इस से भी बुरी हालत तब कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की हुई थी। तालिबानियों से भी ज़्यादा खतरनाक और मनुष्य विरोधी कश्मीर के मुसलमान हैं। जिन्हें तब के हिप्पोक्रेट राजनीतिज्ञ मिलिटेंट कहते थे। मिलिटेंट मतलब उग्रवादी। आतंकी कहने से परहेज था इन हिप्पोक्रेट्स को। इन्हीं सब करतूतों से विश्वनाथ प्रताप सिंह को सम्मानजनक मौत नहीं मिली। यह वही विश्वनाथ प्रताप सिंह थे जिन्हों ने बतौर मुख्य मंत्री , उत्तरा प्रदेश फ़ाइल पर लिखा था कि अगर मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दी गईं तो आग लग जाएगी। लेकिन प्रधान मंत्री बनते ही देवीलाल को पटकनी देने की गरज से शरद यादव , लालू यादव जैसे जातीय जहर वालों की मंत्रणा पर मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं। विश्वनाथ प्रताप सिंह को शरद यादव मंडली ने समझा दिया था कि मंडल लागू कर वह अंबेडकर से बड़े नेता बन जाएंगे। अंबेडकर से ज़्यादा मूर्तियां उन की लग जाएंगी। अंबेडकर जैसा तो दूर , विश्वनाथ प्रताप सिंह अंबेडकर का नाखून भी नहीं छू पाए। अलबत्ता मंडल के फेर में पूरे देश में आग लगवा दी। नौजवान ज़िंदा जलने लगे , जिन पर घोड़े दौड़ा दिए गए। देश की प्रतिभा पर ताला लगा दिया। मुस्लिम तुष्टीकरण में कश्मीर जलने लगा। कश्मीरी पंडित आज तक बेघर हैं। तो विश्वनाथ प्रताप सिंह अपमानजनक मृत्यु को प्राप्त हुए। अब तो कोई उन्हें याद भी नहीं करता। न कश्मीर के मुस्लिम आतंकी , न मंडल की मलाई चाटने वाले। 

लेकिन कल्याण सिंह को ? पूरा देश पूरे सम्मान से याद कर रहा है। उन के विरोधी भी। एक राम नाम ने कल्याण सिंह को यह सम्मान दिलाया है। राम के प्रति हनुमान जैसी निष्ठां ने उन्हें सर्वकालिक बना दिया है। अब आप इस के लिए उन की निंदा करें या तारीफ़ , यह आप जानें। 

हमारी भोजपुरी में एक कहावत है कि इहै मुंहवा पान खियावे ला , इहै मुंहवा पनही। पनही मतलब जूता। तो उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्य मंत्री रहे कल्याण सिंह को बहुत सम्मानजनक मृत्यु मिली है। अपने-अपने कर्म , व्यवहार और बोली की बात है। यही मिल कर नसीब बनाते हैं। आज प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी दिल्ली से चल कर लखनऊ पहुंचे कल्याण सिंह के घर। दिलचस्प यह कि कल्याण सिंह के आवास पर नरेंद्र मोदी का प्रथम अभिवादन और स्वागत करने वाली कुसुम राय थीं। जो थोड़ी देर नरेंद्र मोदी के साथ बगल में बराबरी में चलीं भी। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल।  भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा  , मुख्य मंत्री योगी , दोनों उप मुख्य मंत्री आदि कुसुम राय के पीछे थे। बाद में योगी , पीछे से निकलते हुए , मोदी के बगल में आए। यह दृश्य भी अविस्मरणीय है। बहरहाल नरेंद्र मोदी का कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने आना , कल्याण सिंह के राजनीतिक क़द का तो एहसास कराता ही है , नरेंद्र मोदी के बड़प्पन और आदर भाव को भी दर्शाता है। 

मोदी ने कल्याण सिंह को नमन करने के बाद जो मीडिया से रुंधे गले से कहा , वह भी महत्वपूर्ण है। कहा कि कल्याण सिंह के माता-पिता ने जो उन का नाम कल्याण सिंह रखा तो कल्याण सिंह अपने नाम के अनुरूप कल्याण का ही काम करते रहे। कल्याण सिंह का नाम राम मंदिर के संदर्भ में लेते हुए उन्हों ने कल्याण सिंह को प्रभु राम से अपने चरणों में लेने की बात भी बड़े भाउक अंदाज़ में कही। कुल मिला कर राम मंदिर निर्माण में कल्याण सिंह के महत्व और उन के प्रस्थान बिंदु की महत्ता बारंबार दुहराते रहे। कल्याण सिंह की याद में भीगते रहे। भाजपा का हर कोई नेता कल्याण सिंह के इस काम को रेखांकित करता मिला। सच भी यही है। और तो और एक समय कल्याण सिंह के राजनीतिक जीवन में शकुनि सा डंक मारने वाले , कल्याण सिंह की चरित्र हत्या करने वाले आज के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कल्याण सिंह की यशगाथा गाते हुए उन्हें अपना नेता , अपना बड़ा भाई और मित्र तीनों बताया। भाजपा में कभी कल्याण सिंह के प्रबल विरोधी रहे राजनाथ सिंह आज कह रहे थे कि वह उन से कहते थे कि हम लोग तो भूतपूर्व मुख्य मंत्री हैं पर आप अभूतपूर्व मुख्य मंत्री हैं। 

