tag:blogger.com,1999:blog-2753140813004207827.post3845445919196907646..comments2024-03-24T01:16:11.773-07:00Comments on सरोकारनामा: शिवमूर्ति की स्वीकृति का बैंड-बाजाEditorhttp://www.blogger.com/profile/06419299550917531876noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-2753140813004207827.post-76258152762751485322014-07-14T06:47:53.300-07:002014-07-14T06:47:53.300-07:00लमही के साथ साथ क्रीष्ण कालजयी जी ने अपनी पत्रिका ...लमही के साथ साथ क्रीष्ण कालजयी जी ने अपनी पत्रिका सामवेद का भी अंक शिवमूर्ति जी पर आधारित रखा है .निःसंदेह इस राजा बेटे कि स्वीकृति बैंड बाजे के साथ हुई है .शुभकामनाएं !!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07599612649164484855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2753140813004207827.post-59076119314136633282012-11-10T01:06:32.054-08:002012-11-10T01:06:32.054-08:00वाह। दयानंदजी आपकी लेखनी का जवाब नहीं। वाह। दयानंदजी आपकी लेखनी का जवाब नहीं। ओम निश्चलhttps://www.blogger.com/profile/12809246384286227108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2753140813004207827.post-37907003352794976922012-10-24T08:10:09.912-07:002012-10-24T08:10:09.912-07:00शिवमूर्ति जी हमारे समय के जरूरी कथाकार हैं।इस लेख ...शिवमूर्ति जी हमारे समय के जरूरी कथाकार हैं।इस लेख के साथ लमही अंक का चित्र भी जोड देते तो और अच्छा होता।भारतेंदु मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07653905909235341963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2753140813004207827.post-73791593102252441962012-10-23T16:51:48.618-07:002012-10-23T16:51:48.618-07:00"आखिर साहित्य में कौन से वोट-बैंक की ज़रुरत आ..."आखिर साहित्य में कौन से वोट-बैंक की ज़रुरत आ पडी़ भला? प्रेमचंद का वह कहना कि साहित्य आगे-आगे चलने वाली मशाल है, लोग कैसे भूल गए? यह भी भला कैसे भूल गए कि साहित्य जोड़ने का काम करता है, तोड़ने का नहीं।" ...<br />इस लेख को जितनी बार पढ़ें इसकी कोई न कोई बात हमारा ध्यान आकर्षित कर ही लेती है । साहित्य के मठाधीशों के चिंतन के लिए अब इससे बेहतर पंक्तियाँ और क्या हो सकती हैं ? सुधाकर अदीब https://www.blogger.com/profile/06717441364320808324noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2753140813004207827.post-40965192628789375722012-10-23T08:35:49.972-07:002012-10-23T08:35:49.972-07:00बहुत अच्छाबहुत अच्छातेजवानी गिरधरhttps://www.blogger.com/profile/14373579732591050418noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2753140813004207827.post-55219299165349557952012-10-23T03:20:55.865-07:002012-10-23T03:20:55.865-07:00शिवमूर्ति के बहाने और भी तमाम लोगों के बारे में पढ़...शिवमूर्ति के बहाने और भी तमाम लोगों के बारे में पढ़ना अच्छा लगा।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2753140813004207827.post-39128218351105937722012-10-23T00:41:00.365-07:002012-10-23T00:41:00.365-07:00समीक्षा अब जैसे मूंगफली हो गई है। टाइम काटने के लि...समीक्षा अब जैसे मूंगफली हो गई है। टाइम काटने के लिए। अब एक कवि, अपने परिचित या दोस्त कवि के लिए लिखता है, मूंगफली की तरह, कोई कहानीकार, अपने दोस्त कहानीकार के लिए लिखता है। सिर्फ़ चर्चा के स्तर पर या सूचना के स्तर पर। आज-कल तो संपादक भी सिर्फ़ दोस्ती ही निभाते हैं, रचना से उन का कोई सरोकार नहीं, रचनाकार की शकल से मतलब रह गया है या फिर अपने अहंकार से मतलब है। सो संपादकों और पत्रिकाओं की स्थिति तो सुधाकर अदीब https://www.blogger.com/profile/06717441364320808324noreply@blogger.com