Saturday, 30 June 2018

तो क्या उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा अब दलालों और पैसों के चंगुल में फंस चुके हैं

दिनेश शर्मा 
मेरी एक दोस्त हैं भारती सिंह । बहुत ही संवेदनशील , भावुक और हिंदी साहित्य की मर्मज्ञ । विदुषी हैं । उन्नाव के एक गवर्मेंट डिग्री कालेज में प्रिंसिपल हैं । पहले लखनऊ में ही एक डिग्री कालेज में हिंदी पढ़ाती थीं । प्रिंसिपल होने के बाद उन्नाव ट्रांसफर कर दी गईं । लखनऊ से रोज आती-जाती हैं । इस उम्मीद में कि लखनऊ ट्रांसफर हो जाएगा । इस लिए भी कि तब के दिनों लखनऊ में एक पोस्ट ख़ाली थी । तो बहुत दौड़-धूप , सोर्स-सिफ़ारिश सब कर लिया है । उप मुख्यमंत्री और शिक्षा विभाग देख रहे दिनेश शर्मा से , प्रमुख सचिव तक से भी मिल चुकी हैं , अपनी व्यथा और निवेदन ले कर । देवरिया की हैं । गोरखपुर और बी एच यू में पढ़ी-लिखी हैं । क्षत्रिय भी हैं । सो वहां के संपर्कों के मार्फ़त मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी तक से सिफ़ारिश करवाई । योगी ने संस्तुति भी कर दी उन्नाव से लखनऊ ट्रांसफर के लिए । लेकिन उप मुख्य मंत्री दिनेश शर्मा ने मुख्यमंत्री योगी की संस्तुति को डस्टविन में डाल दिया । भारती सिंह का ट्रांसफर लखनऊ नहीं किया । मुख्यमंत्री की संस्तुति को डस्टविन में डाल किसी दलाल की सिफ़ारिश मान ली । गृह जनपद में किसी की नियुक्ति नहीं होती लेकिन दिनेश शर्मा ने दलाल के चक्कर में नियम क़ानून सब ताक पर रख दिए ।तब पता चला कि कभी साफ़-सुथरी छवि के लिए जाने , जाने वाले दिनेश शर्मा अब दलालों और पैसों के चंगुल में फंस चुके हैं । सो जाने कितनी भारती सिंह के आवेदन मुख्य मंत्री की संस्तुति के बाद भी दिनेश शर्मा डस्टविन में डाल देने के आदी हो चले हैं ।

भारती सिंह 
भारती सिंह भी दिनेश शर्मा की इस करतूत से खफ़ा रहती हैं लेकिन उन्हों ने कभी अपनी सीमा रेखा पार नहीं की । मानसिक संतुलन नहीं खोया कभी । अपना विवेक , अपनी संजीदगी और संयम कायम रखा है । बावजूद इस के वह जब कभी इस प्रसंग की चर्चा करती हैं तो मृदुभाषी होने के बावजूद दिनेश शर्मा के प्रति उन की बातों में तल्खी आ ही जाती है । भारती सिंह के पति एच एल में डाक्टर थे जो दुर्भाग्य से अब नहीं हैं । एक बेटे और एक बेटी की ज़िम्मेदारी है भारती सिंह पर। उन्नाव से लखनऊ ट्रांसफर से भी एक बड़ी दिक्कत यह है कि नरेंद्र मोदी के तमाम स्वच्छता और शौचालय अभियान के बावजूद उन्नाव के उस गवर्मेंट डिग्री कालेज में एक शौचालय भी नहीं है । बताइए कि जब गवर्मेंट डिग्री कालेज का यह हाल है तो बाक़ी कालेजों और स्कूलों का क्या हाल होगा । पर दिनेश शर्मा को यह नहीं मालूम होगा । सत्ता पाने के बाद अगर दिनेश शर्मा जैसा शिक्षक और साफ़-सुथरी छवि वाला आदमी भी बिगड़ कर बदनाम हो सकता है , पैसा और दलाली के तामझाम में फंस सकता है , पतन की पराकाष्ठा पार कर सकता है तो बाक़ी लोगों के क्या कहने । तो क्या पहले की दिनेश शर्मा की छवि नकली थी , बनावटी थी ? जिस की कलई अब खुल गई है ?

उत्तराखंड की प्राथमिक शिक्षक उत्तरा बहुगुणा की पीर क्या ऐसे ही पर्वत हुई होगी जो उन्हें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भरी सभा में चोर उचक्का कह गईं । मुख्यमंत्री रावत ने अपनी सारी लोक-लाज और मर्यादा ताक पर रख दी । बरसों की सेवा के बाद दुर्गम से सुगम का ट्रांसफर ही तो मांग रही थीं उत्तरा बहुगुणा । मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी भी प्राथमिक शिक्षक हैं , शुरू ही से सुगम नियुक्ति मिली हुई है । रावत को इस नाते भी उत्तरा बहुगुणा की दिक्कत समझनी चाहिए थी । लेकिन गरिमा बना कर चुप रहने या उत्तरा बहुगुणा की समस्या का समाधान करने की जगह एक शिक्षिका से निरंतर अभद्रता , अशिष्टता का उन का बर्ताव उन्हें एक नालायक , अभद्र और गुंडा मुख्यमंत्री सिद्ध कर गया है । उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा या उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को समझना चाहिए कि एक स्त्री , एक शिक्षक के साथ अपमानजनक व्यवहार उन्हें कहां से कहां पहुंचा सकता है । उन्हें याद रखना चाहिए कि चाणक्य भी शिक्षक थे । चाणक्य के साथ एक अपमानजनक व्यवहार नंद वंश के पतन का कारण बन गया था ।