नरेंद्र मोदी का कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने आने की बात पर देश के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद और प्रथम केंद्रीय गृह मंत्री सरदार पटेल की भी याद आ गई। असमय ही सरदार पटेल का निधन हो गया था। सरदार पटेल की अंत्येष्टि मुंबई में होनी थी। दिल्ली में बाबू राजेंद्र प्रसाद ने सरदार पटेल की अंत्येष्टि में शामिल होने की मंशा जताई तो पंडित नेहरू ने उन्हें प्रोटोकॉल का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि पटेल की अंत्येष्टि में आप को नहीं जाना चाहिए। बाबू राजेंद्र प्रसाद ने पंडित नेहरू के प्रोटोकॉल के पाठ को दरकिनार किया और कहा कि प्रोटोकॉल बाद में है , पटेल पहले हमारे मित्र हैं। राजेंद्र प्रसाद सरदार पटेल की अंत्येष्टि में शामिल होने मुंबई चले गए। कहते हैं कि राजेंद्र प्रसाद पटेल की अंत्येष्टि के समय फूट-फूट कर रोए भी। आज तो नरेंद्र मोदी , लखनऊ हो आए। राष्ट्रपति ने ट्वीट कर कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि दे दी है। कल अलीगढ़ के अतरौली में कल्याण सिंह की अंत्येष्टि में क्या मंज़र होगा , देखना शेष है। क्यों कि दिल्ली में सुषमा स्वराज की अंत्येष्टि में रोते हुए उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू को हम ने देखा है जो अभी जल्दी ही की बात है। बातें और भी बहुतेरी हैं पर आहिस्ता-आहिस्ता।

Saturday, 21 August 2021

त्रेता युग के सब से बड़े राम भक्त अगर हनुमान हैं तो कलयुग के बड़े राम भक्त कल्याण सिंह

दयानंद पांडेय 


त्रेता युग के सब से बड़े राम भक्त अगर हनुमान हैं तो कलयुग के बड़े राम भक्त कल्याण सिंह हैं। हनुमान के बाद अगर कलयुग में राम का सब से बड़ा भक्त हुआ तो वह कल्याण सिंह ही हैं। राम की जो सेवा कल्याण सिंह ने की , वह किसी और ने नहीं। लगता है जैसे राम मंदिर निर्माण के लिए बुनियाद का काम करने के लिए , राम काज के लिए ही वह पैदा हुए थे। इसी लिए वह राजनीति में आए थे। मुख्य मंत्री बने थे। सुंदर काण्ड में तुलसीदास ने लिखा है :

हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम, 

राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम।

कल्याण सिंह ने हनुमान की तरह इस चौपाई को अंगीकार किया था। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में कल्याण सिंह का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। कल्याण सिंह न होते , उन की डिप्लोमेसी , उन की तिकड़म न होती , तो अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कभी नहीं होता। बाबरी ढांचा गिराना सही था कि ग़लत , इस पर बहस हमेशा होती रहेगी। पर बाबरी ढांचा तब नहीं गिरता तो कोई सुप्रीम कोर्ट भी वहां मंदिर बनाने का आदेश नहीं दे पाता। कोई संसद इस बाबत क़ानून नहीं बना पाती। राम मंदिर निर्माण का इतिहास जब भी , जो भी लिखेगा , कल्याण सिंह का नाम नहीं भूलेगा। राम मंदिर का समर्थक हो या विरोधी , कल्याण सिंह का नाम वह लेता ही है। हनुमान ने रावण की लंका में आग लगाई थी तो कल्याण सिंह ने हिप्पोक्रेट सेक्यूलरों की लंका में आग लगाई थी और राम मंदिर का सपना बुन लिया था। लोहिया ने लिखा है कि राम, कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं। तो राम का स्वप्न पूरा किया कल्याण सिंह ने। 

वह जो कहते हैं कि सरकार इक़बाल और धमक से चलती है। तो कल्याण सिंह उसी इक़बाल और धमक से सरकार चलाते थे। बड़े-बड़ों को ठिकाने लगाया। अपराधमुक्त उत्तर प्रदेश और गड्ढामुक्त सड़कें ही उन का जैसे स्लोगन था। बहुतेरे मुख्य मंत्रियों से मेरा वास्ता पड़ा है। बहुत करीब से देखा है। पर कल्याण सिंह जैसा दूसरा मुख्य मंत्री मैं ने उत्तर प्रदेश में दूसरा नहीं देखा। उन के साथ की बहुत सी बातें और यादें हैं। उन के साथ जाने कितनी यात्राएं याद आ रही हैं। हवाई यात्राओं में वह अपने साथ भुना चना और मखाना रखते थे। मुट्ठी भर-भर खाते-खिलाते थे। उन के कई इंटरव्यू याद आ रहे हैं। पूरी ईमानदारी और पूरी निष्ठा से उत्तर प्रदेश सरकार चलाई थी उन्हों ने। एक समय भाजपा में अटल , आडवाणी के बाद तीसरे नंबर पर कल्याण सिंह का नाम लिया जाने लगा था। बस राजनाथ सिंह की शकुनी चाल में फंस कर वह अटल बिहारी वाजपेयी से टकरा गए। और मुख्य मंत्री की कुर्सी गंवा कर राजनीति के नेपथ्य में चले गए। उन के साथ ही उत्तर प्रदेश में भाजपा भी नेपथ्य में चली गई। मुलायम सिंह के साथ एक अपमानजनक समझौता भी किया कल्याण सिंह ने कुछ समय के लिए। उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध और भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए निर्णायक फैसलों के लिए भी हम कल्याण सिंह को जानते हैं। अयोध्या में राम मंदिर अभियान में सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दे कर भले बाबरी को बचाने का वादा किया था। पर सार्वजनिक रूप से वह लगातार कहते रहे थे कि अयोध्या में मैं गोली नहीं चलाऊंगा। यह ज़रूर है कि राम काज के लिए हनुमान को लंका में विभीषण मिले थे , कलयुग में कल्याण सिंह को नरसिंहा राव मिले। 

18 फ़रवरी , 1998 को मेरा एक भीषण एक्सीडेंट हुआ। मुलायम सिंह यादव संभल से चुनाव लड़ रहे थे। उन्हीं के कवरेज में लखनऊ से संभल जा रहा था। सीतापुर के पहले ख़ैराबाद  हमारी अंबेसडर की एक भैंस लदे ट्रक से आमने-सामने की टक्कर हो गई। हमारे साथ बग़ल में बैठे हिंदुस्तान अखबार के जय प्रकाश शाही और ड्राइवर मौक़े पर ही दम तोड़ गए। मैं और आज अखबार के गोपेश पांडेय किसी तरह बचे और लखनऊ लाए गए। मुझे देखने अटल बिहारी वाजपेयी जी भी आए। मुलायम सिंहं , कलराज मिश्र , राजनाथ सिंह समेत तमाम राजनीतिज्ञ आए। कल्याण सिंह भी। कल्याण सिंह तब मुख्य मंत्री थे। उन्हों ने मेरे इलाज के लिए बंदोबस्त करवाया। मेरे इलाज और देखरेख के लिए पूरा सरकारी अमला लगा दिया। सरकार की तरफ से आर्थिक मदद भी दी। और निरंतर हालचाल लेते रहे। मेरी जान बच गई। कहने का अर्थ यह कि कल्याण सिंह मददगार भी बहुत थे। 

