Monday, 29 August 2016

घर भर की आंखों में सुख भरे आंसू परोस कर मेरी प्यारी और दुलारी बेटी अनन्या अपनी ससुराल गई

दामाद जी डॉक्टर सवित प्रभु और बेटी अनन्या

यह मिठास , यह सुख , यह ख़ुशी समय के सागर में सर्वदा छलकती रहे


मेरी बड़ी बेटी अनन्या जैसी सौभाग्यशाली बेटी भगवान सभी को दें। मेरे जैसा सौभाग्यशाली पिता भी भगवान सभी बेटियों को दें । बीते 23 अगस्त , 2016 को मेरी बड़ी बेटी अनन्या के शुभ विवाह संपन्न होने के साथ मेरा एक सलोना और सजीला सपना पूरा हो गया । कहते हैं कि जो आप बोएंगे , वही काटेंगे । तो 34 बरस पहले मैं ने भी बिना दहेज के विवाह किया था , अब बेटी अनन्या का विवाह भी बिना दहेज़ आदि के ख़ूब धूम-धाम से संपन्न हुआ । इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान , गोमती नगर , लखनऊ में संपन्न हुए इस शुभ विवाह समारोह में अनन्या के शुभ विवाह की तैयारियों में मेरे सभी चारो छोटे भाइयों , परिवारीजनों , रिश्तेदारों और मित्रों ने जो अनथक मदद की , सहयोग और सद्भाव जताया वह भी अनन्य था । पूजनीया अम्मा और पूजनीय पिता जी का आशीर्वाद और सहयोग भी क़दम-क़दम पर मिला । नहीं धारा और परंपरा के विपरीत भादो माह में उत्तर प्रदेश से दूर केरल के कालीकट शहर में बेटी का व्याह करना मुश्किल ही था । मुश्किल ही था कुल दस दिन में विवाह की सारी तैयारियां कर पाना । पर सब कुछ सहज ही संभव हो गया । 8 अगस्त को शगुन के साथ ही विवाह तय हुआ । शादी की तारीख़ तय हुई 23 अगस्त । 14 , 15 और 16 अगस्त को तिलक आदि के लिए पिता जी , मैं , छोटा भाई ब्रह्मानंद और बेटा उत्सव कालीकट में थे। अब आगे-पीछे मिला कर बचे सिर्फ़ दस दिन । इसी में शादी की जगह बुक करना , निमंत्रण पत्र छपवाना , वितरित करवाना , कैटरर्स तय करना , डी जे , फ़ोटोग्राफ़र आदि-आदि  बुक करना । बारातियों-घरातियों सब के रहने आदि का बंदोबस्त । तमाम किसिम की ख़रीददारी । गोरखपुर से परिजनों , रिश्तेदारों को बुलाना । तैयारी पर तैयारी ।

कन्यादान के क्षण

अब यह लीजिए 19 अगस्त को मानर पूज दिया गया । मटिमंगरा हो गया । बेटी को लगन लग गई । ऐसे जैसे समय की नदी मेरे साथ ही बह रही थी । और मैं समय के साथ । 20 अगस्त से बाराती आने लगे । 21 और 22 अगस्त तक बाराती आते रहे । एयरपोर्ट से उन को विभिन्न फ्लाइटों से लगातार रिसीव करना । गोरखपुर से निरंतर आ रहे परिजनों और रिश्तेदारों को रेलवे स्टेशन से रिसीव करना । सभी को ठहराना , भोजन आदि का प्रबंध वग़ैरह ऐसे होता गया गोया बादलों का झुंड पर झुंड किसी पर्वत को छू कर अनायास निकलता  जाए । और कुछ पता ही नहीं चले । यही हुआ मेरे साथ । और बारंबार हुआ । सब को कार्ड नहीं भेज सका । कुछ नाम याद आए , कुछ तुरंत याद नहीं आए । तो बहुत सारे मित्रों को एक फ़ोन कर दिया , कुछ मित्रों को मेल , कुछ को फ़ेसबुक पर इनबॉक्स संदेश दिया । ज़्यादातर मित्र विवाह समारोह में सिर्फ़ सूचना मात्र पर भी आ भी गए । दिल्ली , बनारस , सलेमपुर , गोरखपुर , सहारनपुर तक से । सुदूर देहात से भी । अमरीका , इंग्लैंड , जापान आदि जगहों से भी मित्रों ने फ़ोन कर के , संदेश भेज कर , मेल भेज कर अपनी उपस्थिति दर्ज की और बेटी-दामाद को आशीष दिया । कुछेक मित्र ठसक में चूर हो कर नहीं भी आए । कुछ कार्ड पा कर भी आंख मूंद गए । बहाना बना गए । विवाह समारोह में बहुत से मित्रों से भारी भीड़ के बीच भेंट नहीं हो पाई । बहुतेरे प्रिय और आदरणीय मित्रों को पूरा समय नहीं दे सका । एक मित्र को तो यह शिकायत भी हुई कि विवाह स्थल पर पहुंचने पर गेट पर उन की अगुवानी के लिए कोई नहीं मिला तो वह खिन्न हो कर वहीं से लौट गईं । बिना मुझ से या बेटी या किसी परिजन से मिले । ऐसा उन्हों ने ही बताया । अब इस ' दुर्लभ बांकपन ' का हिसाब भी बेहिसाब है । इस बाबत कुछ कहना सुनना भी बेमानी है ।