अटल बिहारी वाजपेयी याद आते हैं । कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे तब । अटल जी तब तक प्रधानमंत्री नहीं हुए थे । दिल्ली से वह सुबह-सुबह लखनऊ आए थे । लखनऊ मेल से । मीराबाई मार्ग वाले स्टेट गेस्ट हाऊस में ठहरे थे । उन से मिलने के लिए उसी सुबह कल्याण सिंह , राजनाथ सिंह , कलराज मिश्र सहित और कई मंत्री , भाजपा के नेता आदि पहुंचे हुए थे । बतौर पत्रकार मैं भी गया था । लेकिन देखा कि एक बिलकुल गंवई , कस्बाई सा मुड़ी-तुड़ी कमीज , पायजामा पहने , एक व्यक्ति हाथ में कपड़े का एक मामूली झोला लिए खड़ा था । मेरी नज़र बार-बार इस आदमी पर चली जाती । अंततः उस आदमी के पास मैं गया और पूछा कि आप कैसे आए हैं यहां । उस आदमी ने कहा , पंडित जी से मिलने । यह सुन कर मैं ने फिर उस आदमी की वेश-भूषा और व्यक्तित्व पर नज़र डाली और पूछा कि आप को लगता है कि पंडित जी आप से मिल लेंगे ? वह आदमी पूरे आत्म-विश्वास से बोला , हां ! मैं चुपचाप हट गया वहां से । यह सोच कर कि इस आदमी का दिल मैं क्यों तोडूं भला । थोड़ी देर में अटल जी अपने कमरे से बाहर आए और गरदन घुमा-घुमा कर चारो तरफ सब की तरफ देखा और अचानक उस साधारण से व्यक्ति को देखते ही उन की आंखों में चमक आ गई । अटल जी ने सब से पहले उसी व्यक्ति को इशारों से बुला लिया । मुख्य मंत्री और तमाम मंत्री अवाक खड़े रह गए थे ।

वह आदमी उम्र होने के बावजूद बड़ी फुर्ती से अटल जी के पास गया । अटल जी उस व्यक्ति से लपक कर मिले , उस का कुशल क्षेम पूछा । फिर उस ने अपने झोले से एक कागज निकाला । अटल जी ने कागज़ पढ़ा फिर खड़े-खड़े ही उस पर कुछ लिखा और वह आदमी उन को नमस्कार कर वापस आ गया । अब मेरी जिज्ञासा उस व्यक्ति में बढ़ गई । मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों का अटल जी से मिलना-बतियाना , देखना छोड़ उस आदमी की तरफ बढ़ गया । उस का परिचय पूछा । पता चला कि हरदोई ज़िले के संडीला से आया था वह व्यक्ति । अटल जी बहुत पहले , कभी कुछ दिन संडीला में रहे थे । तब ही से वह उन से परिचित था । उस की अप्लिकेशन देखी मैं ने । अप्लिकेशन के मुताबिक उस व्यक्ति के पास उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बस में चलने का नि:शुल्क बस पास था , अब उम्र ज़्यादा होने के कारण अपने साथ एक सहायक की भी सुविधा चाहता था ।

इस आवेदन पर अटल जी ने सिर्फ इतना लिखा था , परिवहन मंत्री , इस पर उचित कार्रवाई करें । मैं यह देख कर हंसा और बोला , यह तो कोई आदेश नहीं है । इस पर कुछ नहीं होगा । इस पर उस आदमी ने कागज मेरे हाथ से ले लिया और पूरे विश्वास के साथ बोला , इसी पर सब कुछ होगा । जैसे उस ने जोड़ा , मेरा पास भी यही लिखने पर बन गया था । आप देखिएगा , यह भी हो जाएगा । यह कह कर वह आदमी चला गया । मैं ने बाद में पता किया तो पता चला कि सचमुच उस आदमी को सहायक वाली सुविधा भी मिल गई थी ।

सोचिए कि तब क्या दिन थे और अब कैसे दिन हैं कि मुख्यमंत्री की संस्तुति को भी दिनेश शर्मा जैसे लोग डस्टविन में डाल देते हैं । और भारती सिंह जैसी प्रिंसिपल उन्नाव से लखनऊ की रोज परिक्रमा करने को अभिशप्त हो जाती हैं । बिना शौचालय वाले गवर्मेंट डिग्री कालेज में दिन गुज़ारती हुई । उत्तरा बहुगुणा जैसी प्राथमिक शिक्षक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास फ़रियाद करते हुए अपमानित हो कर सस्पेंड हो जाती हैं । तो क्या दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय की अवधारणा अटल बिहारी वाजपेयी तक ही सीमित थी । उत्तर प्रदेश के दिनेश शर्मा और उत्तराखंड के त्रिवेंद्र सिंह रावत तक आते-आते सूख जाती है अंत्योदय की यह नदी , यह अवधारणा ! यह तो शुभ संकेत नहीं है । किसी भी सत्ता के लिए शुभ नहीं है । न उत्तराखंड के लिए , न उत्तर प्रदेश के लिए । कहां तो बात अंत्योदय की होनी थी , कहां आप अपनी शिक्षिका और अपनी प्रिंसिपल तक भी नहीं पहुंच पा रहे । अंतिम आदमी तक क्या खाक पहुंचेंगे ! जो सत्ता अपने शिक्षक को सम्मान न दे सके उस सत्ता को कोई क्यों मान देगा भला । क्यों स्वीकार करेगा भला ।

