Wednesday, 28 April 2021

मुख्य मंत्री नहीं , आक्रमणकारी है अरविंद केजरीवाल

दयानंद पांडेय 


मुख्य मंत्री नहीं , आक्रमणकारी है अरविंद केजरीवाल। शासक बन कर दिल्ली को लूट रहा है अरविंद केजरीवाल , दिल्ली को। निर्दोष लोगों की हत्या कर रहा है। बस नौटंकी का फार्मेट बना कर लेकिन। किसी आक्रमणकारी ने भी दिल्ली को कभी इतना तबाह नहीं किया होगा। जितना इस गिद्ध अरविंद केजरीवाल ने गिरगिट बन-बन कर किया है। इस की नौटंकी ने किया है। 

वोटरों को बिजली , पानी मुफ्त देने की रिश्वत दे वोट लिया। किसान आंदोलन में शामिल दलालों को कुछ सुविधाएं मुफ्त दे कर दिल्ली में हिंसा और अराजकता की खिचड़ी पकाई। अब दिल्ली हाई कोर्ट के जज और उन के परिवारीजन को अशोका होटल में सौ कमरे का अस्पताल की रिश्वत दे कर उन का मुंह बंद करने की नाकाम कोशिश। अंधाधुंध विज्ञापन दे कर दिल्ली की मीडिया का मुंह बरसों से बंद कर रखा है। पिछले साल भी तब्लीग़ियों को शह दे कर कोरोना फैलाया था। मज़दूरों को दिल्ली से भगाया था। दंगाइयों को बचाया था। भगवान अरविंद केजरीवाल जैसी इतनी खल बुद्धि भी न किसी को दे।  

बगुले के हंस बनने की कथा तो बहुत पढ़ी , सुनी और देखी है। पर गिद्ध भी हंस बनने की कोशिश करता है , यह कथा पहली बार कान सुन रहे हैं , आंख देख रही है। दो दिन पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि आक्सीजन रोकने वाले को सूली पर चढ़ा देंगे। मी लार्ड अपने कहे को सच कर दीजिए। इस कमीने अरविंद केजरीवाल को कब फांसी पर चढ़ा रहे हैं ? सब कुछ तो साबित हो चुका है। हाई कोर्ट के आब्जर्वेशन में सब कुछ तो कह दिया गया है। इस कमीने केजरीवाल को फांसी चढ़ा कर कोविड की कमान केंद्र सरकार को सौंपने में देरी किस बात की है अब ? 

कि दिल्ली के नागरिकों को ही कोरोना की फांसी लगती रहेगी। आखिर कब तक यह गिद्ध दिल्ली को जहन्नुम बनाता रहेगा और हंस बनने का स्वांग रचता रहेगा। इस गिद्ध पर इस का झाड़ू कब फिरेगा। गिद्ध और गिरगिट का ऐसा मिलाजुला कातिल चेहरा शकुनि और दुर्योधन का मिला जुला खल चरित्र भी है। यह अब पूरी तरह साफ़ है। मी लार्ड राजनीति के तराजू में यह सर्वदा जीतता रहेगा। अब आप खुद ही इसे गिद्ध कह रहे हैं। तो इस गिद्ध का इलाज कीजिए। इस का इंसाफ कीजिए। आप के पास सारे सुबूत हैं। कम से न्याय पालिका को खरीदने और हज़ारों लोगों की हत्या में इस के हाथ लाल हैं। का चुप साधि रहे बलवाना।


Wednesday, 21 April 2021

तो अपना ग़म भूलिए , दुःख भूलिए , बस धीरज की डोरी से बंधे रहिए !

दयानंद पांडेय 


इस कोरोना काल में स्थितियां सचमुच बहुत कठिन हैं। अरण्य काण्ड में सती अनुसूइया द्वारा सीता को दी गई सीख में तुलसी दास ने लिखा ज़रूर है :

धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी।।

बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अंध बधिर क्रोधी अति दीना।।

तो धीरज धर्म मित्र अरु नारी में से सिर्फ़ धीरज ही अब आप के हाथ में है। बाक़ी तीन तत्व विदा हो गए हैं। कोरोना हो जाने पर एक ही घर में रहते हुए भी पति-पत्नी भी अकेले हो जा रहे हैं। क्वारंटाइन से यह स्थिति बन गई है। बंधु , मित्र , परिजन सभी इस आपदा में बिछड़ गए हैं। अगल-बगल रहते हुए भी सब दूर-दूर हैं। शव को चार कंधे नहीं मिल रहे। डाक्टर , कंपाउंडर पैसा ले कर भी छू नहीं रहे। यह सिर्फ़ सिस्टम ही नहीं , समाज की भी मार है। 

किसी को इंजेक्शन लगवाना , कोई जांच करवाना भी कठिन है। कुल मिला कर सिर्फ़ और सिर्फ़ धीरज नाम का एक शब्द भर रह गया है आदमी के पास। बस धीरज ही आप को बचा सकता है। मैं कई सारे उन अकेले रह रहे , रिटायर हो चुके दंपतियों को देख रहा हूं। जिन के बच्चे बाहर रह रहे हैं। सेटल्ड हो चुके हैं या पढ़-लिख रहे हैं। उन अकेले रह रहे सीनियर सिटीजन में से किसी एक भी को कोरोना या कोई अन्य बीमारी भी हो जा रही है , उन की यातना तोड़ देती है। सारा हरा-भरा घर बेमानी हो जा रहा है। इन सीनियर सिटीजन के दुःख के आगे। और जो कहीं विपत्ति के मारे इन दो में से कोई एक अस्पताल में भर्ती हो गया तो बस पूछिए मत। खुद को भी बचाना है और जीवन साथी को भी। बहुत विकट स्थिति हो जा रही है। 

बीती जुलाई , 2020 से मार्च , 2021 तक मैं खुद इन स्थितियों से दो-चार रहा हूं। सांघातिक तनाव में रहा हूं। लखनऊ का अपोलो अस्पताल जैसे मेरा ठिकाना बन गया था बीते नौ महीने तक। बात-बेबात ग़लत बात पर भिड़ जाने वाला मैं असहाय अपोलो अस्पताल की भयानक लूट का शिकार हो कर भी सिर झुका कर खड़ा रहा। कि जाने फिर कोई अस्पताल साथ देगा कि नहीं। और फिर लूट में कौन अस्पताल नहीं शामिल नहीं है। सरकारी अस्पताल जाने लायक नहीं रहे। छोटे नर्सिंग होम में डाक्टर ही नहीं हैं। काल पर आते हैं। कई बार कोरोना के बहाने ऐन वक्त पर दांव दे जाते हैं। रह गए बड़े अस्पताल। पी जी आई , मेदांता , अपोलो , सहारा। सोर्स पर सोर्स लगाने पर भी पी जी आई में कभी बेड ही नहीं खाली रहता। अजब हरामखोरी है। जब बेड ही नहीं रहता कभी तो अस्पताल बनाया ही क्यों। 

सहारा अब सरकारी अस्पताल से भी बुरी स्थिति में है। डाक्टर , तीमारदार से मिलते ही नहीं। सिर्फ पैसा जमा करने के लिए फोन आता है। दूसरे , सहारा में डाक्टरों को टारगेट पूरा करना होता है। आप गए हैं लीवर का इलाज कराने , वह आप का हार्ट , किडनी , फेफड़ा सब देख डालते हैं। वह भी आई सी यू में भर्ती कर। आप मरीज से हरदम मिल नहीं सकते। डाक्टर मिलता नहीं। अनाप-शनाप की जांच अलग। मरने के बाद भी आप सारा पैसा क्लियर कर ही पार्थिव शरीर देख सकते हैं। मेदांता का पता नहीं क्या हाल है। पर पैसे की लूट-पाट तो मेदांता में भी सुनता हूं। 

