Monday, 26 June 2017

बोनसाई बरगद



गमले के बोनसाई भी
अपने को जब सचमुच का बरगद समझ कर
बोलने लगते हैं तो कितने हास्यास्पद हो जाते हैं ,
कितने तो बौने दीखते हैं ,
वह बरगद होने के गुरुर में समझ नहीं पाते ।
समझ नहीं पाते कि
आफ्टरआल वह बोनसाई हैं , बोनसाई ही रहेंगे ।

इस कविता का मराठी अनुवाद 


🌹बोन्साय वटवृक्ष🌹
कुंडीतले बोन्सायही
स्वत:ला जेव्हा खरेखुरे वटवृक्ष समजून
बोलायला लागतात
तेव्हा किती
हास्यास्पद वाटतात
किती तर
खुजे दिसतात
वटवृक्ष असण्याच्या कैफात
ते समजूच नाही शकत
समजूच नाही शकत की
आफ्टर ऑल ते आहेत बोन्साय,
बोन्सायच राहणार ! 

अनुवादक ; प्रिया जलतारे 

Tuesday, 20 June 2017

उन का सुख

 
पेंटिंग : बी प्रभा
 
बहुतायत लोगों की हर खुशी में
गिनती के कुछ लोग
दुःख खोज लेने के लिए अभिशप्त हैं । 
 
गज़ब यह कि वह यह भी चाहते हैं
कि उन के दुःख में 
सभी लोग दुखी हो जाएं । 
 
यही उन का सुख है ।