Friday, 22 June 2018

नफ़रत के बीज बोते लोग दिखें तो उन्हें संगीत की संगत में बुला लीजिए वह प्यार की भाषा बोलने लगेंगे

एक गीत और संगीत ही ऐसा तत्व है जो किसी को कभी तोड़ता नहीं , सिर्फ़ और सिर्फ़ जोड़ता है। तो इस लिए कि संगीत में सिर्फ़ एक ही विचार होता है । जोड़ने का विचार । भारतीय वांग्मय में माना जाता है कि शिव और सरस्वती की आराधना से ही संगीत की शुरुआत हुई है । यह दोनों ही जोड़ना जानते हैं , घटाना नहीं । कहा ही गया है , सत्य ही शिव है , शिव ही सुंदर है । सत्यम , शिवम , सुंदरम । यही तो है संगीत । सरगम यही तो है । कालिदास, तानसेन, अमीर खुसरो आदि ने इसे नया रंग दिया। पंडित रवि शंकर, भीमसेन गुरूराज जोशी, पंडित जसराज, प्रभा अत्रे, सुल्तान खान ने इसे नई शान दी । बहुत मशहूर है एक गीत , का करूं सजनी आए न बालम ! सुनिए इसे कभी एक साथ बड़े गुलाम अली खां की आवाज़ और बिस्मिल्ला खां की शहनाई में इसे । भूल जाएंगे सारे रंजो गम । गा कर पढ़िए न गीत गोविंदम , भूल जाएंगे सारे भटकाव । जाइए न कभी काशी के संकटमोचन मंदिर में आयोजित संगीत सभा में , हिंदू - मुसलमान का भेद भूल जाएंगे । रविशंकर के सितार , बिस्मिल्ला की शहनाई , हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी , शिव कुमार शर्मा का संतूर , किशन महराज का तबला , गिरिजा देवी का गायन , छन्नू लाल मिश्र की स्वर-लहरी , गुलाम अली की तान आप को अपने सुख की गोद में सुला लेगी ।

शकील बदायूनी और साहिर लुधियानवी ने हिंदी फिल्मों के लिए अधिकतर भजन लिखे हैं , नौशाद ने इन भजनों को संगीत दिया है , मुहम्मद रफ़ी ने गाया और दिलीप कुमार , मीना कुमारी पर फिल्माया गया है। इस की कोई और मिसाल नहीं है । अमीर खुसरो और कबीर ने जितने निर्गुण लिखे हैं उन का कोई सानी नहीं है । आज भी भक्ति संगीत के यह सिरमौर हैं । आप सुनिए न कभी दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर । भूल जाएंगे कौन गा रहा है , किस ने लिखा है । मन्ना डे जब कौव्वाली गाते थे तो कोई उन को हिंदू या बंगाली कह कर ख़ारिज नहीं करता।

लता मंगेशकर कोकड़ी भाषा की हैं , उन की मातृभाषा कोकड़ी ही है लेकिन जब वह किसी भी भारतीय भाषा में गाती हैं तो कौन उन्हें अपनी भाषा का नहीं मानता । मराठी और हिंदी फ़िल्मों में गायन के लिए तो दुनिया भर में वह जानी जाती हैं । हिंदी भाषा की सब से बड़ी और अनकही अम्बेसडर हैं । पूरे भारत में एक सुर से सुनी जाती हैं । बिना किसी विरोध और मतभेद के । हमारी मातृभाषा भोजपुरी में भी कुछ गीत गाए हैं लता मंगेशकर ने । क्या खूब गाया है । लागे वाली बतिया न बोले मोरे राजा हो करेजा छुए ला ! सुन कर lलगता ही नहीं कि वह भोजपुरी की नहीं हैं । लता ही क्यों आशा भोसले , हेमलता और अलका याज्ञनिक ने भी भोजपुरी में कुछ गाने गाए हैं और इतना डूब कर गाए हैं कि कलेजा काढ़ लेती हैं ।

भोजपुरी लोकगीत गायकी के शिखर पर विराजमान इस समय चार स्त्रियां हैं , शारदा सिनहा , मालिनी अवस्थी , कल्पना और विजया भारती । लेकिन इन चारो ही की मातृभाषा भोजपुरी नहीं है । लेकिन इन की भोजपुरी गायकी लोगों के दिलों को जोड़ती हैं । माइकल जैक्सन अब नहीं हैं । लेकिन क्या डूब कर गाते थे । मुझे अंगरेजी बहुत समझ में नहीं आती । लेकिन माइकल जैक्सन का गाया समझ में आता है । इस लिए कि उन का संगीत भी दिल जोड़ता है । एक कोल्ड ड्रिंक के विज्ञापन में माइकल जैक्सन ऐसे गाते थे गोया संस्कृत के श्लोक पढ़ रहे हों , वेद की कोई ऋचा पढ़ रहे हों । मेरा तो स्पष्ट मानना है कि जब भी , जहां कहीं भी नफ़रत के बीज बोते लोग दिखें उन्हें संगीत की संगत में बुला लेना चाहिए । वह प्यार की भाषा बोलने लगेंगे । एक बार आज़मा कर तो देखिए । एक बार आंख खोल कर देखिए तो सही , देखेंगे तो पाएंगे कि दुनिया के सारे लोग कोई और भाषा समझें , नहीं समझें लेकिन संगीत ही एक भाषा है जिसे सारी दुनिया चुपचाप समझती है । दिल से समझती है , समझ कर संतोष और सुकून के दरिया में गहरे डूब जाती है । तो इस लिए भी कि गीत-संगीत तपस्या है , राजनीतिक या वैचारिक लफ्फाजी नहीं ,, बड़ी मुश्किल से नसीब होती है ।