पिछड़ी जातियों की राजनीति करने वाले कल्याण सिंह को एक समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने नाको चने चबवा दिए थे। लेकिन कल्याण सिंह ने उन्हें न सिर्फ पटकनी दे दी थी , भरी विधान सभा में रोमेश भंडारी से अभिभाषण में माफ़ी भी मंगवा दी थी। सामान्य भाषा में इसे थूक कर चाटना भी कहते हैं। जो रोमेश भंडारी ने किया। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी थी तब राम नरेश यादव मुख्य मंत्री थे। कल्याण सिंह स्वास्थ्य मंत्री और मुलायम सिंह सहकारिता मंत्री। मुलायम सिंह जब मंत्री बने तब भी जनसंघ धड़े के समर्थन से और जब पहली बार 1989 में मुख्य मंत्री बने तब भी भाजपा के समर्थन से। बाक़ी सेक्यूलरिज्म का च्यवनप्राश भी सब से ज़्यादा मुलायम ही उत्तर प्रदेश में खाते रहे हैं। जाने किस मुंह से। लेकिन क्या कीजिएगा यह राजनीति है। कहते हैं कभी गाड़ी , नाव पर। कभी नाव गाड़ी पर। जो भी हो कल्याण सिंह जैसे भी थे खुली किताब थे। ईमानदार थे और निडर भी। भाजपा में लोग उन्हें बहुत आदर से बाबू जी कहते थे। कृपया मुझे कहने की अनुमति दीजिए कि राजनाथ सिंह की शकुनि चाल में अगर कल्याण सिंह न फंसे होते , अपने अहंकार को थोड़ा सा दबा ले गए होते तो वह केंद्र की राजनीति में होते। और कि राज्यपाल नहीं नियुक्त हुए होते। राज्यपाल नियुक्त कर रहे होते। हो सकता था कल्याण सिंह राजनाथ सिंह को ही कहीं राज्यपाल नियुक्त कर दिए होते। बहरहाल कल्याण सिंह भाजपा में इकलौते थे। जो कभी वार करना भी होता तो पीछे से नहीं , सामने से और खुल्ल्मखुल्ला करते थे। कल्याण सिंह जी , आप सर्वदा याद आएंगे। आप की कर्मठता भी। विनम्र श्रद्धांजलि !

इन आतंकियों के शरिया आदि का इलाज सिर्फ और सिर्फ फौजी बूट , टैंक , मिसाइल और बम वर्षक जहाज हैं , बातचीत नहीं

दयानंद पांडेय 

मैं आज तक नहीं समझ पाया कि ये इस्लामी आतंकी , तालिबानी आदि-इत्यादि कभी किसी फ़ौज से क्यों नहीं सीधा मुक़ाबला करते। जब भी अपनी बहादुरी यह आजमाते हैं , सर्वदा निर्दोष और मासूम जनता से ही मुक़ाबला करते हैं और अपनी कायरता का परचम लहराते हैं। स्त्रियों और बच्चों को ही पहला निशाना बनाते हैं। अफगानों की बहादुरी के नकली किस्से अब की क़ाबुल हवाई अड्डे पर दिखे। घर-परिवार , बीवी-बच्चों को लावारिश छोड़ कर अमरीकी जहाज के आगे-पीछे दौड़ रहे थे। अभी अमरीकी या भारतीय सेना अफगानिस्तान पहुंच जाए तो सारे तालिबानी आतंकियों के पठानी सूट खराब हो जाएंगे। न इन के पास बहादुरी है , न शऊर , न सभ्यता , न मनुष्यता। 

कश्मीर से सीरिया तक , भारत , अमरीका , फ़्रांस और यूरोप तक इन की कायरता की एक ही कहानी है। इस्लाम का अपना आतंकी एजेंडा सिर्फ़ निर्दोषों पर आजमाते हैं। सेना के कैम्प में भी छुप कर दहशतगर्दी करते हैं। इस्लामी आतंक के बूते समूची दुनिया को जहन्नुम बनाए हुए हैं। भारत जैसे देश में सेक्यूलर हिप्पोक्रेट इन्हें अकसर कवरिंग फायर देते रहते हैं। जैसे अफगानिस्तान में तालिबान प्रेस कांफ्रेंस कर अपना नकली उदार चेहरा पेश कर रहे हैं , उसी तरह भारत में भी यह भाई-चारा की नक़ली सूरत पेश कर पीठ में छूरा भोंकते हैं। आमने-सामने की लड़ाई में इन्हें कभी यक़ीन नहीं रहा। क्यों कि यह कायर और बुजदिल लोग हैं। निहत्थों पर अपनी बहादुरी आज़माने के अभ्यस्त मनुष्यता विरोधी लोग हैं। लोगों की उदारता का दुरूपयोग करने में सिद्धहस्त। 