अब रह गया अपोलो। तो पत्नी का एक गाल ब्लेडर का आपरेशन वहां मुझे चार चरण में करवाना पड़ा। बाहर चालीस-पचास हज़ार का आपरेशन यहां दस गुना में पड़ गया। नौ-दस लाख रुपए में निकल गया। नौ महीने का समय अलग। यातना और दहशत अलग। कई बार लगा कि जीवन साथी से साथ अब छूटा कि तब छूटा। बहुत कम बोलने वाली पत्नी भी भयानक दर्द और लगातार उलटी के कारण बार-बार बुदबुदातीं , अब हम नहीं बचेंगे।  कोरोना के भय और दहशत का आलम अलग था। हां , एक पैसे का फैक्टर छोड़ दें तो अपोलो में सब कुछ ठीक है। डाक्टर तीमारदार से बुला-बुला कर मिलते हैं। दुःख-सुख सुनते हैं। प्रबंधन आ कर बार-बार हाल लेता है। हां , एक गाल ब्लेडर के आपरेशन के लिए अपोलो में भी हर बार , बार-बार किडनी , न्यूरो , हार्ट , चेस्ट आदि जाने किन-किन  डाक्टर की विजिट फीस , रोज-रोज जोड़ी गई। अनाप-शनाप जांच अलग। हर बार। अस्पताल से छुट्टी के बाद भी। मरीज के लगातार ड्रिप लगने , भोजन नहीं करने के बाद भी डाइटीशियन की फीस भी रोज। नर्सिंग वगैरह भी। हर सांस और हर बात के पैसे। ऐसे जैसे कोई आप की जेब में हाथ डाल कर पैसे निकाल ले। जबरिया। डाक्टर लोग तरह-तरह का डर , उम्र की हद और कॉम्प्लिकेशन बताते रहे। सो सब भुगतता रहा। यह भी था कि बीच भंवर में फंस कर अब कहां जाएं। इसी बीच मोतियाबिंद ने भी मुझे घेरा। तो मोतियाबिंद का आपरेशन भी इस कोरोना टाइम में करवाना पड़ा। 

बहुत सी कथाएं और बहुत से मोड़ इस नौ महीने में भुगते  हैं। बीच में कभी दो-चार दिन के लिए नोएडा से बेटा आ गया तो कभी वेल्लोर से बेटी। वेल्लोर से चल कर दामाद भी आए। पर कितने दिन कोई रह सकता था भला। लखनऊ के लोग कोरोना के नाम पर दूर ही दूर रहे। अस्पताल आते-जाते कोरोना की चपेट में भी हम पति-पत्नी आए। बेटा भी। जुलाई-अगस्त में। पूरी कॉलोनी में अछूत हो गए। खैर , कोरोना को भी चुपचाप परास्त किया। किसी से कुछ कहा नहीं। क्यों कि यह बात बहुत अच्छी तरह जानता हूं कि सुख तो सब को बताना ही चाहिए पर दुःख कभी नहीं। दुःख का विज्ञापन तो कभी नहीं। 

सब की सीमा जानता हूं सो लखनऊ के लोगों का कभी बुरा नहीं माना। बचाव ही एकमात्र तरीका है। तो मित्रों , उन तकलीफ़ भरे बुरे दिनों में मुझ अकेले आदमी के काम सिर्फ़ और सिर्फ़ धीरज शब्द ही आया। धीरज बहुत बड़ा शब्द है। बहुत साथ देता है। बहुत से अकेले रह रहे मित्रों की मुश्किल देख कर यह बात भी बतानी पड़ी है। नहीं कभी नहीं बताता। दुःख भी भला बताने की चीज़ है। तो मित्रों दुःख सब के जीवन में है। मेरे जीवन में भी। किसिम-किसिम के दुःख। कोई साथ नहीं आता। सिर्फ़ मृत्यु ही नहीं , दुःख भी अकेले ही भुगतना होता है। अब ज़रा फुर्सत मिली दुःख और इलाज के जाल से तो बेटे के पास नोएडा आ गया हूं। कि कुछ हवा बदले। कुछ दुःख बिसरे। 

18 फ़रवरी , 1998 को मेरा एक भयानक एक्सीडेंट हुआ था। हमारी अम्बेस्डर की एक ट्रक से आमने-सामने टक्कर हो गई थी। ड्राइवर और हमारे बगल में बैठे हमारे मित्र जय प्रकाश शाही ऐट स्पॉट विदा हो गए थे। तब कोरोना नहीं था सो समूचा लखनऊ मेरे साथ था। लखनऊ ? अरे दिल्ली , गोरखपुर , मुंबई , बनारस , प्रयाग जाने कहां-कहां से लोग मिलने , देखने आते रहे। इतना कि डाक्टर लोग परेशान हो जाते। अटल जी से लगायत , नारायणदत्त तिवारी , कल्याण सिंह , कलराज मिश्र , मुलायम सिंह यादव जैसे तमाम- तमाम  राजनीतिज्ञों , नौकरशाहों , पत्रकारों ने अद्भुत साथ दिया था। हर समय आते-जाते और घेरे रहते थे। अम्मा , पिता जी का साथ और आशीर्वाद साथ था। लक्ष्मण , भरत , शत्रुघन जैसे भाई थे सेवा के लिए। तो भी अंग-अंग दुखता था। हिलना-डुलना , उठना , बैठना , बोलना तक मुश्किल था। पूरा चेहरा और जबड़ा टूट जाने के कारण दोनों जबड़े आपस में सिल दिए गए थे। चेहरा कंधे से बड़ा हो गया था। पानी पीना भी दूभर था। हाथ टूट गया था। पसलियां टूट गई थीं। बाद में दाईं आंख की दोनों पलकें भी सिल दी गईं। जिन आंखों में सपने दीखते हैं , वह आंख सिल जाना कितना तकलीफदेह था , मैं ही जानता हूं।  एक बार भारी दर्द से अकुला कर इलाज कर रहे डाक्टर प्रधान से कहा कि मुझे मार क्यों नहीं डालते ? तो वह छूटते ही बोले , वह पांडेय जी , आप को तो दर्द से छुट्टी मिल जाएगी पर मुझे जेल हो जाएगी।  

फिर एक दिन मैं ने डाक्टर प्रधान से कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि जैसे लोग पैसा , भोजन आदि तमाम चीज़ें कम पड़ने पर एक दूसरे से शेयर कर लेते हैं। दुःख-सुख बांट लेते हैं तो दर्द भी आपस में बांट लें ? डाक्टर प्रधान ने पूछा , कौन आप का दर्द शेयर करेगा ? मैं ने कहा , हमारे घर वाले। जानने वाले। वहां उपस्थित लोगों ने हामी भी भरी। डाक्टर प्रधान मेरे घायल चेहरे पर ज़रा झुके। हरदम अकड़ कर बोलने वाले डाक्टर प्रधान की आंख भर आई। मेरा माथा सहलाते हुए बोले , सारी मिस्टर पांडेय , यह भी नहीं हो पाएगा। और जहाज की तरह कमरे से बाहर निकल गए। अम्मा ने मुझे संभाला। और खुद रोती हुई मेरा माथा सहलाती हुई बोली , बाबू , धीरज रक्खा। हिम्मत से काम ल ! तो अम्मा का कहा और तुलसी दास का लिखा धीरज इन कठिन दिनों में बहुत काम आया है। आता ही रहता है। सब के ही काम आता है। फ़िल्म अमृत के लिए आनंद बक्षी का लिखा एक गीत है न : 

दुनिया में कितना गम है

मेरा गम कितना कम है 

लोगों का गम देखा तो 

मैं अपना गम भूल गया। 

तो अपना ग़म भूलिए। दुःख भूलिए , धीरज याद रखिए। सिर्फ़ धीरज। सर्वदा यही काम आता है। कोई और नहीं। समय मिले तो टी वी न्यूज़ कम देखिए। बल्कि मत देखिए। अच्छे-अच्छे , मनपसंद गाने सुनिए। सिनेमा देखिए। मित्रों से फ़ोन पर , वीडियो पर बात कीजिए। दुःख का नहीं , सुख का स्मरण कीजिए। दुःख का विज्ञापन तो हरगिज नहीं। धीरज की डोरी से बंधे रहिए। चोरी-चोरी ही सही। ठीक उस गाने की तरह कि हम तुम चोरी से , बंधे एक डोरी से / जइयो कहां ए हुजूर ! धीरज बड़ी चीज़ है , मुंह ढंक के सोइए ! लखनऊ ?