Thursday, 21 June 2018

आप की मंज़िल क्या पाकिस्तान की तरह बरबाद जीवन जीना है ?

माई नेम इज खान की त्रासदी अमरीका में भी अचानक नहीं आई । पैराशूट से नहीं उतरी । लेकिन अब दुनिया भर में यह समस्या घर कर रही है । हाल ही में सिर्फ़ मुसलमान होने के कारण पाकिस्तान के प्रधान मंत्री तक अमरीका में कपड़े उतरवा कर बेज्जत हुए हैं । भारत में भी यह माई नेम इज खान वाली समस्या गहरी हो रही है । बहुत गहरी । यह ठीक नहीं है इस के लिए अकेले मुसलमान ही ज़िम्मेदार नहीं हैं । लेकिन इस का इलाज अकेले मुसलमानों के ही हाथ में है । अब से ही सही कम से कम भारतीय मुसलमान अपनी कट्टरता और अल्पसंख्यक और वोट बैंक का ठप्पा हटा कर मुख्य धारा में आ कर स्वाभिमान से रहना सीखें । दुनिया में ही नहीं भारत में भी उन की अच्छी खासी आबादी है । सही मायने में वह अल्पसंख्यक नहीं हैं । दोगली राजनीति ने उन्हें अल्पसंख्यक बना कर बेवकूफ बना रखा है । अच्छा सिख भी तो अल्पसंख्यक हैं । उन के लिए कोई सच्चर कमेटी क्यों नहीं बनी ? उन का रहन-सहन , उन का जीवन स्तर इतना बेहतर कैसे हो गया ? वह तो रिफ्यूजी बन कर आए थे । फिर आप तो यहां रुलर थे , नवाब थे । क्यों इतना पीछे रह गए ? आप सिर्फ़ मुस्लिम बन कर ही क्यों रह गए ? भारतीय बन कर ही आप अपनी पहचान क्यों नहीं कायम करना चाहते ? आप की असली और सार्वजनिक पहचान भारतीय की होनी चाहिए । मुस्लिम होना व्यक्तिगत । सारी समस्याओं का हल यही है । मुसल्लम इमान ही तो मुसलमान होना है । भारतीयता को पहला इमान बनाइए। काहे का भला मिनी पाकिस्तान । पाकिस्तान जो इतना ही अच्छा होता तो आप यहां नहीं होते , पाकिस्तान में ही होते ।

असल में मुस्लिम समाज में शिक्षा और सामाजिक सुधार की सख्त ज़रूरत है । राजनीतिक पार्टियों और कट्टर बुद्धिजीवियों के सेक्यूलरिज्म के झांसे से निकल कर भारतीय मुसलमानों को कट्टरता से अलग अपनी नई पहचान कायम करने की ज़रूरत है । नहीं ओला , एयरटेल , पासपोर्ट हर कहीं समस्याएं बढ़ती जाएंगी । और आप अपने को सभ्य नागरिक साबित करने में सारी ऊर्जा खर्च कर अपने को अपमानित करवाते रह जाएंगे । याद रखिए कि किसी कारण नदी का पानी गंदा हो जाता है तो उस नदी की पूजा करने के बावजूद लोग उस का पानी नहीं पीते , आचमन नहीं करते , उस में नहाते भी नहीं । गंगा सहित अपने देश की तमाम नदियों का यही हाल हो गया है । फिर आप तो मनुष्य हैं । मनुष्यता छोड़ कर सिर्फ मुस्लिम होने की पहचान काफी नहीं है । अपनी मुस्लिम पहचान के साथ अपने सभ्य शहरी होने की पहचान भी कायम करनी बहुत ज़रूरी है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लामिक आतंकवाद ने दुनिया भर के मुसलमानों की पहचान खतरे में डाली है इस बात को समझना ज़रूरी है । भारत में मौलानाओं के कट्टर रवैए ने इस में बहुत इज़ाफ़ा किया है ।

अभी वाट्स अप पर एक लतीफ़ा चला है । लतीफ़ा ज़रूर है पर इस में एक गहरा संदेश भी छुपा है । लतीफ़ा अंगरेजी में है । लतीफ़े के मुताबिक़ अमरीका में एक टाइगर ने एक लड़की पर हमला कर दिया । लेकिन एक व्यक्ति ने लपक कर टाइगर से लड़की को बचा लिया और टाइगर को मार डाला । एक रिपोर्टर ने उस व्यक्ति की तारीफ करते हुए कहा कि एक अमरीकी हीरो ने टाइगर को मार कर लड़की को बचा लिया । उस आदमी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि मैं विदेशी हूं । तो रिपोर्टर ने बात बदलते हुए कहा कि एक विदेशी हीरो ने टाइगर को मार कर लड़की को बचा लिया । फिर उस आदमी ने बताया कि , मैं पाकिस्तानी हूं । रिपोर्टर ने तुरंत रिपोर्ट बदल दी और ब्रेकिंग न्यूज़ चलाते हुए बताया कि एक आतंकवादी ने इनोसेंट टाइगर को मार डाला जब कि एक लड़की उस टाइगर के साथ खेल रही थी। 