शुभ-विवाह की रस्में
जिस सागर किनारे बसे कालीकट में कभी वास्कोडिगामा आया था , भारत की खोज में , उसी  कालीकट [ केरल ] से लखनऊ आई बारात जैसे समुद्र जैसा ही अपरंपार सुख समेट कर मेरी बेटी के लिए लाई थी । दामाद जी , समधी जी , समधिन जी और उन की बेटी , दोनों दामाद और परिजन पानी की तरह ही मिले । मैं ने विनय भाव में जो भी कहा वह लोग सब कुछ सरल भाव से ,  बिना कोई प्रश्न किए विनीत भाव से करते गए । रत्ती भर भी दर्प नहीं । न अहंकार , न अकड़ , न घमण्ड , न लालच , न लोभ , न नाज़ , न नखरा । न कोई फ़रमाइश ,  न ख्वाहिश , न कोई पैतरा । सब के ही साथ सर्वदा मुस्कुराते हुए , सहयोग करते हुए । न सुख की परवाह , न दुःख की । ऐसे जैसे सब के सब लोग बुद्ध हों । तटस्थ भाव लिए हुए । संकोच , सरलता , सहजता , सौम्यता और शालीनता की प्रतिमूर्ति । ऐसे सहृदय और सरल बाराती उत्तर भारत में वह भी ख़ास कर ब्राह्मण वर्ग में तो मैं ने अब तक के जीवन में कभी नहीं देखा है । आगे भी ख़ैर क्या देखूंगा ।

बेटी को मंगल सूत्र पहनाते दामाद जी
दिन में बेटी का शुभ-विवाह हुआ । एक ही मंडप में दोनों तरफ की रस्में हुईं । बिना किसी अड़चन के । वह लोग हमारी रस्में देखते रहे , हम लोग उन की रस्में । जैसे दो संस्कृतियों का , दो भाषाओं का संगम हो रहा था । संस्कृत और अंगरेजी सेतु की तरह उपस्थित थी । तफ़सील में कहूं तो त्रिवेणी उपस्थित थी और बेटी के शुभ-विवाह का मंडप प्रयाग राज बन गया था । जनक बन कर मैं साक्षी भाव से निरख रहा था । हमारे सारे परिजन हमारे इस जनक भाव के साक्षी थे । साक्षी थे ऐसे सरल , सहृदय , विनत बाराती जन के । फेरों के संपन्न होने के बाद इसी दिन दोपहर बाद कोर्ट में मैरिज रजिस्ट्रेशन भी हो गया । रात में प्रीति-भोज । सुमधुर भोजन , संगीत और नृत्य में डूबा यह प्रीति-भोज सभी को मुदित कर गया । 24 अगस्त की अल्ल सुबह बेटी अनन्या अपनी ससुराल के लिए विदा हो गई । घर भर की आंखों में सुख भरे आंसू परोस कर । सब को सिसकता और रोता हुआ छोड़ कर । शाम की फ़्लाईट से उड़ गई लखनऊ से । ऐसे जैसे कोई गौरैया उड़ गई हो आंगन से । लेकिन मन के आंगन से वह नहीं उड़ी है । बेटियां मन में सर्वदा बसी रहती हैं । अनन्या भी बसी रहेगी मेरे मन में । जीवन पर्यंत । अनन्या वैसे भी अनन्य है । असंख्य लोगों में इकलौती । एक ही । इसी लिए पुनः दुहराने को मन कर रहा है कि मेरी बड़ी बेटी अनन्या जैसी सौभाग्यशाली बेटी भगवान सभी को दें। ऐसा ही ख़ूब पढ़ा-लिखा शालीन , सौम्य और सरल दामाद भगवान सभी को दें । ऐसे ही सभ्य , सौम्य , शालीन और सरल समधी - समधिन भी मिलें । और कि ऐसे ही निश्छल और नाज़ नखरे से मुक्त बाराती भी । ताकि लोग बेटी का पिता होने में सर्वदा गर्व महसूस करें । जैसा कि मैं कर रहा हूं । बड़ी पुलक , चैन और गहरी आश्वस्ति के साथ कर रहा हूं ।