Monday, 19 April 2021

का योगी जी , इहै होई !

दयानंद पांडेय 


लखनऊ के अस्पतालों में अभी भी सी एम ओ बदलने के बाद भी , सी एम ओ की नादिरशाही कायम है। बिना सी एम ओ की संस्तुति के कोई अस्पताल , किसी कोरोना मरीज को अस्पताल में घुसने नहीं दे रहा है। गोया वह सी एम ओ नहीं , सी एम हो। लोग एम्बुलेंस में ही तड़प कर मर जा रहे हैं। यह तो गुड बात नहीं है। का योगी जी इहै होई ! 

लोग कोरोना से डरें। सी एम ओ टाईप लोगों से अस्पताल डरें। आप से अतीक़ अहमद , मुख्तार अंसारी टाइप के लोग डरें। पर आप किस से डर रहे हैं योगी जी ! जो यह सी एम ओ टाइप भ्रष्ट और नाकारा व्यवस्था को नहीं बदल पा रहे हैं। प्राइवेट या सरकारी अस्पतालों को यह सी एम ओ टाइप का कवच-कुंडल कब तक दिए रहेंगे जिन के डाक्टर कोरोना मरीजों को छूना या देखना भी नहीं चाहते। तमाम प्राइवेट अस्पतालों के डाक्टरों के नाम और फोन नंबर जो आप ने जारी करवाए थे कि यह मदद करेंगे। सब के सब दिखाने के दांत साबित हुए हैं। एक भी डाक्टर फोन नहीं उठाता। इन में से एक भी डाक्टर , मरीज या उस के परिवारीजन से नहीं मिलता। कोई दाएं-बाएं से किसी बहाने संपर्क कर भी लेता है तो वह फिर से सी एम ओ का तराना ऐसे गाता है , गोया जन मन गण गा रहा हो। कि सामने वाला सावधान हो कर सिर्फ़ सुने। कुछ पूछे नहीं।  

आप के सारे आदेश और निर्देश पानी मांग रहे हैं योगी जी। लॉक डाऊन आप लगाएं या सुप्रीम कोर्ट जाएं यह आप जानिए। क्यों कि यह काम विधायिका और कार्यपालिका का ही है। न्याय पालिका का नहीं। यह हम भी मानते हैं। पर पैसा खर्च कर भी इलाज नहीं मिले तो यह किसी भी सरकार के लिए शर्म का विषय है। लोग एक-एक बेड के लिए तरस रहे हैं। जिस घर में कोई एक भी कोविड पॉजिटिव निकल रहा है , उस पूरे घर की कोविड जांच नि:शुल्क होनी चाहिए। पर पैसा देने पर भी कोई अस्पतलाल जांच , कहने पर भी नहीं कर रहा। कोई डाक्टर , कंपाउंडर , एक इंजेक्शन भी लगाने को तैयार नहीं हो रहा है। अगर वह जान जा रहा है कि उस के घर कोई पॉजिटिव है। 

आप का सारा अमला पूरे मुहल्ले में पॉजिटिव पाए गए व्यक्ति और उस के घर को चोर घोषित कर दे रहा है। एक पर्चा , एक बल्ली लगा कर। न कोई दुकानदार उसे सामान देना चाह रहा है , न दूध , सब्जी वाला। उलटे आप का दसियों कंट्रोल रुम , बीसियों विभाग वाले पॉजिटिव निकले व्यक्ति को फ़ोन कर-कर उस का जीना मुहाल कर दे रहे हैं। रोज-रोज , हर घंटे एक ही सूचना। एक ही संदेश। कभी यह विभाग , कभी वह विभाग। यह कौन सा सिस्टम बना दिया है योगी जी। अस्पताल आप नहीं दे सकते। दवाई आप नहीं दे सकते। सांस तो लेने दीजिए। कोविड पॉजिटिव को। उस को आराम तो करने दीजिए। आराम भी इलाज का एक हिस्सा है। 

योगी जी , नौकरशाही के चंगुल से निकलिए। अपना सिस्टम सुधार लीजिए जल्दी से जल्दी। ज़मीनी स्तर पर सुधार लीजिए। जनता त्राहिमाम कर रही है। लगता है आप भ्रष्ट अफसरों , चाटुकारों से घिर कर जनता से कट गए हैं। सही सूचना आप तक , आप के चाटुकार पहुंचने नहीं दे रहे। यह चाटुकार और  भ्रष्ट नौकरशाही आप को ले डूबेगी। जब लखनऊ का यह हाल है तो उत्तर प्रदेश में बाक़ी जगहों का क्या हाल होगा भला। 

दुर्भाग्य से आप भी कोविड पॉजिटिव हो गए हैं। कभी अपना गेरूआ वस्त्र उतार कर , सामान्य व्यक्ति बन कर लखनऊ या प्रदेश के किसी अस्पताल में अकेले चले जाइए , किसी टैम्पो से , या रिक्शे से । बिना फौज फाटे या प्रशासनिक अमले के। अचानक। बिना किसी सूचना के। बिना किसी को सूचना दिए। आप को खुद सारा हाल मालूम हो जाएगा। पहले भी शासक लोग ऐसा करते रहे हैं , प्रजा का हाल मालूम करने के लिए। आप को भी करना चाहिए। फिर आप तो योगी भी हैं। अंधेर नगरी , चौपट राजा का मुहावरा आप पर भी चस्पा हो जाए , इस से बचिए। आप की जनता सचमुच बहुत संकट में है। कोरोना से कम , सिस्टम से ज़्यादा मर रही है। मर-मर कर सांस ले रही है। इस सांस को टूटने से बचाइए। यह आप का कर्तव्य है।


Saturday, 17 April 2021

पिता के मना करने पर बरसों राम कथा नहीं लिखी नरेंद्र कोहली ने

 दयानंद पांडेय 

मिथकीय कथाओं यथा रामायण और महाभारत की कथा को आधुनिक कथा में कहने का जो शऊर , जो सलीक़ा और संवेदना नरेंद्र कोहली ने हिंदी कथा में उपस्थित की है कोई और भला क्या कर पाएगा। विवेकानंद के जीवन पर आधारित उपन्यास तोड़ो कारा तोड़ो से हिंदी कथा की ज़मीन में जो तोड़-फोड़ नरेंद्र कोहली ने की वह अविराम रही। 1981 में उन से पहली बार दिल्ली में मिला था। मई की कोई शाम थी। उन का घर था। छोटा सा फ़्लैट। खूब साफ-सुथरा। मधुरिमा जी ने खूब खिलाया-पिलाया था। दिल्ली में जब उन से मिलना होता था तो उन्हें व्यंग्य लेखक के रूप में जानता था। एक इंटरव्यू के सिलसिले में उन से   पहली बार मिला था। दिल्ली के मोतीलाल नेहरू कालेज में पढ़ाते थे तब। 

जब लखनऊ में मिला तो वह कई सारी कारायें तोड़ते हुए राम कथा के लिए परिचित हो गए थे। एक बार वह बताने लगे कि बहुत पहले मैं राम कथा पर लिखना चाहता था। एक बार पिता जी से इस बाबत चर्चा की। तो पिता बोले , अभी मत लिखो।  तो नहीं लिखा। पूछा कि क्यों ? तो वह बोले , राम कथा का मूल ही है , पिता का आदेश मानना। तो नहीं लिखा। फिर बहुत साल बाद एक बार पिता ने पूछा कि क्या हुआ तुम्हारी राम कथा का। तो मैं ने उन्हें बताया कि आप ने ही तो मना किया था कि अभी मत लिखो। यह सुन कर पिता जी मुस्कुराए। बोले , अब लिख सकते हो। तो फिर लिखने लगा। यह राम कथा ही आगे चल कर नरेंद्र कोहली की पहचान बन गई। और यही नरेंद्र कोहली आज हमें छोड़ कर विदा हो गए हैं। उम्र हो गई थी जाने की। फिर भी दुःख तो होता ही है। 