इन आतंकियों के शरिया आदि का इलाज सिर्फ और सिर्फ फौजी बूट , टैंक , मिसाइल और बम वर्षक जहाज हैं ,बातचीत नहीं । बातचीत का ड्रामा शरीफों के साथ होता है। आतंकियों के साथ नहीं। मनुष्यता और स्त्री विरोधियों के साथ नहीं। समूची दुनिया में इन्हें पूरी सख्ती और पूरी बेरहमी से कुचल कर मनुष्यता का राज कायम करने की सख्त ज़रूरत है। इन्हें सुधरने का कोई अवसर देना कोरी नादानी है। इन के सुधरने की उम्मीद करना मूर्खता और कायरता है। लोकतंत्र आदि को मुल्तवी कर कश्मीर में महबूबा जैसी जहरीली नेताओं को सीधे गोली मार देनी चाहिए। इस मामले में चीन को फॉलो करना चाहिए। फिर महबूबा ही क्यों , ऐसे हर किसी के साथ यही सुलूक़ होना चाहिए। बहुत हो चुका पाकिस्तान-पाकिस्तान , शरिया और इस्लाम आदि-इत्यादि। देश सर्वोच्च है , कोई मज़हब , फ़ज़हब नहीं। हिंदू हो , मुसलमान हो या कोई और। सब के साथ एक सुलूक़। नो रियायत। देश और मनुष्यता के साथ कोई समझौता नहीं। बहुत हो चुका। पंजाब में के पी एस गिल की तरह सुलूक़ करना होगा। नो अरेस्ट , नो सुनवाई , डायरेक्ट जजमेंट ! तभी इस आतंक से फुर्सत मिलेगी। महबूबा ? अरे महबूबा जैसों की बू भी नहीं मिलेगी कभी। पाकिस्तान , शरिया सब भूल जाएंगे यह लोग।

Thursday, 19 August 2021

इस्लाम की बंदूक़ ले कर राजा तालिबान आए हैं

 ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 


मां की ग़ज़ल सुनाते मुनव्वर राना बेईमान आए हैं 
इस्लाम की बंदूक़ ले कर राजा तालिबान आए हैं 

बहुत ज़ोर था संविधान पर उन का शाहीन बाग़ में 
संविधान की आड़ में वह शरिया का शैतान लाए हैं 

दुशासन एक ही था द्रौपदी की चीर हरण के वास्ते 
अब लाज लूटने इस्लामी कल्चर के लाखों हैवान आए हैं 

चार सौ मर्द एक औरत को नंगा करते सरे बाज़ार 
इस नई सदी में हम एक ऐसा पाकिस्तान पाए हैं 

बतियाते-बतियाते रोती है औरत जार-जार बेजार 
गो पुराने ज़ख्मों को हरा करने अब नए कद्रदान आए हैं 

कि बेटी की , उस की लाज बचेगी कैसे पूछती है औरत 
रूस अमरीका के झगड़े में ऐसा अफगानिस्तान लाए हैं 

इस्लामी आतंक में लुटा है कश्मीर भी कभी ऐसे ही 
कश्मीरी पंडित यह किस्सा दबी जुबान लाए हैं 

सेक्यूलरों ने सर्वदा हैवानियत के शोलों को हवा दी है 
बचा कर इन की दोजख से अपनी जान लाए हैं 

क़िस्से बहुत हैं दुनिया में इन की हैवानियत के 
मनुष्यता बची रहे किसी तरह हम यह पैग़ाम लाए हैं 

Wednesday, 18 August 2021

भाजपा और आर एस एस वाले कभी नहीं सुधरेंगे !

दयानंद पांडेय 

भाजपा और आर एस एस वाले कभी नहीं सुधरेंगे। अब देखिए न उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतने के लिए अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को भेज दिया है। अभी तक हिंदू , मुसलमान करते थे। अब मुसलमान , मुसलमान करने लगे हैं। मुसलमानों में ही बंटवारा करवा दिया है। कत्लेआम शुरू करवा दिया है। औरतों पर ज़ुल्म तो ज़ुल्म , मुसलमानों को मुसलमानों से ही लड़वा दिया है। यहां तक कि पाकिस्तान और हिंदुस्तान के मौलवी , मुल्ला को भी लड़वा दिया है। पाकिस्तान के मुल्ला , मौलवी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की हरक़तों की मजम्मत कर रहे हैं और भारत के मौलवी , मुल्ला तालिबान की खुशामदीद में संलग्न नज़र आ रहे हैं। अजब मंज़र है। 

ये भाजपा , आर एस एस वाले जो न करवा दें , कम है। पंजाब में चुनाव जीतने के लिए पाकिस्तान में महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति भी कल तोड़वा दी। और सिद्धू से कह दिया , खबरदार जो इस पर कुछ बोला। सो सिद्धू समेत समूची सिख संगत ख़ामोश है। सिख संगत की देखा-देखी , सभी वामपंथी और कांग्रेसी आदि-इत्यादि भी डर कर ख़ामोश हो गए। और तो और अतिवादी राकेश टिकैत के जहरीले बोल भी बंद। ऐसे , गोया शत्रुघन सिनहा ने ख़ामोश ! बोल दिया हो। अभी देखिए और क्या-क्या करते हैं यह लोग ! 

सब का साथ , सब का विकास , सब का विश्वास शायद कम पड़ रहा था जो अब की 15 अगस्त को लाल क़िले से इस में सब का प्रयास भी जोड़ दिया। सब का प्रयास शब्द जोड़ते ही भाजपा वालों ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को इशारा किया और तालिबान ने बिना किसी देरी के 15 अगस्त से ही प्रयास शुरू कर दिया। बताइए कि कमल खिलाने के लिए भाजपा वाले अब सरहद पार भी पहुंच गए। मैं तो कहता हूं कि अगर भाजपा , आर एस एस से सब लोग डरे हुए हैं , कुछ नहीं बोल पा रहे तो चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट को इस का स्वत: संज्ञान ले लेना चाहिए। क्यों कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , सहिष्णुता आदि शब्द बौने हो कर विश्राम मोड में आ गए हैं। 

हम जाने किस मोड़ पर आ गए हैं।

Tuesday, 17 August 2021

तालिबान की ट्रेजडी के धागे अंतहीन नहीं हैं

दयानंद पांडेय 

अजब मंज़र है। पाकिस्तान में आज महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति तोड़ दी गई। पर भारत का सिख समाज खामोश रहा। वह पागल और अराजक सिद्धू भी नहीं भौंका। उधर अफगानिस्तान में तालिबान की दहशतगर्दी में फंसे सिख समाज के लोग खुद को बचाने के लिए अमरीका और कनाडा से गुहार लगा रहे हैं , भारत से नहीं। लेकिन कनाडा और अमरीका उन की मदद करने से रहे। इधर मोदी कह रहे हैं , अफगानिस्तान के हिंदू और सिख भाइयों को भारत शरण देगा। ई वीजा की भी बात कही  है। 