बेटी दामाद के पांव पूजते हुए हम दोनों
जब 24 अगस्त की शाम को एयरपोर्ट जाने के लिए अपने समधी जी डॉक्टर टी एस बाला प्रभु जी के पास उन के कमरे में पहुंचा तो बेटी के विछोह में मुझे उदास और रुआंसा देख कर मेरे कंधे पर अपना स्नेहिल हाथ रख कर दिलासा देते हुए बोले मिस्टर पांडेय , आप परेशान बिलकुल मत होइए । अब तक मेरी दो बेटियां थीं , अब मुझे एक और बेटी मिल गई है ।  अभी तक आप के एक बेटा था , वह ज़रा रुके और दामाद डॉक्टर सवित की तरफ इंगित करते हुए बोले , आप को अब एक और बेटा मिल गया है । यह सुन कर मेरे भीतर बैठा मेरा जनक पुलकित हो गया । लेकिन आंखें मारे ख़ुशी के फिर छलक पड़ीं । निर्बाध ! समधिन डॉक्टर विजय कुमारी जी ने मुझे अपने ममत्व में बांध कर ढाढस बंधाया , चुप कराया । ऐसे ही जब समधी , समधिन बेटी से मिलने आए थे और अचानक शगुन दे कर मुझे हक्का-बक्का कर गए थे , तब के समय भी वह मेरे कंधे पर स्नेह से अभिसिंचित वात्सल्य भरा अपना हाथ रख कर बोले थे कि आप की बेटी अनन्या को हम महारानी बना कर अपने घर में रखेंगे । तब भी मेरी आंख सुख में भीग कर छलक पड़ी थी । ख़ैर यह बात याद कर और दामाद को बेटा मान कर मैं इन लोगों के साथ मुदित मन एयरपोर्ट के लिए निकल पड़ा । भूल गया कि घर पर मिठाई के ढेर सारे डब्बे भी रखे हैं , विदा के क्षण में इन लोगों को देने के लिए । मन की इस मिठास के आगे किसी और मिठास की ज़रुरत भी कहां रह गई थी भला ? अब रोज-रोज फ़ोन पर बेटी की खिलखिलाहट भरी बातें मन में बसी इस मिठास को द्विगणित करती जाती है । अनन्य है मेरी बेटी अनन्या और धन्य-धन्य हूं मैं । यह मिठास , यह सुख , यह ख़ुशी समय के सागर में सर्वदा छलकती रहे , मन की नदी में यह मिठास , यह सुख , यह ख़ुशी सर्वदा बहती रहे यही कामना है और यही प्रार्थना भी । बेटी और दामाद का दाम्पत्य-जीवन और कैरियर सर्वदा सुखी और संपन्न रहे । ख़ूब फूलें-फलें , ख़ूब आगे बढ़ें , तरक्की करें सर्वदा ख़ुश रहें । शांति , सुख और संतोष उन के जीवन में सर्वदा उपस्थित रहे । यही आशीष है , यही प्रार्थना है । फ़िलहाल हज़ारों फ़ोटो में से उपलब्ध कुछ रेंडम फ़ोटो । फ़ोटो खींची है बेटे उत्सव के दोस्त विराट सहाय और उस की टीम ने । मिलते ही , जल्दी ही और भी तमाम फ़ोटो परोसता रहूंगा।