सोचिए कि एक पाकिस्तानी , एक मुस्लिम की यह छवि अगर बन रही है तो यह खतरे की बड़ी घंटी है । मुस्लिम समाज को अपनी इस छवि को बदलने की कोशिश करनी चाहिए । न कि ऐसी बात सुनते ही हमलावर होने की । मुस्लिम समाज के उदार लोगों को आगे आ कर अपने समाज में बदलाव की तरकीब निकालनी चाहिए ।

नहीं अगर भारत का बहुसंख्यक हिंदू समाज एक अल्पसंख्यक समाज से इस तरह डर कर या बिदक कर अलग होने लगा है , डरने लगा है , वह समाज जो अभी तक गंगा जमुनी तहजीब में यकीन करता है तो यह बड़ी घटना है । यह जहरीले सेक्यूलर लोगों के झांसे में आ कर मुस्लिम समाज अपने को बरबाद नहीं करे । पूरा भारत हिंदूवादी नहीं है , संघी , भाजपाई नहीं है । उदार हिंदू ज़्यादा हैं इस देश में । और संयोग से मैं हिंदूवादियों और सेक्यूलरिज्म की दुकान चलाने वाले दोनों को ठीक से जानता हूं । कह सकता हूं कि मुस्लिम समाज की रक्षा के नाम पर यह सेक्यूलर ज़्यादा जहर घोलते हैं और मुसलमानों को उकसा कर उन का बहुत नुकसान करते हैं । मुट्ठी भर इन सेक्यूलर दुकानदारों के पास अपनी कोई ठोस ज़मीन नहीं है । संघी , भाजपाई की निंदा और उलाहने की एक हवा-हवाई दुकान है बस । मुस्लिम समाज को सोचना चाहिए कि आखिर उन के पास अपना एक सुलझा हुआ नेतृत्व क्यों नहीं है। क्यों उन्हें कुछ कट्टर लोग जब चाहते हैं , जहां चाहते हैं , गाय , बकरी , भेड़ की तरह हांक देते हैं । ए पी जे अब्दुल कलाम , अब्दुल हमीद जैसे लोग उन के आदर्श क्यों नहीं है । उन की अगुवाई आज़म खान या ओवैसी जैसे लोग ही क्यों करते हैं ? अशफाकुल्ला की जगह अफजल गुरु कैसे आप के आदर्श होने लगे ? फिर बार-बार मुसलमानों को ही अपनी देशभक्ति अब क्यों साबित करनी पड़ती है । कभी इस बिंदु पर सोचा है ? दुनिया भर में आप तबाही के पर्याय क्यों बनते जा रहे हैं , कभी सोचा है ?

सौ बात की एक बात दुनिया में मुस्लिम समाज से लोग क्यों बिदक रहे हैं , क्यों डर रहे हैं । और कि मुस्लिम बहुल बस्ती को मिनी पाकिस्तान का दर्जा क्यों देने लगे हैं । क्या पाकिस्तान ही आप का आदर्श है । आप की मंज़िल क्या पाकिस्तान की तरह बरबाद जीवन जीना है ? अगर ऐसा ही है तब तो मुझे कुछ नहीं कहना । लेकिन मैं अपने तमाम मुस्लिम दोस्तों को जितना जानता हूं उस हिसाब से जानता हूं कि मुस्लिम समाज भी सभ्य शहरी बन कर सम्मान से जीना चाहता है । कबीलाई समाज नहीं बनना चाहता । तो दोस्तों अपने को , अपने समाज को अब से सही बदलिए । यह क्या कि माई नेम इज खान कहते ही दुनिया भर के हवाई अड्डों पर आप के कपड़े उतरने लगें । ओला ड्राइवर कहने लगे कि वह तो मिनी पाकिस्तान है , वहां हम नहीं जाएंगे । और आधी रात आप को बीच रास्ते उतार दे । जब , तब एयरटेल जैसी स्थिति आ जाए । पासपोर्ट के लिए भी आप को जब-तब लड़ना पड़े । पहले तो ऐसा नहीं था । यह हम कौन सा भारत और कौन सा समाज बना रहे हैं । निश्चित ही आप भी ऐसा समाज और ऐसा भारत या ऐसी दुनिया नहीं क़ुबूल करेंगे । देश के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलना सीखिए। निकलिए मिनी पाकिस्तान की कट्टर छवि से ।

जैसे पूरा देश ए पी जे अब्दुल कलाम का नाम सुनते ही श्रद्धा से सिर झुका लेता है , अल्लाह ताला से मनाईए कि माई नेम इज खान सुन कर उसी गुमान से सब का सिर गर्व से आप के लिए उठ जाए । न सिर्फ़ भारत में बल्कि समूची दुनिया में । कबीलाई सोच और ओवैसी , आज़म खान जैसे दुकानदारों की घृणित सोच से छुट्टी लीजिए यह लोग आप का नुकसान कर रहे हैं । बहुत ज्यादा नुकसान । मुस्लिम समाज पर अब और बट्टा न लगने दीजिए । मुस्लिम बन कर ही नहीं , सच्चे भारतीय बन कर जीना सीखिए , सब कुछ सामान्य हो जाएगा । भारतीय पहले बनिए । लीजिए अमीर खुसरो के कुछ दोहे पढ़िए और अपना मुस्तकबिल संवारिए :

