दयानंद पांडेय
तो कल्याण सिंह इस बार के भारत-रत्न हैं कि पद्म-विभूषण ? दोनों में से कोई एक सम्मान कल्याण सिंह को मरणोपरांत मिलना सौ फ़ीसदी तय है। यह लिख कर रख लीजिए। ज़्यादा संभावना भारत-रत्न की ही है। मेरा पक्का आकलन यही है। अयोध्या विध्वंस के आरोप से न्यायालय उन्हें पहले ही बरी कर चुका है , सो कोई नैतिक या क़ानूनी बाध्यता भी नहीं रही है। कल्याण सिंह के निधन के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति ने भी नई करवट ली है। कभी किसी के जीवन-मरण में कभी कहीं नहीं दिखने , पहुंचने वाली मायावती भी कल्याण सिंह के घर श्रद्धांजलि देने आज सुबह-सुबह पहुंच गईं। इतना ही नहीं मीडिया को कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि की बाइट देते हुए मायावती बहुत भाउक भी हुईं। एक बार तो लगा जैसे रो पड़ेंगी वह। मायावती ने उन्हें पिछड़ों का नेता बताया। यह सब तब है , जब भाजपा में कल्याण सिंह मायावती के विरोधियों में शुमार रहे हैं।
बल्कि अपने दूसरे कार्यकाल में मायावती के छल पर वार करते हुए मायावती की पार्टी के विधायकों को तोड़ कर उन्हें मंत्री बना कर मायावती को राजनीतिक पटकनी दे कर मायावती के राजनीतिक जीवन में सत्ता सुख पर ताला लगा दिया था। मायावती तिलमिला कर रह गई थीं। कल्याण सिंह राम मंदिर के अगुआ नेताओं में शुमार रहे हैं। जब कि मायावती के आका कांशीराम अयोध्या में राम मंदिर की जगह शौचालय बनाने की तजवीज देते रहे हैं। एक समय कांशीराम खुद नारा लगाते थे , मिले मुलायम-कांशीराम , हवा में उड़ गए जय श्री राम ! अब उन्हीं जय श्री राम के हनुमान कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने मायावती का पहुंचना उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक आकस्मिक घटना है। इस के दूरगामी संकेत हैं।
उत्तर प्रदेश के एक मुख्य मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भी रहे थे। जो बाद में बोफ़ोर्स का छल-कपट कर प्रधान मंत्री भी बने। प्रधान मंत्री बन कर भी लाल क़िला पर 15 अगस्त को अपने भाषण में मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें लागू कर देश में जातीय जहर का उन्माद घोल बैठे। जातीय आग लगा दी पूरे देश में। नतीजा यह हुआ कि विश्वनाथ प्रताप सिंह को सम्मानजनक मृत्यु भी नसीब नहीं हुई। लंबी बीमारी के बाद मरे तो कोई जान भी नहीं पाया। अखबारों में ख़बरों में पहले पेज पर भी जगह नहीं मिली। अंदर के पन्नों में चार लाइन की उपेक्षित सी ख़बर लगी। न्यूज़ चैनलों में एक लाइन की पट्टी वाली ख़बर। देश के अखबार और न्यूज़ चैनल उस दिन मुंबई में आतंकवादी हमले से भरे पड़े थे। इस आतंक को हवा भी वाया कश्मीर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बतौर प्रधान मंत्री दिया था। जब कश्मीर से कश्मीरी पंडित जलील हो कर अपने प्राण ले कर भागे , उन की किसी ने रक्षा नहीं की तो यही विश्वनाथ प्रताप सिंह तब देश के प्रधान मंत्री थे। कश्मीरी पंडितों की स्त्रियों के साथ परिवारीजनों के सामने बलात्कार , उन के सामने ही बलात्कार के बाद स्त्रियों को ज़िंदा आरा मशीन में आधा-आधा चीर देना वहां के मुसलामानों का शगल हो गया था। कश्मीरी पंडितों के घर , जायदाद और स्त्रियां छीन लेना , दुकानें लूट लेना इन का जैसे मुसलमानों का कारोबार बन गया था। सैकड़ों मंदिरों को तोड़ कर नदियों में बहा दिया।
विश्वनाथ प्रताप सिंह का गृह मंत्री मुफ्ती इतना कमीना था कि आतंकवादियों को रिहा करने के लिए अपनी ही बेटी सईदा रुबिया का अपहरण करवा बैठा। यानी महबूबा मुफ्ती की बहन। आज जो हालत अफगानिस्तान में अफगानियों और शेष लोगों की है , इस से भी बुरी हालत तब कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की हुई थी। तालिबानियों से भी ज़्यादा खतरनाक और मनुष्य विरोधी कश्मीर के मुसलमान हैं। जिन्हें तब के हिप्पोक्रेट राजनीतिज्ञ मिलिटेंट कहते थे। मिलिटेंट मतलब उग्रवादी। आतंकी कहने से परहेज था इन हिप्पोक्रेट्स को। इन्हीं सब करतूतों से विश्वनाथ प्रताप सिंह को सम्मानजनक मौत नहीं मिली। यह वही विश्वनाथ प्रताप सिंह थे जिन्हों ने बतौर मुख्य मंत्री , उत्तरा प्रदेश फ़ाइल पर लिखा था कि अगर मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दी गईं तो आग लग जाएगी। लेकिन प्रधान मंत्री बनते ही देवीलाल को पटकनी देने की गरज से शरद यादव , लालू यादव जैसे जातीय जहर वालों की मंत्रणा पर मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं। विश्वनाथ प्रताप सिंह को शरद यादव मंडली ने समझा दिया था कि मंडल लागू कर वह अंबेडकर से बड़े नेता बन जाएंगे। अंबेडकर से ज़्यादा मूर्तियां उन की लग जाएंगी। अंबेडकर जैसा तो दूर , विश्वनाथ प्रताप सिंह अंबेडकर का नाखून भी नहीं छू पाए। अलबत्ता मंडल के फेर में पूरे देश में आग लगवा दी। नौजवान ज़िंदा जलने लगे , जिन पर घोड़े दौड़ा दिए गए। देश की प्रतिभा पर ताला लगा दिया। मुस्लिम तुष्टीकरण में कश्मीर जलने लगा। कश्मीरी पंडित आज तक बेघर हैं। तो विश्वनाथ प्रताप सिंह अपमानजनक मृत्यु को प्राप्त हुए। अब तो कोई उन्हें याद भी नहीं करता। न कश्मीर के मुस्लिम आतंकी , न मंडल की मलाई चाटने वाले।