6 जनवरी , 1940 को सियालकोट , पाकिस्तान में जन्मे नरेंद्र कोहली मिथ को भी आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखने-दिखाने और लिखने के लिए जाने जाते हैं। जाने जाते रहेंगे। चूंकि इन दिनों नोएडा में हूं सो उन की बीमारी की खबर सुन कर उन से मिलने अस्पताल जाने की कई बार इच्छा हुई। पर बताया गया कि मिल पाना मुमकिन नहीं है। कल ही उन की पत्नी मधुरिमा जी ने बताया था कि स्थिति चिंताजनक है। सुधार की संभावना कम है। और आज अब उन के विदा होने की ख़बर आ गई है। राम कथा के उन्नायक नरेंद्र कोहली की बहुत सारी बातें और यादें मन में बादल की तरह घुमड़ रही हैं। उन की कथाओं के निर्मल तार और उन के गहन जाल जल की तरह घेरे हुए हैं। इस जल-जाल से कभी मुक्ति नहीं मिलेगी। यह कारा कभी नहीं टूटेगी। विनम्र श्रद्धांजलि ! पिता के मना करने पर बरसों राम कथा नहीं लिखी नरेंद्र कोहली ने 


Friday, 16 April 2021

थैंक यू योगी जी कि आप ने सामान्य नागरिकों की तकलीफ को समझा और उस का निवारण भी किया

दयानंद पांडेय 


बहुत आभार योगी जी। बहुत थैंक यू योगी जी कि आप ने सामान्य नागरिकों की तकलीफ को समझा और उस का निवारण भी किया। सच यही है कि अगर गुहार लगाने वाला और गुहार सुनने वाला दोनों ही ईमानदार हों तो फर्क तो पड़ता है। जैसे कि आज पड़ा। आप मित्रों को याद ही होगा कि बीती देर रात कोरोना के इलाज में लखनऊ के लोगों को हो रही परेशानी पर एक पोस्ट लिखी थी। फेसबुक पर , अपने ब्लॉग सरोकारनामा पर वाट्सअप पर भी। खूब वायरल हुई यह पोस्ट। घूम-घूम कर मुझ तक भी पचासियों बार आई। मुख्य मंत्री योगी जी ने सिर्फ़ इस पोस्ट का संज्ञान लिया बल्कि फौरन कार्रवाई भी की। 

तब जब कि योगी जी खुद भी कोरोना पीड़ित हैं इस समय। पर उन्हों ने नागरिकों की पीड़ा को समझा और लोगों की सुविधा खातिर सीधे अस्पतालों में लोगों को नामित कर संबंधित लोगों की सूची जारी कर दी है। 

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यह लिस्ट आज शाम जारी हुई है । सरकार की तरफ से ।

लखनऊ के निजी अस्पतालों में कोरोना मरीजो के इलाज का प्रबंध योगी सरकार ने किया है. लखनऊ जिला प्रशासन की तरफ से हर अस्पताल के नोडल अफसर का नाम औऱ नंबर भी जारी कर दिया गया है ताकि मरीजों को किसी भी प्रकार की कोई समस्या न आए. 

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एंडवांस न्यूरो एंड जनरल हॉस्पिटल - डॉ. विनोद कुमार- 9415022002

एवन हॉस्पिटल-खुर्रम अतीक रहमानी- 9450374007

अपोलो मेडिक्स.- प्रमित मिश्रा- 8429029801

कैरियर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड हॉस्पिटल- कर्नल डॉ. मोहम्मद एजाम-8318527150

फेहमिना हॉस्पिटल एंड ट्रामा सेंटर ब्लड बैंक-सलमान खालिद- 9935672929

ग्रीन सिटी हॉस्पिटल-डॉ. विनीत वर्मा- 8400000784

जेपी हॉस्पिटल- आरवी सिंह- 9554936222

किंग मेडिकल सेंटर-डॉ. अभय सिंह- 9415328915

मां चंद्रिका देवी हॉस्पिटल- गायत्री सिंह- 9415020266

पूजा हॉस्पिटल एंड मल्टीस्पेशियिलिटी सेंटर-आशुतोष पांडेय-9670588871

राजधानी हॉस्पिटल- चंद्र प्रकाश दुबे-9415162686

संजीवनी मेडिकल सेंटर- सुनील कुमार सोनी- 8840466030

श्री साईं लाइफ हॉस्पिटल-योगेश शुक्ला- 9450407843

वागा हॉस्पिटल- संदीप दीक्षित- 9839165078

विनायक मेडिकेयर हॉस्पिटल- डॉ मनीष चंद्र सिंह- 9984735111

विनायक ट्रामा सेंटर एंड हॉस्पिटल- अमित नंदन मिश्रा- 9919604383

लखनऊ के जिलाधिकारी ने भी दोपहर ही इस बाबत एक नया आदेश जारी किया था। इसी लिए मैं योगी सरकार का प्रशंसक हूं। ज़रा सोचिए और एक बार सोच कर देख ही लीजिए कि अगर इस समय योगी जी की जगह मायावती या अखिलेश यादव की सरकार होती तो यह सब लिखने के बाद मेरे साथ क्या सुलूक़ करती। हल्ला बोल देती मुझ पर। जाने क्या-क्या कर गुज़रती। यहीं देखिए न कि फेसबुक पर ही कभी किसी पोस्ट पर अगर इन लोगों की असलियत बता देता हूं तो असहमति की जगह कैसे तो पूरी यादव ब्रिगेड , दलित ब्रिगेड मुझ पर अभद्र टिप्पणियों , गाली-गलौज के साथ टूट पड़ती है। अंतत: आजिज आ कर ऐसे लोगों से विदा लेना पड़ता है। 

तुलसी दास का एक क़िस्सा याद आता है। 

हम सब जानते ही हैं कि तुलसीदास अकबर के समय में हुए। बल्कि यह कहना ज़्यादा ठीक होगा कि तुलसीदास के समय में अकबर हुए। खैर आप जैसे चाहें इस बात को समझ लें। पर हुआ यह कि अकबर ने तुलसी दास को संदेश भिजवाया कि आ कर मिलें। संदेश एक से दो बार, तीन बार होते जब कई बार हो गया और तुलसी दास नहीं गए तो अकबर ने उन्हें कैद कर के बुलवाया। तुलसी दरबार में पेश किए गए। अकबर ने पूछा कि, ' इतनी बार आप को संदेश भेजा आप आए क्यों नहीं?' तुलसी दास ने बताया कि, 'मन नहीं हुआ आने को। इस लिए नहीं आया।' अकबर ज़रा नाराज़ हुआ और बोला कि, 'आप को क्यों बार-बार बुलाया आप को मालूम है?' तुलसी दास ने कहा कि, 'हां मालूम है।' अकबर और रुष्ट हुआ और बोला, 'आप को खाक मालूम है !' उस ने जोड़ा कि, 'मैं तो आप को अपना नवरत्न बनाना चाहता हूं, आप को मालूम है?' तुलसी दास ने फिर उसी विनम्रता से जवाब दिया, 'हां, मालूम है।' अब अकबर संशय में पड़ गया। धीरे से बोला, 'लोग यहां नवरत्न बनने के लिए क्या नहीं कर रहे, नाक तक रगड़ रहे हैं और आप हैं कि नवरत्न बनने के लिए इच्छुक ही नहीं दिख रहे? आखिर बात क्या है?'

तुलसी दास ने अकबर से दो टूक कहा कि, 'आप ही बताइए कि जिस ने नारायण की मनसबदारी कर ली हो, वह किसी नर की मनसबदारी कैसे कर सकता है भला?'