दिलचस्प यह कि पाकिस्तान में जश्न है , अफगानिस्तान में तालिबान की आमद पर। पर कोई अफगानी पाकिस्तान नहीं जाना चाहता। जो भी हो , अमरीका ने ठीक ही किया है अफगानिस्तान छोड़ कर। कब तक अफगानिस्तान का बोझ उठाता भला। आज नहीं , कल यह क़यामत अफगानिस्तान में आनी ही थी। आ गई। देर-सवेर पाकिस्तान में भी यह क़यामत आएगी ही आएगी। 

रही बात भारत की तो जब तक नरेंद्र मोदी नाम की चौकीदारी है , निश्चिंत रहिए। जब कभी अवसर आया तो इन हिंसक तालिबानियों के खून का तालाब बना देगा यह चौकीदार। सो फिकर नाट ! यक़ीन न हो तो 370 समेत , उरी , बालाकोट से लगायत अभिनंदन तक को याद कर लीजिए। इंटरनेशनल डिप्लोमेसी वाली उलटी-सीधी बातों पर बहुत परेशान न हों। बिलकुल न हों। सेक्यूलर चैंपियंस की हिप्पोक्रेसी पर भी कान न दें। इन की हैसियत हाथी के पीछे भौंकने से ज़्यादा की नहीं है। 

तालिबान की ट्रेजडी के धागे अंतहीन नहीं हैं। अंत भी होगा। कहावत बहुत पुरानी है कि लोहा , लोहा को काटता है। तो शरिया , शरिया को मज़ा दे रहा है। देने दीजिए। आप को दिक़्क़त क्या है। शरिया को शरिया से निपटने दीजिए। सुनते-सुनते कान पक गए हैं कि हमारे मज़हब में दखल मत दीजिए। जाने क्यों लोग मनुष्यता-मनुष्यता उच्चार कर दखल देना चाहते हैं। भारत में तो भाईजान लोग भी चुप हैं और वामपंथी भी , कांग्रेसी , ममता , सपा , बसपा इत्यादि सभी। फ़िल्मी जन भी , बुद्धिजीवी जन भी। जब सभी हिप्पोक्रेट्स शरिया के नाम पर ख़ामोश हैं तो शेष लोगों को भी चुप रहना चाहिए। शरिया में कोई दखल नहीं ! नो आह , नो वाह ! कहते ही हैं कि मूर्ख और मृतक राय नहीं बदलते। तो यह तालिबान मूर्ख भी हैं और मृत भी। पर जाने क्यों लोग इन में बदलाव भी चाहते हैं। अजब मासूमियत और अजब लाचारी है। 

है न !

Thursday, 12 August 2021

आरक्षण-आरक्षण खेलने का लाभ सरकार बनाने और समाज को प्रतिभाहीन बनाने में और ज़्यादा उपयोगी है

दयानंद पांडेय 

80 करोड़ निर्बल लोगों को मुफ्त राशन देना , उज्ज्वला के तहत मुफ़्त गैस , मुफ्त पक्का मकान , मुफ्त शौचालय देना है आप सालो-साल देते रहिए। डाक्टर , इंजीनियर आदि की पढ़ाई में भी इन की पूरी फीस माफ़ कर दीजिए। पर 90 परसेंट वाले बच्चों को धकिया कर 40 परसेंट वाले बच्चों को एडमिशन देने से तो बच ही सकते हैं। नौकरी देने से तो बच ही सकते हैं। ऐसी प्रतिभाहीन योजना से बाज आइए। सोचिए कि 90 परसेंट वाली प्रतिभा को धकिया कर 40 परसेंट वाले को सिर पर बिठा कर आप 75 बरसों से कौन सा समाज बना बैठे हैं। जातीय नफ़रत की नागफनी उगा बैठे हैं। सामाजिक समता के नाम पर उग रही इस नागफनी को रोकिए। ओ बी सी और दलितों द्वारा बात-बेबात आगज़नी और हिंसा से कब तक डरते रहेंगे ? वह नाराज हो कर धर्म परिवर्तन कर लेंगे , उन की इस ब्लैकमेलिंग से कब तक भयभीत रहेंगे ?

आप को नहीं मालूम तो मालूम कीजिए कि देश ज्वालामुखी के ढेर पर बैठ चुका है। ओ बी सी , दलित और मुस्लिम की राजनीति सिर्फ़ राजनीति तक ही सीमित रखिए। नहीं कल को योग्य चिकित्सक , योग्य इंजीनियर , योग्य प्रशासनिक अधिकारी आप ढूंढते रह जाएंगे। बहुत बीमार समाज बना बैठे हैं , हम लोग। इतना कि हिप्पोक्रेट राजनीतिज्ञ ताल ठोंक कर जातीय जनगणना की दूरबीन से ही विकास खोजने की वकालत का पहाड़ा पढ़ने लगे हैं। अभी अयोग्य लोगों के राज्य सभा में पहुंच जाने से उन के जूतमपैजार पर आप माथा फोड़ रहे हैं। कल को यह जूतमपैजार गली-गली , सड़क-सड़क दिखने वाला है। हिंसा और अराजकता के दम पर योग्यता पर अयोग्यता की विजय का पथ प्रशस्त हो चुका है। 

भारतीय समाज को इस तरह हिंसक और तालिबान बनने से रोकना अब बहुत ज़रूरी हो गया है। आप को लगता है कि जनता ने बहुमत से चुन कर आप को संसद में भेजा है। तो क़ानून बनाने का , उस को लागू करने का आप का अधिकार है। पर मुट्ठी भर अराजक और हिंसक लोग आप को काम नहीं करने दे रहे। दुरुस्त बात है। लोकतंत्र के लिए यह सचमुच शुभ नहीं है। फिर इसी बिना पर यह भी कैसे शुभ है भला कि 90 परसेंट पाने वाला बच्चा कोने में खड़ा-खड़ा फ्रस्ट्रेट होता रहे और 40 परसेंट पाने वाला उस के कंधे पर पैर रख कर खड़ा हो जाए और सारी मलाई बिना मेहनत के लूट ले। 

