Tuesday 7 April 2020

ऐतराज बहादुर लोग और ट्रंप की धमकी का जश्न

नरेंद्र मोदी और ट्रंप की केमेस्ट्री 


कुछ बीमार जीवधारियों को , एजेंडाधारियों को ट्रंप नाम की एक गेंद मिली है। जैसे कौआ कान ले कर उड़ता है , वैसे ही अपने मतलब भर के ट्रंप के अधूरे बयान को ले कर पिकनिक पर निकल पड़े हैं यह सारे रोगी। जैसे इन की बीमारी को पंख लग गया हो। क्या लेखक , क्या पत्रकार। सब के सब। 56 इंच सीने की नाप ले कर ट्रंप को निपटाने का आह्वान कर रहे हैं। ट्रंप की धमकी का खिलौना मिल गया है इन ऐतराज बहादुरों को। सो ट्रंप की धमकी का जश्न मनाने में जोर-शोर से मशगूल हो गए हैं यह लोग।

याद कीजिए कि ऐतराज तो इन्हें जनता कर्फ्यू और लाक डाऊन पर भी था। क्यों कि यह ऐतराज बहादुर लोग हैं। यह वही लोग हैं जो गाय के हत्यारों को उन के खाने-पीने की आज़ादी के नाम पर संरक्षण देते हैं। यह वही लोग हैं जो कश्मीर के पत्थरबाजों को भटका हुआ निर्दोष और मासूम बताते रहे हैं। यह वही लोग हैं जो एयर स्ट्राइक , सर्जिकल स्ट्राइक पर सुबूत मांगते रहे हैं। यह वही लोग हैं जो फुल बेशर्मी से कहते रहे हैं कि पुलवामा में साज़िश कर सरकार ने सुरक्षा बलों को मरवा दिया। यह वही लोग हैं जो तीन तलाक की हिमायत करते रहे हैं। यह वही लोग हैं जो 370 खत्म करने को अन्याय और संविधान पर खतरा बताते रहे हैं। यह वही लोग हैं जो सी ए ए के नाम पर मुस्लिम समाज को बरगला कर देश भर में उपद्रव और दंगा करवाते हैं। शहर-शहर शाहीन बाग़ सजाते हैं। यह वही लोग हैं जो तबलीग जमात द्वारा देश भर में अप्रत्याशित रूप से कोरोना फ़ैलाने के अपराध और उन की बदतमीजियों को अपने पृष्ठ भाग में बड़ी बेशर्मी से छुपाते हैं। यह वही लोग हैं जो देश के किसी भी विपत्ति को सोशल मीडिया पर बेचने और जोर-शोर से बढ़ाने के कारोबार में एड़ी चोटी का जोर लगाने में महारत रखते हैं। अभी तक  इन्हें ट्रंप से चिढ़ थी। पर कल से ट्रंप इन्हें इतना अच्छा लगने लगा है कि बस पूछिए मत। ठीक वैसे ही जैसे आडवाणी इन को अब बहुत अच्छे लगते हैं।

कोई सिरफिरा भी जानता है कि मदद धमकी दे कर नहीं , मनुहार से ही मांगी जाती है। इस बाबत ट्रंप का पूरा वीडियो सुनिए , बात साफ़ हो जाएगी। फिर अगर भारत तमाम देशों से आज भी मदद ले रहा है तो दे भी रहा है। सिर्फ अमरीका ही नहीं है इस लेन-देन में। फिर अगर ऐसे समय भारत अमरीका को दवाई दे भी रहा है तो बुरा क्या कर रहा है। अच्छा अगर भारत अभी दवा न भी दे तो इस समय अमरीका कर क्या लेगा भारत का। या किसी भी का। फिर कोई भीख में यह दवा नहीं दे रहा भारत , अमरीका को। धन ले कर दे रहा है। भारतीय फार्मा कंपनियों के लिये यूएसए बाजार में अनियंत्रित प्रवेश भी अमरीका ने फौरन दे ही दिया है। एस एफडीए द्वारा लगाये गये सभी प्रतिबंधों को अमरीका ने हटा लिया है। अमरीका ने मान लिया है कि एफडीए भविष्य में भारतीय फार्मा कंपनियों को परेशान नहीं करेगा। गरज यह कि कुछ भी एकतरफा नहीं हुआ है। तो क्या यह सब ट्रंप की धमकी के धमक में हुआ है या आपसी समझ और ज़रूरत के मद्देनज़र ? पर अपने एजेंडाधारी जीवधारी इन सारी बातों को अपनी जहरीली टिप्पणियों में पी गए हैं।