हम चाकर रघुवीर के पटौ लिख्यौ दरबार

अब तुलसी का होहिंगे, नर के मनसबदार। 

- तुलसी दास 

अकबर निरुत्तर हो गया। और तुलसी दास से कहा कि, 'आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं। अब आप जा सकते हैं।' तुलसी दास चले गए। और यह नवरत्न बनाने का अकबर का यह प्रस्ताव उन्हों ने तब ठुकराया था जब वह अपने भरण-पोषण के लिए भिक्षा पर आश्रित थे। घर-घर घूम-घूम कर दाना-दाना भिक्षा मांगते थे फिर कहीं भोजन करते थे। शायद वह अगर अकबर के दरबारी बन गए होते तो रामचरित मानस जैसी अनमोल और अविरल रचना दुनिया को नहीं दे पाते। सो उन्हों ने दरबारी दासता स्वीकारने के बजाय रचना का आकाश चुना। आज की तारीख में तुलसी को गाली देने वाले, उन की प्रशंसा करने वाले बहुतेरे मिल जाएंगे पर तुलसी का यह साहस किसी एक में नहीं मिलेगा। शायद इसी लिए तुलसी से बड़ा रचनाकार अभी तक दुनिया में कोई एक दूसरा नहीं हुआ। खैर , गनीमत थी कि तुलसी दास अकबर के समय में हुए और यह इंकार उन्हों ने अकबर से किया पर खुदा न खास्ता जो कहीं तुलसी दास औरंगज़ेब के समय में वह हुए होते और यही इंकार औरंगज़ेब से किया होता , जो अकबर से किया, अकबर ने तो उन्हें जाने दिया, लेकिन औरंगज़ेब होता तो? 'निश्चित ही सिर कलम कर देता तुलसी दास का!'

सच यही है। पिता मुलायम ने भले पुकारने का नाम अखिलेश यादव का टीपू रखा है पर अखिलेश को उन के शासन काल में ही उन्हें औरंगज़ेब के रूप में जाना गया। मुलायम की पीठ में औरंगज़ेब की तरह ही अखिलेश ने छुरा घोंपा। पूरी पार्टी उन से छीन ली।  टोटी-टाइल चोर के रूप में कुख्यात अखिलेश ने 2015 में वाराणसी में गंगा में गणेश प्रतिमा का विसर्जन नहीं करने दिया था। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद को पुलिस से पिटवाया था। अब यही अखिलेश यादव घूम-घूम कर इन संतों के चरणों में सिर रख कर माफी मांग रहे हैं। पर साथ ही संतों की पिटाई का वीडियो भी वायरल हो गया है। कहने का कुल मतलब है कि अगर शासक ईमानदार है तो उस से सही बात कहने में किसी को डरना चाहिए। और मैं तो बेईमान शासकों से भी सच कहने में कभी नहीं डरा। बेधड़क लिखता रहा हूं। मुश्किलें भी झेलता रहा हूं। पर सरकार कोई भी रही हो कभी सच कहने या लिखने से डिगा नहीं। कृष्ण बिहारी नूर ने लिखा ही है :

सच घटे या बढ़े तो सच न रहे

झूट की कोई इंतिहा ही नहीं।

एक बार पुन: बहुत आभार योगी जी। बहुत थैंक यू योगी जी कि आप ने सामान्य नागरिकों की तकलीफ को समझा और उस का निवारण भी किया। शुक्र है यह भी कि हम औरंगज़ेब के शासनकाल में नहीं हैं। और हां , हम तुलसी दास भी नहीं हैं। तुलसी दास बहुत बड़े रचनाकार हैं। बहुत बड़े आदमी हैं। मैं बहुत सामान्य आदमी हूं । सामान्य आदमी की आवाज़ हूं लेकिन। 



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Thursday, 15 April 2021

योगी जी , बेहतर होगा कि कोविड पॉजिटिव की रिपोर्ट आते ही आदमी को फांसी के तख्ते पर चढ़वा देने की व्यवस्था कर दीजिए !

दयानंद पांडेय 

योगी जी , बीते चार सालों में आप उत्तर प्रदेश में ही नहीं , पूरे देश में सच बोलने और सख्त कार्रवाई करने के लिए लोगों के लिए परिचित हुए हैं। दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह झूठ बोलने और धूर्तई के लिए लोग आप को नहीं जानते। लोग आप को मोदी के बाद प्रधान मंत्री के रूप में भी देखने लगे हैं। पर अफ़सोस कि आप की ऐन नाक के नीचे , बीच कोरोना में भगवान कहे जाने वाले डाक्टरों ने , अफसरों ने जो अपना यमराज रुप दिखाना शुरू किया है , आप इस से भी परिचित हो लीजिए। ठीक है कि आप खुद भी कोविड पॉजिटिव हो गए हैं। आप का उपचार भी चल रहा है। आप सक्षम मुख्य मंत्री हैं। योगी भी हैं। कोरोना आप का कुछ भी न कर पाएगा। 

पर क्या करे वह सामान्य आदमी। जिस की कहीं , कोई पूछ नहीं है। सामान्य आदमी अरे कोई चलता-पुर्जा आदमी भी लाचार हो गया है। क्यों कि आप ने ऐसा नाकारा सिस्टम बना दिया है कि क्या सरकारी अस्पताल , क्या प्राइवेट अस्पताल , बिना सी एम ओ की सिफारिश , संस्तुति , आदेश के बिना किसी कोरोना मरीज को हाथ नहीं लगाएगा। अस्पताल में भर्ती नहीं करेगा। या तो इस नियम को बदल दीजिए। या इस बाबत सिस्टम से जुड़े लोगों को फौरन बर्खास्त कर दीजिए। प्रशासन ने पब्लिक डोमेन में जिन के भी , जो नंबर दिए हैं। इन में से कोई एक नंबर आप खुद मिला कर देखिए एक बार। कोई एक नंबर भी उठ जाए तो मुझे जेल भेज दीजिए। माना कि बेड की कमी है , इलाज नहीं कर सकते।  परेशान और बीमार लोगों का सम्मान तो कर ही सकते हैं। फ़ोन उठा कर सांत्वना तो दे ही सकते हैं कि बेड उपलब्ध होते ही आप की व्यवस्था करते हैं। आदमी की आधी बीमारी तो सांत्वना में ही ठीक हो जाती है। 

पर सांत्वना तो दूर , इन संबंधित लोगों ने अपने नंबरों पर वाट्सअप की सुविधा भी हटा दी है। कि कोई वाट्सअप पर भी संदेश लिख कर मदद न मांग सके। एक मंचीय और लोकप्रिय कवि हैं कुमार विश्वास। कुमार विश्वास ने प्रसिद्ध गीतकार कुंवर बेचैन के लिए भी गाज़ियाबाद में सब से गुहार लगाई। किसी ने नहीं सुना। दिल्ली में आनंद विहार के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। कुंवर बेचैन का आक्सीजन लेविल सत्तर पर आ गया है। उन्हें वेंटिलेटर की ज़रूरत है। नहीं मिल रहा। कोई तीस घंटे हो गए हैं मैं खुद अपने एक मित्र की कोरोना पीड़ित बेटी को किसी अस्पताल में भर्ती करने के लिए व्याकुल भारत बन गया हूं। लेकिन ख़ाली हाथ हूं। बेटी की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही है। परिचित डाक्टरों ने भी सी एम ओ की संस्तुति के बिना हाथ जोड़ लिया है। 

आप जानते ही होंगे कि पूरे उत्तर प्रदेश में सी एम ओ मतलब प्राइवेट अस्पतालों , दवाखानों का दलाल। सी एम ओ मतलब रिश्वत और हरामखोरी का जीता-जागता स्मारक। ऐसे भ्रष्ट सी एम ओ लोग ज़िले-ज़िले में इस कोरोना को करुणा में तब्दील करने में लगे हुए हैं। मायावती के कार्यकाल में हुए एन आर एच एम घोटाले में इन्हीं सी एम ओ लोगों ने करोड़ो के वारे-न्यारे कर दिए थे। कितनी तो हत्याएं हुई थीं। अच्छा सी एम ओ होता क्या है ? एक सामान्य एम बी बी एस। तो एक सामान्य एम बी बी एस कुर्सी पर बैठते ही बड़े-बड़े विशेषज्ञ डाक्टरों को हांकना शुरू कर देता है। और यह विशेषज्ञ डाक्टर , एम डी , डी एम और अन्य बड़ी डिग्रियों वाले डाक्टर इन सी एम ओ को गधे से अधिक कुछ नहीं मानते। 

