लखनऊ में एक से एक गिरोहबंद लेखक हैं , कि इन के आगे बड़े-बड़े अपराधियों के गिरोह मात खा जाएं ,शर्मा जाएं , जिन की हिप्पोक्रेसी बरेली की साक्षी मिश्रा के बहाने सामने आ रही है। कलई खुल रही है। वामपंथ के नाम पर उन का धंधा , कुंठा और बीमारी किसी कोढ़ की तरह सामने आ रही है। जातीय जहर से भरे कुछ दलित शिरोमणियों का जायका और चटकारा देखने लायक है । दिक्कत यह है कि जातीय जहर में भरे यह तमाम लोग जब अपने परिवार के बच्चों का रिश्ता करते हैं तो किसी दलित , किसी मुस्लिम से नहीं करते। सर्वदा अपर कास्ट में ही जाते हैं। दामाद कायस्थ तो बहू ब्राह्मण। दलित या मुस्लिम नहीं मिलते इन्हें। अपने से नीची जाति भी नहीं मिलती । मैं ने साक्षी मिश्रा पर एक पोस्ट लिखी , उस से यह लोग इतने तरंगित हो गए कि पूछिए मत। मैं ब्राह्मण हो गया। क्या तो एक ब्राह्मण लड़की का , एक दलित से विवाह करना मुझे नहीं सुहाया। आदि-इत्यादि। इन कूपमंडूकों को चुनौती दे कर कहता हूं कि अगर मेरी पोस्ट में इस बाबत एक भी शब्द , एक भी वाक्य दिखे तो बताएं। मैं ने तो सिर्फ साक्षी द्वारा , पिता को बेबात निशाना बनाने पर पोस्ट लिखी है। लेकिन दिक्कत यह है कि इन जातिवादी जहरीलों को सिर्फ़ ब्राह्मण दीखता है , अपनी बीमारी और कुंठा नहीं।
मैंने तो अपनी बेटी की शादी सुदूर केरल में की है, अरेंज्ड मैरिज की है। बेटी की सहमति से। बिना दहेज़ , बिना किसी लगन , कुंडली आदि के। दामाद एम्स , दिल्ली के गोल्ड मेडलिस्ट हैं , एम डी में। सुपरिचित मेडिकल साइंटिस्ट हैं। आस्ट्रेलिया से एक रिसर्च प्रोजेक्ट पूरा कर भारत लौटे हैं । एक मेडिकल कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और टाइफाइड पर महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे हैं। जिस भादो में उत्तर प्रदेश में किसी जाति के लोग विवाह नहीं करते , मैं ने अपनी बेटी का विवाह उस भादों में किया है। फिर भी मैं ब्राह्मण हूं। और लगन , कुंडली आदि देख कर अपने बच्चों का विवाह करने वाले यह हिप्पोक्रेट जनवादी हैं , प्रगतिशील हैं , वामपंथी हैं । एक मानसिक रूप से बीमार और तंगदिल महिला जो ओ बी सी है , मंदिर में पुजारी होने वाले पारंपरिक गोंसाई परिवार की है , सो घर में रोज आरती गाती है , बाहर रोज लाल सलाम बोलती है। अनगिन फर्जी फेसबुक आकऊंट रखने वाली यह महिला अपने बच्चों के रिश्ते के लिए कुंडली लिए घूम रही है। योगी आदित्यनाथ के साथ ललक कर फ़ोटो खिंचवाती है। ऐसे ही लखनऊ में एक से एक भद्र लेखक हैं , जो लिखते-पढ़ते कम , लाल सलाम ज़्यादा बोलते हैं , रचना एक ग्राम भर की नहीं है , प्रतिबद्धता कुंटल भर की है। जातीय जहर बेहिसाब है , गिरोहबंदी की तारबंदी भयानक रूप से है , लेकिन वह जनवादी हैं , प्रगतिशील हैं । प्रगतिशील लेखक संघ की एक महिला पदाधिकारी के बच्चे खुल्लमखुल्ला भाजपाई हैं लेकिन वह भी लाल सलाम बहुत जोर से बोलती है। लाल सलाम बोलने का लाभ और लोभ इतना बड़ा है कि बिना रचना या कच्ची , अधकचरी रचना , फर्जी और बोगस रचना के बावजूद आप को लोग लेखक ही नहीं , बहुत बड़ा लेखक कह कर नवाजते हैं । भले आप को अपनी रचना और किताब का शीर्षक लिखने का शऊर और समझ भी नदारद हो। लेकिन लाल सलाम है , स्त्री हैं , बस रचना नहीं हैं , तो क्या हुआ ? आप से बड़ा रचनाकार नहीं है कोई।