दामाद जी को चेन पहनाती हुई पत्नी

जयमाल के लिए जाती बेटी
जयमाल
जयमाल के बाद

रस्में पूरी करवाता बेटा उत्सव


सात फेरे लेते बेटी और दामाद जी 


शुभ-विवाह संपन्न होने के बाद
विवाह स्थल पर पहुंचते हुए
बेटे उत्सव को कुछ बताते हुए
विवाह स्थल पर पहुंचते हुए
इमली घुटाई की रस्म पूरा करवाते अनन्या के मामा विष्णुमोहन शुक्ल
द्वारपूजा के समय वर पर अक्षत की बरसात कर स्वागत करती बेटी अनन्या

द्वारपूजा के लिए दामाद जी को गोद में ले आता बेटा उत्सव और भतीजा पीयूष
द्वारपूजा में दामाद जी को टीका लगाते हमारे पिता जी
विवाह समारोह में समधी जी और समधिन जी से बतियाते हुए मैं
विवाह मंडप
विवाह मंडप


समधी-समधिन , दामाद और बेटी के साथ हम दोनों
बेटी अनन्या और दामाद सवित

बेटी अनन्या और दामाद सवित


बेटी और दामाद के साथ हम दोनों
समधी-समधिन , दामाद और बेटी के साथ हम दोनों
पिता जी , बेटी , दामाद , छोटी बेटी पुरवा , बेटा उत्सव और हम दोनों

अम्मा , पिता जी , बेटी - दामाद , सभी छोटे भाई , उन की बहुएं , सभी बच्चे और हम दोनों यानी हमारा पूरा भरा-पूरा परिवार

वर पक्ष और कन्या पक्ष की एक ग्रुप फ़ोटो । अम्मा , पिता जी , समधी-समधिन , उन के बेटी , दामाद और परिजन 
दामाद सवित की दीदी डॉक्टर पद्मा , जीजा डॉक्टर प्रवीन और उन की बेटी गौरी
बेटी-दामाद के साथ डॉक्टर प्रमथ नाथ अवस्थी , पुष्कर अवस्थी , मालिनी अवस्थी और हम दोनों
बेटी-दामाद के साथ दिवाकर त्रिपाठी , हम दोनों और छोटा भाई परमानंद
बेटी-दामाद के साथ नरेश सक्सेना , मैं और एकदम दाएं पवन कुमार
बेटी-दामाद के साथ  मैं , अमिताभ ठाकुर और नूतन ठाकुर 
बेटी-दामाद के साथ अरविंद  चतुर्वेदी और मैं
बेटी-दामाद के साथ योगेश प्रवीन और मैं 
बेटी-दामाद के साथ प्रदीप कपूर , मैं और कनक रेखा सिंह चौहान 
बेटी-दामाद के साथ ग्रिजेश पांडेय , निरुपमा पांडेय और हम दोनों 
बेटी-दामाद के साथ आर डी प्रेमी , अनिल पांडेय , योगेश मिश्र , संजय तिवारी और मैं 
बेटी-दामाद के साथ मैं , दिव्या शुक्ला , प्रज्ञा पांडेय , विजय पुष्पम पाठक और इंदु पांडेय 
बेटी-दामाद के साथ रुपाली श्रीवास्तव , राजीव कुमार श्रीवास्तव , दिनेश चंद्र वर्मा ,अब्दुल हई ख़ान , मैं , नवीन मठपाल , मोहम्मद ख़लील ख़ान , आर के गुप्ता और शिव शंकर त्रिवेदी 

विवाह समारोह में डांस करते बच्चे
विवाह समारोह का एक दृश्य 
बेटी की मेहंदी

बेटी की मेहंदी
बेटी की मेहंदी में 
बेटी की मेहंदी में बच्चे 
बेटी की मेहंदी में नाचती बेटी की ननद डॉक्टर पद्मा और परिजन 
बेटी की मेहंदी में बच्चे 
बेटी की मेहंदी में बच्चे 
हल्दी कार्यक्रम में कथा-पूजन
हल्दी कार्यक्रम
हल्दी कार्यक्रम
हल्दी कार्यक्रम
बेटी की विदाई के क्षण
बेटी की विदाई के क्षण
बेटी की विदाई के क्षण