लेकिन कल्याण सिंह को ? पूरा देश पूरे सम्मान से याद कर रहा है। उन के विरोधी भी। एक राम नाम ने कल्याण सिंह को यह सम्मान दिलाया है। राम के प्रति हनुमान जैसी निष्ठां ने उन्हें सर्वकालिक बना दिया है। अब आप इस के लिए उन की निंदा करें या तारीफ़ , यह आप जानें।
हमारी भोजपुरी में एक कहावत है कि इहै मुंहवा पान खियावे ला , इहै मुंहवा पनही। पनही मतलब जूता। तो उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्य मंत्री रहे कल्याण सिंह को बहुत सम्मानजनक मृत्यु मिली है। अपने-अपने कर्म , व्यवहार और बोली की बात है। यही मिल कर नसीब बनाते हैं। आज प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी दिल्ली से चल कर लखनऊ पहुंचे कल्याण सिंह के घर। दिलचस्प यह कि कल्याण सिंह के आवास पर नरेंद्र मोदी का प्रथम अभिवादन और स्वागत करने वाली कुसुम राय थीं। जो थोड़ी देर नरेंद्र मोदी के साथ बगल में बराबरी में चलीं भी। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा , मुख्य मंत्री योगी , दोनों उप मुख्य मंत्री आदि कुसुम राय के पीछे थे। बाद में योगी , पीछे से निकलते हुए , मोदी के बगल में आए। यह दृश्य भी अविस्मरणीय है। बहरहाल नरेंद्र मोदी का कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने आना , कल्याण सिंह के राजनीतिक क़द का तो एहसास कराता ही है , नरेंद्र मोदी के बड़प्पन और आदर भाव को भी दर्शाता है।
मोदी ने कल्याण सिंह को नमन करने के बाद जो मीडिया से रुंधे गले से कहा , वह भी महत्वपूर्ण है। कहा कि कल्याण सिंह के माता-पिता ने जो उन का नाम कल्याण सिंह रखा तो कल्याण सिंह अपने नाम के अनुरूप कल्याण का ही काम करते रहे। कल्याण सिंह का नाम राम मंदिर के संदर्भ में लेते हुए उन्हों ने कल्याण सिंह को प्रभु राम से अपने चरणों में लेने की बात भी बड़े भाउक अंदाज़ में कही। कुल मिला कर राम मंदिर निर्माण में कल्याण सिंह के महत्व और उन के प्रस्थान बिंदु की महत्ता बारंबार दुहराते रहे। कल्याण सिंह की याद में भीगते रहे। भाजपा का हर कोई नेता कल्याण सिंह के इस काम को रेखांकित करता मिला। सच भी यही है। और तो और एक समय कल्याण सिंह के राजनीतिक जीवन में शकुनि सा डंक मारने वाले , कल्याण सिंह की चरित्र हत्या करने वाले आज के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कल्याण सिंह की यशगाथा गाते हुए उन्हें अपना नेता , अपना बड़ा भाई और मित्र तीनों बताया। भाजपा में कभी कल्याण सिंह के प्रबल विरोधी रहे राजनाथ सिंह आज कह रहे थे कि वह उन से कहते थे कि हम लोग तो भूतपूर्व मुख्य मंत्री हैं पर आप अभूतपूर्व मुख्य मंत्री हैं।
नरेंद्र मोदी का कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि देने आने की बात पर देश के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद और प्रथम केंद्रीय गृह मंत्री सरदार पटेल की भी याद आ गई। असमय ही सरदार पटेल का निधन हो गया था। सरदार पटेल की अंत्येष्टि मुंबई में होनी थी। दिल्ली में बाबू राजेंद्र प्रसाद ने सरदार पटेल की अंत्येष्टि में शामिल होने की मंशा जताई तो पंडित नेहरू ने उन्हें प्रोटोकॉल का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि पटेल की अंत्येष्टि में आप को नहीं जाना चाहिए। बाबू राजेंद्र प्रसाद ने पंडित नेहरू के प्रोटोकॉल के पाठ को दरकिनार किया और कहा कि प्रोटोकॉल बाद में है , पटेल पहले हमारे मित्र हैं। राजेंद्र प्रसाद सरदार पटेल की अंत्येष्टि में शामिल होने मुंबई चले गए। कहते हैं कि राजेंद्र प्रसाद पटेल की अंत्येष्टि के समय फूट-फूट कर रोए भी। आज तो नरेंद्र मोदी , लखनऊ हो आए। राष्ट्रपति ने ट्वीट कर कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि दे दी है। कल अलीगढ़ के अतरौली में कल्याण सिंह की अंत्येष्टि में क्या मंज़र होगा , देखना शेष है। क्यों कि दिल्ली में सुषमा स्वराज की अंत्येष्टि में रोते हुए उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू को हम ने देखा है जो अभी जल्दी ही की बात है। बातें और भी बहुतेरी हैं पर आहिस्ता-आहिस्ता।