जैसे संसद में विपक्ष अल्पमत में होते हुए भी सारे सिस्टम की नाक में दम किए हुए है , वैसे ही कम अंक पा कर भी आरक्षण वाला बच्चा ज़्यादा नंबर पाने वाले बच्चों की नाक में दम किए हुए है। कभी दलित , कभी मुस्लिम , कभी ओ बी सी का ट्रंप कार्ड खेलने से भी ज़्यादा घातक है , प्रतिभशाली बच्चों का गला काट कर प्रतिभाहीन बच्चों को निरंतर आगे बढ़ाते जाना। प्रतिभाहीन समाज बना कर आप की सरकार तो बन सकती है , आप का हिंदुत्व भी बच सकता है। पर जब प्रतिभा की ज़रूरत होगी तब क्या करेंगे भला। आक्सीजन और दवाई की तरह क्या प्रतिभा भी आयात करेंगे ? अभी तो आप की सारी प्रतिभाएं यू के , यू एस की प्रगति में अपना ख़ून-पसीना एक कर रहे हैं। 

ब्रेन-ड्रेन की मार बहुत बड़ी है। ब्रेन-ड्रेन पहले बीस-पचीस प्रतिशत ही था। अब यह 70 प्रतिशत से अधिक हो चुका है। पहले बच्चे पढ़ कर यू के , यू एस भागते थे। अब पढ़ने के लिए ही भाग जाते हैं। पढ़ कर वहीँ काम करने लगते हैं। फिर जब तक माता-पिता जीवित रहते हैं तब तक भारत याद रहता है। फिर वह भारत भी भूल जा रहे हैं। आंख उठा कर देखिए। देश प्रतिभाओं से रिक्त हुआ जा रहा है। आरक्षण-आरक्षण खेलने का लाभ सरकार बनाने में फिलहाल बहुत उपयोगी है पर भारतीय समाज को प्रतिभाहीन बनाने में और ज़्यादा उपयोगी साबित हो रहा है।  कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण और मुस्लिम वोट बैंक के चक्कर में अंतत: साफ हो गई है। सपा , बसपा जैसी जातिवादी पार्टियां भी सफाचट हो गईं इसी मुस्लिम वोट बैंक की बदबू में। अब भाजपा ओ बी सी और दलितों के तुष्टिकरण में नत हो कर बदबू मारने लगी है। भाजपा और आर एस एस को लुका-छुपी का खेल बंद कर सीधे-सीध 50 प्रतिशत का आरक्षण दलितों को 50 प्रतिशत आरक्षण ओ बी सी को दे कर फाइनली छुट्टी ले लेनी चाहिए। हिंदुत्व बचाने का अगर यही तरीक़ा शेष रह गया है तो यही सही। बाक़ी लोगों को मंगल ग्रह या चंद्रमा पर भेज देना चाहिए। लोग वहीं अपना-अपना आबोदाना खोज लें।

Saturday, 7 August 2021

नीरज चोपड़ा का गोल्ड मेडल पेगसस टीम से बर्दाश्त नहीं हो रहा है , इतना कि इन का पृष्ठ भाग जल कर ईंट का भट्ठा बन गया है

 दयानंद पांडेय 

पेगसस की कुंठा का पायजामा इतना फट गया है , फटता ही जा रहा है कि ओलंपिक में नीरज चोपड़ा का गोल्ड मेडल पेगसस टीम से बर्दाश्त नहीं हो रहा है। पेगसस के पूरे पायजामे में आग लग गई है। सो इन का पृष्ठ भाग जल कर ईंट का भट्ठा बन गया है। कुंठा विगलित हो कर बदक रही है इतना कि आखिर भारत को फेंकने में ही गोल्ड मिला , बताया जाने लगा है। तंज की तंगदिली का तावा बहुत गरम है। तब जब कि अभी ओलंपिक के कई दिन शेष हैं और 7 मैडल भारत के हिस्से में किसी ओलंपिक में पहली बार आ चुके हैं। स्पष्ट है कि अभी और आएंगे। 

क्रिकेट जैसा क्रीम खेल इन ओलंपिक मेडल की चमक में फीका पड़ गया है। इन दिनों क्रिकेट मैच भी हो रहे हैं पर बहार ओलंपिक की चल रही है। क्रिकेट जैसे नेपथ्य में चला गया है। लेकिन कुछ कुंठित लोगों के पृष्ठ भाग में इन ओलंपिक मेडल से आग लग गई है। वैसे भी देश की हर सफलता , हर उपलब्धि में इन के पृष्ठ भाग में आग लगना स्वाभाविक क्रिया बन गई है। वैक्सीन बन जाए तो पृष्ठ भाग में आग। चीन पर भारत भारी पड़ जाए तो पृष्ठ भाग में आग। अभिनंदन सिर उठा कर , सीना तान कर भारत वापस लौट आए तो पृष्ठ भाग सुलग जाए। सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर के पक्ष में फैसला आ जाए तो पृष्ठ भाग में आग। 370 पर भी और सी ए ए आ जाए तो भी। बात-बेबात इन का पेगसस का पायजामा जल जाता है और पृष्ठ भाग में आग लग जाती है। वंदे मातरम और भारत माता की जय से चिढ़ते-चिढ़ते इन का पृष्ठ भाग ज्वालामुखी का ख़ास केंद्र बन गया है। 

इन का पृष्ठ भाग तभी संतुष्ट होता है जब भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला , इंशा अल्ला सुनते हैं। तुम कितने अफजल मारोगे , हर घर से अफजल निकलेगा ! जैसे नारों से भी इन का पृष्ठ भाग संतुष्ट हो जाता है। दुर्भाग्य यह कि ऐसे लोगों का कोई चिकित्सकीय समाधान भी नहीं है। थोड़ा बहुत समाधान है ऐसे लोगों का तो योगी आदित्यनाथ के पास ही है। अगर आप को यकीन न हो तो राकेश टिकैत द्वारा लखनऊ घेराव के ऐलान के बाबत मेरी इस बात का परीक्षण कर लीजिएगा। लखनऊ की सरहद पर राकेश टिकैत का माकूल इलाज न हो जाए तो बताइएगा। 