चट मंगनी , पट व्याह वाली बात हो गई


आख़िर आज ईश्वर ने मेरी भी सुन ली । वह जो कहते हैं कि चट मंगनी , पट व्याह वाली बात हो गई । मेरी बड़ी बेटी अनन्या पांडेय की शादी आज डॉक्टर सवित प्रभु से तय हो गई । बीते 6 बरस से बेटी का विवाह खोजने की इस अनथक यात्रा में क्या-क्या नहीं देखना और भुगतना पड़ा । मान-अपमान के गरल पीते हुए , लालची और असभ्य जनों की भीड़ जैसे डस-डस लेती थी । बेटे के पिता , बेटी के पिता के आगे कैसे ख़ुदा बन कर अहंकार में रावण की तरह झूमते हैं , यह इबारत भी कभी भूल पाना कठिन है । इन अनगिन रेखाओं वाले गडमड कोलाज कब और कैसे भूल पाऊंगा , नहीं जानता । यातना की यह गगरी बहुत गहरी है । लेकिन किसिम-किसिम के खट्टे-मीठे अनुभव वाले तमाम ऊबड़-खाबड़ पथ से गुज़रती हुई यह अनथक यात्रा इस तरह अचानक इस पड़ाव पर समाप्त होगी , बिलकुल नहीं जानता था । नहीं जानता था कि सवित प्रभु जैसा इतना पढ़ा-लिखा , होनहार , अतिशय विनम्र , सरल , शालीन और सुंदर दामाद मेरे नसीब में लिखा है ईश्वर ने । ऐसा पढ़ा-लिखा , सुशील , शालीन , कुलीन , उदार और मेरी ही तरह भावुक तथा संवेदनशील परिवार मेरी बेटी के भाग्य में लिखा है। सब्र का फल मीठा होता है , यह सुनता तो आ रहा था , आज चख भी लिया । हालां कि यह बात भी 6 महीने से चल रही थी लेकिन निर्णय का मुकाम आज आया । कालीकट गवर्मेंट मेडिकल कालेज से एम बी बी एस डॉक्टर सवित प्रभु एम्स , नई दिल्ली से एम डी [ पैथॉलजी ] कर गोल्ड मेडल पाने के बाद नेशनल इंस्टीट्यूट आफ़ इम्योनालाजी , नई दिल्ली से डाक्टरेट कर इन दिनों भारत सरकार के रिसर्च इंस्टीट्यूट ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नॉलजी इंस्टीट्यूट में मेडिकल साइंटिस्ट हैं । इन्हीं दिनों भारत सरकार की तरफ से सितंबर में उन्हें दो साल के लिए एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर शोध के लिए ऑस्ट्रेलिया जाने की बात तय हो गई है । सो शादी की तारीख़ भी आनन फानन तय कर ली गई । 23 अगस्त , 2016 । आज सवित के पिता नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालजी से रिटायर सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर डॉक्टर बालगोपाल प्रभु और माता कालीकट गवर्नमेंट मेडिकल कालेज से रिटायर्ड प्रोफ़ेसर डॉक्टर विजय कुमारी कालीकट [ केरल ] से लखनऊ में मेरे घर बेटी से मिलने आए और शगुन दे कर रिश्ता पक्का कर लिया । जब डॉक्टर विजय कुमारी शगुन की साड़ी बेटी के कंधे पर रख रही थीं , बेटी को कंगन पहना रही थीं , मुझे अनायास रोना आ गया । रोना आ गया कि मेरी दुलारी और प्यारी बेटी अब हम से बिछड़ जाएगी। हम से दूर चली जाएगी। बहुत दूर चली जाएगी। ख़ुशी और ग़म का मिश्रण शायद इसी को कहते हैं । जीवन के यह निर्मम और सुखमय पड़ाव भी ऐसे ही प्रारब्ध बन कर कैसे चुपके से आ जाते हैं । आज समझ आ रहा है । इतना कि कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है । कि क्या कहें , क्या न कहें । कुछ फ़ोटो :