तो ऐसे गधे डाक्टरों के हाथ में आप ने कोरोना से निपटने की कमान थमा दी है। यह कौन सा सिस्टम है भला। तिस पर कोढ़ में खाज यह कि इस सूची में प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर लखनऊ विकास प्राधिकरण के कनिष्ठ अधिकारियों को तैनात कर दिया है। लखनऊ विकास प्राधिकरण नाम की पूरी संस्था अपने भ्रष्टाचार के लिए जितनी कुख्यात है , कौन नहीं जानता। थोड़ा सा अवसर मिल जाए तो यह लखनऊ विकास प्राधिकरण के लोग इतने कुशल हैं कि आप के सरकारी आवास 5 कालिदास मार्ग की रजिस्ट्री करवा कर वहां किसी बहुमंज़िले भवन का नक्शा भी पास करवा दें। तो योगी जी अगर आप सी एम ओ की टीम और लखनऊ विकास प्राधिकरण के लोगों के भरोसे लखनऊ के कोरोना रोगियों का उपचार करवाने की सोच बैठे हैं तो बेहतर होगा कि कोविड पॉजिटिव की रिपोर्ट आते ही आदमी को फांसी के तख्ते पर चढ़वा देने की व्यवस्था कर दीजिए। काहे को अस्पताल , दवा आदि की परिक्रमा करने का नाटक। 

योगी जी , अगर सचमुच कोरोना पीड़ित लोगों की मुश्किल आप दूर करना चाहते हैं , और हम जानते हैं कि आप ऐसा चाहते हैं। तो सब से पहले हर ज़िले की कोरोना प्रशासन की कमान कम से कम कमिश्नर स्तर के ईमानदार अधिकारी के जिम्मे करें। और उस अधिकारी को अपनी मर्जी से अपनी टीम बनाने की स्वतंत्रता भी ज़रूर दें। क्यों कि कोरोना अब अपने जिस विस्फोटक स्वरूप में उत्तर प्रदेश में उपस्थित है , भ्रष्ट जिलाधिकारियों , सी एम ओ या भ्रष्ट विकास प्राधिकरण के अफसरों के वश का हरगिज नहीं है। यह लोग हर बात में सिर्फ़ और सिर्फ पैसा सूंघने के आदी हैं। लोक कल्याण नहीं। 

जब कि ज़रूरत है इस महामारी में लोक कल्याण सोचने वाली मशीनरी की। हो सके तो कोआर्डिनेशन के लिए सेना की सेवाएं लें। जैसे भी हो ईमानदार , जवाबदेह और समर्पित लोगों की टीम की ज़रूरत है। नाकारा और भ्रष्टाचार के अभ्यस्त लोगों की नहीं। कि एक फ़ोन भी न उठा सकें। भैसा कुंड स्थित बैकुंठ धाम पर फैंसिंग करवा कर जलती लाशों की फोटोग्राफी या वीडियोग्राफ़ी रोकने के उपाय पर आप के अफसरों को शर्म आनी चाहिए। ऐसे अफसरों को बिना किसी देरी के बर्खास्त कर देना चाहिए। अरे , अगर मुझे या सिस्टम को कोढ़ हो गया है तो उस पर कपड़ा रख कर छुपाने से तो ठीक नहीं होगा। ठीक होगा इलाज से। तो योगी जी पहले इस नाकारा , भ्रष्ट सिस्टम को बदल दीजिए। नहीं , लखनऊ समेत समूचा उत्तर प्रदेश शमसान घाट बन जाएगा। क्यों कि अगर ऐसा ही रहा तो चिताएं तो जलती रहेंगी। चाहे जितनी फेंसिंग करवा लीजिए।  बाक़ी कोई पांच दशक पहले धूमिल लिख गए हैं :

भाषा में भदेस हूं 

इतना कायर हूं कि 

उत्तर प्रदेश हूं 

आप उत्तर प्रदेश को सचमुच बहुत आगे ले आए हैं योगी जी। बड़े-बड़े माफिया आप के नाम से कांपते हैं। लेकिन भ्रष्ट प्रशासन और यमराज बने सरकारी डाक्टरों को अभी कांपना शेष है। नहीं हम , फिर से पचास साल पीछे जाने के लिए अभिशप्त होंगे। चिता में भस्म होने से बचाइए उत्तर प्रदेश को , लखनऊ को। भ्रष्ट अफसरों की आंख मूंद कर मत मानिए योगी जी। इन अफसरों के लिए अदम गोंडवी लिख गए हैं :

तुम्हारी फ़ाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है

मगर ये आंकडे झूठे हैं ये दावा किताबी है। 


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कोविड 19 मरीजों के लिए लखनऊ में इमरजेंसी नम्बर 

The Lucknow Municipal Corporation has issued three helpline numbers


6389300137, 0522-4523000 & 0522-2610145 for providing help like admitting Covid patients, isolating them and providing medication.

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  in covid-19 cases, following numbers may be contacted for hospitalization of patient in event of emergency in Lucknow:


1. Dr Ravi Pandey, CMO control room 7007111277, 7376019029,


2. Dr Abhay Yadav DM covid control room 8787253357


3. Dr A K Chodhry CMO office 9411478966


4. Dr Rahul Arya CMO office 9506790398


5. Dr K K Saxena CMO office 9415109308


6. ADM Transport 9415005005.


E-mail: cmolko@gmail.com






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1 - थैंक यू योगी जी कि आप ने सामान्य नागरिकों की तकलीफ को समझा और उस का निवारण भी किया

Wednesday, 7 April 2021

मायावती ने मुलायम से उठक-बैठक करवाई तो सपाई गुंडे मायावती की हत्या पर आमादा हो गए

दयानंद पांडेय 


तथ्य यह भी दिलचस्प है कि अपने को सेक्यूलर चैंपियन बताने वाले मुलायम सिंह यादव पहली बार 1977 में जब मंत्री बने तो जनता पार्टी सरकार में बने जिस में जनसंघ धड़ा भी शामिल था। मुलायम सहकारिता मंत्री थे , कल्याण सिंह स्वास्थ्य मंत्री , रामनरेश यादव मुख्य मंत्री। फिर सेक्यूलर मुलायम सिंह यादव पहली बार भाजपा के समर्थन से ही मुख्य मंत्री बने थे। लेकिन बिहार में आडवाणी की रथ यात्रा रोकने और गिरफ़्तारी के बाद भाजपा ने केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया। विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई थी। 

तथ्य यह भी महत्वपूर्ण है कि सेक्यूलर फ़ोर्स के ठेकेदार वामपंथी और भाजपा दोनों एक साथ थे विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को समर्थन देने में। यह जनता दल की सरकार थी। मुलायम सिंह भी जनता दल सरकार के मुख्य मंत्री थे। तो जब भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो जनता दल टूट गया और कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। जब कि उत्तर प्रदेश में मुलायम सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस लिया तो कांग्रेस ने मुलायम को समर्थन दे कर मुलायम सरकार को गिरने से बचा लिया था। अयोध्या में कार सेवकों पर मुलायम सरकार द्वारा गोली चलवाने का परिणाम यह हुआ कि अगले चुनाव में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बन गई। बाबरी ढांचा गिरने के बाद कल्याण सरकार बर्खास्त हो गई। फिर अगले चुनाव में भाजपा को हराने के लिए सपा-बसपा ने मिल कर चुनाव लड़ा फिर मिल कर सरकार भी बनाई। 265 सीट पर सपा लड़ी और 164 सीट पर बसपा। 109 सीट सपा ने जीती , 67 सीट पर बसपा। मुलायम दूसरी बार मुख्य मंत्री बने। तिलक , तराजू और तलवार , इन को मारो जूते चार के वह दिन थे।  मिले मुलायम , कांशीराम , हवा में उड़ गए जय श्री राम जैसे नारों के वह दिन थे। 