तो पेगसस के जले और फ़टे पायजामा वालों का इलाज भी योगी आदित्यनाथ के पास ही है। मोदी और अमित शाह के पास नहीं। मोदी और अमित शाह के पास अगर इलाज होता तो रावर्ट वाड्रा , ज़मीन मामले में राहुल और सोनिया , नेशनल हेराल्ड मामले में अब तक जेल में होते। चिदंबरम जैसे लोग जेल से बाहर नहीं आ पाए होते। पर यह मोदी , अमित शाह जैसे लोग वेट एंड वाच में यक़ीन रखने वाले नरम दल के लोग हैं। लेकिन योगी इन का पायजामा फाड़ कर , उसी कपड़े में इन का कुरता भी सिलवा कर पहना देंगे। फिर आज़म खान और मुख्तार अंसारी , अतीक अहमद जैसों की तरह इन सब की आवाज़ भी नहीं निकलेगी। 

देखिए न कि अखिलेश यादव का भीतर-भीतर जाने क्या इलाज कर दिया है योगी ने कि उत्तर प्रदेश विधान सभा की 403 सीटों में से 400 सीट जीतने का ऐलान कर दिया है अखिलेश यादव ने। गोया विधान सभा चुनाव नहीं लड़ने निकले हैं , घर की टोटी और टाइल उखाड़ने निकले हैं। हर थाने पर यादव थानेदार तैनात करने निकले हैं। कुरता फाड़ कर घूमना इसे ही तो कहते हैं। एक मजनू ही नहीं था , अखिलेश यादव भी हैं। भरी जवानी में बूढ़े और चिड़चिड़े वैसे ही तो नहीं हो गए हैं अखिलेश यादव। बात-बेबात मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों की रट वैसे ही तो नहीं लगाए हुए हैं वह। नहीं रहे अमर सिंह नहीं अब तक वह अखिलेश यादव को उन का चंद्र खिलौना दे कर उन के घर में बैठा दिए होते। 

एक ओम प्रकाश राजभर हैं कि पांच साल में पांच मुख्य मंत्री और 20 उप मुख्य मंत्री की लतीफाई बात कर रहे हैं। बसपा वाले कभी अयोध्या में राम जन्म-भूमि पर शौचालय बनाने की बात करते थे। आज बढ़-चढ़ कर मंदिर बनाने की बात रहे हैं। सपा-बसपा सभी प्रभु राम और ब्राह्मणों की बात करने लगे हैं। योगी असल में आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा में यकीन करते हैं , एलोपैथी में नहीं। इसी लिए कह रहा हूं कि पेगसस के पायजामे का जो नाड़ा निकल गया है , पृष्ठ भाग में जो आग लगी हुई है , उस का निवारण और शमन सिर्फ़ योगी ही कर सकते हैं। बरास्ता आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा। बताइए कि 13 सालों बाद एक खिलाड़ी ओलंपिक से गोल्ड मेडल जीतता है और यह विघ्न संतोषी इस पर भी तंज और शोक में डूब जाते हैं। हिंदू अखबार का एक बीमार सहायक संपादक तो नीरज अरोड़ा के साथ ही पाकिस्तानी खिलाड़ी को भी गोल्ड मेडल मिलने की कल्पना करता मिला आज। यह तब जब है कि पाकिस्तान के लोग भी नीरज चोपड़ा को बधाई दे रहे हैं। 

एक चीनी कहावत है कि इतने उदार भी मत बनिए कि अपनी बीवी भी किसी को गिफ्ट कर दीजिए। पर यह लोग तो बीवी , मां , बहन , बेटी ,आन-मान , स्वाभिमान सब कुछ सौंप देना चाहते हैं। पूरा देश गोल्ड मेडल में चहक और गमक रहा है पर इस पेगसस ऊर्फ टुकड़े-टुकड़े गैंग वालों का पृष्ठ भाग इतना सुलग गया है कि पाकिस्तान को गोल्ड मैडल की परिकल्पना के सुख में डूबा हुआ है। सुख और आनंद के क्षण में भी तंज और शोक में डूबा हुआ है। इन नितंब नरेशों का समुचित इलाज अब बहुत ज़रूरी हो गया है। राष्ट्रीय सुख और आनंद में भी शोक और तंज का तालाब खोद लेने वालों की खबर तो लेनी पड़ेगी। पेगसस की कुंठा का पायजामा पहने लोगों के पृष्ठ भाग में लगी आग को और दहकाना बहुत ज़रुरी हो गया है। ताकि यह अपनी ही आग में जय हिंद हो जाएं। 

Thursday, 5 August 2021

किसान आंदोलन में दम होता तो बासी पैगसस का कोहराम न होता

दयानंद पांडेय 

मुस्लिम वोट बैंक में दम होता तो मई , 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री न बने होते। नफ़रत और घृणा से भरे मुट्ठी भर लेखकों , कवियों को मई , 2014 के बाद की कविता का विलाप न करना पड़ता। देश छोड़ने का ऐलान न करना पड़ता। राफेल में दम होता तो फिर 2019 में नरेंद्र मोदी दुबारा प्रधान मंत्री न बने होते। एन आर सी और सी ए ए के दंगों में दम होता तो किसान आंदोलन न होता। किसान आंदोलन में दम होता तो बासी पैगसस का कोहराम न होता। पैगसस का मामला 2019 का है। विपक्ष समेत नरेंद्र मोदी वार्ड के मरीजों को अब से सही समझ लेना चाहिए कि मंकी एफर्ट्स से देश की छवि से खेला तो जा सकता है , अपना इगो मसाज तो किया जा सकता है पर नरेंद्र मोदी जैसे ज़मीनी नेता को पछाड़ा या उखाड़ा नहीं जा सकता। आप पूछ सकते हैं कि मंकी एफर्ट क्या बला है। 