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पिया को, दोऊं भए इक रंग।।

खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।।

खुसरो मौला के रूठते, पीर के सरने जाय।
कह खुसरो पीर के रूठते, मौला नहीं होत सहाय।

उज्ज्वल बरन अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।
देखन में तो साध है, पर निपट पाप की खान।।

गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डाले केस।
चल खुसरो घर आपने, सांझ भई चहूँ देस।।

खीर पकाई जतन से, चरखा दिया जलाय।
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजाय।।

श्याम सेत गोरी लिए, जनमत भई अनीत।
इक पल में फिर जात हैं, जोगी काके मीत।।

अंगना तो परबत भया, देहरी भई बिदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।।

साजन ये मति जानियो, तोहे बिछड़त मोको चैन।
दिया जलत है रात में, और जिया जलत दिन रैन।।

पंखा हो कर मैं डुली, साती तेरा चाव।
मुझ जलती का जनम गयो, तेरे लेखन भाव।

रैन बिना जग दुखी है, और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी, और दुखी दरस बिन नैन।।

नदी किनारे मैं खड़ा, सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरो मैं सांवरी, अब किस विध मिलना होय।।

संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जाएंगे, जैसे रणरेही का खेत।।

खुसरो पाती प्रेम की, बिरला बांचे कोय। 
बेद कुरान पोथी पढ़े, प्रेम बिना न होय।।

आ साजन मेरे नैनन में, सो पलक ढांप तोहे दूं।
न मैं देखूं औरन को, न तोहे देखन दूं।।

अपनी छवि बनाय के, मैं तो पी के पास गयी।
जब छवि देखि पीहूं की, सो अपनी भूल गयी।।

खुसरो सरीर सराय है, क्यों सोवे सुख चैन।
कूच नगारा साँस का, बाजत है दिन रैन।।

Wednesday, 20 June 2018

मुस्लिम बहुल इलाके मिनी पाकिस्तान का रुप ले चुके हैं , यह तो सच है

ओला और एयरटेल के मार्फत जो मामले सामने आए हैं , वह दुर्भाग्यपूर्ण ज़रुर हैं पर सच हैं । मुसलमानों ने अपनी छवि ही ऐसी बना ली है । मुस्लिम बहुल इलाके मिनी पाकिस्तान का रुप ले चुके हैं , इस से अगर कोई इंकार करता है तो वह न सिर्फ़ अंधा है बल्कि मनबढ़ है और कुतर्की भी । अगर यकीन न हो तो किसी भी मुस्लिम बहुल इलाक़े में रहने वाले इक्का दुक्का नान मुस्लिम से बात कर लीजिए । हकीकत पता चल जाएगी । और जो कोई नया सेक्यूलर है और प्याज खाने का बड़ा शौक़ीन है तो उसे बाकायदा चैलेंज देता हूं कि सौ प्रतिशत मुस्लिम बहुल इलाके में ज़मीन या मकान खरीद कर दिखा दे । या फिर किराए पर मकान ले कर इज्जत से साल भर रह कर दिखा दे । किराएदार ! अरे , मुस्लिम बहुल इलाकों में पुलिस वालों का आना-जाना दूभर है । बिजली वाले जाते ही नहीं । अगर अवैध कनेक्शन काटने जाते हैं तो पिट कर आते हैं । यह तो लखनऊ का हाल बता रहा हूं । उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों या देश के बाक़ी हिस्सों की हालत भी यही है । पुराने लखनऊ के ख़ास कर चौक और नखास इलाके के तमाम नान मुस्लिम तो नान मुस्लिम अब तो मुस्लिम भी उन इलाकों में रहने से घबराते हैं । यही कारण है कि चौक और नखास इलाकों में अब कोई प्रापर्टी कौड़ी के मोल भी खरीदना नहीं चाहता । मुसलमान भी नहीं । इन मुहल्लों से बाहर आने पर इन मुस्लिम को भी जल्दी किराए का घर नहीं मिलता । दो का घर चार में खरीद लें तो बात अलग है । मुसलमानों का कट्टर होना , लीगी होना उन का बहुत नुकसान कर रहा है । देश का भी और समाज का भी नुकसान है इस में । अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवाद ने भी मुसलमानों का बहुत नुकसान किया है । बाकी जिन्ना मानसिकता , आए दिन मौलानाओं का नित नया फतवा , मदरसा की पढ़ाई और उन का कट्टरपन उन्हें आधुनिक समाज और जीवन से दूर रखता है । इस माहौल को बदलने के लिए पढ़े-लिखे और उदार मुसलमानों को आगे बढ़ कर इन मसलों को संभालना चाहिए । बात ज्यादा बिगड़े उस के पहले यह तसवीर दुरुस्त करने की ज़रूरत है । क्यों कि इस सब से सिर्फ़ मुस्लिम समाज का ही नहीं , समूचे समाज और देश का नुकसान है । जल्दी से जल्दी यह सूरतेहाल बदलना चाहिए । नहीं मुस्लिम समाज के अलगाव की हालत बहुत तकलीफदेह है । बताता चलूं कि गोरखपुर के जिस इलाहीबाग मुहल्ले में मैं पला-बढ़ा और जवान हुआ हूं , वहां भी मुस्लिम और हिंदू आबादी लगभग आधी-आधी थी । हमारे घर के पास में ही मस्जिद थी । अजान सुन कर ही सुबह होती थी , अजान सुन कर ही रात के सोने की तैयारी । तब माइक का चलन नहीं था , न लोगों की हैसियत थी इस की । पास ही मदरसा था । बहरामपुर , टिपरापुर जैसे मुस्लिम बहुल मुहल्ले बगल में थे । अधिकतर जुलाहे थे , दर्जी थे । पर यह कठमुल्लापन नहीं था । कोई मिनी पाकिस्तान नहीं था । कभी भी , कोई भी कहीं जा सकता था । आपसी सौहार्द्र और आपस में एक दूसरे के प्रति सम्मान था ।