लेकिन तब बतौर मुख्य मंत्री मुलायम की हालत आज के महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री उद्धव ठाकरे से भी गई गुज़री थी। कांशीराम और मायावती ने मुलायम सरकार को लगभग बंधक बना कर रखा। न सिर्फ़ बंधक बना कर रखा , ब्लैकमेल भी करते रहे। हर महीने वसूली का टारगेट भी था। मायावती हर महीने आतीं। मुलायम को हड़कातीं और करोड़ो रुपए वसूल कर ले जातीं। मुलायम लगभग मुर्गा बने रहते कांशीराम और मायावती के आगे। मुलायम ने हार कर मायावती को उप मुख्य मंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा। लेकिन मायावती को यह मंज़ूर नहीं था। वह मुख्य मंत्री बनना चाहती थीं। मुलायम इस पर राजी नहीं थे। सरकार किसी तरह चल रही थी। 

उन दिनों कांशीराम और मायावती लखनऊ आते तो स्टेट गेस्ट हाऊस में ठहरते थे। जिस कमरे में वह चुने हुए लोगों से मिलते थे , उस कमरे में सिर्फ एक मेज और दो कुर्सी होती थी। जिस पर क्रमशः कांशीराम और मायावती बैठते थे। फिर जो भी आता वह खड़े-खड़े ही बात करता। बात क्या करता था , सिर्फ़ बात सुनता था और चला जाता था। तब के मुख्य मंत्री मुलायम सिंह यादव के लिए भी यही व्यवस्था थी। वह भी खड़े-खड़े ही बात सुनते थे। बैठने को कुर्सी मुलायम को भी नहीं मिलती। मुलायम इस बात पर खासे आहत रहते। पर मायावती की यह सामंती ठसक बनी रही। सुनते हैं मुलायम ने एक बार अपने बैठने के लिए कुर्सी की बात की तो मायावती ने कहा कि मुख्य मंत्री की कुर्सी क्या कम पड़ रही है , बैठने के लिए। मुलायम चुप रह गए थे। बाद में मायावती के वसूली अभियान में मुलयम ने कुछ ब्रेक लगाई और कहा कि हर महीने इतना मुमकिन नहीं है। तो मायावती ने सरकार से समर्थन वापसी की धमकी दे डाली। मुलायम ने फिर मांग पूरी करनी शुरू कर दी। 

लेकिन तब के दिनों जब भी मायावती और कांशीराम लखनऊ आते तो मुलयम सरकार बचेगी कि जाएगी , की चर्चा सत्ता गलियारों और प्रेस में आम हो जाती। सरकार में हर काम के हिसाब-किताब के लिए कांशीराम ने आज के कांग्रेस नेता तब के आई ए एस पी एल पुनिया को मुलायम का सचिव बनवा रखा था। अपनी पार्टी के मंत्रियों को मलाईदार विभाग दिलवा रखे थे। तो मुलायम की नाकेबंदी पूरी थी। ऐसी ही किसी यात्रा में मायावती और कांशीराम लखनऊ आए। सर्वदा की तरह मुलायम को तलब किया गेस्ट हाऊस में। मुलायम खड़े-खड़े बात सुनते रहे। डांट-डपट हुई। जाने किस बात पर मुलायम को कान पकड़-कर उठक-बैठक भी करनी पड़ी। मायावती ने मुलायम के इस उठक-बैठक की चुपके से फोटो भी खिंचवा ली और दैनिक जागरण में यह फ़ोटो छपवा दी। फ़ोटो ऐसी थी कि कुर्सी पर कांशीराम और मायावती बैठे हुए है और मेज के सामने मुलायम कान पकड़े झुके हुए हैं। अख़बार में यह फ़ोटो छपते ही हंगामा हो गया। होना ही था। 

मुलायम सरकार से समर्थन वापसी की चर्चा पहले से गरम थी। इस चक्कर में ज़ी न्यूज़ की टीम संयोग से स्टेट गेस्ट हाऊस में पहले ही से उपस्थित थी। लेकिन सपाई गुंडों को टी वी कैमरा या प्रेस की परवाह कतई नहीं थी। उन्हें अपने टारगेट की परवाह थी। टारगेट था मायावती के साथ बलात्कार और फिर उन की हत्या की। लेकिन भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी भी संयोग से गेस्ट हाऊस में उपस्थित थे। वह पहलवान भी थे। मायावती की रक्षा में खड़े हो गए। सपाई गुंडों को एकतरफ धकेल कर मायावती को गेस्ट हाऊस के एक कमरे में बंद कर सुरक्षित कर दिया। यह 2 जून , 1995 की सुबह थी। सपाई गुंडों ने कमरे का दरवाज़ा तोड़ने का बहुत उपक्रम किया। लखनऊ पुलिस सपाई गुंडों के समर्थन में थी। लेकिन मायावती ने भी भीतर से युक्ति की। कमरे के दरवाज़े पर सोफा , मेज वगैरह खींच कर लगा दिया था। गैस के सिलिंडर में आग लगा कर मायावती को जलाने की भी कोशिश की गई। मायावती के कमरे के फोन के तार भी काट दिए सपाई गुंडों ने। उन दिनों मोबाइल नहीं था पर पेजर आ गया था। मायावती ने पेजर के जरिए बाहर की दुनिया से संपर्क बनाए रखा। 

उसी दिन संसद में यह मामला उठा कर अटल बिहारी वाजपेयी ने मायावती को सुरक्षा दिलवा दी। लेकिन मायावती उस दिन कमरे से बाहर नहीं निकलीं। रात में भी उन को गाली-वाली दी जाती रही। बहरहाल मायावती जब दो दिन बाद निकलीं तो मुलायम सरकार से समर्थन वापसी के ऐलान के साथ ही। अटल बिहारी वाजपेयी ने भाजपा का समर्थन दे कर मायावती को मुख्य मंत्री बनवा दिया। किस्से इस बाबत और भी बहुतेरे हैं। फिर कभी।


Tuesday, 6 April 2021

मुख़्तार अंसारी , बस आत्महत्या मत करना , अपनी फांसी की प्रतीक्षा करना

दयानंद पांडेय 

यह कौन सा धागा है , जिस से ऐसी चादर बुन ली मुख़्तार अंसारी कि दुनिया को डराते-डराते तुम ख़ुद डरने लगे। पत्ते की तरह कांपने लगे हाई वे पर। आखिर कैसे जुलाहे हो। कैसे बुनकर हो। कि अपने ही लिए फांसी का फंदा बुन लिया। ख़ैर , अब बांदा जेल में भी क्या मछली का तालाब खुदेगा कि नहीं ? लखनऊ या गाज़ीपुर की जेलों की तरह। डी एम , एस पी तुम्हारे साथ बैडमिंटन खेलने बांदा जेल में भी आएंगे क्या ? मुलायम , मायावती , आज़म खान कुछ मदद करेंगे भी ? लेकिन मुलायम तो अपने बेटे औरंगज़ेब की क़ैद में हैं। आय से अधिक संपत्ति के मामले के जांच की क़ैद अलग है। मायावती भी इसी आय से अधिक संपत्ति के मामले के जांच की क़ैद के साये में हैं। और वह जहरीली ज़ुबान के मालिक , भारत माता को डायन बताने वाले आज़म खान ?  