क्या हुआ कि एक जंगल में एक बंदर ने शेर के खिलाफ विष-वमन किया और जंगल में और जानवरों को शेर के खिलाफ ख़ूब भड़काया और बताया कि शेर के अत्याचार से सिर्फ़ मैं ही आप लोगों को बचा सकता हूं। सो मुझे जंगल का राजा बना दो। सारे जानवर मान गए। बंदर राजा बन गया। एक दिन अचानक शेर आ गया। लोग बंदर से बोले , मुझे अब शेर से बचाओ। बंदर पेड़ पर चढ़ गया। और इस डाल से उस डाल कूद-कूद कर शेर को हड़काता रहा। लेकिन शेर ने बंदर की एक न सुनी। एक-एक कर कई जानवरों को खाता रहा। जंगल के जानवरों ने बंदर से कहा कुछ करते क्यों नहीं ? हमें बचाते क्यों नहीं ? इस डाल से उस डाल उछल-कूद करते हुए बंदर बोला , ' कोशिश तो लगातार कर रहा हूं। मेरे एफर्ट में कोई कमी हो तो बताओ। ' और शेर एक-एक कर सभी जानवरों को खा गया। 

कुछ-कुछ इसी तरह भारत का विपक्ष निरंतर समाप्त होते हुए कांग्रेस और राहुल गांधी के मंकी एफर्ट को इंज्वाय कर रहे हैं। पैगसस भी इसी मंकी एफर्ट का एक सिलसिला है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आज विपक्ष के इस मंकी एफर्ट की ऐसी-तैसी करते हुए पूछ लिया है कि सुबूत क्या है ? 2019 में यह मामला सामने आने पर भी अभी तक कहां थे ? कहीं शिकायत क्यों नहीं की ? सुनवाई मंगलवार यानी 10 अगस्त को फिर है। पर पैगसस पर पहले राउंड में राहुल गांधी के मंकी एफर्ट की हवा निकाल दिया है सुप्रीम कोर्ट ने। 

बाकी विपक्ष भी जब तक राहुल के मंकी एफर्ट के खेल से बाहर निकल कर जब तक जनता के बीच नहीं जाएगा। कोई ज़मीनी बात नहीं करेगा , गगन बिहारी बातें करता रहेगा तो 2024 में भी नरेंद्र का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। यह लिख कर रख लीजिए। बिना किसी भेदभाव के गरीबों के बीच पक्का मकान , शौचालय , गैस , जनधन , किसान को पैसा , मुफ्त राशन आदि ज़मीनी कार्यक्रमों की ताकत विपक्ष अभी तक समझ नहीं पाया है। कोरोना के बावजूद जी एस टी का रिकार्ड कलेक्शन , निर्यात का बढ़ता रिकार्ड देख कर भी विपक्ष फर्जी जी डी पी का गाना गाता रहता है। उलटी बात करने से जनता बहकती नहीं। ज़मीनी हक़ीक़त देखती है। नरेंद्र मोदी ने आज ओलंपिक की चर्चा करते हुए विपक्ष पर हमलावर होते हुए कहा भी है कि देश पद नहीं पदक से आगे बढ़ रहा है। 

देश ही नहीं , देश का खेल और देश की राजनीति भी अब आमूल-चूल बदल चुकी है। जनता ने अपनी प्राथमिकताएं भी बदल ली हैं। अपनी ज़रूरतें जनता जानती है और अपनी महत्वाकांक्षाएं भी। कोरोना की इतनी बड़ी महामारी में भूख से मरने का कोई आंकड़ा नहीं आ पाना भी बड़ी बात ही। रही बात स्वास्थ्य व्यवस्था की तो वह समूची दुनिया में लाचार दिखी है। भारत में भी ध्वस्त थी। इस से कोई कैसे इंकार कर सकता है। हां , विपक्ष ने ज़रूर इस कोरोना के बहाने भी देश को गृह युद्ध में झोंकने की पूरी कोशिश की। जनता और मज़दूरों ने इस बात को बहुत करीब से देखा और महसूस किया है। 

किसान आंदोलन के बहाने भी देश को गृह युद्ध में झोंकने और दिल्ली को जालियांवाला बाग़ बनाने के बेतरह कोशिश की विपक्ष ने। क्या जनता अंधी है ? या सिर्फ़ गोदी मीडिया कह कर घटनाओं पर पानी डाला जा सकता है। विपक्ष भारी हताशा में है। इस हताशा में अपने पैर पर निरंतर कुल्हाड़ी मारने में व्यस्त है। पैगसस भी एक ऐसी ही कुल्हाड़ी है। जैसे कभी राफेल था।  अयोध्या में राम मंदिर की सत्यता को स्वीकार न करने और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद राम मंदिर का विरोध करने से मुट्ठी भर मुस्लिम वोट तो मिल सकते हैं विपक्ष को पर देश को क्या मिलता है , यह बात विपक्ष नहीं समझना चाहता है। 

चंद मुस्लिम वोटों के लिए भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला , इंशा अल्ला ! या तुम कितने अफजल मारोगे , हर घर से अफजल निकलेगा की मानसिकता में डूबा विपक्ष पुलवामा में आतंकी कार्रवाई को भी मोदी की साज़िश मानता है। मोदी विरोध के उफान में चीन को अपना बाप मानता है। सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत मांगता है। बालकोट एयर स्ट्राइक को फर्जी बताता है। अभिनंदन की वापसी को भी तिकड़म मानता है। सेना पर विपक्ष को यकीन नहीं। चीन के साथ खड़े हो कर सरकार पर हमलावर दीखता है विपक्ष। चुनाव आयोग , सुप्रीम कोर्ट हर कोई उन्हें भाजपाई दीखता है। 

लेकिन जनता क्यों भाजपाई हो गई है , विपक्ष को , राहुल गांधी को यह तथ्य नहीं दीखता। लोग राहुल गांधी को भाजपा का स्टार प्रचारक ऐसे ही तो नहीं कहते। बात-बेबात विपक्ष कीचड़ फैलाता रहता है और कीचड़ में कमल ऐसे ही खिलता रहता है। विपक्ष को , मोदी वार्ड के मरीजों , घृणा और नफ़रत की वैचारिकी में डूबे लेखकों , कवियों को अपनी घृणा और नफ़रत से कभी अवकाश मिले तो अपने को अपने इस कीचड़ के दर्पण में देखना ज़रूर चाहिए। नहीं , ऐसे गगन बिहारी टोटकों से तो नरेंद्र मोदी को कभी न हटा पाएंगे। उलटे और मज़बूत करते जाएंगे। मज़बूत बनाते ही जा रहे हैं।