मैं बहुत दूर नहीं जा रहा गोरखपुर में अपने गांव बैदौली की हालत बताऊं । हमारा गांव ब्राह्मण बहुल गांव है । लेकिन सभी जातियां मिल-जुल कर रहती आई हैं । पहले हमारे गांव में मुस्लिम भी साथ ही रहते थे । चूड़ीहार कहलाते थे । लेकिन दर्जी का काम भी करते थे । बैंड भी बजाते थे । खेती बाड़ी भी । सब कुछ साझा था । लेकिन कोई डेढ़ दशक पहले दो मुस्लिम घर गांव से अलग घर बना कर रहने लगे । उन के बच्चे सऊदी कमाने लगे थे । देखते-देखते पूरा मुस्लिम टोला बन गया वहां । मस्जिद बन गई । माइक पर नमाज होने लगी । जो लोग धोती , पायजामा पहनते थे , लूंगी पहनने लगे । टोपी लगाने लगे । जो औरतें सिंदूर लगाती थीं , बिछिया पहनती थीं , चूड़ी पहनती , पहनाती थीं , अचानक बुर्का पहनने लगीं । पहले यह सब कुछ नहीं था । मोहर्रम में पूरा गांव ताजिया उठाता था । घर-घर होते हुए ताजिया गुज़रता था । पूरा गांव ताजिया उठाता था । हम ने खुद ताजिया उठाया है । पूरा गांव ईद , होली मनाता था । पर अब ?

अब कुछ भी साझा नहीं रहा । गांव के लोग अब मुस्लिम टोले में नहीं जाते । मैं ही गांव जाता हूं तो वहां भी पुराने लोगों को खोजते हुए घूम आता हूं । लेकिन अब वह पहले वाली बात बदल गई है । गांव हिंदू , मुसलमान हो गया है । ग़नीमत बस यही है कि मुस्लिम आबादी बहुत कम है , ऊंट के मुंह में जीरा जैसी । सो वह कट्टरपन का रंग गाढ़ा नहीं हो सका है , सौहार्द्र कायम है । लेकिन पास ही एक मुस्लिम बहुल गांव है सलारपुर । वहां मुस्लिम कट्टरता अपने चरम पर है । जब कि पहले वहां भी कोई कट्टरता नहीं थी । पढ़े-लिखे और उदार मुस्लिम लोगों को समय रहते इस बदलाव , इस कट्टरता पर ध्यान देना चाहिए । मिली-जुली आबादी और मिली-जुली संस्कृति पर जोर देना चाहिए । मिनी पाकिस्तान बना कर रहना न मुस्लिम समाज के लिए शुभ है , न समूचे समाज के लिए , न देश के लिए , न मनुष्यता के लिए । यह खतरे की घंटी है । नहीं अभी देश की राजधानी दिल्ली में ओला के ड्राइवर ने मिनी पाकिस्तान बताते हुए मुस्लिम बहुल इलाक़े में जाने से मना करते हुए सवारी उतार दी है , एक लड़की ने एयरटेल का मुस्लिम इक्जीक्यूटिव बदलने की बात की है । यही स्थिति रही तो यह बात आगे बढ़ सकती है । और आप अल्ला हो अकबर ही करते रह जाएंगे ।

जाहिर है यह ओला ड्राइवर या वह लड़की भाजपाई , संघी और विहिप के लोग नहीं थे । लोग भूल गए हैं पर याद कीजिए कि कुछ समय पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ कर निकले तमाम इंजीनियर्स को कुछ कंपनियों ने नौकरी पर रखना बंद कर दिया था । अभी समय है , मुस्लिम समाज आगे बढ़ कर अपने को बदले । अपनी कट्टरता से छुट्टी ले । नहीं जैसे अपनी कट्टरता और आतंकवाद के चलते पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका है , भारतीय मुस्लिम समाज भी न फंस जाए । मुस्लिम समाज के लोगों को समझना चाहिए कि आखिर जब-तब कुछ लोग क्यों उन्हें पाकिस्तान भेजने की बात करने लगते हैं । ध्यान रखिए कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती । कश्मीर एक दिन में जलता कश्मीर नहीं बना है , न एक दिन में कश्मीरी पंडित वहां से विस्थापित हो गए । कश्मीर के जिस पाकेट में रोज उपद्रव होता है , जवान शहीद होते रहते हैं , उसे भी लोग वहां मिनी पाकिस्तान कहते हैं । तो क्या यह मिनी पाकिस्तान भी एक दिन में बन गया ?