याद कीजिए डोकलाम। चीनी सेनाएं जब डोकलाम के पास आईं तो यह एजेंडाधारी कितना तो जश्न मनाते रहे थे। ठीक वही जश्न इस समय ट्रंप के नाम पर यह एजेंडाधारी जश्न में हैं। देश के हर दुःख में जश्न और हर सुख में शोक , अब इन का स्थाई भाव है। इन के एन जी ओ की फंडिंग लगभग बंद हो चुकी है। तमाम कमेटियों से बाहर हैं। विदेश यात्रा आदि तमाम सुविधाओं पर लगाम लग गई है। सो यह लोग विक्षिप्तता की लास्ट स्टेज में हैं। 2014 से यह लोग भारी अवसाद में हैं। सो यह लोग मौका देखते ही किसी बर्रइया की तरह टूट पड़ते हैं।

भवानी प्रसाद मिश्र लिखते हैं : देखे हैं मैंने बाढ़ों से पड़े पेड़ / एक साथ बहते पेड़ों पर सहारा लिए सांप और आदमी / और तब एकाएक चमका है यह सत्य / कि बेशक सांप और आदमी आफत में एक हैं / मौत की गोद में सब बच्चे हैं। तो इस समय क्या दोस्त , क्या दुश्मन सभी देश मिल कर कोरोना से लड़ रहे हैं। लेकिन भारत में अपने एजेंडाधारी जीवधारी अपने होशो-हवास खो कर नरेंद्र मोदी को नीचे दिखाने के सारे यत्न में संलग्न हैं। ज्यूडिशियल किलिंग वाले नारे की तरह। तुम कितने अफजल मारोगे , हर घर से अफजल निकलेगा की तर्ज पर यह हर घर से कोरोना निकालने की दिशा में कार्यरत हैं।

यह समय कोरोना से लड़ने का है। पूरी दुनिया लड़ रही है। लेकिन इन एजेंडाधारियों ने अपनी सारी ताकत भारत सरकार और नरेंद्र मोदी से लड़ने और उन्हें नीचा दिखाने में खर्च कर दी है। यह लोग नहीं जानते तो इन्हें जान लेना चाहिए कि ताली और थाली समूची दुनिया बजा रही है। तो कभी ताली , थाली बजाने का मजाक , कभी दिया जलाने का मजाक।  तो कभी ट्रंप के बहाने नीचा दिखाने का अंदाज़। गुड है। इन्हें इन के बेशर्मी भरे काम में निर्बाध लगे रहने दीजिए। यह स्वतंत्रचेता लोग नहीं हैं। बहुत बीमार लोग हैं। एकतरफा सोचने वाले एजेंडाधारी जीवधारी लोग हैं। देश और समाज में टूटन देख कर खुश होने वाले लोग हैं। मनुष्यता में इन्हें यक़ीन नहीं है। रामधारी सिंह दिनकर की रश्मिरथी में कृष्ण की चेतावनी प्रसंग याद आता है :

वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।

सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।

मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।

‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।

हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।

जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।

हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-

‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।

अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।

‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।

दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।

‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।

शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।

‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि जिष्णु, जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।

जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।

‘भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।

‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।

सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।

‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!

मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण।

‘बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।

सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?

‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।

याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।

‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।

दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा।

‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।

आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।’

थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े।

केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित,
निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!

तो यह धृतराष्ट्र लोग हैं। अपने सुख में मगन लोग हैं। इन्हें इन के हाल पर छोड़ , इन्हें कुचलते हुए आप कोरोना से लड़िए। ट्रंप और अमरीका भारत के गहरे दोस्त हैं इस समय। उन से मदद लीजिए , उन को मदद कीजिए। अमरीका को भारत यह दवा मुफ्त में नहीं दे रहा। इस बात को भी समझिए। फिर भी आप किसी के दुःख में , उस के साथ खड़े होते हैं तो वह हमेशा आप को याद रखता है। इस समय चीन से भी बहुत सा सामान भारत मंगवा रहा है तो क्या चीन को धमका कर मंगवा रहा है ? जी नहीं। धन दे कर मंगवा रहा है। शहर-शहर भिजवा रहा है। बिना किसी भेदभाव के। 

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