वापस साक्षी मिश्रा की बात पर आता हूं और चुनौती दे कर लखनऊ और लखनऊ से बाहर के भी हिप्पोक्रेट लेखकों से कहता हूं , कि कितने हैं , जिन्हों ने अपने बच्चों की मर्जी से ही सही दामाद और बहू , दलित खोजे हैं , मुस्लिम खोजे हैं। अपने रिश्ते सार्वजनिक करें । नहीं , बेशर्मी भरी हिप्पोक्रेसी में यह ब्राह्मण , ब्राह्मण की ब्राह्मण चालीसा का पाठ बंद करें। जानता हूं कि सभी अपने हमाम में नंगे हैं। और कि मुझे नाम ले कर नंगा करना भी आता है। क्यों कि बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी। हाथी के दांत , खाने के और दिखाने के और बहुत हो चुका। मैं सरनेम से ब्राह्मण हूं लेकिन यह हिप्पोक्रेट लेखक , आलोचक अपने कर्मकांड से पूरे ब्राह्मण हैं , ब्राह्मणवादी हैं । यह बात मैं बहुत जोर से कहना चाहता हूं।
यह भी कि रचना की ज़मीन पर भी कौन लोग कितना खड़े हैं , अपने भीतर झांक लें। सो , बेमतलब उंगली कटवा कर , फोकट में शहीद बनने की लालसा से बचें। दोस्तों , आप के किसी गिरोह में नहीं हूं लेकिन अपनी रचना की ज़मीन पर , अपनी सोच और समझ पर पूरी ताक़त से खड़ा हूं। मेरी इस ज़मीन को हिला पाना , खोद पाना किसी गिरोहबाज के वश का नहीं है। लेकिन आप तो अपनी घड़ियाली वैचारिकी में इतने दरिद्र हैं कि समय की दीवार पर लिखी इबारत भी साफ़ नहीं पढ़ पाते तो रचना और आलोचना क्या ख़ाक लिखेंगे ?
अगर मैं समय की दीवार पर लिखा पढ़ कर , जनता की नब्ज़ पढ़ कर , अपनी पत्रकारीय समझ के आधार पर लिख रहा था कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की सरकार फिर आ रही है। जांच लीजिए कि 19 मई को चैनलों पर एक्जिट पोल आए थे। लेकिन इस के पहले 11 मई को ही अपने चुनावी आकलन में मैं ने स्पष्ट लिखा था कि उत्तर प्रदेश में 60 प्लस भाजपा आ रही है , केंद्र में 285 के आस-पास और कि एन डी ए 350 प्लस। और लगभग यही हुआ। लेकिन आप मित्र लोग तब के समय , मेरे आकलन की पड़ताल करने के बजाय मुझे भाजपाई और संघी घोषित करने की जहरीली कार्रवाई में व्यस्त और न्यस्त थे। ठीक वैसे ही जैसे आज मुझे ब्राह्मण घोषित करने की बीमारी में त्रस्त हैं। वामपंथी होने के ढकोसले में यह जातीय जहर की खेती बंद कीजिए। और जानिए कि आप के लेखक संगठनों से जुड़े तमाम लोगों से ज़्यादा मार्क्स और मार्क्सवाद को मैं ने पढ़ा है। गांधी और लोहिया सहित तमाम विचारकों को पढ़ा है। जब जो चाहे , मार्क्स , गांधी और लोहिया पर बात कर सकता है , मैं सर्वदा उपस्थित हूं। लेकिन मार्क्सवाद के नाम पर हिप्पोक्रेसी के कायल लोगों को भी पढ़ता रहता हूं , बेपर्दा करता रहता हूं। तो लोग मुझ से बुरी तरह चिढ़ते हैं । जान लीजिए कि इन लेखक संगठनों से जुड़े लोगों से ज्यादा रचना की ज़मीन पर भी जातिवाद के ख़िलाफ़ लड़ा है , सेक्यूलरिज्म की लड़ाई लड़ी है। लड़ता ही रहता हूं। यह बात कोरी लफ्फाजी नहीं है , तथ्य है , मेरी रचनाएं इस की गवाह हैं । लेकिन अपनी गिरोहबंदी में आप इतने अपढ़ , साक्षर और जाहिल हो चुके हैं तो आप की इस दरिद्रता और बीमारी का इलाज किसी हकीम लुकमान के पास भी नहीं है।