तुम पंजाब की जेल में ऐश करने क्या गए मुख्तार अंसारी कि वह आज़म ख़ान बीवी , बेटे समेत सीतापुर की जेल में एंट्री ले बैठे। अब दंगे-वंगे भी करवाने की हैसियत में तुम नहीं रहे मुख़्तार अंसारी। कानपुर के विकास दुबे की तरह मुठभेड़ भी नहीं नसीब होने वाली , न ही मुन्ना बजरंगी की तरह मारे जाओगे। मरोगे लेकिन तिल-तिल कर जेल में वी आई पी रुतबा पाने के लिए। जो दुर्गति कभी मायावती ने राजा भैया की करवाई थी कानपुर जेल में , उस से भी ज़्यादा दुर्गति तुम्हारी बांदा जेल में होगी मुख़्तार अंसारी। राजा भैया तो एक कूलर की ठंडी हवा खातिर तरस गया था। कूलर ख़राब हुआ तो ख़राब ही रहा , ठीक नहीं हुआ। हो सकता है बांदा जेल में तुम्हारा पंखा भी खराब हो जाए। ठीक ही न हो। फिर बांदा की गर्मी के क्या कहने ! ऐसे ही मरोगे तिल-तिल अपनी जान बचाते। बैरक की भीड़ में लाइन लगा कर खाना खाते , शौच के लिए बाथरूम की चौखट पर मूछ ऐंठते। अपनी बारी जोहते। कैमरे की नज़र में रहोगे। कोई जेल कर्मी पैसे ले कर भी तुम्हारी मदद नहीं कर पाएगा। 

तुम रास्ते में हो पर योगी ने अभी से तुम्हारी पल-पल की रिपोर्ट लेनी शुरू कर दी है। बस एक काम करना , मुख़्तार अंसारी  कि तुम आत्महत्या मत करना। ऐसी कोई ख़बर मत देना। अब देखो न , आज़म खान ने आत्महत्या की क्या ? नहीं न ! तुम भी मत करना। तब तक , जब तक कृष्णानंद राय समेत तमाम मामलों में तुम्हें फांसी की सज़ा न हो जाए। निश्चिंत रहो , मैं पूरे दावे के साथ कह रहा हूं कि अगर तुम ने आत्महत्या नहीं की तो तुम्हें फांसी की ही सज़ा मिलेगी और फांसी ही होगी। चाहे तो तुम्हारा कोई समर्थक मेरे इस लिखे को सेव कर के रख ले। ताकि सनद रहे और वक्त ज़रूरत काम आए। कि तुम्हें फांसी होगी , हर हाल होगी। कोर्ट में अब तारीखें नहीं मिलेंगी। खटाखट सुनवाई और फ़ैसला होगा। फांसी के तख्ते पर यही क़ानून तुम्हें ले जाएगा , जिस की बिसात पर तुम ने बचने के तमाम बंदोबस्त किए अब तक। इस लिए भी कि अब निजाम बदल गया है। तुम्हारी मिजाजपुर्सी वाला निजाम अब टाइल और टोटी चोरी में व्यस्त है। 

मुझे याद है। बहुत अच्छी तरह याद है कि विधान सभा में जब सपाई गुंडे विधायकों ने मायावती को जान से मारने के लिए यत्न किए , हिंसा शुरू की तब मायावती के एक इशारे पर कैसे तो कवच-कुण्डल बन कर मायावती की सुरक्षा में तुम खड़े हो गए थे। सपा विधायकों की सारी गुंडई , सारी प्लानिंग को तुम ने अकेले दम पर ख़ामोश रह कर  फेल भी कर दिया था। और मायावती किसी शिशु की तरह बकैया-बकैया भागी थीं , विधान सभा से। और तुम पीछे-पीछे उन्हें किसी कमांडो की तरह कवर करते रहे थे , मुख़्तार अंसारी। यह सब जब मैं ने साक्षात विधान सभा की प्रेस गैलरी से देखा था तुम्हारी उस दिलेरी पर दिल आ गया था। पर जब आज ख़बरों में पाया कि आगरा से लखनऊ एक्सप्रेस वे पर तुम पत्तों की तरह कांप रहे थे तो सहसा यक़ीन नहीं हुआ। 

वह सपाई जो गेस्ट हाऊस में मायावती को नहीं मार पाए थे , उस दिन विधान सभा में घेर कर मारना चाहते थे। कल्याण सिंह सरकार को बहुमत मिले , न मिले इस पर सपा के गुंडे विधायकों को कुछ लेना-देना नहीं था। विधान सभा में उन की हिंसा का मक़सद सिर्फ़ मायावती की हत्या का था। वह अपने नेता मुलायम के अपमान का बदला लेना था उस मायावती से , जिस ने तत्कालीन मुख्य मंत्री , उत्तर प्रदेश मुलायम को कान पकड़ कर उठक-बैठक करवाया। इस उठक-बैठक की चुपके से फ़ोटो खिंचवाई और एक अख़बार में छपवा दिया।  

इसी बात का बदला वह गेस्ट हाऊस में मायावती की हत्या कर लेना चाहते थे। तब मौके पर सुबह-सुबह भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त ने मायावती की जान बचाई थी। उसी दिन संसद में मामला उठा कर अटल बिहारी वाजपेयी ने भी मायावती को सुरक्षा दिलवाई थी। फिर समूची प्रदेश इकाई के खिलाफ होने के बावजूद मायावती को अटल जी ने मुख्य मंत्री बनवा दिया था। लेकिन जब अटल जी को अपना प्रधान मंत्री पद बचाने के लिए मायावती के समर्थन की ज़रूरत पड़ी तो समर्थन देने का वायदा कर के भी मायावती पलट गई थीं। उस मायावती को मुख़्तार अंसारी तुम ने उस दिन विधान सभा में जीवन दिया था।  

वह दृश्य मेरी आंखों में आज भी जस का तस बसा हुआ है। वह मायावती और उस का पिट्ठू वकील सतीश मिश्रा क्या तुम्हारे बचाव में खड़े होंगे भला ? हरगिज नहीं। तुम्हारी अरबों की संपत्ति ध्वस्त हो चुकी है। सेक्यूलर फोर्सेज का गिनती-पहाड़ा भी ध्वस्त हो चुका है। अब कुछ भी शेष नहीं रहा। शेष है तो बस तुम्हारी फांसी। इस तुम्हारी फांसी की प्रतीक्षा मुझे बड़ी बेसब्री से है। क्यों कि मैं मानता हूं कि तुम्हारे जैसे दुर्दांत अपराधी को जीने का कोई हक़ नहीं। राजनीति ही नहीं समाज में भी तुम्हें रहने का हक़ नहीं है। मनुष्यता के दुश्मन हो तुम और तुम्हारे जैसे लोग।


मुख़्तार अंसारी की पैरोकारी कर रहे , अजब कमीने लोग हैं यह


मुख़्तार अंसारी पंजाब की जेल से उत्तर प्रदेश की बांदा जेल क्या ले आया गया है , क़यामत  आ गई है। गोया वह पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट में था और यहां उत्तर प्रदेश ला कर उसे जेल में ठूंस दिया गया। मुख़्तार की पारिवारिक  पृष्ठभूमि के सुनहरे पन्ने खंगाले जा रहे हैं कि दादा यह थे , नाना वह थे। अरे भाई राहुल गांधी के पिता , दादा , दादी भी क्या कम थे। 

तो क्या राहुल गांधी को भी प्रधान मंत्री की कुर्सी सौंप देनी चाहिए इस बिना पर। पारिवारिक पृष्ठभूमि खंगालने के साथ मुख़्तार अंसारी का अपहरण उद्योग , मुख़्तार अंसारी द्वारा की गई हत्याएं , मुख़्तार द्वारा बटोरी गई अरबों की संपत्ति भी खंगालनी चाहिए। पर यह तथ्य लोग भूल गए हैं। बस इतना जानते हैं कि पंजाब में वह ऐश कर रहा था , उत्तर प्रदेश में उस से पत्थर तुड़वाया जाएगा। 

फ़र्क़ तो खैर आया ही है कि पंजाब की जेल की बैरक से मुख़्तार अंसारी ह्वील चेयर से एम्बुलेंस तक आया। बांदा जेल की बैरक में पैदल गया बैरक में। 900 किलोमीटर के पूरे रास्ते के लिए पैसा खर्च कर दर्जनों मीडिया चैनल को हायर किया। ताकि कैमरे तने रहें और वह सुरक्षित रहे। फ़र्क़ तो आया है। 

बाक़ी मुख़्तार अंसारी मुसलमान है सो योगी सरकार उस के साथ अन्याय करेगी ही यह सेक्यूलर एजेंडा सेट है ही। गोया मुन्ना बजरंगी , विकास दूबे भी मुसलमान थे। बस नाम हिंदू थे सो रगड़ दिए गए। तौबा , तौबा ! मुसलमान होने की प्रिवलेज पर पाकिस्तान बना लिया। अब मुसलमान होने की प्रिवलेज पर हत्यारे मुख़्तार अंसारी को दारा शिकोह बना देना चाहते हैं लोग। सूफी बना देना चाहते हैं। मुख़्तार अंसारी की पैरोकारी कर रहे , अजब कमीने लोग हैं यह।