बातें और भी बहुत हैं । फिर कभी । पर अगर इस मिनी पाकिस्तान की मुश्किल से जल्दी छुट्टी नहीं ली मुस्लिम समाज ने तो देश कब ज्वालामुखी के मुहाने पर आ खड़ा होगा , कोई नहीं जनता । क्यों कि यह तो मुस्लिम समाज को ही तय करना है कि देश और समाज में सम्मान और बराबरी से सीना तान कर सभ्य शहरी बन कर स्वाभिमान से रहना है कि मिनी पाकिस्तान बना कर रहना है । जहां किसी ओला , किसी उबर का ड्राइवर यह कह कर आप को उतार सकता है कि वह तो मिनी पाकिस्तान है , हम नहीं जाएंगे । फिर ओला , उबर से आगे दुनिया और भी है । और लोग भी मना कर सकते हैं ।

Thursday, 7 June 2018

संघ ने प्रणब मुखर्जी का साथ ले कर कांग्रेस को घेर लेने का शाकाहारी दांव खेल दिया है

नागपुर में संघ के शिविर के प्रतिभागियों को संबोधित करते प्रणब मुखर्जी 

लिख कर रख लीजिए 2019 के भारत रत्न हैं प्रणब मुखर्जी । यह बात मैं ने पहले भी लिखी थी । बैलेंस करने के लिए लालकृष्ण आडवाणी का नाम भी इस भारत रत्न में जोड़ लीजिए । बाक़ी एक पुरानी कहावत है सांप भी मर जाए और लाठी भी मर जाए वाली बात प्रणब मुखर्जी ने आज कर दी है । कांग्रेस द्वारा दो बार उन से प्रधान मंत्री की कुर्सी छीन लेने , चिदंबरम द्वारा अपनी जासूसी करवाने का जवाब कांग्रेस को उन्हों ने बिना कुछ कहे बड़ी ख़ामोशी से दे दिया है , साथ ही देश के बंग समाज को बिन कहा संदेश भी दे दिया है । संघ की निंदा भी नहीं की और न ही संघ की तारीफ़ की । लेकिन हिंदू , देश , विविधता में एकता आदि की संघ वाली बातें ज़रूर कह दीं । मुगलों को आक्रमणकारी भी बता दिया ।

कुल मिला कर कांग्रेस , वामपंथियों सहित समूचे प्रतिपक्ष और कठमुल्लों को संघ ने बहुत करीने से मुंह चिढ़ा दिया है । इन सब की बौखलाहट ने भाजपा को एक बड़ा स्पेस भी दे दिया है । परिणाम क्या मिलेगा यह समय बताएगा पर आप मानिए , न मानिए , 2019 के चुनाव के पहले की यह एक बड़ी राजनीतिक घटना है । वहीँ मोहन भागवत ने यह बात भी बहुत धीरे से कह दी है कि हेडगेवार पुराने कांग्रेसी थे और बतौर कांग्रेसी वह आज़ादी की लड़ाई में जेल भी गए । एक कांग्रेसी प्रणब मुखर्जी की उपस्थिति में यह कहना कई संदेश दे गया है । तो वहीँ प्रणब मुखर्जी ने हेडगेवार को भारत का सच्चा सपूत लिख दिया ।

संघ के शिविर में मंच पर मोहन भागवत और प्रणब मुखर्जी 
कृपया मुझे यह भी कहने दीजिए कि संघ ने प्रणब मुखर्जी का साथ ले कर कांग्रेस को घेर लेने का शाकाहारी दांव खेल दिया है । कांग्रेस के बहाने प्रतिपक्ष और कठमुल्ले भी निशाने पर है । अब यह अलग बात है कि सब के सब अपनी-अपनी हिप्पोक्रेसी में कैद हैं और प्रणब मुखर्जी को अपने ही पाले में बता रहे हैं । है न दिलचस्प नज़ारा । बहुतै दिलचस्प । आखिर प्रणब मुखर्जी के पास 48 वर्ष का संसदीय अनुभव है । राष्ट्रपति के अलावा वित्त मंत्री , वाणिज्य मंत्री , विदेश मंत्री , भी वह रहे ही हैं । डिप्लोमेसी के आचार्य हैं आख़िर । आचार्य , आचार्य ही रहेंगे ।

अब देखिए न कि प्रणब मुखर्जी के नागपुर जाने का बढ़-चढ़ कर विरोध करने वाली कांग्रेस अब और बढ़-चढ़ कर प्रणब बाबू की तारीफ़ कर रही है , तारीफ़ करते नहीं अघा रही है । खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली कहावत तो आप सब को याद ही होगी । अंधों को हाथी वाली कहावत भी । कोई सूड़ देख रहा है , कोई पूंछ , कोई पांव । कोई कुछ तो कोई कुछ । अजब मंज़र है । कोई गाते-गाते चिल्ला रहा है , कोई चिल्लाते-चिल्लाते गा रहा है ।लेकिन यह सब हुआ , कांग्रेस की मूर्खता और निर्लज्जता से । कांग्रेस अगर शुरू से खामोश रहती तो यह एक मामूली , सामान्य खबर बन कर रहती । लेकिन कांग्रेस की सक्रियता से यह पूरा कार्यक्रम राष्ट्रीय इवेंट बन गया ।

नागपुर में हेडगेवार के घर में मोहन भागवत और प्रणब मुखर्जी